मेरी और अनिरुद्ध भईया की जिन्दगी के कुछ अहम फैसले, अगले कुछ महीनों में होने वाले थे ।
जिसका जहाँ इंतजार भी था तोह कहीं ना कहीं डर।
मुझे तोह अभी तक यह भी नहीं पता था, जिनके अहसास से दिल ने धड़कना शुरू कर दिया था, उनके दिल में मेरी कोई जगह थी भी या नही।
मेरे सब दोस्त भी हैरान थे, मुझ में आये बदलाव को देख कर ।
और शायद यह बदलाव सर ने भी देखा था ।
तभी तोह क्लास में सर, मुझसे दुसरों को भी प्रेरणा लेने को कहते।
कभी मुझे कहते कि, तापसी मैं आपसे यही उम्मीद रखता हूँ ।
उनके मुँह से यह शब्द मेरे जोश को और बड़ा देते।
कभी उनसे क्लास के बाहर सामना हो जाता तोह, बस वोह हल्की मुस्कान के साथ मेरे सामने से निकल जाते।
कभी मुझे उदास देखते तोह पूछ लेते ,
“तापसी आप ठीक हैं“?
और मैं बस हाँ में सर हिला देती।
क्या कहुँ उनसे?
कुछ समझ ही नहीं आता था।
कुछ दिनों से तबियत सही नहीं थी, बुखार आ रहा था, और पेपर बिल्कुल नजदीक थे ।
इसीलिए घर भी नही जा सकती थी।
दो तीन दिन तक मैं कॉलेज भी नहीं जा पाई ।
दोस्तों ने काफी ध्यान रखा ।
लेकिन मुझे बहुत चिंता हो रही थी,
मैं कैसे अपना पाठयक्रम पूरा करुँगी?
मैं 3 दिन बाद कॉलेज गई थी, सर मुझे कॉलेज प्रांगण में ही मिल गए, मैं उनको गुड मॉर्निंग बोल कर निकलने वाली थी, कि सर ने मुझे रोका,
वोह पूछने लगे, “अब तबियत कैसी है तुम्हारी?
अपना ध्यान रख रही हो ना?
मेरी कोई मदद की जरुरत हो तोह बताना मुझे”।
मैंने झिझकते हुए उनसे पूछा,
“सर मुझे एक दो विषयों में कुछ परेशानी आ रही है, क्या आप मुझे मदद कर सकते हैं “?
सर थोड़ी देर सोचने के बाद बोले,
“मेरा घर यहां पास में ही है, कल रविवार भी है अगर आप ठीक समझें तोह आप कल मेरे घर आ सकती हैं।
मेरी माँ भी मेरे साथ ही रहती हैं।
उनको भी अच्छा लगेगा और लंच भी आप हम लोग के साथ ही कर लेना”।
मुझे कुछ जवाब ना देते देखकर,
वोह बोले,”अगर आप घर आने में सकूंचा रही हैं, तोह कोई बात नहीं।
मैं कोशिश करता हूँ जब भी समय मिलेगा, कॉलेज में ही आपको कुछ देर पढ़ा दूँ”।
तोह मैं एक दम से बोली,
“नही सर, ऐसी कोई बात नही है।
मैं तोह बस सोच रही थी ऐसे मेरी वजह से आप लोगो को नाहक ही परेशानी होंगी”।
तोह सर बोले,
“नही परेशानी वाली कोई बात नही बल्कि माँ तोह खुश ही होंगी आपके आने से”।
सच कहूँ,तोह थोड़ा अजीब तोह लग ही रहा था ऐसे सर के घर जाने में।
लेकिन मैं भी यह मौका खोना नही चाहती थी।
“तोह फिर तय रहा, कल आप घर आ रही हैं”।
मैं हाँ में सर हिलाते हुए वहां से निकल गई।
मैं तय समय पर उनके घर पहुँच गई ।
घंटी बजाते ही आंटी जी ने दरवाजा खोला,आंटी जी मेरी कल्पना से बहुत अलग दिख रहे थे,
वोह काफी आधुनिक थे,
कॉटन की काली कुर्ती, उसके साथ क्रीम रंग की जीन्स, खुले बाल जोह उनके कंधे तक आ रहे थे, आँखों पर चश्मा।
और इन सब के बीच, उनकी मुस्कुराहट को देख कर समझ आया सर को वह चिर परिचित, प्यारी सी मुस्कुराहट अपनी माँ से मिली थी।
मैंने उनको हाथ जोड़ कर प्रणाम किया और अपना परिचय दिया ।
वह बोलीं, “हाँ मैं पहचान गई, चिंटू ने मुझे बताया था “।
मैंने हैरानी से उनकी तरफ देखा,
तोह वोह बोली “चिंटू तुम्हारे प्रोफेसर”।
“उसे घर में सब इसी नाम से बुलाते हैं”।
मुझे हंसी आ गई लेकिन मैंने बड़ी मुश्किल से अपनी हसीं काबू की।
मेरी यह हरकत सामने से आते सर ने भी देख ली थी, उन्होंने आंटी जी की तरफ घूर के देखा, लेकिन इस बार मैं, अपनी हंसी रोक नहीं पाई।
आंटी जी भी हंसते हुए बोले,
“तोह क्या तुझे मैं भी सर बोलने लगूं अब”?
खैर मैं सर के साथ उनके स्टडी रूम में बैठ गई, जहाँ पता नहीं कितनी ही किताबें, बड़े करीने से रैक्स में लगी हुईं थी।
सर बड़ी तन्मयता से मुझे पड़ा रहे थे, धीरे धीरे मुझे जिन विषयों में मुश्किल आ रहीं थी, सर ने मेरे सारे संसय दूर कर दिए।
मुझे आज पहली बार सर को इतने नजदीक से देखने का मौका मिला था।
और वोह मुझे आज और भी आकर्षक लग रहे थे,
उन्होंने काले रंग की जीन्स उसके साथ लाल आधी बाजु की टीशर्ट डाली हुई थी।
जोह की उन पर बहुत जँच रही थी।
बीच बीच में हम दोनो की नजर टकरा जाती,
तोह मैं माहौल को सामान्य करते हुए नीचे निगाहें कर के आगे का पढ़ने लगती।
आज मुझे महसूस हुआ की शायद सर भी मुझे यदा कदा निहार रहे थे, उनके इतने पास बैठना, उनसे अकेले में पढ़ना बड़ा सुखद अहसास दे रहा था।
क्या सर को भी मेरा साथ पसंद आ रहा था?
इसका जवाब तोह भविष्य में ही मिलने वाला था।
इतने में आंटी जी आये और हमें खाने के लिए आने को कहा।
मेरे मना करने के बावजूद आंटी जी मुझे अपने हाथ से खाना परोसने लगे।
सर बोले,
“तापसी मम्मी नहीं मानेगें तोह बोलना फिजुल है, आप बैठ जाओ और घर के खाने का लुत्फ़ लो।
वैसे भी आप बीमार थी तोह इतना बोझ ना लें और आराम से खाना खाएं”।
खाने के बाद मैंने आंटी के मना करते रहने पर भी उनके साथ रसोई सिमटवाई।
आंटी जी मुझे बीच बीच में सर की बचपन की बातें बता रहीं थी, जिनको सुनकर मुझे भी मजा आ रहा था।
सर रसोई में आकर आंटी को टोकते हुए बोलते ” मम्मी बस करो आप, तापसी को इसमें क्या मजा आएगा“
और मैं चहक कर बोलती,
“नही आंटी जी मुझे तोह बहुत मजा आ रहा है”।
हम अब फिर पढ़ने बैठ गए और कुछ समय में ही मेरे सारे विषयों पर जोह भी संशय थे वोह हल हो चुके थे।
मैं निकलने को हुई और आंटी जी से विदा लेने गई,
तोह आंटी बोले,
“ऐसे कैसे जाओगी, पहले चाय तोह पीओ फिर थोड़ी देर मेरे पास बैठो, अभी तक तोह बस पढ़ रही थी”
मैं ना नुकुर करती रही पर आंटी जी नहीं माने।
चाय पिते पिते आंटी जी ने घर में कौन कौन हैं?
सब क्या करते हैं?
कहां से हो?
सब प्रश्न पूछ डाले।
बीच, बीच में सर टोकते ,
“क्यों आप उसका इंटरव्यू ले रहे हो“?
तब मैं हंसते हुए बोलती ” ऐसी कोई बात नहीं है सर”।
और सर बस चुप रह जाते।
शाम को मैं अस्पताल वापिस आ गई, आंटी जी को फिर से आने का वायदा करके।
मेरी दोस्त मुझे मजाक करते हुए पूछने लगी,
“क्या खिचड़ी पक रही है तेरी और सर की“?
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लेखिका : अंबिका सहगल