शिखा तुम यहां धूप में क्यों बैठी हो? नई नवेली बहू ने घर से बाहर कर दिया क्या? देखो तो भला इस समय कौन इस तरह पार्क में बैठता है, घर में दस काम होते हैं,
अभी तो यहां कोई सहेली भी नहीं है, जिसके साथ बैठकर गप्पे लड़ा सकें, मनिता जी ने हंसते हुए कहा, जो अपनी बॉलकोनी में कपड़े सूखा रही थी कि उनकी नजर शिखा जी पर पड़ी।
अरे! नहीं तुम गलत समझ रही हो, मेरी बहू साक्षी ऐसी नहीं है, उसने तो मुझे जानबूझकर यहां भेजा है ताकि मैं थोड़ी देर धूप में बैठ सकूं, इससे विटामिन डी मिलता है, अब सुबह का काम तो बहू संभाल लेती है, वो ही कहती हैं कि मम्मी जी आपने सारी उम्र बहुत कर लिया, अब आप आराम कीजिए और खुद का ख्याल रखिए,
ये जो आपके जगह-जगह दर्द होता है, वो विटामिन डी और कैल्शियम की कमी की वजह से होता है, इसलिए आप सुबह की धूप में एक डेढ़ घंटा बैठ आया कीजिए, और मै अकेली नहीं हूं, मेरी मनपसंद किताबें भी साथ में है, जो मै कभी तसल्ली से पढ़ नहीं पाई थी पर अब बहू आने के बाद उसने मेरे शौक को समझा और बोली आप पार्क में धूप में भी बैठ जाया करो, और किताबें भी पढ़ लिया करो । अब हमारे फ्लैट में बॉलकोनी में सुबह के वक्त धूप जो नहीं आती है।
ये सुनकर मनिता जी की बोलती बंद हो गई, उनकी बहू ने उन्हें सुबह उठते से ही काम पर लगा रखा है, और एक शिखा है जो मजे से बगीचे में धूप सेंक रही है।
शिखा जी ने अभी दो महीने पहले अपने बेटे सुदीप की शादी साक्षी से की थी, साक्षी पढ़ी-लिखी और समझदार थी, वो अपनी सेहत का बहुत ध्यान रखती थी।
साक्षी की शुरू से ही एक नियमित दिनचर्या रही है, इसलिए उसे खाने-पीने, सोने, घूमने से लेकर हर काम में अनुशासन बहुत पसंद था, वो खुद भी सुबह उठकर घूमने जाया करती थी, इसी वक्त शिखा जी पूजा करती थी, इसलिए साक्षी के जोर देने पर उन्होंने हां भरी, पर वो बहुत जल्दी नहीं मानी, कभी दूध वाला आयेगा, कभी प्रेसवाला, कभी फलवाला तो कभी सफाई वाला, तो इन सबसे कौन काम को कहेगा?, तो साक्षी ने भी कहा कि मम्मी जी अब ये सब जिम्मेदारी आप मुझ पर छोड़ दीजिए, जिस तरह मैं एक घंटा अपने आपको देती हूं, आप भी उसी तरह दिया कीजिए, ये काम तो उम्रभर
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चलते ही रहेंगे। पहले शिखा जी को ये सब समझ नहीं आया पर धीरे-धीरे उन्होंने इस अच्छी आदत को अपना लिया।
शिखा जी की जिंदगी पहले ऐसे नहीं थी, तीन बच्चों की जिम्मेदारी उठाते हुए वो खुद का आराम और सेहत को भुल गई थी, जब से वो शादी होकर आई थी, तन-मन से इस घर को समर्पित हो गई थी, सुबह से लेकर रात तक बस घर की जिम्मेदारी उन्हें निभानी थी, अपने लिए तो कभी कुछ सोचा ही नहीं था, खाना जो बचा वो खा लिया, नींद का भी पता नहीं था, और अपने पहननें ओढ़ने पर भी कभी ध्यान नहीं दिया, जो साड़ी शादी ब्याह में आ गई वो ही पहनकर काम चला लिया।
लेकिन जब से साक्षी आई है, दो महीने में उनकी जिंदगी ही बदल गई है, आजकल की बहूओं के नखरे देखते ही वो घबरा रही थी कि जाने किस तरह की बहू आयेगी, आजकल की पढ़ी-लिखी लड़कियां, वैसे भी सास-ससुर की परवाह कहां करती है, उन्हें तो बस अपने आप से ही मतलब होता है, अपने पर ही ज्यादा ध्यान देती है।
जब साक्षी दूल्हन बनकर आई थी तो शिखा जी थोड़ी सी सहमी हुई थी क्योंकि उसे साक्षी के साथ ही रहना था, पर वो ये सोचकर भी घबरा रही थी कि उनकी और उनके पति सुरेश जी की आदतों की वजह से कहीं बहू नाराज ना हो जायें।
सुरेश जी को बार-बार चाय पीने का बहुत शौक था और शिखा जी को घर के बने पकवान पसंद थे, वो झट से कोई भी मिठाई या नमकीन घर पर ही बना देती थी। आजकल की बहूओं के ये सब फालतू काम ही लगता है। शिखा जी का भी वो ही हाल ना हो जायें जो उनकी बड़ी बहन कलावती जी का हुआ था।
वो भी बड़े चाव से बहू लाई थी, पर बहू ने आते ही कुछ महीनों बाद ही झगड़ना शुरू कर दिया था, घर की हर चीज पर अपना हक जताना शुरू कर दी और कलावती जी और उनके पति के खाने-पीने में कटौती करने लगी थी, चाय भी मांग लेते थे तो चाय भी बड़ी मुश्किल से मिलती थी, कुछ और महीनों बाद उनका घर से बाहर आना-जाना ही बंद करवा दिया, और वो लोग बीमार भी रहने लगे थे, बहू का उन दोनों की बीमारी के इलाज पर भी पैसा खर्च करना पसंद नहीं था, बेटे ने समझाना चाहा तो उसे भी दहेज के लालच में जेल भिजवाने की धमकी देने लगी, बेटे की गृहस्थी बनी रहे, इसलिए दोनों सब चुपचाप सहते रहे, जब कलावती जी अपनी छोटी बहन शिखा को सब कुछ बताती थी तो उनका दिल भी दहल जाता था, वो बहू नाम से ही डरने लगी थी।
कलावती जी उन्हें हर छोटी-बड़ी बात बताया करती थी,और आखिर दो साल बाद ही दोनों सास-ससुर को उनकी बहू ने वृद्धाश्रम पहुंचा दिया। ये सुनकर शिखा जी के रोंगटे खड़े हो गये थे।
सुदीप और साक्षी जब हनीमून से लौटे तो साक्षी ने आते ही घर संभाल लिया। वो रसोई में भी अच्छे से सब काम कर लेती थी, एक दिन सुरेश जी ने दोबारा चाय बनाने को कहा तो साक्षी ने कह दिया, पापाजी अब आपको दोबारा चाय नहीं मिलेगी, ये सुनते ही सुरेश जी और शिखा जी का चेहरा फीका पड़ गया और उन्हें अपनी बड़ी बहन कलावती जी का चेहरा नजर आने लगा।
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तभी साक्षी आगे बोलती है, पापाजी आपको पहले ही हाई बीपी, डायबिटीज है तो ज्यादा चाय आपको नुकसान करेगी, आप चाय की जगह हर्बल टी और ग्रीन टी पीया कीजिए, शुरू में आपको इनका स्वाद पसंद नहीं आयेगा पर धीरे-धीरे यही चाय आपको अच्छी लगने लगेगी, आपकी चाय की लत भी छूट जायेगी और सेहत में भी सुधार होगा, मै खुद आपको कल से ये चाय बनाकर पिलाऊंगी।
साक्षी के मुंह से ये सुनकर दोनों को अच्छा लगा, उन्हें लग रहा था कि कहीं बहू उनके खाने-पीने पर रोक तो नहीं लगा रही है। अगले दिन साक्षी ने उनको सुबह की चाय बनाकर दे दी और दोबारा मांगने पर अदरक नींबू वाली ग्रीन टी बनाकर पिलाई, तो उन्हें बहुत अच्छी लगी, धीरे-धीरे उनकी चाय की लत ही छूट गई, बीपी और डायबिटीज भी ठीक रहने लगे, सेहत में भी सुधार हो गया।
देख लिया, सभी बहूंएं एक जैसी नहीं होती है, हमारी बहू तो बेटी बनकर हमारा ख्याल रखती है, उसे हमारे आराम की भी चिंता है और सेहत की भी चिंता है, सुरेश जी ने हंसते हुए अपनी पत्नी से कहा।
हां जी ये बात तो आपने एकदम ठीक कही, वरना मै तो घबरा ही गई थी , मुझे तो रह-रहकर दीदी की शक्ल याद आ जाती है, उनकी बहू ने उनके साथ कितना बुरा किया था, उन्हें वृद्धाश्रम ही पहुंचा दिया था।
अगले दिन जब सुरेश जी और शिखा जी सोकर उठे तो साक्षी ने कहा कि मम्मी जी पापाजी आज हम सब कुलदेवी के दर्शन के लिए चल रहे हैं, वहीं पर ब्राह्मणों को भोज भी करवा देंगे।
अरे हां, आज तो मेरी सास की पुण्यतिथि है, तुम्हें कैसे याद है? शिखा जी ने पूछा।
वो जब मै शादी होकर आई थी, हम बहुत सी बातें करते थे तो आपने ही बताया था कि दादीजी की पुण्यतिथि आने वाली है तो मैंने मोबाइल में नोट कर लिया था।
अपनी पढ़ी-लिखी बहू की धर्म और परिवार में इतनी आस्था देखकर शिखा जी को बहुत खुशी हुई, वरना आजकल की लड़कियां ये सब कहां मानती है।
एक दिन शिखा जी मठरी बना रही थी तो साक्षी ने कहा मम्मी जी आप इसमें कितना तेल लगा रही है?
वो बहू तेरे ससुर जी को ये बहुत पसंद है, इसीलिए ये कहकर शिखा जी चुप हो गई।
मम्मी जी, आप ये मठरी एयर फ्रायर में क्यों नहीं बनाती हो, मै आपको सीखा दूंगी, पापाजी के इस बार टेस्ट में हाई कोलेस्ट्रॉल भी आया है, तो हमें मिलकर पापाजी का ध्यान रखना होगा, पापाजी के खाने का शौक भी पूरा हो जाएं और उनकी सेहत भी बनी रहे।
लेकिन बहू जो स्वाद तले हुए में आता है, वो इसमें कहां आयेगा?
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हां, मम्मी जी थोड़ा अंतर तो होगा, पर सेहत के लिए अच्छा होगा, जैसे पापाजी की चाय की आदत छूटकर ग्रीन टी की आदत लग गई है, पापाजी इस आदत को भी अपना लेंगे। शिखा जी को बहू की बात पसंद आई, उन्होंने वैसा ही किया।
सुरेश जी के तीन बच्चों में सुदीप सबसे छोटा था, दोनों बड़े बेटे विदेश में रहते थे, जो तीन-चार सालों में ही भारत आते थे, और खर्च का एक रूपया भी नहीं देते थे, उनको पढ़ाने लिखाने और विदेश भेजने में दोनों ने अपना घर तक बेच दिया था। छोटे बेटे सुदीप को भी विदेश से नौकरी का ऑफर आया था, पर उसने यही मम्मी -पापा के साथ में रहने का फैसला किया। सुदीप की भी अच्छी नौकरी लग गई थी, साक्षी से शादी को कुछ महीने हुए थे, और अब वो भी अपना फ्लैट लेने की सोच रहा था।
साक्षी और सुदीप फ्लैट देख ही रहे थे पर उन्हें कोई पसंद नहीं आ रहा था, काफी महीनों के ढूंढने के बाद
उन्हें एक घर पसंद आया। फ्लैट के लिए पैसे देने थे, कुछ पैसे सुदीप ने अपनी सेविंग से लगा दिये थे और बाकी के पैसे का इंतजाम नहीं हो पा रहा था।
सुरेश जी की भी साधारण सी नौकरी थी, उन्हें पेंशन भी नहीं मिलती थी और बाकी का पैसा वो बच्चों की परवरिश में लगा चुके थे, सुदीप ने लोन के लिए आवेदन कर दिया था पर डाऊन पेमेंट भी तो देना था।
आप मेरे गहने गिरवी रख दीजिए, किराये में बहुत पैसा जा रहा है, इससे अच्छा तो हम ये पैसा अपने घर में डालेंगे, साक्षी ने सुदीप से कहा।
लेकिन तुम्हारे गहने ऐसे कैसे गिरवी रख दूं? तुम्हारे मम्मी-पापा ने इतने प्यार से दिये है, ये तो ठीक नहीं होगा।
क्यों ठीक नहीं होगा? आखिर कितनी इच्छा होगी, मम्मी जी पापाजी की, एक अपना घर लेने की, कितने साल उन्होंने किराये के मकान में निकाल दिये, आप क्या एक घर बनाकर भी उन्हें नहीं दे सकते हैं? आपका भी कुछ फर्ज बनता है।
हां, साक्षी फर्ज बनता है, लेकिन मैं उसके लिए तुम्हारे गहने गिरवी नहीं रख सकता हूं, ये ठीक नहीं होगा।
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आखिर क्यों ठीक नहीं होगा, मै भी तो इस घर की हूं, आपका और मेरा एक ही सपना है, गहने तो बाद में भी छुडा लेंगे, घर एक बार बन जायेगा तो बन जायेगा।
आखिर में साक्षी सुदीप को मना ही लेती है।
सुदीप फ्लैट बुक करा लेता है और कुछ महीनों बाद उसमें इंटीरियर करवा लेता है, शिखा जी और सुरेश जी को बहुत खुशी होती है कि उनके बेटे ने अपना घर ले लिया है।
गृहप्रवेश का दिन आता है, सभी रिश्तेदारों को बुलाया जाता है, तभी साक्षी जी कलश शिखा जी को देती हुई कहती हैं कि मम्मी जी आप ये कलश लेकर पापाजी के साथ घर में प्रवेश कीजिए।
बहू मै ऐसे कैसे कर सकती हूं!! ये घर तो तुम्हारा और सुदीप का है, हमने तो इसमें एक रूपया भी नहीं लगाया
है।
मम्मी जी आप कैसी बातें कर रही है, आपके और पापाजी के आशीर्वाद से ही तो ये सब संभव हुआ है, मै और सुदीप घर लेने की हिम्मत कर पाये है, आपका आशीर्वाद हम पर सदैव बना रहे।
ये फ्लैट तो हमने आपके लिए लिया है, आप हम दोनों के साथ नहीं रहेंगे, बल्कि हम दोनों आपके साथ रहेंगे।
ये सुनकर शिखा जी की आंखें भर आई।
बहू मुझे माफ कर देना, मैंने हमेशा से तुम पर शक किया, मुझे लगा था कि तुम जैसी पढ़ी-लिखी लड़कियां सब एक जैसी होती है, जो अपने सास-ससुर का सम्मान नहीं करेंगी और हमे हर चीज के लिए तरसायेगी, पर तुम तो सबसे अलग निकली, तुमने तो हमारा बुढ़ापा ही सुधार दिया, तुमसे तो स्नेह और प्यार का अटूट बंधन बंध गया है।
कलावती जीजी और जीजाजी के पास इतना पैसा था, तो भी उनकी बहू उनका सम्मान नहीं करती है। जबकि हमारे पास तो बचत का एक रूपया भी नहीं है, मेरे पास कोई गहना तक नहीं बचा, फिर भी तुम हमें इतना मान सम्मान दे रही हो।
मुझे तो लगा था तुम दोनों इस फ्लैट में रहोगे और हमें वहीं हमारे हाल पर छोड़ दोगे।
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मम्मी जी, आपने ऐसा कैसे सोच लिया? मैंने तो हमेशा आपको अपने मम्मी-पापा की जगह देखा है, कोई अपने मम्मी-पापा को छोड़ता है क्या?
आपको मेरे व्यवहार से ऐसा लगा क्या? मै तो आपका और पापाजी का ध्यान रखती आई हूं,और वो नेमप्लेट देखिए, इस पर पापाजी और आपका नाम लिखा हुआ है, नेमप्लेट देखकर शिखा जी को विश्वास नहीं हुआ।
साक्षी, जिस घर में तुम्हारी जैसी समझदार और सम्मान देने वाली बहू हो, वो घर तो वैसे ही स्वर्ग बन जायेगा, जिसने प्यार और स्नेह के बन्धन से सबको बांध दिया है।
जिस परिवार को ऐसी बहू मिल जाएं तो ऐसे सास-ससुर का बुढ़ापा सुधर जाता है, मैं हमेशा ईश्वर को कहती थी कि मुझे बेटी क्यों ना दी, जो मुझे समझती, मेरे दर्द को महसूस करती पर तुम तो मेरी बेटी से बढ़कर निकली। बेटी होती तो ससुराल चली जाती, पर तुम तो सदा साथ ही में रहोगी, बहू से तो हमेशा ही स्नेह का बंधन होता है।
साक्षी दोनों के पैर छू लेती है और जोड़ें से गृहप्रवेश का आग्रह करती है, शिखा जी और सुरेश जी गृहप्रवेश करते हैं, सुदीप और साक्षी को बहुत सा आशीर्वाद देते हैं।
धन्यवाद
लेखिका
अर्चना खंडेलवाल
मौलिक रचना
# स्नेह का बन्धन
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