मम्मी भी भईया और मुझसे उखड़ी उखड़ी थी ।
जोह कुछ हद तक तोह उनकी तरफ से जायज भी था।
मम्मी अपने कमरे में चले गए, रह गए भईया और मैं।
भईया और मैं उनके कमरे में आ गए।
अनिरुद्ध भईया जोह इतने समय से अपनी भड़ास दबा कर बैठे थे गुस्से में बोलने लगे,
“मुझे ऐसे चोरों की तरह यह शादी नहीं करनी।
जब वोह उर्मि को समाज के सामने बहु का दर्जा देने में शर्म महसूस कर रहें हैं,
घर में तोह उसके आत्म सम्मान का क्या ही होगा?
मैं ऐसी शादी के लिए तैयार नहीं हूँ ”।
मैने भईयासे कहा,“अभी उर्मि ओर आपका एक साथ होना हमारे लिए सबसे जरूरी है ।
अभी पापा गुस्से में हैं वह जोह चाहते थे वह नहीं हुआ ।
लेकिन धीरे धीरे उनका गुस्सा भी शांत हो जाएगा और फिर आप भी तोह होंगे उर्मि के साथ उसके आत्म सम्मान की रक्षा के लिए ।
अभी ज्यादा जरुरी है यह सोचना उर्मि और उसके परिवार को कैसे मनाना है?
उनके भी तोह कुछ अरमान होंगे शादी को लेकर उन्हें भी तोह अटपटा लगेगा हमारा यह व्यवहार ।
तोह अभी हमें ध्यान इस बात पर देना है की किसी की भावनाओं को ठेस भी ना पहुंचे और शादी राजी खुशी हो जाये” ।
और मैं भईया के गले लग कर बोली,
“मुझे पता है हर किसी के उसकी शादी को लेकर बहुत सपने अरमान होते हैं ।
घरवालों के भी बहुत से अरमान होते हैं, लेकिन आज जोह स्थिति है उसमे मुझे लगता है आप दोनों का एक साथ होना हमारी सबसे पहली प्राथमिकता होनी चाहिए ।
और क्या ही पता पापा को खुद महसूस हो अपनी गल्ती” ।
भईया ने मुझे अपने गले लगा लिया और बोले,
“ठीक है दादी माँ ।
सोचते हैं कैसे सब करना है ।
पहले मुझे चाय पिला उससे दिमाग चलेगा ” ।
हम दोनों बैठ कर सोचने लगे के आगे अब कैसे बढ़ना है ।
अनिरुद्ध भईया बोले, ” पहले तोह उर्मि को इस सबसे अवगत कराना पड़ेगा,
ताकि वोह अंकल आंटी को हमारे रिश्ते के बारे में तोह बताये ” ।
मैंने कहा,
“हाँ भईया अंकल आंटी के पास हम रिश्ते की बात करने जायें, उससे पहले उर्मि ही अंकल आंटी को आप दोनों के रिश्ते के बारे में बताये, उसी में समझदारी है ” ।
भईया ने उर्मि को फोन करके सारी स्तिथि से अवगत करवाया, साथ ही उसको आश्वासन भी दिया,
“मैं किसी भी परिस्थिति में तुम्हारे साथ हूं ।
हमें इस परिस्थिति को बस मिलके संभालना है” ।
इधर मम्मी हमारी हर गतिविधि पर नजर बनाये बैठे थे ।
हो भी क्यों ना?
आखिर हम उनके बच्चे थे ।
हमारी जिंदगी के किसी भी निर्णय में उनकी रजामंदी हो ना हो,
लेकिन एक माँ हमेशा अपने बच्चों के लिए फिक्रमंद तोह होती ही है ।
खैर अब समय आ गया था जब हमें उर्मि के मम्मी पापा से बात करने जाना था ।
उर्मि का कॉल आ चूका था, राहत की बात यह थी कि अंकल आंटी जी ने इस रिश्ते को खुले मन से स्वीकार किया था ।
लेकिन उनको भी शादी इतनी जल्दबाजी में रिश्तेदारों, जान पहचान के लोगो के बिना करने में आपत्ति थी ।
हम दोनों ने कोशिश की मम्मी रानि आंटी से बात करें,हमारा बात करना हमें सही नही लग रहा था ।
लेकिन मम्मी ने भी जैसे चुपी लगा ली थी ।
अब बात करने भईया और मुझे ही जाना था ।
उर्मि के घर हमें जिस आदर सम्मान से अंकल आंटी जी ने नवाजा, हमें कम से कम तसल्ली हुई की उर्मि के माता पिता का साथ तोह हमें मिलेगा ही ।
‘आपके जीवन के इतने बड़े फैसलों में जब आपका परिवार साथ नहीं खड़ा होता,
तोह आपको अपनी बुद्धि, अपने फैसलो पर संशय होने लगता है’
आपकी खुशियाँ अधूरी रह जाती हैं, ।
हमें कम से कम तसल्ली थी जिस दर्द से हम गुजर रहें थे, उर्मि को उस दर्द से नहीं गुजरना था ।
उर्मि को उसके मम्मी पापा का साथ मिला था ।
अंकल आंटी जी ने रिश्ते के लिए तोह सहर्ष सहमति दे दी ।
लेकिन उनका मन शंकित था की भईया और उर्मि ने कुछ गलत तोह नहीं कर लिया, जोह इतने आनन फानन में शादी करनी पड़ेगी ।
हमें उन्हें सब सच बताना पड़ा वैसे भी हम उनको अँधेरे में नहीं रखना चाहते थे ।
अंकल बोले,
“अनिरुद्ध बेटा तुम मेरे दामाद बनो, मेरे लिए इससे बड़िया बात नहीं हो सकती लेकिन अगर इसमें भईया भाभी की रजामंदी नहीं, तोह मुझे नहीं लगता आप लोग को आगे बढ़ना चाहिये ” ।
अनिरुद्ध भईया बोले,
“अंकल अगर पापा मम्मी के मना करने के कारण से मैं सहमत होता, तोह जरूर मैं उनकी बातों को तवज्जो देता, आखिरकार वोह मेरे अपने हैं ।
लेकिन अभी उनके आँखों के सामने जोह यह जात पात, हैसियत का पर्दा पड़ा हुआ है, उसके लिए मैं अपने जीवनसाथी के चुनाव में कोताहि नहीं कर सकता ।
आपकी बेटी में मुझे वोह सब दिखता है जोह मैं अपने भावी जीवनसाथी में चाहता हूँ ।
बाकि मुझे यकीन है पापा मम्मी को भी जल्द ही अपनी गल्त सोच का अहसास होगा, और तब वोह हमारे रिश्ते को खुले मन से स्वीकार करेंगे ।
लेकिन तब तक भी आपकी बेटी की आत्मसम्मान की जिम्मेदारी मेरी रहेगी।
लेकिन अंतिम निर्णय आपका ही होगा ।
क्या आप मुझे अपना दामाद बनने लायक समझते हैं?”
रजत अंकल रानि आंटी दोनों ने ही भईया को अपनी तरफ खींचते हुए गले लगा लिया ।
अंकल बोले
“बेटा मेरे लिए सौभाग्य की बात है की मेरी बेटी को तुम जैसा जीवनसाथी मिले, अब हमारे मन में कोई शंका नही ।
बाकि मैं भी आपके मम्मी पापा को सालो से जानता हूं, सब माँ बाप के अपने अरमान अपने सपने होते हैं, अपने बच्चों की शादी को लेकर उसमे कुछ गल्त नहीं ।
उनका गुस्सा अपनी जगह वाजिब है हमारी बेटी को कोशिश करनी है वोह अपने आचरण से जल्द उनका मन जीत ले और उनकी नाराजगी दूर हो ।
बाकि वोह जैसा चाहेंगे हम वैसे ही शादी के लिए तैयार है, तुम निश्चित रहो ।
तुम्हारे जैसा दामाद पाने के लिए,हमें अगर थोड़ा झुकना भी पड़े तोह हमें सहर्ष स्वीकार है” ।
रानि आंटी जी ने उर्मि और भईया को एक साथ बुला कर गले लगाया ।
उन दोनों को अंदर घर में बने मंदिर में ले जाकर माथा टिकवाया, उन दोनों के सर से पैसे वारे फिर हम सब का मुँह मिठा करवाया ।
भईया ओर उर्मि के चेहरे पर अलग ही खुशी नजर आ रही थी, मैं भी उन दोनों के गले लग गई, और अंकल आंटी जी को भी बुला लिया ।
वहाँ से हम खुशी खुशी विदा हुए ।
अंकल आंटी से हम पहले ही क्षमा याचना करके आये थे कि अगर शाम में,
“मम्मी पापा की तरफ से कुछ गलत व्यवहार भी हो जाये, तोह उसके लिए हम अभी आपसे माफ़ी मांगते हें, पर बस आप लोग बात को संभाल लें” ।
निर्धारित समय पर अंकल आंटी जी आये, वोह साथ में बहुत सारे उपहार, फल, मिठाई लाये थे ।
पापा मम्मी ने उनका अच्छे से स्वागत किया ।
मेरे और अनिरुद्ध भईया के जान में जान आईं उनका व्यवहार भी बहुत संयमित था ।
पापा ने उन्हें बता दिया,
“हम लोग जल्दी और सादा शादी चाहते हैं बस घर वालो की मौजूदगी में ।
रानि आंटी ने मम्मी को एक बार धीरे से कहा,
“अगर आप माने तोह कम से कम कुछ जोह लोकल रिश्तेदार हैं, और कुछ पड़ोसी उनको बुला सकते हैं ।
नहीं तोह थोड़ा दूसरे के मन में शंका होती हैं, बातें अलग बनने लगती हैं, बाकि आपको जोह सही लगे” ।
मम्मी के चेहरे से यह साफ जाहिर था मम्मी भी इस बात से पूर्णतया सहमत थी ।
लेकिन पापा की अनुमति के बिना वोह कुछ बोल नहीं सकती थी ।
पापा ही बोले ” बहन जी आप और अनिरुद्ध की मम्मी मिलकर तय कर लें ।
मैं तोह वैसे बस हमारे परिवार वालो के बीच ही शादी चाहता हूँ ।
लेकिन फिर भी अगर आप लोग चाहते हैं, पचास लोग से उपर दोनों तरफ के लोग ना हो ।
रजत अंकल और आंटी एक साथ ही बोले “जी जैसा आप कहें हम सब मिलकर तय कर लेंगे,बाकि पंडित जी से दिन समय निकलवाना होगा ।
मम्मी बोले ” वोह मैं कर लुंगी ” ।
और उन सब की काफी देर तक बहुत सी चीजो पर बातें हुई ।
साथ साथ मैंने नाश्ता भी परोस दिया ।
कुल मिलाकर सब सही से निपट गया ।
उनके जाने के बाद पापा बोले ,
“रिश्ता तय हो गया है, जैसे आप लोग चाहते थे, तोह सब अपने अपने स्तर पर काम शुरू कर देना बाकि शादी किस दिन होगी, वोह भी एक दो दिन में पता लग जाएगा ।
और वह अपने कमरे में चले गए ।
उनकी नाराजगी चल ही रही थी लेकिन इसी बात की तसल्ली थी, इस नाराजगी में भी उन्होने अंकल आंटी से व्यवहार सही से ही किया ।
मैंने भईया को गले लग कर बधाई दी और बोला,
अगला भाग
बदलते रिश्ते (भाग-15) – अंबिका सहगल : Moral stories in hindi
लेखिका : अंबिका सहगल