खोखले रिश्ते : Short Story in Hindi

रोजी अपनी सगाई का इन्विटेशन देने आई थी.. कितनी डांट लगाई मुझे ..अमन के साथ मेरा रिश्ता उसे जरा भी पसंद नहीं.. पर मैं क्या करूं.. रोजी से मेरी दोस्ती लगभग बारह साल पुरानी है.. बीएचयू में प्लस टू से से हम साथ थे…

            मेरे पापा मम्मी दोनो डॉक्टर… बड़ी बहन रुचि और मैं रचना चार लोगों का हमारा छोटा सा परिवार.. पर मम्मी शहर की प्रसिद्ध स्त्री रोग विशेषज्ञ कामना प्रसाद के पास अपनी दोनो बेटियों के लिए वक्त नहीं था.. सारी सहूलियतें थी पर मां के आंचल की छांव ममताभरे हाथों के स्पर्श का अहसास हमारे किस्मत में नही था.. पापा हृदय रोग विशेषज्ञ पर अपने बच्चों के दिल का हाल न कभी जाना ना हीं जानना चाहा.. कुल मिलाकर खोखले रिश्तों वाला परिवार था…

                                  सात साल की हो चुकी रुचि दी बहुत उदंड और बदतमीज होती जा रही थी… मम्मी घर में कम हीं रहती थी.. जितनी देर रहती रुचि दी मम्मी में हीं चिपके रहना चाहती थी या हॉस्पिटल जाते वक्त मम्मी को जोर से पकड़ के रोने लगती मम्मा मुझे छोड़ कर मत जाओ..जबरदस्ती छुड़ाने पर जमीन पर लेट कर जोर जोर से रोने लगती..

                        दादी और मम्मी में बनती नही थी इसलिए दादी छोटे चाचा के साथ ही रहती थी..

               रुचि दी को मसूरी के एक बोर्डिंग स्कूल में पापा मम्मी ने अपने दोस्तों से राय विचार कर डाल दिया..

                     मैं अकेली हो गई थी.. धीरे धीरे अंतरमुखी होती गई… अंदर हीं अंदर अकेलापन और असुरक्षा की भावना घर करती गई…

                 छुट्टियों में रुचि दी घर आती तो डर लगा रहता कब किस चीज को किस बात पर पटक देगी या तोड़ देगी… चिल्लाने लगेगी.. उदंडता और उग्रता और बढ़ गई थी..मम्मी से रुचि दी दूर हीं रहती…

                और वक्त अपनी रफ्तार से आगे बढ़ता रहा.. मम्मी पापा ने शहर में तीन नर्सिंग होम खोल लिए थे.. महीने में तीन दिन दूसरे शहर में ओपीडी चलाते थे.. पैसा और शोहरत कदम चूम रहे थे..

                              मैं बीएचयू से पीजी कर नेट क्वालीफाई कर लिया था और पीएचडी कर रही थी…और अमन से मेरी दोस्ती प्यार में बदल गई थी.. ऐसा मैं सोचती थी खुद को भुलावे में रखने के लिए शायद …

                              रुचि दी भी इलाहाबाद में असिस्टेंट प्रोफेसर बन गई थी.. पर स्वभाव से वैसे हीं सनकी टाईप की थी.. डिप्रेशन की दवा खाती थी… उनके कलीग कहते इतने अच्छे परिवार से है इतनी गुड लुकिंग है जॉब इतनी अच्छी है फिर डिप्रेशन में क्यों है….. दूसरे का इलाज करने वाले डॉक्टर दंपति खुद अपनी बेटी को मनोरोगी बना दिए थे…

                       और मुझे प्लस टू में अमन से परिचय हुआ.. गरीब परिवार का अमन मुझसे बातें करने की कोशिश करता पर मैं ज्यादातर चुप रहती या अनदेखा करती… पर अमन ने धैर्य नहीं खोया.. छः महीने बीतते बीतते मैं और अमन दोस्त बन गए.. रोजी से भी दोस्ती उसी समय हुई थी…

                  अमन की मैं आर्थिक सहायता करती.. थोड़ा ना नुकुर के बाद अमन ने संकोच छोड़ दिया.. उसके ज्यादातर खर्चे मैं हीं उठाती…

पैसे की ना कोई कमी थी ना कोई हिसाब लेने वाला था.. मम्मी पापा पैसे देकर अपना कर्तव्य पूरा कर लेते थे मां बाप होने का..

                      कभी अमन के शर्ट खरीद देती कभी चप्पल जूते…

                   मैं अपने अकेलेपन को दूर करने की शायद कीमत चुका रही थी…

                    अमन जब भी अपने गांव जाता कहता बहुत बुरा लगता है खाली हाथ जाना… और फिर मैं जुट जाती खरीदारी में मां बाबूजी के लिए कपड़े ड्राई फ्रूट्स भाई बहन के लिए उपहार…

                                       अमन के जन्मदिन पर मैं कभी महंगी घड़ी तो कभी फोन लैपटॉप दिया.. पर अमन मेरे जन्मदिन पर गुलाब का एक फूल देता और कहता मुझे ये चोंचले पसंद नही है… मन करता पूछूं लेने के समय पसंद आता है और देते समय… पर मैं सोचती अमन ने अगर मुझे छोड़ दिया तो मैं फिर से बिल्कुल अकेली हो जाऊंगी…

                                अमन की नौकरी लग गई है फिर भी मैं अक्सर पैसे भेजती हूं.. इशारों इशारों में अमन हाथ तंग होने की बात करता…

                     दो साल से अमन के साथ रह रही हूं.. लिव इन रिलेशनशिप में..शादी के लिए जब भी बोलती हूं अमन कहता है हमदोनो को एक दूसरे पर भरोसा है एक दूसरे से प्यार है फिर शादी की क्या जरूरत है , बच्चे की जिम्मेदारी उठाने की स्थिति में मैं नहीं हूं.. मेरे ऊपर पहले से हीं बहुत सी जिम्मेदारियां है परिवार की.. मैं बड़ा बेटा हूं…

                     मम्मी पापा फोन कर लेते हैं फुरसत मिलने पर… बेटी दो साल से घर नहीं गई है.. कभी आकर देखने की कोशिश नही की.. मैं कैसे रह रही हूं…

                     रुचि दी पैंतीस की हो चुकी हैं और मैं बत्तीस की…

              रोजी ने जब मेरी शादी के लिए पूछा तो मैंने अमन की भाषा में जवाब दिया… रोजी बहुत गुस्सा हुई और कहा रचना अमन तुझे यूज कर रहा है याद रखना… मैने उसे समझाया ऐसा नही है अमन मुझे बहुत प्यार करता है…

                       मुझे अपने शब्द खोखले लग रहे थे… मैं जानती हूं अपना अकेलापन और असुरक्षा की भावना से कुछ पल दूर रहने की कीमत चुका रही हूं… डर लगता है शादी के लिए ज्यादा फोर्स करने पर कहीं अमन रिश्ता ना तोड़ ले… फिर मैं भी रुचि दी जैसी हो जाऊं… या जी न पाऊं.. जान बूझकर इस दलदल में फंसती जा रही हूं.. मेरा एकाकीपन और असुरक्षित होने का अहसास जो मेरे माता पिता का दिया हुआ सौगात है, उसी की कीमत अदा कर रही हूं..

                स्वरचित और सर्वाधिकार सुरक्षित..

        #खोखले रिश्ते 

वीणा सिंह

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