अचानक ही नीना का मुँह बहुत तेज से सूख कर जैसे रेगिस्तान हो गया और उसकी नींद खुल गई।
“आज कल न जाने कितनी प्यास लगती है; रात को भी चैन से सो नही सकती……..” मन मे बुदबुदाते हुए नीना पानी पीने उठी।
हर रोज वो याद से बेड रूम में पानी रख ही लेती है ताकि उठ कर लेने न जाना पड़े। आज भी पानी तो कमरे में है पर उसको बाहर से रोशनी आती दिखी तो उसे लगा कही बाहर की कोई लाइट जलती हुई छूट गई है ।
हो सकता है कोई लाइट खुली रह गई हो।
कहते हुए नीना उठ बैठी ।
पानी पी कर वो बाहर निकल के देखने लगी ।
तभी नीना का छोटा बेटा सोनू बाथरूम से निकल कर अपने कमरे की तरफ बढ़ा, लाइट बाथरूम की ही जली हुई थी।
“अच्छा तुम हो बेटा, मैं समझी कही की लाइट ऐसे ही जल रही है…….क्या हुआ बेटा अब तक सोये नही? इतनी देर तक पढ़ाई मत करो….. देखो दो बज रहा है।” नीना ने सोनू की तरफ देखते हुए कहा।
“नही मम्मी मैं तो सो गया था………लेकिन उठना पड़ा……..” सोनू बोल कर जल्दी से अपने कमरे की तरफ बढ़ गया।
“हा मेरा राजा बेटा, अब सो जाओ जल्दी।” नीना प्यार से बोली और अपने बिस्तर पर आ के लेट गई।
उसे नींद नही आ रही थी। उसको कभी रात को अचानक तेज गर्मी लगने लागती है कभी पसीना बहुत आ जाता है। उम्र के इस अजीब दौर में जहाँ कभी लगता है बुढापा दस्तक दे रहा है फिर लगता है नही – नही अभी तो मैं पूरी तरह फिट हूँ; क्या 47- 48 की उम्र में कोई बुड्ढा हो जाता है।
रिश्तेदार और साथी महिलाये जिनमे से कुछ इस दौर से गुजर चुकी है, कुछ नही भी गुजरी है, लेकिन वो सब उसे तपाक से उसे सलाह देती है- ‘तू बूढ़ी हो रही है तभी ये प्रॉब्लम हो रही है।
उनकी बाते नीना के जले पर नमक छिड़कने का काम करती है।
अक्सर नीना सोच में पड़ जाती है कि ये सब महिलाएं पढ़ी – लिखी समझदार की श्रेणी में आती है फिर भी इस बदलाव के दौर में होने वाली समस्याओं को देख बूढ़ी होने का ताना मारती है।
फिर वो सोनू के बारे में सोचने लगी कि- कही ऐसा तो नही कि आजकल वो उसकी तरफ कम ध्यान दे पा रही है, क्योकि इन दिनों वो अपनी ही इन सब शारीरिक और मानसिक परेशानियों में उलझ कर रह गई है ।
दो तीन बार पहले भी वो सोनू को देर रात जागते हुए और हाथ – मुँह धोते हुए देख चुकी है। हाँ बड़े बेटे को कभी ऐसे परेशान नही देखा था उसने। वो चिंतित हो गई कि कहीं उसे कोई समस्या तो नही है।
अरे नही कोई समस्या क्यो होगी वो तो आजकल बस हर बात में चिंता ढूंढ ही लेती है।
वो सोचने लगी- जैसे कल ही कि बात हो, जब उसने किशोर जीवन मे कदम रखा तो जीवन और शरीर मे होने वालों बदलावों के बारे में उसकी माँ ने उसे सब ठीक से समझा दिया था ।
कुछ दर्द कुछ तकलीफे महीने में एक बार ही आती है और बाद में सब ठीक हो जाता है तब उसका नादान मन सोचता था- काश ये सब बदलाव आया ही न होता तो अच्छा रहता । आज जब वो सारे आये हुए बदलाव साथ छोड़ रहे है फिर से सब पहले जैसा हो रहा है तब फिर से उसे परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
नीना ने आराम से खर्राटे लेते सोये हुए अपने पति की तरफ देखा और सोचने लगी अगर हार्मोन्स के बदलाव ही वजह से स्त्री को जीवन मे परेशानियों का सामना करना पड़ता है तब तो पुरुषों को भी करना पड़ता होगा; उनके जीवन में भी बदलाव आता है तो उसका असर लड़को पर भी जरूर पड़ता होगा । लेकिन हम उस बारे में कभी नही सोचते है और न ही कोई चर्चा करते है।
आखिर क्यों? हो सकता लड़को को भी जरूरत पड़ने पर सही गाइडेंस न मिल पाता हो तभी कुछ बड़े होते लड़के बिगड़ने की दिशा में बढ़ जाते हो !
-नीना जी अब सो जाइये; ये सब इतने सारे अलग – अलग प्रकार के विचारों का वेग बता रहा है कि आप को थोड़ा मेडिटेशन करना चाहिए ताकि आप इस बदलाव की प्रक्रिया को आसानी से पार कर जाएं।
नीना ने खुद से ही कहा और सोने की कोशिश करने लगी। कब उसकी आँख लगी उसे पता भी न लगा लेकिन फिर खट – पट जैसी आवाजों से उसकी नींद उचट गई उसने मोबाईल उठाकर देखा अभी तो रात के साढ़े तीन ही बजे थे, फिर से बाथरूम की लाइट का उजाला उसके कमरे में भी आ रहा था।
इस बार बाथरूम में जली लाइट और खट – पट से नीना थोड़ा चिढ सी गई और बड़बड़ाती हुई अपने कमरे से बाहर आई-
क्या मुसीबत है, क्या हुआ है इस लड़के को? क्या सारी रात बाथरूम के चक्कर ही लगाता रहेगा !
तभी सोनू बाथरूम से बाहर निकल आया।
“क्या हुआ सोनू तुम फिर से बाथरूम में हो कोई प्रॉब्लम तो नही?” नीना कुछ गुस्से में बोली।
सोनू घबरा कर रुआंसा हो गया फिर बोला,” मम्मी पता नही क्यों कई बार लगता है सोते हुए थोड़ी सी सूसू हो गई हो इसलिये ही मैं अक्सर रात में उठ जाता हूँ, लेकिन आज……..”
“क्या आज? पूरी बात बोलो…….और मुझे पहले क्यों नही बताया ये सब?” नीना चिंतित स्वर में बोली।
“शर्म आ रही थी मम्मी कि मैं इतना बड़ा हूँ फिर भी ऐसे………”
“आज क्या? आज ज्यादा गीला हो गया बिस्तर?”
“अजीब सा गीलापन है आज कपड़ो में, सूसू जैसा भी नही लग रहा।” सोनू बोला।
नीना घबराहट से सन्न रह गई पर खुद को सामान्य करते पूछा, “क्या नींद में कोई सपने भी आते है?”
सोनू ने धीरे से कहा, “कभी – कभी….. लेकिन याद नही रहते।”
नीना सब समझ गई। मन मे सोचा- कैसे कहे, बेटा तू बड़ा तो हो गया पर ये सब समझ सके इतना भी बड़ा नही हुआ है अब हमें ही संभालना होगा, समझना होगा।
नीना ने मोबाइल, इंटरनेट और फिल्मो को दोष दिए बिना ही बोली, “सुबह पापा से बात करना उनको अपनी सब प्रॉब्लम बताना, वो भी तो तुम्हारी तरह बॉय है न, वो तुम को समझाएंगे, और डरो मत आराम से सो जाओ, कभी – कभी बड़ो से बात कर के कुछ समस्याओं का समाधान हो जाता है।”
“ओके मम्मी…….” कह के सोनू अपने कमरे में चला गया।
नीना वापिस आकर बिस्तर में लेट गई और सोचने लगी- इस उम्र के बच्चे लड़की हो या लड़का उस गीली मिट्टी की तरह होते है जो थोड़ा थोड़ा सूख कर अपना आकार लेने लग जाती है अगर इस नाजुक समय मे उन पर थोड़ा स्नेह, थोड़ी सख्ती, थोड़ा धार्मिक ज्ञान और उचित संस्कार की बौछार कर के मिट्टी को फिर से गीला कर के उचित आकार देने में चूक हो गई तो वो गलत आकार में ढल कर वही बन जाते है। इस नाजुक उम्र में लड़की हो या लड़का सभी को बदलते शरीर के साथ आगे बढ़ने और उचित मार्गदर्शन की बहुत आवश्यकता होती है।
नीना सुबह का इंतजार करने लगी; उसे ये सब पति को समझाना भी होगा क्योकि शायद हम माता – पिता लड़को को ज्ञाता समझ कर उन की इन समस्याओं की तरफ नही सोचते है, बल्कि उन को इस तरह की कोई समस्या हो तो उन को समझने की बजाय हम जले पर नमक छिडकते है और उन्हें बिगड़ा हुआ बोलने से नही चूकते है । इन सब बदलाव के कारण बिना ज्ञान और मार्गदर्शन के लड़के अनुचित बातो में भी पड़ जाते है। लड़कियों की भाँति इन बड़े होते लड़को को भी माता – पिता के साथ और उचित मार्गदर्शन की बहुत जरूरत होती है।
वो पति को समझाएगी की बच्चे से बात करे और समझाये। बच्चा इस समय अपनी इस समस्या से खुद ही परेशान है उन्हें उसे बिना मतलब डांट कर उसके जख्मो पर नमक छिड़कने की बजाय मरहम लगाना है, यदि आवश्यकता हुई तो उचित चिकित्सक के पास भी ले जाना होगा साथ ही बच्चे को अपना पूरा सहयोग देना है।
मौलिक/स्वरचित
शालिनी दीक्षित