बदलते रिश्ते (भाग-20) अंतिम भाग – अंबिका सहगल : Moral stories in hindi

तापसी  तुम्हे आज देख र तोह मुझे अपनी किस्मत पर ही रंज होने लगा है, किसी अप्सरा सी लग रही हो तुम।

और इन सब को देखो कैसे घूर रहे हैं हम दोनों को, अरे पहले हमें तोह एक दूसरे को देख लेने देते”।

मैंने धीरे से कहा, ” निलेश अभी बिलकुल चुप रहिये आप कोई सुन लेगा तोह” ।

जयमाला का समय हो गया था।

हम दोनों ने एक दुसरे के गले में बहुत ही सुन्दर गेंदा, गुलाब, चमेली के फूलों से बनी हुई मालाएं पहनाई।

तालियों के शोर में हमारी जयमाला पूरी हुई।

 ऐसे हर एक रस्म के साथ हम एक दूसरे के करीब आते जा रहे थे।

सुबह तक सब रस्मे सम्पन्न हुई।

अंत में नीलेश ने मेरे गले  में मंगल सूत्र पहना के हमे शादी की अनमोल डोर में बाँध दिया

विदाई का समय हो रहा था मेरा दिल बैठा जा रहा था

आखिर कितना मुश्किल है, अपनों को छोड़ के जाना

कल से जिन्दगी बदल जाने वाली थी।

मम्मी पापा अनिरुद्ध भईया उर्मि सभी तोह पीछे छूट जाएंगे,

मेरी आँखे अब और इन आंसुओ को रोक नहीं पा रही थी, मेरी आँखों से आँसू छलकने लगे।

निलेश ने मुझे जेब से निकाल र रुमाल दिया ।

मम्मी पापा भईया उर्मि जोह अभी तक बहुत नियंत्रण करके बैठे थे, उनके भी अब आँसू बहने लगे।

 

भईया मुझे गले लगा के बहुत रोने लगे, मैंने भईया को आज से पहले इतना भावुक कभी नहीं देखा था,

आंटी जी ने उनको अपने तरफ खींच र गले से लगाया और बोला,

 “अनिरुद्ध बेटे तुम्हारा जब मन हो आना, वोह भी आपका ही घर है, और तपु कि बिलकुल फिक्र मत करो, उसको में अपनी बेटी बना के ही रखूंगी, तपु का भी ब मन होगा वोह आएगी ।

 बस अब उसका एक और घर हो गया है” ।

सब भावुक हो रहे थे, मम्मी पापा उर्मि  सब से  मैं गले मिली

और अंततः सबने नम आँखों से मुझे विदा किया।

कार में आंटी जी और निलेश ने मुझे संभाला ।

कुछ देर में सभी नींद के आगोश में चले गए, नींद तब खुली जब कार घर के दरवाजे पर जाकर रुकी ।

लेकिन सभी को थोड़ा आराम  मिल गया था, तोह सब बेहतर महसूस रने लगे, नहीं तोह इतने दिन कि थकावट से सब का ही बहुत बुरा हाल था ।

मुझे आंटी जी ने रीति रिवाजों के साथ ग्रह प्रवेश कराया उसके बाद भी कुछ रस्मो रिवाज थे जोह पुरे हुए ।

ज्यादातर रिश्तेदार शादी से ही सीधे चले गए थे,बाकि के रस्मो के बाद चले गए । 

शाम तक बस मैं, आंटी जी और निलेश ही घर में थे।

हमने थोड़ा बहुत कुछ खाया और मम्मी जी ने निलेश से कहा,

“तापसी को कमरे में ले जाओ निलेश, आप लोग भी अब थके हुए हो, जाकर आराम से सो जाओ, मैं भी बहुत थकी हुई हूँ, अब सोने जा रही हूं” ।

कमरे में आते ही निलेश ने मुझे गले से लगाया और बोले, 

“तपु तुम पहले कपड़े बदल लो, कुछ हल्का आरामदायक पहन लो”,

 

 जब तक मैंने अपना नाईट सूट निकाला, यह बरमुड़ा टीशर्ट पहन कर आ गए । 

मैं भी  सब भारी कपड़े, गहने बदल र हल्का नाईट सूट पहन र कमरे में आ गई ।

मुझे बहुत घबराहट हो रही थी आगे क्या होगा।

निलेश ने मुझे देखा और बिस्तर पर बुलाया मैं और डरने लगी, उन्होंने मेरी और अपनी बांहे फैला दी

मैं समर्पण के  भाव से आगे बड़ी, जानती थी की अब हम शादी शुदा हैं,

 उन्होंने मेरे माथे को चूमा और मुझे एक बच्चे की तरह अपने सीने से लगा र लिटा लिया, और मेरे सर को धीरे धीरे सहलाने लगे और बोले “तापसी सो जाओ”।

मेरा सारा डर ना जाने कहां चला गया,

 ना जाने कब हम दोनों एक दूजे कि बाहों में नींद के आगोश में चले गए।

 

 अचानक से मुझे निलेश ने झकझोर र जगाया,

मैं अतीत के पन्ने बदलते बदलते कब गहरी नींद मे सो गई थी, पता ही नही चला।

नीलेश मेरा माथा छूर देखने लगे की कहीं मैं बीमार तोह नही।

वोह बोले  ” क्या हुआ तापसीतबियत ठीक है ना तुम्हारी?

बड़ी देर से घंटी बजा रहा था फोन पर भी कोशिश की, घंटी बज रही थी तुम उठा ही नही रही थी।

 यह तोह गनीमत है मेरे पास दूसरी चाबी थी घर की” ।

मैं एक दम सम्भलते हुए बोली,

” हाँ, हाँ मैं ठीक हूँ वोह तोह पता ही नही चला, कब बस आँख लग गई ।

आप बैठो मैं चाय बना कर लाती हूँ ” ।

निलेश ने मुझे बाहों के घेरे में लेते हुए कहा ” कोई बात नही तापसी, तुम यहां बैठो मैं चाय ला रहा हूं साथ में पीते हैं फिर तुम भी थोड़ा फ्रेश महसूस करोगी “।

सच में उस समय यही चाहिए था, की कोई बस चाय पीला दे।

 जिन्दगी अपने ढररे पर चले जा रही थी, सुबह उठना अस्पताल जाना और उसके बाद जितना समय मिल पाता , वोह हम दोनो एक दूसरे के साथ बिताने की कोशिश करते।

मम्मी जी का बहुत साथ था घर की कोई जिम्मेदारी मेरे सिर पर नहीं थी ।

कुछ काम करने लगती भी तोह वोह बोलते “तुम दोनो के अभी हंसने, खेलने के दिन है, अभी हूँ मैं संभालने के लिए।

लेकिन अभी वोह कुछ दिनो के लिए मासी जी के पास गए हुए थे, तोह बस हम दोनो की आफत आई हुई थी।

 इसी लिए हम उन्हें बस इसी शनिवार लाने जा रहे थे।

हम दोनो शनिवार को  सवेरे ही निकल गए थे ताकि समय से वापिस आकर इतवार का दिन अच्छे से बितायें।

हम गीतों के मजे लेते हुए अपनी धुन में कार में जा रहे थे ।

अचानक से पता नही कहाँ से एक गाय हमारी कार के सामने आ गई।

 गाय को बचाने के लिए निलेश ने अचानक से कार सड़क के किनारे की तरफ मोड़ी।

 गाय तोह बच गई लेकिन कार सड़क किनारे लगे खम्बे से टकरा गई।

उसके बाद क्या हुआ मुझे नही पता।

 जब आँख खुली तोह मैं अस्पताल में थी ।

 पुरे शरीर में दर्द हो रहा था,मेरे माथे पर चोट थी, बाईं बाजु में भी चोट लगी हुई थी।

 बाकि अभी टेस्ट वगैरह हो रहे थे, मुझे एक दम निलेश का ध्यान आया और मैं चिला पड़ी

 ” निलेश, निलेश वह कहाँ हैं?वह कैसे हैं?”

मैंने चलने कि कोशिश की, लेकिन मुझसे चला नहीं जा रहा था, निचे देखा तोह मेरे घुटनो पर भी चोंटे आई हुई थी।

 

सामने से पापा ने आकर मुझे संभाल लिया,

वोह बोले,

 “तपु निलेश बिलकुल ठीक है बेटे, वह तुम्हारी रिपोर्टस देख रहें है, बगल वाले कमरे मे ।

मैंने देखा मेरा पूरा परिवार आया हुआ था, मम्मी जी भी वहीं थे, सब के चेहरे पर चिंता की लकीरें खींची हुई थी।

निलेश भागे भागे आये जैसे ही मेरी आवाज सुनी, उन्होंने मुझे एक दम गले से लगा लिया और एक दम बोले,

“कुछ घबराने वाली बात नही है, सारी जांचे हो गई हैं, बस ऊपरी चोटे हैं, जोह कुछ ही दिनो में ठीक हो जाएंगी।

और एक दो दिनों में अस्पताल से छूटी भी ले लेंगे” ।

सभी की जान मेंजान आई।

मुझे मम्मी जी से पता लगा मैं काफी देर बेहोश थी तोह तभी निलेश ने मुझे अस्पताल लाने के बाद घबराहट में भईया को भी फोन कर दिया था,

खैर अब सब सही था।

तभी निलेश ने अनिरुद्ध भईया को कहा,

“अनिरुद्ध  सब लोग  बहुत थक गए होगें, सुबह से ऐसे अस्पताल में ही बैठें हैं, तुम सब को घर ले जाओ, घर जाकर अपना आराम करो सब। 

सुबह  बेश आ जाना मैं नही रोकूंगा।

लेकिन अभी सब जाओ मैं तपु के पास रुकता हूँ” ।

तभी पापा ने नीलेश की तरफ देखते हुए कहा, ” निलेश जी क्या मैं आपसे कुछ मांग सकता हूँ? “

निलेश ने उनके हाथ पकड़ते हुए कहा,

“पापा ऐसे बात करके मुझे आप शर्मिंदा मत कीजिये, मैं भी आपका ही बेटा हूँ, आप हक से बोलिये” ।

पापा को ऐसे देख र हम सब भी हैरान हो गए, अनिरुद भईया और मेरे आंसू आ गए।

वोह बोले, “बेटा मैं कुछ देर और क्या तपु के साथ रह सकता हूँ?”

अनिरुद्ध भईया भी बोले,

“जीजू मैं भी कुछ मांग लूँ?

क्या हम सब थोड़ी और देर इसके साथ रह सकते हैं? “

निलेश बोले ” अरे मेरा भी तोह ख्याल करो, अच्छा ठीक है मैं तब तक मम्मी को घर छोड़ कर आता हूँ, आप लोग बातें करो । 

उसके बाद मैं यहां रुक जाऊंगा रात में, आप लोग घर चले जाइएगा ” ।

सभी ने उनकी बात पर एक साथ सहमति जताई।

मम्मी जी और निलेश के जाते ही पापा बिलख बिलख र रोने लगे

वोह बोले,

 “तेरा एक्सीडेंट का सुनते ही ना तपु, मुझे लगा बस मेरी दुनिया त्म हो गई । मेरा परिवार ही मेरा सब कुछ है, तुझे कुछ हो जाता, तोह मैं भी जिन्दा नही रहता।

मैं तुम सब का दोषी हूँ।

उर्मि बेटा समझ नहीं आ रहा, तुमसे कैसे माफी मांगूँ?

मैं तुम्हारा भी दोषी हूं, मेरी छोटी मानसिकता के कारण तुम ने बहुत परेशानी झेली।

तुम्हारे मम्मी पापा से नजरें मिलाने में भी मुझे शरम आएगी।

 लेकिन जब गलती की है, तोह माफी तोह मुझे मांगनी ही होगी।

बस अब सब मुझे माफ र दो, इस घटना ने मुझे अहसास करा दिया परिवार के बिना इंसान कुछ भी नहीं ।

मैंने हम सब की जिंदगी की इतनी बड़ी खुशिओं पर ग्रहण लगा दिया था।

पीछे जोह हुआ वोह तोह मैं बदल नही सकता, लेकिन आने वाले कल में मैं कोशिश करूँगा, एक पल भी इस झूठे अभिमान में कहीं गवा ना दूँ ।

तुम ठीक हो जाओ, फिर मैं अपनी बहु और बेटे की शादी, और तुम्हारे ठीक होने की ख़ुशी में पार्टी करूँगा।

जिसमें वह सब रस्मे रिवाज भी होंगे मेरे बेटे बहु के जोह मेरी वजह से छूट गए थे”।

सब पापा के गले लग गए।

आज फिर से हमें हमारी खुशियाँ वापिस मिल गई थी,

पापा के मुँह से जोह कान तपु सुनने को तरस गए थे, आज उन कानों को फिर से चैन आ गया था, पापा के मुँह से तपु सुनकर।

पीछे से निलेश, जोह यह सारा फैमिली ड्रामा देख रहे थे,

 वह बोले,

” मैं भी तोह इसी परिवार का हिस्सा हूँ, मुझे भी तोह गले लगा लो” ।

 पापा, भईया ने निलेश जी को भी अपने तरफ खिंच र कसके गले लगा लिया।

सबकी आँखों में आंसू थे लेकिन आज मलाल नहीं, यह तोह खुशी के आँसू है।

अब आपकी तपू आपसे विदा लेती है, आशा है मेरी कहानी आपको पसंद आई होगी।

 

समाप्त

लेखिका : अंबिका सहगल

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