मैंने कहा “हाँ जी आंटी”
फिर आंटी बोले “उर्मि तोह नही है बेटा “
तोह मैंने बोला,”कोई बात नही आंटी जी मैडम कुछ ज्यादा ही व्यस्त हो गई है आजकल,
आप बताओ, आप कैसे हो?अंकल जी कैसे हैं?”
आंटी बोली, “बेटा सब बढ़िया है तुम बैठो, चाय बना के लाती हूँ “ ।
कोई और दिन होता तोह मना कर भी देती लेकिन आज तोह चाय पीनी ही पड़ेगी….
और मैं बैठ गई।
आंटी चाय नाश्ता ले आए।
हम ऐसे ही कुछ भी बातें करने लगे ।
मैं मौका ढूंढने लगी कि कैसे मुद्दे पर आऊं?
“आंटी जी उर्मि की शादी होगी जब तोह मुझे आप पहले ही बता देना।
मैं तोह बहुत सारे कपड़े बनवाउंगी उर्मि कि शादी में “।
मैंने बोला,
आंटी हँसते हुए बोले,”उसे कोई पसंद तोह आये, हम तोह आज करने को तैयार ” ।
मैंने मौके पर चोका मारा ।
मैं बोलने लगी,”आंटी मेरा बस चले तोह मैं तोह उर्मि को अपनी भाभी बना लूँ,
फिर तोह हम ननद भाभी भी हों जाएंगे,फिर इसके खूब कान खींचा करुँगी, तब इसकी मनमानी भी नहीं चलने दूंगी” ।
आंटी जी मेरे तरफ देखते हुए बोले, ” बेटा, अनिरुद्ध जैसा दामाद किसको नहीं चाहिये होगा, और तुम्हारे जैसा परिवार भी ।
लेकिन हर इंसान को अपने हैसियत के मुताबिक ही चलना पड़ता है।
‘भगवान करें तुम दोनों को ही बहुत ही अच्छे ससुराल मिलें, सारे जमाने की खुशियाँ दोनों को मिले’ ।
अच्छा बताओ तुम क्या खाओगी? तुम्हारे लिए क्या बना दूँ“?
मैं बोली, “नही आंटी पेट भर गया अभी तोह चलूंगी, आज भईया भी घर में ही हैं ।
उर्मि आएगी तोह उसको आप बोलना कि थोड़ा समय मेरे लिए भी निकाल ले “।
मैंने घर आकर सब बातें भईया को बताई।
हमें अब यह तोह राहत थी कि उर्मि के परिवार में शायद इस रिश्ते को लेकर ऐसा कोई विरोध नही होना चाहिए।
भईया और मुझे दोनो को ही लगा कि उर्मि से हमें अब कुछ छुपाना नहीं चाहिए।
हमें डर था कहीं मम्मी उर्मि को कुछ ऐसा ना बोल दें जोह गल्त हो,
इसीलिए हमनें उर्मि को बाहर रेस्तरा में ही मिलने के लिए बुलाया।
निर्धारित समय पर हम रेस्तरा पहुंचे।
उर्मि को देख कर मन फिर बस यहीं चाहने लगा कि यह मुश्किलों के बादल छंट जाये और उर्मि भईया कि पत्नी के रूप में, हमारे परिवार का हिस्सा बन जाये।
उर्मि मेरे गले लगी भईया ने भी उससे हाथ मिलाया हम तीनों बैठ गए ।
उर्मि जानने को बेचैन थी आखिर उसको क्यों बुलाया हैं?
हमने उर्मि को कल रात से लेकर आज दिन तक की सारी बातें बता दी।
उर्मि का चेहरा एक दम उतर गया वह एक दम परेशान होकर बोली,
“अब क्या होगा?
अंकल आंटी जी नहीं मानेगें तोह क्या होगा?”
वोह अनिरुद्ध भईया की तरफ कातर आँखों से देखने लगी उसकी आँखों में आंसू आ चुके थे।
मैंने उसका हाथ थामते हुए बोला “उर्मि हमें धैर्य रखना होगा,
कम से कम यही गनीमत है कि शायद तुम्हारे घर से तोह विरोध नहीं ही होगा।
बाकि आज फिर से हम बात करेंगे और पापा मम्मी को मनाने की कोशिश करेंगे ।
कुछ समय के लिए तुम घर आने से बचना हम लोग जब मौका मिलेगा मिलते रहेंगे, और जोह भी होगा तुम्हे बता देंगे”।
भईया और उर्मि आगे वाली सीट पर बैठ गए कार में और मैं पिछली सीट पर।
भईया बार बार उर्मि का हाथ पकड़ कर उसको दिलासा दे रहे थे,
“कुछ भी गल्त नही होगा तुम चिंता ना करो “।
उर्मि घर से कुछ पीछे ही कार से उतर गई।
घर पहुँचने पर मम्मी हमें स्वालिया नजरो से देख रहीं थी, लेकिन ना उन्होंने कुछ कहा ना हमने ।
सब ही शायद पापा के आने के इंतजार में थे ।
शाम को पापा आये तोह पापा बड़े चहक रहें थे वोह मिठाई आगे बढ़ाते हुए बोले,
” लो तुम सब मुँह मिठा करो, रिश्ता पक्का कर दिया है मैंने, अनिरुद्ध का।
मुझे लगा अनिरुद्ध को बहुत जल्दी हो रही है, तोह देर क्यों करनी है” ।
मम्मी की तरफ मुख़ातिब होते हुए पापा बोले,”तुम्हे बताया था ना?
मेरे ही जानने वाले हैं उनकी चीनी की मिल है और भी कई सारे काम धंधे हैं।
उनकी बेटी बस MBA करने वाली है ।
मैंने सोचा था उसकी एक बार पढ़ाई पूरी हो जाये तभी शादी करें लेकिन कोई बात नहीं कुछ दिन पहले सही करनी तोह है ही।
इस रविवार को तुम दोनों घर पर ही रहना अनिरुद्ध तपु।
सोच रहा हूँ उनको खाने पर बुला लेते हैं और उसी दिन आगे,कैसे क्या करना है,वोह बात भी कर लेगें ।
तपु तुम भी प्रोफेसर साहब उनकी मम्मी को बुला लो, उनसे भी मिलकर सब तय कर लेते हैं।
अब मैं भी अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त होना चाहता हूं”।
पापा से इस अप्रत्याशित व्यवहार कि तोह मैंने कभी कल्पना भी नही की थी।
अब समझ आ रहा था पापा कल क्यों कुछ नहीं बोले भईया और उर्मि के रिश्ते को लेकर।
भईया तोह एक दम सोफे पर निढाल से बैठ गए,मैंने उनको जल्दी से पानी दिया।
मैंने भईया कि तरफ देखा लेकिन उनको देख कर मुझे समझ आ गया वोह इस हालत में ही नहीं थे, कि कुछ बोल पाते।
मुझे लगा तपु अगर तु आज कुछ नही बोली, तोह पता नही, किस, किस की जिन्दगी में तूफान आ जाएगा।
मैंने हिम्मत करके बोलना शुरू किया,
“क्या मैं जान सकती हूं पापा, आपने भईया की इच्छा को दरकिनार करके यह निर्णय क्यों लिया है?
क्यों उर्मि इस घर में शादी करके नहीं आ सकती?”
पापा को मुझसे ये उम्मीद बिलकुल नहीं थी की मैं ऐसा कुछ उनसे पूछ सकती थी ।
वोह गुस्से में बोले,
“मुझे प्रेम विवाह से इतना इंकार नहीं लेकिन प्रेम करते हुए अपनी जात, बिरादरी, अपना रुतबा तोह देखना ही चाहिए ।
क्या मैं तुझे मना कर रहा हूं प्रोफेसर से शादी से?
हमारी कुछ इज्जत है शहर में ।
सब हमें जानते हैं, क्या बोलूंगा की पराई जात में, एक मामूली सी नौकरी वाले के घर रिश्ता कर रहा हूं”।
आज पापा की बातों ने मेरा आक्रोश इतना बड़ा दिया था कि मैं भूल ही गई, की सामने मेरे पिता खड़े हैं।
मैं चिल्लाई,“पापा मैंने कभी उम्मीद नहीं की थी कि आप ऐसे छोटी बातें कर सकते हैं ।
आप रिश्तों को कितनी अहमियत देते हैं आज समझ आ गया”।
भईया, मम्मी मुझे चुप कराने की कोशिश करने लगे ।
मम्मी का तोह बस मुझ पर हाथ उठना ही बाकि था।
लेकिन आज मैं रुकने वाली नहीं थी।
“आपके सारे आदर्श खोखले थे,आप की सोच बहुत गिरी हुई है ।
आप उर्मि में सच में कोई कमी ढूंढ कर लाते तोह समझ आता,
लेकिन वोह कहाँ पैदा हुई? उसके पापा क्या करते हैं?
आपके लिए यह सब अनाप शनाप बातें सबसे उपर हैं।
मैंआपकी इस सोच से सहमत नहीं ।
किस्मत से जिसे मैंने पसंद किया वोह आपकी इस दकियानुसी कसौटी पर खरा उत्तर गया,
लेकिन आपकी कसौटी पर वोह सही ना भी उतरते तब भी मेरे जीवनसाथी वही बनते।
अनिरुद्ध भईया उर्मि भी एक होकर रहेंगे।
मैं उनको आपकी दकियानुसी छोटी सोच की बलि नहीं चढ़ने दूंगी “।
पापा गुस्से में बोले, ” मिस तापसी आप और आपके भाई जोह करना चाहे वोह कर सकते हैं,
लेकिन इस घर में मेरे होते हुए मेरे निर्णय ही चलेंगे ।
बाकि बात जहाँ तक मेरी सोच की है जब तुम दोनों के बच्चे होंगे तब तुम्हे समझ आ जाएगा ” ।
अब अनिरुद्ध भईया से भी बर्दाश्त नहीं हुआ वोह बोले,
“ठीक है पापा आज आपने बता दिया कि हम लोग की क्या हैसियत है।
मैं आज तक कभी आपके विरुद्ध नहीं गया ना ही ऐसा चाहता था की ऐसा कोई मौका आये, लेकिन मौका तोह आ चूका।
तपु का तोह इसमें कोई कसूर नहीं वह ऐसे शादी क्यों करे?
आप उसकी शादी इसी घर से धूम धाम से करवाओ,मैं आपको वचन देता हूं उसकी शादी होते ही मैं इस घर से निकल जाऊंगा ।
मैं अपने निर्णय पर अडिग हूँ उर्मि ही मेरी भावी जीवनसाथी होगी”।
घर में ऐसा लग रहा था जैसे महाभारत शुरू हो चूका था।
इतने में मम्मी चिल्लाई,
” सबका बहुत हो चूका मैं खाना लगा रही हूँ, अब कोई कुछ नहीं बोलेगा ।
ख़बरदार किसी ने भी कुछ कहा ,जोह भी बोलना करना होगा सुबह होगा “।
हम सब वहीं पर बैठ गए कोई किसी से नजर नहीं मिला पा रहा था ।
आज वह जोह पिता और बच्चों में एक लिहाज का दायरा होता है, वोह तार तार हो गया था।
दोषी कौन? कौन नही?
यह मायने नही रखता मायने रखता है इन दायरों का बने रहना।
सबने जैसे तैसे थोड़ा बहुत खाना अंदर किया और अपने अपने कमरों में चले गए।
आज नींद आँखों से कोसो दूर थी ।
घर में शायद सभी का यहीं हाल था।
‘इंसान कितना बेबस हो जाता है जब आपको अपने अजिजों के खिलाफ ही खड़ा होना पड़ता है’
कोई और पापा मम्मी के साथ ऐसा व्यवहार करता तोह मैं कभी बर्दाश्त नहीं करती,
लेकिन आज तोह मैंने खुद वोह दायरा लाँघ दिया था।
‘एक तरफ उनके प्रति मेरा प्यार तोह दूसरी तरफ अनिरुद्ध भईया, उर्मि और वोह लड़की भी, जिसके साथ पापा, भईया के रिश्ते की बात कर रहे थे’
तीनो कि जिन्दगी ही दाँव पर थी पीछे हटने का तोह सवाल ही पैदा नहीं होता था ।
भैया उर्मि और वोह लड़की कभी ऐसे खुश नहीं रह सकते थे।
भगवान से बस प्रार्थना कर रही थी सुबह सब सही हो जाये ।
पापा मम्मी खुद ही रिश्ते के लिए मान जायें।
ऐसे सोचते सोचते ना जाने कब सुबह हो गई।
सुबह सबके चेहरे मुरझाये हुए थे सब चुपचाप नाश्ते के लिए बैठ गए ।
तभी पापा ने बोलना शुरू किया,
“मेरा फैसला है कि अनिरुद्ध उर्मि की शादी ,इसी महीने मंदिर में बस घर वालों की मौजूदगी में सादा समारोह में होगी।
अगर सब तैयार हैं, तोह शाम को उर्मि के मम्मी पापा को घर बुला लो।
तापसी तुम्हारा MBBS का परिणाम आ जाये उसके बाद तुम्हारी शादी भी जल्दी ही कर देंगे, तोह तुम भी बात कर लेना”।
‘तापसी’ ! !
कल रात के बाद पापा की तपु उनके लिए ‘तापसी‘ हो गई थी।
खैर अभी इससे भी ज्यादा और बातें थी जोह परेशान कर रहीं थी,
जहाँ पापा का शादी के लिए मानना बहुत खुशी कि बात थी,
लेकिन उनकी यह अजीब शर्त कि सिर्फ घर वालों की मौजूदगी में शादी मंदिर में होगी।
जैसे की हम कोई गुनाह कर रहें हों जिसे छुप के करना होगा।
कितने अरमान थे घर में सभी के भईया की शादी को लेकर ।
पापा मम्मी के भी थे लेकिन पापा ने तोह जैसे दिल पर पत्थर रख लिया हो।
उधर उर्मि के परिवार वाले भी ऐसे क्यों मानेगें?
उनके उर्मि सभी के तोह अरमान होंगे ।
अपने जानने वालों, रिश्तेदारों को, क्या बोलेंगे?
ना जाने क्या क्या दिमाग़ में चल रहा था।
लेकिन पापा अपना फरमान सुना कर निकल चुके थे।
अगला भाग
बदलते रिश्ते (भाग-14) – अंबिका सहगल : Moral stories in hindi
लेखिका : अंबिका सहगल