बदलते रिश्ते (भाग-12) – अंबिका सहगल : Moral stories in hindi

लगता है कम से कम तेरे मामले में तोह पापा मम्मी मान ही जाएंगे, मुझे भी तेरी पसंद बहुत पसन्द आई”

मैं बोली, “भईया सिर्फ मुझ अकेली कि नहीं उनको हम दोनों की पसन्द को ही स्वीकार करना होगा”।

भईया बोलेहाँ आज रात को बात करते है पापा मम्मी से।

तब तक तु भी उर्मि को कुछ नहीं बताना मैं भी नहीं बताऊंगा।

और हाँ अपने प्रोफेसर साहब को भी कुछ नहीं बताना है अभी कोशिश करतें हैं, उन दोनों को ही सीधे खुशखबरी ही सुनायें।

चल तु अभी घर जा मैं आता हूं शाम को” ।

शाम में भईया ओर पापा जब घर आये,

 पापा ने मुझे प्यार से बुला कर अपने गले लगा लिया और बोले, 

 “अब तोह मेरी तपु डॉक्टर बन जाएगी, वोह सफेद वाला कोट का तेरा सपना बस पूरा होने ही वाला है

अब  इस बार तेरी छुट्टी में खूब मजे करेंगे, फिर तोह तेरा जॉब तेरी शादी बस बहुत व्यस्त ही हो जाएगी तु । फिर कहां तेरे पास हमारे लिए फुरसत होगी”।

मेरा मन बेचैन हो रहा था कैसे पापा को बताऊं? कैसे उनको नाराज करुँ

इस समय उनके गले लगे हुए दुनिया की सारी और खुशियाँ बेयमानी लग रही थी।

रात को हम चारो खाने के लिए एक साथ बैठे, आज भी मम्मी ने सब मेरी पसंद का ही बनाया था लेकिन आज यह खाना वोह लुत्फ़ नहीं दे पा रहा था।

जैसे ही सबने खाना खत्म किया,

 मैंने डरते डरते कहा, “मुझे और अनिरुद्ध भईया को आप दोनों को कुछ बताना है”।

पापा बोले, क्या बताना हैं तपु”?

हम सब सोफे पर बैठ गए,

मैं अनिरुद्ध भईया सोफे के एक तरफ बैठे थे मम्मी पापा सोफे के दूसरी तरफ

मैंने बोलना शुरू किया, 

अनिरुद्ध भईया और मैं,हम दोनों ही किसी को पसंद करते हैं और उन्ही को अपना भावि जीवनसाथी बनाना चाहते हैं आप दोनों की रजामंदी से”।

मम्मी एक दम से चिल्लायीं

 “ अच्छा तभी मैं सोचूं कि अचानक से भाई की शादी की याद कैसे आ गई तुझे?

हम तोह पागल हैं जोह इतने अरमान लिए बैठे हैं दिल में”।

तभी पापा मम्मी को टोकते हैं की चुप रहो।

फिर वोह सयंत व्यवहार रखते हुए मुझसे पूछतें हैं,

 “ तपु किसे पसंद करती हो?

कौन है, क्या करता है?

किस परिवार से है? कहां मिली उससे?”

मैं एक सांस में बोलने लगी ,

मेरे कॉलेज में ही गेस्ट लेक्चरार हैं, वैसे उनका खुद का अस्पताल है । 

 भविष्य में वोह अपना अस्पताल ही संभालेंगे । 

उन्होंने MD  कार्डियोलॉजी किया हुआ है । 

उनके पापा भी पेशे से डॉक्टर ही थे लेकिन वोह अब नहीं रहे उनके घर में बस उनकी मम्मी ही हैं”।

पापा बोले, अनिरुद्ध अब तुम भी बता दो, तुम्हे कौन पसंद हैं?”

अनिरुद्ध भईया, अटकते अटकते बोलने लगे “पापा मुझे उर्मि पसंद हैं”।

मम्मी एकदम से बोलीं,”उनकी हैसियत देखी है?

रिश्ता बराबरी  में अच्छा लगता है, किसी के साथ उठना बैठना और किसी के साथ रिश्तेदारी जोड़ने में बहुत फर्क होता है।

वोह हमसे वैसे भी अलग जात के हैं हम ब्राह्मण और वह बनिए हैं”।

फिर मम्मी मेरी तरफ मुख़ातिब हुई और बोलीं,

तु भी बता दे प्रोफेसर की जात क्या है?”

मैंने कहा, “वोह ब्राह्मण ही हैं”

कमरे में बहुत देर तक सन्नाटा सा छाया रहा….

मैं भईया बीच, बीच में नजर बचा  के एक दूसरे का चेहरा देखते

स्वालिया नजरों से आगे क्या?

अब पापा एक दम से उठे और उन्होंने बोलना शुरू किया,

 “तपु उन से बात करके बताना हम उनसे कब मिल सकते हैं “?

पापा बस इतना बोल के वहाँ से अपने कमरे में चले गए,पीछे पीछे मम्मी भी बिना कुछ बोले चले गए।

हम दोनो को समझ आ गया था शायद मेरा और सर का रिश्ता मम्मी पापा को फिर भी मंजूर हो सकता है, लेकिन वोह उर्मि, अनिरुद्ध भईया के रिश्ते को कभी स्वीकार नहीं करने वाले।

लेकिन हम दोनो को अभी के लिए चुप रहना ही बेहतर लगा।

लगा कि मम्मी पापा को भी हमें कुछ समय देना चाहिए, उनके लिए भी हमारा यह अचानक से इतना कुछ बताना भारी रहा होगा।

भईया बोले, “तपु फिक्र मत करो अभी सो जाओ कल देखते हैं आगे कैसे क्या करना है “।

सुबह सिर बहुत भारी था रात में बहुत लेट नींद आयी।

 मैं सभी के चेहरे देख कर समझ गई थी सभी का एक सा ही हाल था

 मम्मी पापा जितना हो सके माहौल को सामान्य करने का प्रयत्न कर रहे थे।

पापा मुझसे पूछने लगे, तपु आगे क्या इरादा है

MD करोगी या बस MBBS का ही इरादा है “?

तोह मैंने कहा,”पापा आगे पड़ना है मुझे बस एक बार MBBS  का परिणाम आ जाये फिर तैयारी शुरू कर दूंगी।

पापा बोले, “कौन से विषय में सोचा है”?

मैंने कहा,”गायनि या उरौलॉजी दोनों में मेरा मन है बाकि देखते हैं, किसमे हो पाता है”।

हम सब इधर उधर की बातें करते हुए नाश्ता करने लगे।

भईया ने पापा से कहा, पापा आज कुछ तबियत सही नहीं लग रही आज ऑफिस नहीं आ पाउँगा “।

पापा ने कहा,”हाँ कोई बात नही तुम घर में आराम करो”।

पापा ऑफिस के लिए निकल गए, मम्मी रसोई समेटने लगीं।

 मैं और अनिरुद्ध भईया उनके कमरे में आ गए।

मैंने भईया से पूछा ” तबियत सही है ने आपकी? “

वोह बोले,”नहीं, बस मन नहीं था आज जाने का”।

फिर थोड़ी देर ऐसे हीं बैठे रहे भईया

फिर अचानक से बोले,”तु तोह अपने सर से बात कर ।  

कम से कम जहाँ उम्मीद दिख रही है वहाँ तोह कदम उठाएं । 

कहीं पापा मम्मी को वहां भी कुछ कारण मिल गया मना करने का तोह”।

मैंने थोड़ी देर सोच कर भईया को कहा,

“भईया अंत में निर्णय तोह हमें ही लेना है, पापा मम्मी का यह अजीब रूप देख कर मुझे हैरानी कम दुख ज्यादा हो रहा है।

पापा को हमेशा मैंने एक मार्गदर्शक के रूप में देखा है, लेकिन आज अगर मार्गदर्शक रास्ता भूल गया है ।

तोह हमारा फर्ज है उन्हें सही रास्ता दिखाना । 

और फिर भी अगर वोह सही रास्ता नहीं पकड़ते, तोह हमें उनके साथ ही गल्त रास्ते पर जाकर और गल्त नहीं बनना।

अगर उनके निर्णय के पीछे कुछ ठोस आधार होता हम अपना मन मारकर भी वोह निर्णय मान लेते।

लेकिन जातपात, समाज में इंसान का रुतबा, इन सब की कसौटी पर मैं ना अपना, ना आपका रिश्ता बलि चढ़ने दूंगी ” ।

भईया बोले,

लेकिन हमें तोह यह भी नहीं पता कि उर्मि के मम्मी पापा कि इस रिश्ते पर क्या प्रतिक्रिया होगी?

बाकि उन्हें अगर यह पता लगा कि मम्मी पापा को यह रिश्ता पसंद नहीं, तोह उनकी तरफ से तोह पहले ही ना होना तय है”।

थोड़ी देर सोचते  हुए मुझे कुछ ख्याल आया

 मैंने भईया को बोला,

भईया मैं अभी आधे एक घंटे तक आती हूं।

तब तक मम्मी पूछे तोह आप कुछ भी बहाना लगा देना।”

भईया बोले,”लेकिन तु जा कहाँ रहीं है? क्या करने वाली है तु “?

मैंने कहा,”भईया आकर ही बताती हूं बस आप मम्मी को संभाल लेना, अगर मम्मी पूछे तोह “।

 

पाठकगण सही सोच रहें हैं आप…….

मैं रानि आंटी अजित अंकल के घर ही गई हूं

आंटी ने ही दरवाजा खोला 

वह बोलीं,”तपु बहुत दिनों बाद आई हो बेटा, कभी कभी तोह आ जाया करो”।

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लेखिका : अंबिका सहगल

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