बदलते रिश्ते (भाग-3) – अंबिका सहगल : Moral stories in hindi

उर्मि और मैं अपने कॉलेज की बातें एक दूसरे को बताने लगे, मोहल्ले में क्या नया हुआ, और भी ना जाने क्या क्या… 

इतने में मम्मी की आवाज आई, वह खाने के लिए हमें बुला रहे थे

आज तोह पापा भी जल्दी आ गए थे, मैं पापा के गले लग गई।

मेरा और पापा का हमेशा से ही बड़ा दोस्ती वाला रिश्ता रहा, मैं घर में अपने मन की बात किसी और को बताऊं या ना पापा से सब साँझा कर लेती थी।

 कभी कुछ भी चाहिए हो, जिंदगी में कोई अहम् फैसले लेने हो, मुझे सब में पापा का साथ हमेशा मिलता था।

मम्मी चिल्लाई,

छोड़ उनको, उन्हें हाथ मुँह धोने दे खाना ठंडा हो जाएगा”।

उर्मि भी पापा से मिली, उसे देख कर पापा भी खुश हुए।

सब खाने के लिए बैठ गए,

मम्मी ने आज सब मेरी हीं पसंद का बनाया था

आलू कुरकुरी, घिया का रायता, अरहर कि दाल, चावल और गरम गरम चापाती।

भईया अभी भी थोड़ा झेंप रहे थे, उर्मि भी उनसे नजरे चुरा रही थी,

पर मुझे इन सब में बहुत मजा आ रहा था।

मैंने भईया को छेड़ते हुए पूछा,

आपको अपनी बहन की पहचान भी नही है क्या?

किसी को भी बहन बना लोगे”?

अब उर्मि और भईया दोनों मुझे गुस्से से घूरने लगे।

मम्मी बोली “क्या बोले जा रही है?”

तब मैंने बात को सँभालते हुए बोला,

कुछ नही, बस ऐसे ही भईया की टांग खिंचाई हो रही है”।

तब भईया ने डांटते हुए बोला,

 “आराम से खाना खा”।

मैं नजरें निचे करके खाना खाने लगी।

 

खाना खाते तीन बज गए थे।

 पापा मम्मी अपने कमरे में थोड़ा आराम करने चले गए,

 मैं और उर्मि मेरे कमरे में आ गए।

इतने में ही भईया दरवाजे पर आये,

मैं बोली भईया अंदर आ जाइए ना,तब वोह उर्मि की तरफ मुखातिब हुए, और इससे पहले की  वोह कुछ बोलते, मैंने कहा भईया आप बैठो, मैं बस दो मिनट में, आइसक्रीम ला रही हूँ।

 आइसक्रीम का तोह बस बहाना था, मैं उन दोनों को थोड़ा समय एक दूसरे के साथ देना चाह रही थी ।

भईया संकुचातें हुऐ, उर्मि से थोड़ी दुरी पर बैठ गए,

मैं कमरे से निकल गई ,

भईया उर्मि को बोलने लगे 

उर्मि मुझे माफ करना

मुझे नहीं पता था की तुम हो, असल में तुमने तपु के कपड़े पहने थे, तोह मुझे लगा तपु है”।

उर्मि उनकी तरफ देखते हुए बोली,

 “नहीं आप माफी नहीं मांगिये, किसी को भी गलती लग जाती है

शर्मिंदा तोह मैं हूँ।

मुझे नहीं पता था, आपको मेरा साथ जाना बुरा लगेगा,तपु ने काफी जोर दिया तोह मुझे चलना पड़ा”।

अनिरुद्ध भईया बोले 

अरे,ऐसा कुछ नही है, वोह बस मैं उसे बोलना चाह रहा था कि, वोह मुझे बता देती बस,

ऐसा कुछ नहीं है की, मुझे तुम्हारे साथ अच्छा नई लगा “।

 

उन दोनों की, आपस में बात चित चल ही रही थी और मैं भी कमरे में आ गई,

भईया उठ के जाने लगे, तोह मैंने उनको रोकते हुऐ कहा,

 “भईया कुछ देर बैठो ना साथ में,

 फिर शाम में वैसे ही सब  व्यस्त हो  जाएंगे”।

 हम तीनो साथ में बैठ कर बाते करने लगे

और इन सब के बीच वह दोनों एक दूसरे को देखते हुए कभी शर्मा जाते, तोह कभी सामने वाले की प्रतिक्रिया को बहुत ध्यान से सुनते।

भईया को जब मौका मिलता, उर्मि को देखने लगते।

और जब हम में से कोई उनको ऐसे देख लेता, तोह वह झेंप जाते।

 

मम्मी ने शाम की चाय बना ली थी,

 मैं सबके लिए चाय मेरे कमरे में ही ले आई,

पापा, मम्मी को भी वहीं बुला लिया।

 

अब सबका तैयार होने का समय हो रहा था, शाम के जगराते के लिए।

चाय पीकर हम सब तैयार होने में मगन हो गए।

 

मैं और उर्मि तोह वैसे ही बहुत उतावले थे, एक सा तैयार होने के लिए।

उर्मि जैसे ही कुर्ती सलवार पहन के आई, मेरे मुँह से बरबस ही निकला

क्या तू पढ़ाई लिखाई में पड़ी है?

मॉडल्स जैसी फिगर है तेरी, “36, 24, 36” क्या कहर ढा रही है,

 

 मेरी ऐसी फिगर होती, तोह मैं तोह किताबों में कभी आँखे खराब नही करती”।

उसने मुझे गुस्से में देखा, और हम हंसने लगे,

 फिर से मैंने बोला 

सच बोल रही हूँ अगर मैं लड़का होती, तुझे आज के आज ही परपोज कर देती”

 

मैंने भी कपड़े बदल लिए, अब हम दोनों ने मेकअप करना शुरू किया।

 हम दोनों ने ही पहले कभी मेकअप नहीं किया था, लेकिन आज दोनों ने पहले ही सोच लिया था, कि आज तोह मेकअप करेंगे ही।

हम दोनों ने थोड़ा बहुत ऑनलाइन से कुछ  देखकर अपना मेकअप कर लिया था।

 आज सच में उर्मि की खूबसूरती देखते ही बन रही थी,

 उसका सावंला रँग, उसके तीखे नयन नक्श और उसपर हल्का सा मेकअप।

माथे पर  छोटी बिंदी, आँखों में काजल, उस पर होंठो पर  गुलाबी रंग की लिपस्टिक, उसकी खूबसूरती को और भी चार चाँद लगा रहे थे।

 

अरे अरे सिर्फ उर्मि ही नहीं, मैं भी गजब की खूबसरत दिख रही थी। 

हाहा

बस अभी तक जिंदगी में, इस खूबसूरती का असली कदरदान नही मिला था।

 हम दोनों ने एक दूसरे को निहारा और एक दूसरे की जम कर तारीफ की।

करें भी क्यों नहीं, हम लग ही बहुत खूबसूरत रहे थे।

 

अब हम दोनों बैठक में आ गए, वहां भईया पहले ही बैठे थे, भईया पर पीला रंग बहुत जच रहा था, हमारी आवाज सुनकर भईया ने उपर नजर की और वोह बस उर्मि को देखते ही रह गए

उर्मि थोड़ा असहज हो गई और शर्म से मुँह  नीचे झूका लिया,

भईया को भी अचानक महसूस हुआ और उन्होंने उर्मि से नजरे हटाईं।

तभी मम्मी नें मुझे आवाज दी 

तपु, जरा मेरा पल्ला ठीक कर दे और मैं उनके कमरे की तरफ बढ़ गई।

उर्मि अभी भी खड़ी ही थी, भईया ने सोफे से उठते हुए उर्मि को कहा,

 “बैठो तुम “

वह नीचे देखते हुए ही सोफे पर सकूँचाते बैठ गई।

कहीं ना कहीं वोह भईया की नजरों को अपने ऊपर महसूस कर रही थी।

इतने में अनिरुद्ध भईया ने कह ही दिया,

उर्मि आज बहुत खूबसूरत लग रही हो तुम, काला टीका जरूर लगा लेना”

उर्मि ने भईया की तरफ झिझकते हुऐ देखा,

भईया, अब भी उसी को देख रहे हैं, मानो उसकी आँखों में पढ़ना चाह  रहें हैं, उसकी मोन प्रतिक्रिया को।

 

अब तक हम लोग भी बैठक में आ गए हैं,

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बदलते रिश्ते (भाग-4) – अंबिका सहगल : Moral stories in hindi

लेखिका : अंबिका सहगल

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