बदलते रिश्ते (भाग-17) – अंबिका सहगल : Moral stories in hindi

और अनिरुद्ध भईया भी बनवाने वालों में बिल्कुल नहीं हैं ।

वोह उर्मि को खाने वाली नजरों से घूर रहे थे, जब उर्मि मुझे अपने कमरे में रोकने की कोशिश कर रही थी ।

पक्का उर्मि की बाद में क्लास लगी होगी ।

खैर सब थके हुए थे तोह लंच के बाद आराम के लिए अपने अपने कमरे में चले गए ।

शाम को भईया, उर्मि कुछ देर के लिए टहलने के लिए निकले

मैं भी अपने हॉस्टल अपनी कुछ दोस्तों से मिलने के लिए निकली,

सही समझ रहे हैं आप

मेरे खास दोस्त से मिलने, जिनका मेरी ज़िन्दगी में हमेशा के लिए आगमन होने ही वाला था, जी हाँ मेरे निलेश, मेरे सर, मेरे प्रोफेसर या चिंटू जी भी कह सकते हैं,

आप जिस भी नाम से बुलाना चाहें ।

हम एक ही शहर में होकर भी ना मिलते तोह, यह तोह ज्यादा ज्यादती ना हो जाती, दो प्यार करने वालो पर

निलेश मुझे होटल से कुछ दूर ही मिले मैं घर वालो को कोई भी नाराजगी का मौका नहीं देना चाहती थी ।

मैं कार में बैठी हम दोनों ही एक दूसरे को देख कर बहुत ही खुश थे

मैं उनको बोली,

“आपको पता भी है आज कितना मुश्किल था निकलना, सबको झूठ बोल कर आई हूं

वोह बोले ” अपने बॉयफ्रेंड के लिए इतना भी नहीं करोगी?

 जोह मजा यूँ छिप के मिलने में हैं, वोह बता के मिलने में कहाँ “?

मैंने कहा, “पहलें यहां से कार आगे लीजिये कहीं कोई देख ना ले ” ।

हम थोड़ी देर में पास के ही रेस्तरा में थे,

हम दोनों ने वहाँ ड्रिंक्स मंगवाएं और हम अपनी बातों में लग गए ।

तभी मैं डर के मारे कांप गई, अनिरुद्ध भईया और उर्मि हमारी तरफ ही चल कर आ रहे थे

वोह जैसे जैसे नजदीक आ रहे थे, मेरी हालत खराब हो रही थी ।

भईया पास आकर नीलेश जी से गले मिले और उनसे हाथ मिलाया, उर्मि ने भी उनसे नमस्ते कहा ।

फिर भईया  मुझे कंधे से झिझोड़ते हुए बोले,

“डर मत तपु यह सब निलेश जी का ही सब प्लान था, चल बैठ ।

 यह हमसे मिलना चाहते थे । 

कल तोह बड़ो के साथ मिलना होगा तोह हम लोग ने सोचा एक बार हम चारों ऐसे बाहर ही मिल लें ” ।

मेरी जान में जान आईं । 

निलेश मेरी तरफ पानी बढ़ाते हुए बोले ,

“रिलैक्स तपु, अनिरुद्ध मेरी होने वाली बीवी को भाई इतना डरा के मत रखो” ।

और हम सब ही हंसने लगे ।

हमने साथ में काफी अच्छा समय निकाला,

भईया और निलेश ने बहुत चीजे आपस में साँझा की, अपने अपने पेशे को लेकर, घर बार, रिश्तेदारी, आगे भविष्य के बारे में क्या योजनाएँ हैं,और ना जाने क्या, क्या ।

निलेश जी का अलग से मिलने का निर्णय कितना सही था मैं देख पा रही थी ।

और भईया की आँखों में भी मेरी पसंद के प्रति विश्वास और अपनापन देख कर बहुत अच्छा लगा ।

प्रतित हो रहा था भईया अब मेरे पसंद को लेकर काफी आशवाशित थे ।

समय बहुत हो गया था इस लिए सबने एक दूसरे से विदा लिया ।

 निलेश मुझे बोले “चलो तपु”,

तोह भईया बोले “निलेश जी अभी तोह मेरी बहन को मेरे साथ जाने दें, आप तोह अब इसको  बारात लेकर ही लेकर जाएं ” ।

इस बार झेंपने की बारी निलेश जी की थी ।

खैर हम सब वहाँ से निकले ।

भईया, उर्मि को भी निलेश बहुत पसंद आये । 

अब भईया के चेहरे पर उनसे मिलकर सुकून था कि मेरी बहन सही इंसान की जीवनसंगिनी बनने वाली है ।

उर्मि बोलीं ” बस मम्मी पापा को आज के हम लोग के मिलने की भनक ना लगे” ।

अगले दिन हम लोग तय समय के अनुसार तैयार होने लगे,

मम्मी, मैंने और उर्मि तीनो ने ही आज साड़ी डाली थी

मैंने आज पिले रंग की, नीलि बॉर्डर वाली साड़ी पहनी थी, साथ में बार्डर से मैच करता ब्लाउज, कानों में छोटे छोटे बुँदे, माथे पर छोटी नीलि बिंदी,आँखों में हल्का काजलहोठों पर गुलाबी लिपस्टिक और बालों की  ढीली चोटी बनाई थी ।

उर्मि और मम्मी भी बहुत सुन्दर लग रहे थे, लेकिन आज मैं उनकी व्याख्या नहीं करने वाली ।

अरे बुरा मत मानिये ।

आज मेरा दिन था तोह मुझे वोह अनुभूति तोह लेने दीजिये ।

खैर हम उनके घर पहुंचे दरवाजा निलेश जी ने खोला,

हाँ, हाँ मुझे पता है उनका भी आज खास दिन है ।

निलेश जी ने आज छोटा सफेद रंग का कुर्ता, जिसकी बाजु उन्होंने करीने से फोल्ड की हुई थी, और उसके साथ नीले रंग की जीन्स डाली हुई थी, कुल मिलाकर वोह बहुत ही सुन्दर लग रहे थे, अगर बोलूं हीरो लग रहे थे तोह कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी ।

निलेश ने मम्मी पापा के पैर छुए, भईया से भी वोह गले मिले, उर्मि को उन्होंने हेलो कहा

और मुझे?

मुझे उन्होंने सबकी नजर बजा र कान में कहा, 

“पटाखा लग रही हो “

तब तक आंटी जी भी  आ गए थे

भईया, उर्मि ने उनके पैर छुए

उन्होंने मम्मी को गले लगाया और पापा को नमस्ते कहा ।

मैंने भी आंटी जी के पैर छुए ।

वोह मुझे गले लगा र बोलीं, “बहुत हि प्यारी लग रही हो ” ।

जैसे जैसे बातचीत का दौर आगे बढ़ रहा था, पापा के चेहरे पर मुझे संतोष की झलक दिखने लगी,

माँ बाप अपनी औलाद से चाहे जितने भी नाराज हो जाएँ, लेकिन उनके मन में औलाद को लेकर हमेशा चिंता, प्यार बना रहता ही है

मम्मी का चेहरा ही बता रहा था उन्हें निलेश बहुत पसंद आये थे ।

सब बातों में मशगूल थे तब तक उनके यहां काम करने वाली नीरू चाय, नाश्ते की ट्रे लेकर आ गई, आंटी जी उठते उससे पहले ही उर्मि और मैंने सब संभाल लिया ।

हमने सबको नाश्ता सर्व किया

जहाँ बड़े लोग बातों में लगे थे, हम लोगो की आँखे चार हो रही थी,

भईया जब भी मौका मिलता उर्मि को छेड़ते और नीलेश जी के तोह कहने ही क्या ।

लेकिन सच कहुँ जितना डर लग रहा था ना मुझे मेरा सब डर भाग गया था ।

एक लड़की को तब बहुत खुशी होती है, जब उसके दोनों परिवारों में तालमेल अच्छा होता है ।

 एक परिवार जहां वोह पैदा हुई है और दूसरा जहां का हिस्सा वोह शादी के बाद बनती है

यहां सबके हंसते चेहरे देख कर बहुत अच्छा लग रहा था ।

अंततः सबकी सहमति से हमारा रिश्ता अपने अगले पड़ाव पर पहुंचा ।

नीलेश जी और मुझे साथ, साथ बैठा दिया गया ।

वहीं के वहीं पहले आंटी जी ने मेरे माथे पर कुमकुम का टीका लगाया, हाथों में लाल रंग की चुड़ीयां पहनाई, सर पर लाल रंग की चुन्नी ओड़ाई, और मुझे शगुन दिया ।

फिर निलेश के भी उन्होंने टीका लगाया, हम दोनों का  मुँह मिठा कराया, उसके बाद हम दोनों ने आंटी जी के पैर छुए ।

उसके बाद मम्मी, पापा, भईया, उर्मि सबने भी मुझे कुमकुम का टीका लगाया और सबने नीलेश जी के तिलक किया और मुँह मिठा कराया,

और फिर नीलेश जी को शगुन और कपड़े दिए, निलेश ने मम्मी, पापा के चरण स्पर्श किया

पापा, मम्मी ने आंटी जी को भी बहुत से उपहार दिए, वोह मना करते रहे लेकिन पापा, मम्मी ने उनकी एक नही चलने दी ।

मैं और निलेश जैसे सातवें आसमान पर थे,

आज से हम दोनों का नाम एक दूसरे के नाम के साथ जुड़ गया था मेरा सपना हकीकत में बदलने वाला था ।

निलेश जी ने मुझे दबी आवाज में कहा,

 “अब बहुत जल्दी बैठक से बैडरूम का सफर भी तय हो ही जाएगा तापसी, फिर कैसे बचोगी मुझसे” ।

लंच करते करते आगे के कार्यक्रम कैसे करने है, उनके बारे में भी बातचीत होने लगी,

आंटी जी की इच्छा थी कि शादी जल्दी लेकिन सारे रीति रिवाजों के साथ धूमधाम से  हो ।

और उनका कहना था कि जोह भी खर्चा होगा वोह दोनों परिवार आपस  में मिलकर ही उठाएंगे, पापा मम्मी के बहुत मना करने पर भी वोह अपनी इस बात पर अडिग रहे।

अंतह मम्मी पापा के पास इस बात को मानने के अलावा कोई चारा नहीं था ।

तय हुआ शादी हमारे शहर में होगी ।

भईया और निलेश शादी की सारी तैयारियां मिलजुल कर संभाल लेंगे और हम सब तोह साथ देंगे ही ।

बाकि  शादी का मुहूर्त पंडित जी की सहमति से जितना जल्दी का निकल पाएगा प्रयास करेंगे ।

शाम की चाय पिते पिते रुखसती का वक्त हो चला था ।

मौका मिलते ही नीलेश जी ने मुझे हमारा होने वाला बैडरूम भी दिखाया, 

वह बोले ” मैम आप एक बार देख लो, आपको जोह भी इसमें बदलना  हो, आप बता दें, बंदा, आपके सामने है आप मुझे बता सकती हैं” ।

और बोलते बोलते उन्होंने मुझे अपने करीब खींच लिया और इससे पहले की उनके होंठ मेरे होठों को छूते मैं पीछे हट गई ।

उन्होने मुझे माथे पर चूमते हुए बोला, लेकिन शादी के बाद तुम मुझे रोकोगी नही” ।

मैंने सिर झूका लिया।

 सब ने एक दूसरे से विदा लिया, जल्दी ही मिलने के वायदे के साथ । 

अगले दिन सुबह ही हम लोग अपने घर के लिए चल पड़े सब ही बहुत खुश थे ।

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लेखिका : अंबिका सहगल

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