दोनों के बीच ऐसे कोई प्यार वाली भावना ही नहीं है।
आजकल तोह मुझे वैसे ही अपनी बुद्धि पर बहुत आशंका होने लगी थी।
अगले दिन सुबह नाश्ता करके मैं और भईया तैयार हो गए थे,
भईया ने सफेद कुर्ता उसके साथ पुरानी नीली जीन्स और मैंने सफेद रंग की कुर्ती और सलवार पहना था।
सबने साथ में बैठ कर नाश्ता किया और फिर आपस में गुलाल लगाया।
मम्मी पापा बाहर जाकर खेलनें के मूड़ में बिल्कुल नहीं थे।
तोह मैं और भईया निकलनें लगे,
हम बाहर आँगन में आये ही थे, तभी अजित अंकल, रानि आंटी और उर्मि आ गए।
उर्मि ने भी सफेद रंग की, बिना बाजु कि कुर्ती और साथ में सलवार डाला हुआ था।
उसने अपने लम्बे बालों की चोटी गुथी हुई थी, जोह उस पर बहुत हि प्यारी लग रही थी।
हमने अंकल आंटी जी को गुलाल लगाया और हम तीनों वहां से निकल गए।
मम्मी पापा और अंकल आंटी घर में ही रुक गए।
जैसे ही हम बाहर निकले मैंने भईया के चेहरे पर बहुत सारा गुलाल लगा दिया, भईया ने मेरी चोटी खींच के कहा
“आज तू मेरसे बच के रहियो “
और मैं खिलखिला के हंस पड़ी और बोली,
“देखतें है किसको बचना पड़ेगा”
“पर आप दोनों की दुश्मनी है क्या, जोह होली वाले दिन भी एक दूसरे को रंग नही लगाया “
भईया बोले,
“ओह सॉरी, मुझे ध्यान ही नहीं रहा”
और गुलाल लेकर उन्होंने उर्मि की गालों पर लगा दिया।
उर्मि ने भी ग़ुलाल लिया और वोह भईया को लगाने लगी,
भईया उसको प्यार भरी नजरों से देखने लगे।
इस पल को देख कर मुझे याद आ गए मेरे सर।
फिर मैंने जैसे तैसे खूद को समझाया तपु “अभी नहीं “
भईया अपने दोस्तों के साथ गली से बाहर निकल गए और हम लोग हमारी दोस्तों के साथ वही खेलनें लगे,
सारे अंकल लोगो की अलग से पार्क में दूर चौकड़ी बनी हुई थी,
आंटिया भी अपने अलग से दूसरे पार्क में ही खेल रहीं थी।
और हम सब लड़किया उनसे दूर गली में ही खेल रहीं थी ।
पार्क में गाने बज रहे थे, लेकिन हम लोग को इतने अच्छे से सुन नहीं रहे थे,
सुनयना का घर बिलकुल पास ही था, तोह उसने तेज आवाज में टेप रिकॉर्डर पर गाने लगा दिए।
हम सब लड़कियां एक दूसरे पर गुलाल फेंकती, पानी से एक दूसरे को भिगोती, होली के गानों पर खूब मस्ती कर रहीं थी।
उर्मि को इतने सालो में, मैंने पहली बार इतना नाचते देखा।
हम सब बस पागलों की तरह नाचते जा रहे थे, किसी को जैसे होश ही नहीं था।
हम लोग पूरी तरह भीग चूके थे।
इतने में ही ना जाने कँहा से दस बारह लड़कों की टोली गली में आ गई।
हम सब लड़कियां सुनयना के घर के आँगन में एक दम भागी।
उर्मि कि उन सब की तरफ पीठ थी,
दूसरा गाने तेज आवाज में बज रहे थे, तोह उसको पता ही नही लगा और जब तक पता लगा वोह उसके बिल्कुल पास पहुँच चुके थे।
उन लोगो ने उर्मि को जहाँ,तंहा छूना और गुलाल लगाना शुरू कर दिया,
किसी ने गुब्बारे तोह किसी ने उस पर पानी डालना शुरू कर दिआ,
उर्मि उनके बीच में से निकलने की कोशिश कर रही थी,
लेकिन वोह लोग फिर उसको बीच में धकेल लेते।
पार्क दूर था इस लिए किसी और को भी इतने शोर में कुछ सुनाई दिखाई नहीं दिया।
तभी मैंने देखा भईया और उनके दोस्त गली में दाखिल हुए,
उनको देख कर हम सब की हिम्मत भी बंध गई,
हम सब लड़कियां आँगन से बाहर आ गई, अनिरुद्ध भईया उन लड़कों को खदेड़थे हुए उर्मि के पास पहुंचे,
उर्मि एक बच्चे की तरह अनिरुद्ध भईया से लिपट गई।
अनिरुद्ध भईया भी उसे एक बच्चे की तरह अपने से चिपकाये बाहर लाये, तब तक उनके दोस्तों ने उन सब लड़को को गली से खदेड़ दिया।
उर्मि, अनिरुद्ध भईया अभी भी एक दूसरे के सीने से लगे हुए थे।
भईया उसके सर पर हाथ फेर कर उसे शांत करने की कोशिश कर रहे थे, उर्मि काफी सहमी हुई थी।
आज मुझे मेरा जवाब मिल चूका था, मुझे क्या?
आज वहां हम सब को उनके प्यार का अहसास हो चूका था।
उर्मि जब थोड़ा सम्भली, तोह उसे अपने आस पास का अहसास हुआ, वोह एक दम से भईया से अलग हुई।
भईया ने भी सम्भलते हुए,
हम सब को इस बात को यहीं खत्म करने, और बड़ो तक ना पहुँचाने का आग्रह किया।
भईया ने मुझे उर्मि को उसके घर छोड़ आने को कहा,
समय भी काफ़ी हो चुका था, सब अपने अपने घर निकल गए।
नहा धोकर सब पार्क में ही इक्कठा हो रहे थे,हर साल कि तरह इस साल भी पूरी कॉलोनी के लिए लंच का इंतजाम पार्क में ही था।
अनिरुद्ध भईया की आँखे उर्मि को ही ढूंढ रहीं थी,
वोह पूछते उससे पहले ही मैं बोल पड़ी,
“भईया, उर्मि को मैं लेने गई थी, लेकिन उसने मना कर दिया, मुझे उसको अभी जोर देना सही नहीं लगा, थोड़ा समय देते है, एक दो दिन में ठीक हो जाएगी”।
भईया ने कुछ नही बोला, बस हाँ में सर हिला दिया।
आज इतना थकान हो चुकी थी की, कब नींद आ गई पता भी नही लगा,
सुबह भी बहुत देर से नींद खुली।
पापा ऑफिस जा चुके थे, अनिरुद्ध भईया आज नहीं गए।
हम दोनों नाशते के लिए बैठे,
मम्मी रसोई में पराँठे बना रहे थे।
अनिरुद्ध भईया ने मुझसे पूछा, “तुम्हारी उर्मि से बात हुई क्या“
तोह मैंने ना में सर हिलाया, और उन्हें कहा कि “मैं नाश्ते के बाद उर्मि से बात करने ही वाली थी”
भईया ने कहा “ठीक है “
मैंने फोन करने की बजाय उसके पास जाना ज्यादा मुनासिब समझा।
मैं भईया की बेचैनी देख रही थी।
उर्मि के घर पहुंची तोह आंटी ने बताया उर्मि अपने कमरे में ही है,
मैं कमरे में गई तोह देखा उर्मि बिस्तर पर बैठी थी और उसकी आँखे देख कर लग रहा था जैसे वो ढंग से सोइ नई रात में,
मुझे देख कर वोह चेहरे पर मुस्कुराहट लाने की कोशिश करते हुए बोली ,
“अरे तापसी तू कब आई?
थकान उत्तरी या नहीं?
आ चल चाय पीते हैं”
तोह मैंने कहा की,”नही, मेरे घर चल वहीं साथ में चाय पिएंगे”।
वोह मना कर रही थी, लेकिन मैं उसका हाथ खींचते हुए, उसको बाहर ले आई और रानि आंटी को कहा,
“आंटी जी इसको बोलिये ना, मेरे साथ कुछ समय बिता ले, फिर में भी हॉस्टल चले जाउंगी”।
आंटी बोले, “हाँ ले जा इसे पता नहीं क्यों कल से ऐसे ही पड़ी है, तेरे साथ मन बहल जाएगा”।
आंटी के कहने पर उर्मि कुछ नहीं बोल पाई और मेरे साथ घर आ गई।
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लेखिका : अंबिका सहगल