बदलते रिश्ते (भाग-15) – अंबिका सहगल : Moral stories in hindi

“अब तोह भईया आप उर्मि से जितनी भी बात करो, कोई नहीं रोकेगा ” ।

भईया मेरे कान खींच कर बोले,“अपने प्रोफेसर साहाब पर भी ध्यान देले” ।

और हम दोनों हंसने लगे ।

कमरे में आकर मैंने सर को फ़ोन लगाया,

इतने दिनों से ढंग से बात भी नहीं हो पाई थी, उनको यहां क्या चल रहा था क्या ही बताती ।

घंटी जा रही थी सर ने फ़ोन उठाया वोह उठाते ही बोलने लगे,

“तपु घर जाकर तोह लगता है मुझे भूल ही गई हो ।

वहाँ इतनी मगन हो गई हो याद ही नहीं है, मैं यहां तुमसे बात करने को कितना बेकरार हो रहा था 

सोचा था जब तक आती नहीं हो कम से कम फोन पर तोह खूब बात होगी” ।

मैंने उनसे कहा, ” आप मुझे सुन तोह लीजिये “

और मैंने उन्हें सब बयां कर दिया, काफी देर तक हमारी बातचित होती रही

वोह बोले,

ससुर जी का आदेश सर आँखों पर, वोह जब कहेंगे मैं अपनी तापसी को लें जाऊंगा ।

मैं तुम्हे दुल्हन के रूप में देखने को मरे जा रहा हूं तापसी ।

अच्छा सुनो मेरी बात जो भी यहां हुआ उसको इतना मन से नहीं लगाओ

समय के साथ सब सही होगा तुमने अनिरुद्ध का साथ देकर बहुत सही किया 

अंकल आंटी की नाराजगी भी समय के साथ चली जाइगी, अनिरुद्ध उर्मि को भी मेरी तरफ से बहुत शुभकामनायें देना ।

बाकि चिंता ना करो तुम्हारे पापा जैसे जब हमें भी आदेश देंगे हम हाजिर हो जाएंगे “

अभी तोह तुम मुझे जितना तंग करना हैं र लो, शादी के बाद तुमसे  सबका हिसाब बराबर करूँगा । समझ रही होना तुम” ।

मैंने शरमा कर गुड नाईट बोल र फोन कट कर दिया

और अपने पिया को याद करते कब नींद आ गई पता नहीं लगा, आज तोह वैसे भी सभी को सकून की नींद आईं होगी ।

अब शादी की तैयारियां शुरू हों चुकी थी । मुझे मम्मी पर तरस आता वोह बच्चों और पति के बीच में अलग ही पिस रहे थे ।

वह खुल के अपनी बातों को भी ना रख पाती, कभी जब वोह अपना गुस्सा भूल जाती, तोह थोड़ी देर के लिए ही सही बहुत मजा आ जाता, क्योंकि फिर उनका जोश देखते ही बनता था ।

शादी की तारिख भी तय हो गई थी, बस बारह,तेरह दिन ही बचे थे ।

 जिनको बुलाना था, फोन पर ही निमंत्रण दे दिए गए थे ।

और दिन बस बीतते जा रहें थे ।

शादी को बस अब चार,पाँच दिन ही बचे थे । 

आज उर्मि का लहंगा लेने जाना था, साथ ही मम्मी और मेरे कपड़े भी लेने थे ।

मैंने डरते डरते मम्मी से उर्मि को साथ लेर जाने के लिए पूछ लिया,

मम्मी बोले “उसमे पूछना क्या है? बस थोड़ा ध्यान रखना पापा को पता ना लगे” ।

मैं मम्मी के गले लग गई और उनसे उस दिन के व्यवहार के लिए माफी मांगी ।

मम्मी के भी आँखों में आंसू थे वह दोनों के आँसू पूछते हुए बोली

“अब जा जल्दी से उर्मि को फोन कर” ।

ऐसे हम चारो यानि अनिरुद्ध भईया उर्मि मम्मी और मैं बाजार के लिए निकले

मैं आगे बैठने लगी तोह मम्मी बोले, 

“उर्मि को बैठने दे आगे तु क्या करेंगी आगे बैठ कर” ।

चाह तोह हम भी यही रहे थे पर मम्मी ने कहा तोह बहुत अच्छा लगा, मम्मी के उर्मि के प्रति व्यवहार देख कर मन को बहुत सकून मिल रहा था ।

भईया उर्मि आगे वाली सीट पर धीरे धीरे  बातें कर रहे थे और आज उनके कान खिंचनें के मजे मम्मी भी साथ में ले रहे थे ।

लहंगे की दुकान पर भी हम लोगो ने जानबूझ कर, उन दोनों को अकेला छोड़ दिया, और खुद हम दूसरी तरफ अपने कपड़े देखने लगे ।

लेकिन मैं कहाँ कम थी बीच बीच में, मैं चोरी छिपे उनके चल रहें रोमांस के मजे लें लेती ।

कैसे भईया उर्मि को अपनी पसंद के लहंगे डलवा के देख रहें थे, और वोह भी कितनी मगन होकर लगी हुई थी ।

मम्मी ने मुझे डांटा तु अपने कपड़े लेने पर ध्यान दें ।

अंततः हम सब ने कपड़े खरीद लिए और रेस्तरा में रुके कुछ नाश्ते के लिए, वहाँ भी भईया उर्मि को तंग करने से बाज नहीं आ रहें थे ।

  बेचारी उर्मि मम्मी के होते हुए कुछ बोल भी नहीं पा रही थी, सच तोह यह है की वोह भी इन पलों के बहुत मजे लें रही थी ।

 आज वोह शुभ दिन आ गया था जब उर्मि पुरे रीति,रिवाजों के साथ हमारे मतलब अपने घर आने वाली थी ।

मैंने और मम्मी ने अपने लिए एक जैसी साड़ी खरीदी, रॉयलब्लू रंग की ।

 साथ में गोल्डन रंग के ब्लाउज  उसके साथ मैचिंग चूड़ियाँ, झुमके, बिंदी ।

मम्मी मना करते रहें लेकिन आज मम्मी और मैं दोनों  पार्लर से तैयार हुए ।

कुल मिलाकर मम्मी और मैं बहुत सुन्दर दिख रहे थे ।

पापा ने तोह नये कपड़े लेना भी जरुरी नहीं समझा, पुराना पेंट शर्ट ही डाल लिया ।

भईया ने क्रीम कलर की शेरवानी पहनी थी उसपे उसी रंग कि पगड़ी,

भईया  बहुत ही सुन्दर लग रहे थे ।

खैर हम मंदिर पहुंचे,

वहाँ रानि आंटी और रजत अंकल अपने कुछ रिश्तेदारों और पड़ोसियों के साथ पहले से ही मौजूद थे ।

उर्मि अभी आई नहीं थी ।

पंडित जी ने सबको बिठा कर विवाह की रस्मे शुरू की,

कुछ ही देर में पंडित जी ने उर्मि को भी लाने को कहा ।

उर्मि को देख कर तोह मेरे ही होश उड़ गए तोह भईया के बारे में तोह क्या ही बोलूँ ।

उर्मि लाल रंग के लहंगे  में बहुत ही सुन्दर लग रही थी, उस पर मांग टिक्का, नथ, सुन्दर सा हार, लाल बिंदी, लाल ही लिपस्टिक, कायदे से बनाये हुए बाल जिनमें मोगरे के फूलों का गजरा और भी खूबसूरती को बढ़ा रहा था ।

 उसके नयन नक्श तोह अलबत्ता पहले से ही बहुत अच्छे थे, पार्लर वाली ने हलके मेकअप से रहा सहा उसकी खूबसूरती पर चार चाँद लगा दिए थे ।

वोह भईया के साथ बैठ कर विवाह की रस्मे निभाने लगी,

कुछ ही देर में शादी की रस्मे हो गई ।

अंकल आंटी जी ने पास के ही होटल में सबके लिए खाने का इंतजाम किया हुआ था

वहाँ से निबट के सब उनके घर गए, वहीं से उन लोगो ने उर्मि को विदा किया

विदाई का माहौल किसी के लिए भी भारी होता है,मैं भी अपने आंसू नहीं रोक पाई,

 उस पल में लड़की के लिए एक दम से सब बदल जाता है, मुझे अपने लिए भी लगने लगा की मुझे भी जल्दी ही इसी परिस्थिति से निकलना है,

जहाँ लड़की के मन में ना जाने क्याक्या चल रहा होता है, अपनों से बिच्छूड़ने का दर्द, ससुराल में सब कैसे होंगे, सब अपनाएंगे भी यां नहीं,उनके बीच अपनी जगह बनाने की चिन्ता, और ना जाने क्या क्या….

अरे अरे मैं कहाँ पहुँच गई ।

उर्मि विदा होकर हमारे घर आ चुकी थी ।

 मम्मी और मैं बड़े उत्साह से सब रस्मों को करने लगे, और आखिर शाम तक सब रस्मे हो चुकी थी । 

मम्मी ने अब भईया को बोला,

“अनिरुद्ध उर्मि को बेटा अपने कमरे में लें जा, तुम लोग भी सुबह से बहुत थक गए होंगे ” ।

मैंने और मम्मी ने भईया के कमरे की सजावट पहले ही करवा दी थी ।

नहीं नहीं पाठकगन, हमें यहीं रुकना होगा,

अब इससे ज्यादा तोह उनके कमरे में झाँक नहीं सकते ना ।

आप खुद ही समझदार हैं ।

माँ और मैं भी जल्दी जल्दी सब समेटने में लग गये, ताकि हम भी राम कर सकें ।

मैं अपने कमरे में आ चूकि थी

आकर मैंने सर को फोन लगाया,

 वह तोह जैसे मेरे फोन का बेसब्री से इंतजार ही कर रहे थे ।

वह बोले, 

“तपु तुम मुझे तोह भूल ही गई, कम से कम कुछ फोटोज ही भेज देती ।

 मैं देख तोह लेता आज मेरी तपु कैसी लग रही थी । 

तुमने तोह शादी में भी नहीं बुलाया, कम से कम मैं फोटोज देख कर ही खुश हो लेता ।

तभी वोह वीडियो कॉल करते हैं,जैसे ही मैं कॉल उठाती हूं

वह बस मुझे देखते ही रहते हैं ।

कितना अजीब हैं ना यह इश्क, किसी खास का ऐसे देखना आपको अंदर तक रोमांच से भर देता है, आप चाहते हो आप उस इंसान के और करीब जाओ, इतना करीब कि, आप उसके धड़कन को भी महसूस र सको,

 कुछ देर बाद वह बोले, 

“ओह  तापसी मेरी जान क्या लग रही हो, अब मुझसे और इंतजार नहीं होता, अब यह दूर दूर वाला प्यार मुझे नहीं चाहिए ।

मैं भी चाहता हूं तुम मेरे साथ हो, तुम्हारी गोद में अपना सर रख कर मैं तुम्हे निहारता रहूं, हम रात ऐसे ही बिता दें एक दूसरे की बाहों में ।

बताओ ना, कब  आऊं तुम्हे लेने?”

मैंने कहा, “आप सो जाओ अभी रात बहुत हो गई हैसुबह में बात करेंगे ” ।

वोह हंसते हुए बोले, “हाँ, सब समझ रहा हूं, कोई बात नहीं तुम भी अब आराम करो गुड नाईट ” ।

सुबह सब थोड़ा आराम से ही उठे,

आज उर्मि को कुछ मिठा बनाना था, मम्मी ने उसके आने से पहले तैयारी कर दी थी

उर्मि थोड़ी देर में आ गई, उसने गहरे गुलाबी रंग का सूट डाला हुआ था, उस पर बिंदी, भरी हुई मांग, और गिले बाल उसकी खूबसूरती को और भी बड़ा रहे थे ।

 उसने मम्मी पापा के पैर छुए फिर वोह माँ के साथ रसोई में चली गई ।

 मम्मी ने पोहा बना लिया, उर्मि ने तब तक हलवा बना लिया । 

जब तक वोह  लोग रसोई से बाहर आये भईया भी नहा कर आ गए थे

भईया उर्मि को बड़ी हसरत भरी नजर से देख रहे थे, उनकी नजरें उर्मि से हट ही नहीं रही थी ।

उर्मि भी रह रह कर भईया को देखती ,फिर शरमा के नजरें झूका लेती ।

उर्मि भईया को ऐसे देख कर मेरी आंखो को इतना सुकून मिल रहा था, जिसे शब्दो में ब्याँ करना मुश्किल है,

मम्मी, पापा ने उर्मि को नेक दिया

उर्मि पाक कला में निपुण लग रही थी, हलवा बहुत अच्छा बना था सबने उसकी तारीफ की ।

पापा उठते हुए बोले,

” तापसी अब तुम भी मुझे बता दो, कब मिलना हैं उनसे? वोह आएँगे यां हमें जाना होगा?

जोह भी प्रोग्राम हो मुझे बता देना ।

अब मैं इस काम को भी जल्दी निटाना चाहता हूं” ।

मेरे मन में एकदम टीस सी उठी निटाना चाहते हैं

पापा ऑफिस के लिए निकल गए ।

भईया मुझे पकड़ के बोले,

“पापा की बातों का बुरा मत मना जिस दिन उनका गुस्सा उतरेगा, तु देखियो पापा खुद ही अपनी गलती महसूस करेंगे ।

अगला भाग 

बदलते रिश्ते (भाग-16) – अंबिका सहगल : Moral stories in hindi

लेखिका : अंबिका सहगल

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