बापू – लखविंदर सिंह संधू

“काम वाली से सारा काम करवा लेना खबरें मत सुनते रहना” गुरनाम की  पत्नी ने स्कूटर स्टार्ट करते हुए कहा ।

“दोपहर को बच्चों को भी ले आना स्कूल से कहीं भूल मत जाना”

“हां मैं देख लूंगा सब तुम जाओ ध्यान से जाना” गुरनाम ने अपनी पत्नी को  तसल्ली देते हुए कहा ।

गुरनाम की पत्नी शहर से दस किलोमीटर दूर गांव में सरकारी स्कूल में  टीचर थी ।गुरनाम खुद भी सरकारी मुलाजिम था । उसके दो बच्चे थे दोनों ही अच्छे स्कूल में पढ़ते थे ।सुबह बच्चे स्कूल बस पर स्कूल जाते लेकिन दोपहर को गुरनाम खुद उन्हें स्कूल से ले आता था। क्योंकि स्कूल बस काफी लेट आती थी । गुरनाम की पत्नी सुबह जल्दी उठती वह पहले सबके लिए नाश्ता बनाती और साथ में ही दोपहर का खाना बनाती। अपना और गुरनाम का खाना टिफिन में पैक कर देती ।

बच्चों का दोपहर का खाना पैक करके ओवन में रख देती । बच्चे स्कूल से वापस आ के उसे खा लेते । उसके बाद वह बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करती। गुरनाम अपनी पत्नी का टिफन  और पानी की बॉटल उसके स्कूटर में रख देता। फिर वो बच्चों को स्कूल बस में छोड़ने चला जाता। उसके वापस आते आते उसकी पत्नी भी स्कूल के लिए तैयार हो जाती और वह अपने स्कूटर पर स्कूल चली जाती। उसके जाने के बाद गुरनाम कामवाली से रसोई और घर की सफाई करवाता और फिर वो अपने दफ्तर के लिए निकल जाता। दोपहर को वो बच्चों को घर छोड़ जाता बच्चे खाना गर्म करके खा लेते । उसकी पत्नी तीन बजे स्कूल से वापस आती थी ।


आकर वो थोड़ा आराम करती इतने में गुरनाम भी वापस आ जाता। गुरनाम की पत्नी बच्चों का होमवर्क करवाती और साथ साथ रात का खाना बनाती । यह उनका हर रोज का कार्यक्रम था । उनकी ज़िंदगी बहुत व्यस्त थी । सुबह से शाम तक मशीन की तरह काम करते। गुरनाम अपने मां बाप का अकेला बैठा था ।उसके बापू खेतीबाड़ी का काम करते थे ।उनके पास जमीन बहुत कम थी । पर वह बहुत कठिन परिश्रम करते। गुरनाम की मां भी उसके बापू के साथ खेती के काम में हाथ बंटाती।

घर में काफी गरीबी थी फिर भी गुरनाम के माँ बाप ने उसे पढ़ाया । वह भी पढ़ने में बहुत होशियार था ।उसने अच्छे नंबरों में डिग्री पास की और उसे सरकारी नौकरी मिल गई । उसने नौकरी पेशा लड़की से ही शादी की ता जो घर का गुजारा अच्छी तरह चल सके। गुरनाम ने बैंक से लोन लेकर अपना मकान खरीद लिया । मकान खरीदने के बाद उसने घर का जरुरी सामान भी किश्तों पर ले लिया। उसके बच्चे अच्छे स्कूल में पढ़ते थे इसीलिए उनकी फीस भी ज्यादा थी ।अच्छे स्कूलों के फीस के अलावा और भी बहुत खर्च होते हैं ।

उन दोनों की आधी तनख्वाह तो किश्तों में ही निकल जाती थी । ऊपर से बच्चों की पढ़ाई का खर्च वो दोनों नौकरी करते थे । इसीलिए ज़्यादा कपड़ों की ज़रुरत भी पढ़ती थी।उनका महीना बड़ी मुश्किल से निकलता था । गुरनाम अपने मां बाप की कोई भी माली मदद नहीं करता था।=क्योंकि उसका अपना गुजारा ही बड़ी मुश्किल से चलता था।

एक बार गुरनाम की मां ने उसे कुछ पेैसे देने को कहा था।पर गुरनाम ने अपनी मज़बूरी मां को बता दी थी । इसी डर से उसने अपने गाँव जाना कम कर दिया। एक दिन अचानक गुरनाम के बापू शहर आ गए । बापू को अचानक आए देकर गुरनाम की पत्नी लाल पीली हो गई। “लगता है बूढ़ा पेैसे मांगने आईअा हैं” “अपना गुजारा तो मुश्किल से होता है अब इनको पेैसे कहां से दें” गुरनाम की पत्नी बढ़ बढ़ा रही थी।


बापू ने हाथ मुंह धोए और आराम करने बैठ गए। गुरनाम भी मन ही मन बातें कर रहा था

“इस बार मेरा भी हाथ कुछ ज़्यादा ही तंग है। बच्चों के स्कूल वाले जूते नए  लेने है ।”

“उधर पत्नी की के स्कूटर की भी बैटरी नई लेने वाली है । स्कूटर स्टार्ट होने में दिक्कत होती है। अगर स्कूटर रास्ते में बंद हो गया तो बहुत मुश्किल हो जाएगी ।”

“बापू को भी अभी आना था”

घर में गहरी चुप थी। खाना खाने के बाद बापू ने गुरनाम को पास बैठने को कहा। गुरनाम को लग रहा था कि बापू अब पेैसे मांगे गे। पर बापू बड़े बेफिक होकर कुर्सी भी बैठे थे।

“बात सुन”उन्होंने गुरनाम से कहा।

वह साहस रोककर उनकी तरफ देख रहा था । उसकी नसनस बापू का अगला वाक्य सुनने से डर रही थी।

बापू ने कहा “खेती के काम में बिल्कुल भी फुर्सत नहीं है”

“मैंने शाम को ही वापस जाना है । पिछले तीन महीने से तेरी कोई चिट्ठी नहीं आई जब तू परेशान होता है तभी ऐसा करता है।”

बापू ने जेब से पाच पाच सो के दस नोट निकाले और गुरनाम की तरफ बढ़ाते हुए बोले । “ले पकड़ इस बार फसल अच्छी हो गई थी। हमें कोई मुश्किल नहीं है।तू बहुत कमज़ोर लग रहा । तू अपनी और अपने परिवार की सेहत का ख्याल रखा कर । हम गाँव में बिल्कुल ठीक ठाक है।”


“तेरी मां एक टाइम सब्जी बना लेती है। हम दोनों टाइम वहीं खा लेते हैं चूंकि बार बार तेरी माँ को बनाना मुश्किल होता है ।हमारी भैंस भी अच्छा दूध दे देती हैं । हम थोड़ा दूध अपने पास रख के बाकी का दूध डेयरी में डाल देते हैं। तेरी माँ के ब्लड प्रेशर की दवाई तो गाँव की डिस्पेंसरी से फ्री मिल जाती हैं । मैंने भी पिछली बार आंखों के कैम्प में  आंख का ऑपरेशन करवाया था । एक भी पेैसा नहीं देना पड़ा। इस बार तेरी माँ का ऑपरेशन भी कैम्प में ही करवा देना है । तुम हमारी बिल्कुल फिक्र मत करना।”  बापू बोले जा रहा था ।

मगर गुरनाम के मुंह में से शब्द नहीं निकल रहे थे । इससे पहले के गुरनाम कुछ बोलता बापू ने उसे डांट लगाई

” ले पकड़ ये पेैसे बच्चों के काम आएंगे”

“नई बापू ” गुरनाम ने बस इतना ही कहा पर बापू ने जबर्दस्ती पेैसे उसके हाथ में दे दिए।

बरसों पहले बापू इसी तरह उसे स्कूल छोड़ते समय पेैसे उसके हाथ में दे देता था । उस टाइम गुरनाम की नज़रें आज की तरह नीचे नहीं होती थी

लखविंदर सिंह संधू

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