थोड़ी देर में हम निलेश के घर के पास थे, वहां से हमने आंटी जी को लिया,
मैं आंटी जी को देख कर कार से नीचे उतरी और उनके पैर छुए, मैं पिछली सीट पर बैठने लगी तोह आंटी जी ने प्यार से कहा,
“तापसी बेटा आप आगे बैठो, मुझे वैसे भी पिछली सीट पर आराम रहता है ” ।
असल में हम लोग खरीदारी के लिए जा रहे थे, अब मैं यहां आई ही हुई थी, तोह हम लोग ने इस अवसर का भरपूर लाभ उठाने का सोचा ।
अंधेरा होने ही लगा था हमें खरीदारी करते बहुत समय हो गया था ।
लेकिन खुशी इस बात कि थी कि हमने काफी खरीदारी कर ली थी ।
रास्ते में डिनर करके आंटी जी और निलेश ने मुझे हॉस्टल के गेट पर छोड़ दिया ।
अगले दिन मैं वहीं से घर के लिए निकलने वाली थी ।
शादी का दिन नजदीक आ रहा था,
मोहल्ले में मम्मी, रानि आंटी जी और उर्मि ने हमारी शादी के कार्ड बाँटे ।
रिश्तेदार आने लगे थे सबके रहने कि व्यवस्था होटल में ही कि गई थी ।
उधर निलेश जी ओर उनके रिश्तेदार वगैरह भी आ गए थे,
सब तरफ रौनक ही रौनक थी फिर भी मन में खालीपन सा था,
शायद हर लड़की इस दौर से गुजरती ही है, जहाँ वोह एक तरफ तोह अपने आने वाली जिंदगी को लेकर उत्साह से भरी होती है, वहीं अपनों के पीछे छूट जाने का अहसास उसे सता रहा होता है ।
रह रह कर मेरी आँखे भर आती घर में सबका यही हाल था ।
मैं घंटो मम्मी के गले लगे रहती,पापा के गले लगने का भी बहुत मन करता ।
लेकिन उन्होंने अपने और हमारे बीच जोह यह झूठे अहंकार की दिवार खड़ी कर दी थी उस दिवार को पार करना बहुत मुश्किल हो गया था ।
बस इंतजार कर सकते थे कि जल्द ही यह दिवार टूटे ।
रिश्तेदारों से सब तरफ चहक ही चहक थी,
लेकिन सब मम्मी पापा पर अपनी नाराजगी जाहिर कर रहे थे अनिरुद्ध भईया की शादी में ना बुलाने के लिए ।
आखिर करें भी क्यों ना? गल्ती तोह हुई थी हमसे।
लेकिन उर्मि ने अपने व्यवहार, आचरण से सब का मन जीत लिया था ।
भईया और मम्मी भी यह सब देख कर बहुत खुश थे, पापा कि दिल कि तोह किसी को कोई खबर थी ही नहीं ।
ऐसा लगता रहता था कि इतने सालों में मैं जिन्हे देखती आ रही थी, वोह उनका असली रूप था या जोह अभी वोह बन गयें हैं ।
बस दुख इस बात का था पहले भईया अब मेरी शादी में, पापा का ऐसे अनमना रहना पूरे परिवार कि खुशियों को जैसे ग्रस रहा था ।
मम्मी भरपूर कोशिश कर रही थी माहौल को सामान्य रखने का ।
खैर पाठकगण आप भी सोच रहें होंगे शादी के माहौल को मैंने इतना रुखा सूखा बना दिया ।
चलिए आपको शादी की रौनक में लिए चलते हैं ।
बीच, बीच में निलेश और मेरी फोन पर बात चित हो जाती,
लेकिन जैसे जैसे शादी का दिन नजदीक आ रहा था, काम बढ़ते जा रहे थे और जब रात को सोने का मौका मिलता, तोह नींद के अलावा कुछ और सूझता ही नहीं था,बिस्तर पर गिरते ही नींद आ जाती ।
इधर मैं,अनिरुद्ध भईया ओर उर्मि को भी एक दूसरे से बात करने एक दूसरे के नजदीक आने के मौके तलाशते देखती, आखिर सारी जिम्मेदारी उन्ही दोनों के कंधो पर ही तोह थी ।
मेरी कोशिश रहती जहाँ मौका मिले उनको कुछ समय अकेला मिल जाए ।
और आज अंततः शादी का दिन आ गया था ।
मैंने शादी में गहरे गुलाबी रंग का पेनेल्ड राजस्थानी लहंगा पहना था जिस पर चारो तरफ घेरे पर पारम्परिक राजस्थानी हाथ की कड़ाई कि हुई थी साथ में चोली भी पारम्परिक कड़ाई वाली थी, जिसमें शीशे भी लगे हुए थे ।
उपर से लाल रंग का भारी जरी के काम वाला दुपटा था ।
उस पर वैसे ही मांगपटी, नथ, हाथों में लाख का चुड़ा, बड़ी लाल बिंदी, आँखों में गहरा काजल, होठों पर लाल रंग कि लिपस्टिक और बालों को करिने से गजरे के साथ सजाया था ।
मैं थी तोह नहीं, लेकिन उस दिन जैसे मुझे तैयार किया गया था, मुझे खुद ही राजस्थान कि किसी बड़ी रियासत की महारानी वाली अनुभूति हो रही थी ।
उर्मि ने बहुत ही सुन्दर लहंगा साड़ी डाली थी, जिसमें कई सारे रंग थे, हाथों में चुड़ा तोह डाला ही हुआ था, साथ में गले में बहुत सुन्दर हार, कानों में झुमके, माथे पर मांग टीका, साथ में बड़ी सी लाल बिंदी, होठों पर लिपस्टिक और बालों को गूँध कर लम्बी चोटी उसमें मोगरे के फूलों का गजरा,
कुल मिलाकर ये सब उसकी खूबसूरती को चार चाँद लगा रहा था ।
बारात आने का समय हो रहा था ।
जैसे ही मैं कमरे में तैयार होकर आई रिश्तेदारों का ताँता लग गया मुझे देखने के लिए ।
लेकिन आज यह शोरगुल सब का मुझे ऐसे देखना बहुत भा रहा था ।
अनिरुद्ध भईया इतने सब कामों में मशगूल होने के बावजूद आये, मुझे देख कर एक दम भावुक हो गए । मेरी भी आँखे भर आईं तभी उर्मि आई और बोली,
“खबरदार मेकअप खराब किया तोह“ ।
और मेरे गले लग गई ।
“आज तोह खुशी का दिन है आप दोनों ऐसे आँखे ना भरो” ।
भईया बोले “चल अब खुश हो जा अपने प्रोफेसर साहब के पास जा रही है” ।
और भईया,उर्मि कमरे से निकल गए ।
सब रिश्तेदार इंतजामात कि बहुत तारिफ कर रहे थे,
खाने कि,होटल के कमरों की , सजावट कि, और क्या क्या ही,
हो भी क्यों ना?
उर्मि और भईया ने हर एक इंतजाम अपने खुद कि निगरानी में किया था ।
अभी सब तारिफ कर ही रहे थे, इतने में बारात आने का शोर सुनाई देने लगा, कमरा खाली होने लगा, बस मेरी 1, 2 सहेलियां ही कमरे में बाकि बचीं ।
उन्होंने खिड़की से सब देखना शुरू किया,
बारात का शोर बढ़ता जा रहा था, बेंड, शहनाई कि आवाजों से पता लग रहा था, बारात बस पहुँच ही गई थी ।
तभी मेरी सहेली ने मुझे कहा “तापसी, आ गए दूल्हे राजा “
मैं एक दम से खिड़की के पास आई,
इन्होने गोल्डन रंग का कुर्ता, चूड़ीदार पजामी और साथ में जोधपुरी शेरवानी पहनी हुई थी और साथ में गले में मरून दुप्पटा ।
चेहरा कुछ तोह सेहरे ने ढक दिया था बाकि इतनी दूर से दिखना भी मुश्किल था,
लेकिन जितना भी देख सकी यह बहुत ही हैंडसम लग रहे थे ।
मैं बेताब हो रही थी कि मैं जाकर इनको कब देख पाऊँगी, सोच रही थी निलेश भी तोह बेताब होंगे मुझे देखने को ।
एक तरफ जहाँ उत्साह था जोश था, वहीं थोड़ी घबराहट भी हो रही थी ।
शायद हर लड़की कुछ ऐसा ही महसूस करती होगी,
जहाँ एक और उसका दुल्हन बनने का सपना वोह जीने जा रही होती है, जहाँ सबकी निगाहेँ बस उसी को देख रही होती हैं,
लेकिन वहीं माँ बाप से बिछड़ने का डर, सबकी निगाहों में खरे उतरने कि जिम्मेदारी, और ना जाने कितने ही ख्याल उसके मन में चल रहे होते हैं ।
और उन्ही ख्यालों के बीच पिया मिलन का सपना जोह शायद सबको रोमांचित कर रहा होता है ।
इन्ही सब विचारों में मैं मगन थी तभी मुझे नीचे ले जाने के लिए मेरा परिवार जी हां, मेरी जिंदगी के वोह स्तम्भ, जिनके बदौलत मैं आज जोह भी थी, वोह मुझे लेने आए थे ।
मेरे मम्मी पापा भईया और अब उर्मि भी,
फूलों की चादर के नीचे मैं थी और मेरे परिवार वालो ने चारो कोनो से उस चादर को थामा हुआ था, और हम बड़ रहे थे मेरी भावी जिंदगी यानि निलेश जी कि तरफ,
सब की निगाहें बस मुझ पर ही टिकी थी ।
मैं धीरे धीरे स्टेज की तरफ बढ़ रही थी, निलेश जी स्टेज से उतर कर आये और मेरा हाथ थाम कर मुझे स्टेज तक ले गए ।
मैं उनकी निगाहों में उस पल का अहसास देखने कि कोशिश कर रही थी,
लेकिन उन आँखों में तोह बस थकान नजर आ रही थी ।
हाहा, माफ कीजिएगा आप लोग ।
पर ऐसी ही तोह होती हैं आजकल की शादियां,
जहाँ शादी के दिन तक पहुँचते पहुँचते इंसान थकान से चूर हो चुका होता है।
निलेश और मैं हाथ थामे हुए स्टेज पर आये ।
अब सब नजरें हम पर थी ऐसे समय में भी निलेश बाज नहीं आये,
वोह मेरे कानों में फुस फुसाए ,
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बदलते रिश्ते (भाग-20) अंतिम भाग – अंबिका सहगल : Moral stories in hindi
लेखिका : अंबिका सहगल