घर आकर मैं उसे सीधे अपने कमरे में ले गई।
मैंने उसको बिठाया और बोलना शुरू किया,
“कल की बात को कब तक दिल से लगा कर रखेगी?
जिसमें तेरा कोई कसूर नहीं शरम तोह उनको आनी चाहिए,
बस सब भूल जा”।
उर्मि रोने लगी वोह बोली
“तपु मुझे ध्यान रखना चाहिये था।
मैं मस्ती में इतना डूबी हुई थी कि मुझे उनके आने का पता ही नहीं चला।
मुझे अपने पर शर्म आ रही है।
बाहर निकलने में अजीब लग रहा है।
उन्होंने जहाँ तंहा मुझे छुआ मुझे अपने से घिन आ रही है ” ।
इतने में हि भईया जोह अब तक बाहर खड़े सब सुन रहे थे, एक दम अंदर आये।
उर्मि का हाथ पकड़ कर उसको छत्त पर ले गए।
मैं उनके पीछे पीछे छत पर गई लेकिन पीछे ही रुक गयी।
भईया ने, उर्मि का चेहरा अपनी तरफ किया,
उसके चेहरे को अपने दोनो हाथों में लेकर, उसकी आँखों में आँखे डाल कर भईया बोले,
“किस बात की शर्म?
की तुम होली मना रही थी, अपने दोस्तों के साथ मौज मस्ती कर रही थी।
पागल हो क्या?
उन सड़क छाप लड़को के लिए, तुम अपने को कटघरे में खड़ा करोगी?
अपने को परेशान करोगी?
जोह तुम्हे चाहते हैं, जिनको तुम्हारी फिक्र हैं, उनको परेशान करोगी?”
अनिरुद्ध भईया बोलते जा रहे थे।
“मेरी आँखों में देखो उर्मि, क्या तुम्हे प्यार नजर नहीं आता?
मेरा प्यार तुम्हारे लिए बढ़ता ही जा रहा है, लेकिन तुम्हे पूछने में घबराता हूँ ।
लेकिन कल तुम्हे उस हालत में देख कर मुझे अपनी प्यार की सीमा का अंदाजा लग गया”
भईया ने उर्मि को और अपने करीब खींच लिआ और बोले,
“बताओ ना उर्मि, मेरी जिंदगी का हिस्सा बनोगी,मुझसे शादी करोगी?”
उर्मि कुछ बोले बिना, बस भईया के सीने से लग गई।
अपना मुँह उनके सीने में छुपा लिया, भईया ने भी अपनी पकड़ उर्मि पर और पक्की कर ली।
भईया फिर बोले,
” मैं थोड़ा कम समझदार हूँ, ऐसे समझ नही आता मुझे।
हाँ हैं तोह बोलना पड़ेगा, या देखो अपनी गाल आगे कर रहा हूँ, प्यार जता भी सकती हो “।
उर्मि झुकी नजरों के साथ हि बोली,
“हाँ है”
भईया बोले, क्या है?
तोह उर्मि बोलीं ” प्यार है आपसे”
भईया उसको अपनी तरफ खींचते हुऐ बोले,
“तोह आज से यह बेकार का सोचना बंद करो, तुम मेरी हो बस, और मेरी उर्मि को किसी से डरने की जरुरत नही”।
मैं अब उनके सामने आ गई और उन दोनों के गले लग गई।
मैं बोली,
“इतनी बड़ी खुश खबरी पर चाय नाश्ता तोह बनता है,
आप दोनों आराम से नीचे आओ,
तब तक मैं, नाश्ता लगाती हूँ”।
आज मन में बहुत सुकून था।
नीचे आकर देखा तोह मम्मी सब बातों से अनजान,अपने कमरे में गहरी नींद में सोये हुए थे।
वैसे तोह सही ही था, अभी शायद सही समय था भी नहीं घरवालों को बताने का।
अभी उर्मि के B. ED पूरी होने में भी तीन, चार महीने बाकि थे।
वंही मुझे लग रहा था, अभी उन दोनों को भी कुछ समय लेना चाहिये एक दूसरे के साथ वक्त बिताना चाहिये।
खैर वोह परेशानी मैं क्यों लूँ?
तब तक उर्मि और अनिरुद्ध भईया भी नीचे आ गए।
भईया ने उर्मि का हाथ पकड़ा हुआ था ।
मैंने कहा,
“भईया थोड़ा धीरज रखिये, जब तक घर वालों से बात नी हो जाती संभल कर जरा”।
भईया उर्मि का हाथ छोड़ते हैं,
और कहते है ” ओह हाँ “
हंसते हुए हम तीनो चाय की चुस्कीयों का आनंद लेने लगते हैं।
छुट्टिया भी खत्म हो गई, और वापिस जाने का समय आ गया।
मन में अजीब बेचैनी थी, एक तरफ तोह मैं सर का चेहरा देखने को बेकरार थी, वहीं घर वालो को छोड़ना बिल्कुल अच्छा नही लग रहा था।
मम्मी, पापा, भईया और उर्मि सभी उदास थे।
लेकिन जाना तोह था।
इसलिए मैं सबसे जल्दी जल्दी मिलकर बाहर निकल गई।
पापा ने मुझे स्टेशन पर छोड़ा, पापा को छोड़ते हुए मन भर सा गया,
मैं उनसे लिपट गई, हम दोनों की आँखे ही नम हो गई थी,
तोह पापा मुझे प्यार से थपकी देते हुए बोले
” अभी विदाई में समय है तेरी, तब जी भर के रोऊँगा,
अभी अपने आंसू जाया नहीं करूँगा ” ।
ट्रैन आ गई थी, मैं जल्दी से बॉगी में चढ़ गई।
पापा जब तक ट्रैन आँखों से ओझल नहीं हो गई मुझे देखते रहे।
मैं सीट पर आँखे मुंद करके बैठ गई।
हॉस्टल पहुँचते पहुँचते शाम हो गई थी,
मैं इतना थक गई थी कि बस जाते ही बेड पर गिर गई और सुबह हि मेरी नींद खुली।
कॉलेज में पहुंच कर मेरी निगाहें बस सर को ही ढूंढ रही थी।
कोई कुछ पूछता भी तोह मैं बस हाँ, हूँ, नहीं में जवाब देकर बात को जल्दी खत्म करने की कोशिश करती हुई, क्लास की तरफ जल्दी जल्दी पैर बढ़ाती जा रही थी।
कॉलेज प्रांगण में तोह सर कहीं नजर नहीं आए,
मुझे लगा कोई बात नही बस थोड़ी देर का धैर्य और रख ले तपु, सर क्लास में लेक्चर के लिए तोह आएँगे ही।
और आखिर सर आ ही गए,
सफेद रंग की शर्ट और काली पेंट उसके उपर करिने से बनाये हुए बाल, और चेहरे पर वही चिर परिचित हल्की मुस्कुराहट के साथ कमरे में दाखिल हुए।
सर बोर्ड पर कुछ समझाये जा रहे थे, लेकिन उनके पढ़ाने पर मेरा ध्यान ही नहीं था,
तभी सर एक दम बोले,
“मिस तापसी, अभी जोह मैंने पढ़ाया आप उसको क्लास में एक बार फिर से दोहरा देंगी“?
‘दोहराने के लिए उसको सुनना भी तोह होता है‘
और मैं तोह अपने ही ख्यालों में खोई थी।
मैं चुपचाप खड़े हो गई और बोली,
“सॉरी सर”
सर बोले,
“आप जल्दी ही एक डॉक्टर बनने वालीं हैं, मुझे नहीं लगता मुझे आपको समझाने की जरुरत है कि, इस समय आपके लिए सबसे जरुरी क्या होना चाहिए“
उस समय तोह ऐसा लगा मानो, सर मुझे सपनो की दुनियां से हकीकत के धरातल पर खींच लायें हों।
अपने पर बहुत ही शरम आ रही थी ।
भविष्य में क्या होने वाला था,उसकी खबर उस दिन ना मुझे थी, ना आप लोग को।
लेकिन इतना जरुर था,
‘भविष्य की नींव मेरे वर्तमान में ही छिपी थी‘
यह उस दिन मुझे समझ आ गया था।
चाहे वोह मेरी निजी जिंदगी थी, या मेरी व्यावसायिक जिन्दगी।
इसलिए मैंने पढ़ाई में अपने को पूर्ण रूप से झोंक दिया।
मेरे सामने अब अच्छे नंबरो में MBBS करना ही लक्ष्य था।
क्योंकि मुझे लगने लगा था, मेरे दूसरे लक्ष्य को पाने कि पहली सीढ़ी भी मेरा MBBS में अच्छा प्रदर्शन था।
तीन महीनों की ही तोह बात थी।
उधर उर्मि, भईया से भी बीच बीच में बातचीत होती रहती,
उर्मि की B.ED भी होने वाली थी बस,
उसके बाद ही लग रहा था घर वालों से बातचीत करने का।
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लेखिका : अंबिका सहगल