बड़का बिल्ला! – सारिका चौरसिया

संस्मरणों की दुनिया हठात् हमें हमारे अतीत के तरफ़ ले जाती है, जहां हमारे यादों के पिटारे में उम्र के भी दुगुनी-तिगुनी खट्टी-मीठी यादें और कुछ सुलझे कुछ अनसुलझे से फ़साने करीने से तह लगा कर रखे होते हैं,, कुछ यादें रुला जाती हैं और कुछ हँसी और खिलखिलाहटों की सौगात बनी हस्तांतरित होती है।

मेरे पास भी दुख और सुख दोनों के भरपूर ख़ज़ाने हैं जिनसे मिलते अनुभव ही जीवन का मार्ग प्रशस्त भी करते हैं।

आज ऐसा ही एक संस्मरण शेयर करना चाहूंगी।

बात तब की है जब मेरी शादी हाल फिलहाल की थी,और बड़ी बहू वाली सारी जिम्मेदारियां सिर पर आ गयी थी,मैं मन ही मन सासूमां से थोड़ा डरती भी थी।वैसे भी ऐसी धारणा बनाने में मायके से मिली सैंकड़ो हिदायतें और सासु मां का मेरे सामने बना हमेशा का थोड़ा गम्भीर चेहरा भी होता था जबकि और सभी के बीच हँसती-मुस्कुराती रहती।

हमारा परिवार चाचा-ताऊ वाले परिवारों वाला एक बड़ा समूह था ताऊ जी की तीन बहुएं मुझसे पहले आ चुकी थी। तो शायद मम्मी जी भी पहली बहू लाने का रोबदार अनुभव प्राप्त करना चाहती होंगी

ख़ैर पापा जी उतने ही मस्त मौला और मिलनसार थे।हाँ तो उस दिन मैं किचन में रात्रि भोजन की तैयारी कर रही थी, और गर्मी के दिन होने से दूध शाम को एक बार पुनः गर्म कर ठंडा कर के फ्रिज में रखने की प्रक्रिया में स्लैब पर रखा था। किचन के ठीक सामने आंगन में आने और घुमावदार मोड़ के साथ तीसरी मंझिल पर जाने की सीढ़ियां थीं।  और  सब किचन की ऊपरी मंज़िल पर रहते थे।मैं तन्मयता से काम कर रही थी अचानक मुझे ऐसा आभास हुआ कि मेरे पीछे कोई है,मैंने झट पलट कर देखा तो वहां कोई नहीं था,, मैं पुनः काम में लग गयी।

एक तो नई-नई शादी में ऐसे ही लगता है कि जल्दी-जल्दी काम खत्म करो और कमरे में भागो, किसी से कोई ख़ास लगाव रहता नहीं बल्कि एक अनजाना सा डर सभी से बना रजत था।कमरे की दीवारें भी तब रिश्तेदारों से ज्यादा अपनी लगती थी पर पहली बहु कहलाये रहने वाली जिम्मेदारियां ऐसी होती हैं जो जीवन पर्यंत खत्म नहीं नहीं होती

हां तो तब ध्यान आया दूध फ़्रिज में रखना है दूसरी ओर स्लैब की तरफ़ भागी,

हे प्रभु! क्या बिल्ली ने दूध जूठा कर दिया? सारी मलाई गायब और स्लैब पर भी दो-तीन बून्द दूध टपका पड़ा है।



मेरे काटो तो खून नहीं!!

अब तो बहुत डांट पड़नी है,, मम्मी जी को पता चलेगा तो???

पति देव भी दुकान बढा कर नीचे से ही मित्र मंडली को निकल लिए होंगे, मोबाइल का भी ज़माना नहीं था तब।

अभी इसी उधेड़बुन में थी ही कि मम्मी जी आ गयी और डरते-डरते बताया,, प्रत्यक्ष में मुझे तो कुछ नहीं बोली पर फुल टाइम घर में साथ रहने वाली मेड की शामत बिना वज़ह आ गयी,हालांकि उसको पड़ती बिना वजह वाली डांट के इशारे मैं समझ रही थी। पर अब कर क्या सकती थी। करीब तीन लीटर दूध आंगन में रखवा दिया गुस्से में! की रही सही भी बिल्ली के भोग को जाए!!

थोड़ी देर बाद मैं बुझे मन से सारा तैयार भोजन ऊपरी मंझिल पर लायी और सभी को खिलाया, पापा जी साढ़े ठीक दस बजे खाना खाते और वह भी बिना टीवी देखे तो खाना होता हीं नहीं।और टीवी भी बड़े लाऊड स्वर में अपनी ही भजता रहता था। मेरे लिये यह सब माहौल  नया था। सो रात में मम्मी जी ने दूध जूठा होने वाली बात सभी के सामने कहनी भी चाही तो इकट्ठे परिवार के खुशनुमा माहौल में किसी ने ध्यान नहीं दिया और “डिनर विथ सीरियल” के शोरगुल में सब व्यस्त से रहे।

खुद के खाने की इच्छा मर गयी,, उस रात मायके को याद कर ख़ूब रोयी।

अगली सुबह चाय के समय मम्मी जी ने फिर बिल्ली दूध और मैं सबंधी पूरी शिकायत सबके सामने दर्ज किया।,

पापा जी खिलखिला कर हँस पड़े! वो बिल्ली नहीं बड़का बिल्ला रहा!!जो अभी यहीं खड़ा है,  दरअसल पापा मिठाई और मलाई के जबरदस्त शौकीन थे,, या यूं कहें कि नशे के नाम पर उनको मिठाई और मलाई का नशा था,,रात में दुकान बढा कर सीधा टहलने निकलते और उधर से बाजार की मलाई खा कर घर के लिये कभी मलाई कभी मिठाई वगरह ले कर ही आते थे,, यह रोज का क्रम था।

उन्होंने कहा कल बजारे मलाई मिला नाही! तsअ घरे आवा दूध पर की मलाई कटोरियाँ में निकाला ऊपर आये के फ्रीज़र में रखा!! खाईई गये!!!



फिर मेरी तरफ़ इशारा कर के कहा एन रही त रसोइयां में सब्ज़ी बनावत।

मैं हैरान! तो वो मेरे पीछे कोई है का आभास गलत नहीं था!!

मम्मी जी ने कहा तुमने देखा नहीं?

दूध भी बर्बाद हो गया सारा!

मुझे बहुत ज्यादा मानने वाले पापा जी ने तुरंत मम्मी जी से सवाल किया….तू कहाँ रहऊँ एके अकेले काम करत छोड़ी के?

मम्मी जी बिना कोई जवाब दिए चली गयी,,

पापा जी की ख़ासियत थी कि जब भी वो कोई ऐसा काम करते थे छिपाने वाला तो,अपनी विजय पर! हँसी दबाती हुई तिरछी मंद मुस्कान मुस्कुराते थे!! जैसे छोटे बच्चे करते हैं बस वैसे ही।

और कल रात हाथ में खाली कटोरी चम्मच और चेहरे पर वही तिरछी मुस्कान थी, जिसे मैंने अनदेखा कर दिया था।

अब हँसने की बारी सब की थी,, खूब खिंचाई हुई पापा जी की,,

मैं भी बीती रात के दुखद अनुभव को पापा जी की निश्छल मासूम कृत में उनका बचपना देखती हुई खिलखिला पड़ी!!!

पापा जी जितने जीवंत, खुशमिज़ाज और सबको प्यार करने वाले इंसान थे उतना ही रोबीला व्यक्तित्व भी था उनका,, उनसे जुड़े तमाम संस्मरण आज भी हम सब को उनकी यादों के साथ जोड़े रखते हैं और आज भी सुख के दिनों में ऐसा लगता है कि वो हमारे साथ एन्जॉय कर रहे,, और किसी भी परेशानी में बरबस उनकी याद आती है कि वो होते तो मिनटों में सुलझा सकते होते।

     पूज्य पापा जी को नमन

                   

सारिका चौरसिया

मिर्ज़ापुर उत्तर प्रदेश।।

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