बदलते रिश्ते (भाग-11) – अंबिका सहगल : Moral stories in hindi

घर पहुँचे तोह मम्मी आँगन में ही मिल गई, पापा भी बस हमारा इन्तजार ही कर रहे थे,

मैं मम्मी पापा से गले मिली।

पापा भईया साथ में ही ऑफिस के लिए निकल गए। 

पापा बोले,तपु शाम को मिलतें हैं खूब सारी बातें करेंगे”।

सर को मैंने मेरे सकुशल पहुँचने का सन्देश भेज दिया। 

उन्होंने बार बार हिदायत जोह दी थी “पहुँचते ही इतला करना”

मैं मम्मी के पास थोड़ी देर बैठी

चाय नाश्ता किया और फिर मैं अपने कमरे में चली गई फ्रेश होने।

अपने घर अपने कमरे कि बात ही अलग होती है । वैसा सकून कहीं नहीं मिलता।

और अब तोह वैसे ही यह ख्याल आने लगे थे महसूस होने लगा था, जल्द ही वह समय आ जाएगा जब यह घर छोड़ के जाना होगा।

मैंने नहा धोकर आराम दायक पजामा टीशर्ट पहन लिया

 उर्मि को फोन किया तोह पता लगा वोह अभी घर में नहीं है।

 मैं फिर मम्मी के पास आकर बैठ गई और हमने बहुत सारी बातें की।

 बातों बातों में ही मैंने मम्मी से भईया की शादी को लेकर भी पूछना शुरू कर दिया,

 “मम्मी अब अनिरुद्ध भईया की शादी भी तोह करनी होगी आपके भी मजे आ जाएंगे,

घर सँभालने में मदद के लिए कोई मिल जाएगा।

फिर उसके बाद पोता, पोती….. 

आपकी जिंदगी तोह मम्मी एक दम अलग ही हो जाएगी

अभी आप पापा के पीछे, पीछे घूमते हों फिर पापा ढूँढा करेंगे आपको कि कुछ समय उनको भी मिल जाये आपका”।

बस भईया की शादी अब जल्दी करते हैं, भईया से पूछते हैं उनको कोई लड़की पसंद होगी तोह बढ़िया हो जाएगा हमारी मेहनत बचेगी”।

मम्मी ने मेरी तरफ गुस्से में देखा

वोह बोलनें लगी ,

क्यों हम क्या मर गए हैं जोह वह अपने लिए लड़की ढूंढेगा?

हम अपनी पसन्द की बड़े खानदान की लड़की को ही इस घर की बहु बनाएंगे,

 जोह हमारे स्तर के होंगे।

इन्होने तोह एक लड़की को पसन्द भी किया हुआ है अनिरुद्ध के लिए, बहुत बड़ा कारोबार है उनका।

बस उनकी लड़की की पढ़ाई अभी चल रही है हम तभी रुके हुऐ हैं”।

मैं मम्मी की बातें सुनकर एक दम हैरत में पड़ गई।

ऐसे लग रहा था मानो मैं मम्मी को इतने साल साथ रहने के बावजूद जान ही नहीं पाई। 

और यह कैसी छोटी सोच है उनकी?

फिर भी अपने को संयमित करते हुए मैंने बातचीत को जारी रखा।

मम्मी कैसी बात कर रही हो आप?

मैं तोह ज़ब भी शादी करुँगी अपने पसंद के लड़के से ही करुँगी”।

मम्मी बोली,

 “तोह फिर ऐसा ही लड़का ढूंढ़ना जोह पड़ा लिखा अच्छे खानदान का हो, नही तोह बाद में हमें नहीं कहना ।

 मैं तोह एक बार को मान भी जाऊंगी तेरे पापा को मनाना कोई आसान है?

वैसे भी अपने बराबरी का घर बार ढूढ़ने में बुराई क्या है?

हमारे भी तोह कुछ अरमान हैं”।

अब आगे मुझसे अपनी ही मम्मी के मुँह से यह बातें सुनी नहीं जा रही थी ।

इसीलिए मैं सोने का बहाना करके अपने कमरे में आ गई।

मन में बहुत अशांति थी।

मैंने भईया को फोन लगाया और उनको मम्मी से हुई बातचीत के बारे में सब कुछ बता दिया।

भईया भी सकते में आ गए।

भईया ने मुझे घर के पास ही कैफे में कुछ देर मिलने को कहा।

कैफे में हम दोनों भाई बहन ने बात करना शुरू किया।

पहल मैंने ही की,

भईया मुझे यकीन ही नहीं हो रहा मम्मी पापा की ऐसी सोच हो सकती है।

जिस तरह से मम्मी ने बात की उससे तोह कहीं से नहीं लगता कि वोह उर्मि के लिए मानेगें। 

अंकल की तोह नौकरी भी ऐसे खास नहीं ,मकान भी उर्मि के दादा जी ने ही बनवाया था, उर्मि ने एक बार बताया था मुझे।

जब मम्मी ऐसी बात कर रहे हैं तोह पापा का तोह पता ही नहीं। 

पता नहीं ऐसे कौन सी लड़की उन्होंने आप के लिए देख ली आपसे पूछे बिना “।

मै उर्मि को क्या कहूंगा? “ भईया बोले

मतलब भईया”?

आपको उर्मि को नहीं मम्मी पापा को बताना है अपनी पसंद उर्मि के बारे में ।

बाकि एक बार शाम में पापा से भी बात तोह करें, क्या पता मम्मी को कुछ गल्तफहमी हो?”

मैंने  कहा ।

भईया भी बोले,

 “हाँ बात तोह करनी पड़ेगी ही “।

हम दोनों काफी देर तक खामोश बैठे रहे ।

तब मैंने भईया से कहाभईया मुझे भी आपको कुछ बताना है

मेरी जिन्दगी में भी कोई है जिनसे मैं शादी करना चाहती हूँ ” ।

कौन है वोह तपु?तूने पहले क्यों नहीं बताया?”

भईया अधीरता से बोले ।

मैंने उन्हें सब कुछ बता दिया सर के बारे में।

 फिर जब उन्हें पता लगा कि सर के पापा के नाम से बहुत  बड़ा अस्पताल है, वोह शहर के काफी नामी डॉक्टर थे । 

और कुछ समय में वोह अस्पताल सर ही संभालेंगे।

तोह भईया खुश होते हुए बोले,

अगला भाग 

बदलते रिश्ते (भाग-12) – अंबिका सहगल : Moral stories in hindi

लेखिका : अंबिका सहगल

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