बदलते रिश्ते (भाग-18) – अंबिका सहगल : Moral stories in hindi

खुशी तोह पापा के चेहरे पर भी नजर आ रही थी, लेकिन उनकी हमसे नाराजगी इतनी ज्यादा थी, कि उसके सामने वोह अपने जीवन की इतनी बड़ी खुशी का इजहार भी नहीं र पा रहे थे ।

मैंने कई बार कोशिश कि की उनसे बात हो पाए लेकिन सब प्रयास विफल ही रहे ।

शादी की तारिख भी निकल गई थी एक महीने बाद कि ।

 जोरों शोरो सें शादी की तैयारियां चल रही थी

 कार्ड भी छप र आ गए थे ।

मम्मी पापा रिश्तेदारों को फोन कर के हमारी शादी का निमंत्रण देने के साथ ही, अनिरुद्ध भईया कि शादी में ना बुला पाने कि माफी मांग रहे थे ।

मेरे मन में बहुत मलाल हो रहा था एक ही घर के दो बच्चों कि शादी में इतना अंतर

बस पापा के इस बिना मतलब के अहंकार, जिद्द की वजह से ।

मुझे नहीं पता पापा को तब यह अहसास हो भी रहा था या नहीं लेकिन यह यकीन जरूर था, उन्हें यह अहसास एक दिन होगा जरूर ।

उर्मि, अनिरुद्ध भईया दोनों ही बहुत उत्साह से मेरी शादी कि तैयारियां में लगे थे

मैं, उर्मि और अनिरुद्ध भईया के सामने बहुत शर्मिंदगी महसूस करती लेकिन वह दोनों मुझे इस बात को मन से निकालने को कहते ।

एक दिन भईया मुझे बोले,

” मैं बहुत खुश हूँ कि कम से कम पापा  तेरी शादी  धूमधाम से रने के लिए मान गए । नहीं तोह मैं अपने को कभी माफ नहीं कर पाता कि मेरी वजह से तेरी शादी भी पापा ऐसे ही कर देते ।

 तोह सोच मत यह वक्त फिर नहीं आएगा इसको खुल के जी” ।

इधर निलेश जी का फ़ोन आया वह मेरे फोन उठाते ही बोले ,

” तापसी  तुम्हारा परीक्षा का परिणाम आ गया ,बहुत ही अच्छे नंबरो से पास हुई हो ।

बताओ पार्टी कहाँ दें रही हो“?

मैं एक दम बोली “ओह निलेश जी आखिरकार मैं डॉक्टर बन गई!

फिर मैं उनसे अपने नंबर,…… यह सब पूछने लगी ।

उन्होंने फिर पूछा ” पार्टी कहाँ इन सब में मेरी पार्टी गोल नहीं र जाना “,

मैंने हंसते हुए कहा “बहुत ही जल्दी दूंगी” ।

वह बोले, “मैं मिठाई से मुँह मिठा नहीं करूँगा” ।

घर में सब ही बहुत खुश थे उर्मि ने मेरा और मम्मी का  मुँह मिठा कराया,

मम्मी ने पापा, भईया को फोन पर यह खुशखबरी दी ।

भईया भी बहुत ज्यादा खुश थे उन्होंने मुझे फोन पर ही बहुत बधाइयां दी और फोन पापा को पकड़ा दिया,

वहाँ से पापा कि आवाज कुछ देर के लिए नहीं आई फिर भरी हुई सी आवाज में बोले 

“तापसी  तुम्हे  डॉक्टर बनने कि बहुत बधाई”

और यह बोलकर फोकाट दिया कि वोह बहुत व्यसत हैं अभी ।

लेकिन उनकी आवाज से मैं समझ पा रही थी कि वो इस समय कितने भावुक हो रहे थे, आखिर उनकी भी तोह सालों कि इच्छा पूरी हुई थी ।

शाम को अनिरुद्ध भईया मेरे डॉक्टर बनने कि खुशी में हमें बाहर डिनर के लिए लेकर गए ,

और उस शाम हमनें बहुत ही मजे किये । 

पापा बोल नहीं रहे थे लेकिन उनकी खुशी का अहसास अच्छे से हो रहा था सबको ।

इधर शादी के लिए शहर का बहुत अच्छा होटल बुक करवाया गया,

 निलेश जी के परिवार के ठहरने कि व्यवस्था भी पास ही के होटल में कि गई थी ताकि किसी को भी कोई दिक्कत ना हो ।

बीच, बीच में निलेश जी के हमारे शहर में चक्कर लग रहें थे और भईया के उनके शहर में ।  

जब निलेश  यहां आते, दिन मानो सपनों कि तरह गुजरते ।

इधर मुझे एक, दो दिन के लिए अपने कॉलेज जाना था, वहां आगे कि इंटर्नशिप के लिए मुझे कुछ फॉर्म्स वगैरह भरने थे ।

 इतना ही होता तोह निलेश खुद बखूद यह काम कर लेते लेकिन वहां मेरे हस्ताक्षर भी होने थे, तोह मेरा जाना जरुरी था ।

वहां हॉस्टल में रुकने के लिए मेरा इंतजाम हो गया था ।

 आंटी जी, निलेश तोह मुझे घर में ही रुकने के लिए जोर दें रहे थे,

 लेकिन मुझे और घर वालों को शादी से पहले यह सही नहीं लगा ।

मैं ट्रेन से  पहुँची स्टेशन पर निलेश मुझे लेने आयें थे ।

 उन्होंने मुझे गले से लगाया फिर सामान उठा र कार में रखा, वहां से हम पहले सीधा कॉलेज ही गए ।

वहां जोह भी फॉर्म्स वगैरह भरने थे, मैंने जल्दी से उन्हें पूरा किया,

कॉलेज में सब हम दोनों को बधाइयाँ दें रहे थे, मेरे डॉक्टर बनने कि भी, और हमारी होने वाली शादी कि भी ।

हम दोनों ने वहां स्टॉफ को हमारी शादी के कार्ड और मिठाई बांटी, उसके बाद जल्दी से हम लोग वहां से निकल गए ।

मैंने जल्दी से अपना सामान हॉस्टल में रखा और आकर कार में बैठ गई,

निलेश जी ने पुराने हिंदी रोमांटिक गीत लगा दिए और हम दोनों गीतों का मजा लेने लगे

तभी अचानक से निलेश बोले ,

“तापसी, मैं एक शायरी सुनाऊ?

तुम्हारी याद में मैं भी छोटा मोटा शायर हो गया हूँ , शर्त यह है कि तुम मेरा मजाक नहीं उड़ाओगी” ।

मैं हंसते हुए कान पकड़ते हुए बोली,“मेरी ऐसे हिम्मत कि मैं ऐसी गुस्ताखी करुँ ?आप सुनाइयें ना”

और उन्होंने  सुनाना शुरू किया,

तुम मेरी होकर भी, मेरी हुई नहीं अब तक,

लें लूंगा सपने तुम्हारे तब तक, जब तक तुम देती नहीं ज़िन्दगी मैं मेरी दस्तक,

वहां ना कोई सीमांए होंगी, ना दस्तूर होंगे ,बाहों में भर र छू लूंगा तुम्हे जब तब,

अब बोलो कैसा है?”

मै हँसते हुए बोली,

” आप पर ना डॉक्टर वाला पेशा ही ज्यादा सही लगता है, क्यों नाहक ही किसी शायर कि रोजी, रोटी पर लात मारनी है

निलेश मेरी तरफ झूठ मुठ का गुस्सा दिखाते हुए बोले,

“अरे यार तुम ऐसी ही दिल रखने को बोल देती कि अच्छा है” ।

और हम दोनों हंसने लगे जोर जोर से ।

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लेखिका : अंबिका सहगल 

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