आजाद जिंदगी में संघर्ष भी होते हैं – चाँदनी झा

सिविल इंजीनियर क्या होता है मम्मा? आठ साल के रोहित का मासूम सवाल सुन, हंसने लगी, रोशनी। क्यों बेटा आप क्यों पूछ रहे हो यह सवाल? मम्मा मैं समझता था आप सिर्फ मम्मा हो, पर आप तो, सिविल इंजीनियर भी हो। किसने कहा बेटू को? मम्मा इसमें लिखा है।

 एक पुरानी सी कागज को दिखाते हुए कहा, जो उसे, पुराने पड़े समानों में मिला था। सिविल-इंजीनियर……सुनते ही रोशनी अपने अतीत में खो गई। बोर्ड की परीक्षा में पूरे कक्षा में प्रथम आई थी, पूरे कक्षा में क्या, अभी तक की 4 पीढ़ियों में उसके सबसे ज्यादा मार्क्स थे दसवीं के। घर में सभी बहुत खुश थे। सब ने कहा रोशनी डॉक्टर बनेगी। 

क्योंकि इंजीनियर लड़कियों का सेक्टर नहीं है। लेकिन रोशनी के मन में बचपन से ही, सिविल इंजीनियर बनने का सपना था। उसके मामा सिविल इंजीनियर थे, और वह उनसे ही प्रभावित थी। उसने स्पष्ट कह दिया, मैं इंजीनियर बनूंगी। और 12वीं में गणित विषयों के साथ आगे वह इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा में टॉप हंड्रेड में आई थी रोशनी। माता-पिता की वह इकलौती बेटी थी, उससे बड़ा एक भाई था वह भी इंजीनियर ही था। उसे घर में बहुत हद तक आजादी थी। 

कैरियर चुनने की आजादी, शादी की आजादी, अपनी-अपनी बातें रखने की आजादी। वह आजाद खयालों की थी, किसी तरह की बंदिशे उसे पसंद न थी। और ना उसने कभी सोचा था कि वह किसी बंदिश में घिरेगी। इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दरमियान ही उसे राजेश से प्यार हो गया था। और घर वालों को भी रोशनी के पसंद को अपनाना ही पड़ा। और राजेश के साथ रोशनी की शादी हो गई।

 दोनों जॉब करते थे, दोनों का रिश्ता बहुत प्यार भरा था। रोशनी को रोक-टोक पसंद नहीं था, तो राजेश भी उसकी भावनाओं का ख्याल रखता था। शादी के 3 साल बाद रोहित का जन्म हुआ। जन्म के साथ ही रोहित को कुछ बीमारियां थीं, जिसे डॉक्टरों ने ऑप्टिजम बताया। इस बीमारी के अंतर्गत…..बच्चा देर से बोलता है, देर से सीखता है, जल्दी लोगों से नहीं मिल पाता है। और ऐसे बच्चों को देखरेख की ज्यादा जरूरत होती है। बच्चों की अपनी दिनचर्या में भी इस बीमारी से दिक्कतें आती हैं। उसका मानसिक तथा शारीरिक विकास प्रभावित होता है। रोशनी को जब यह पता चला तो वह बेसुध सी हो गई। क्या! कहां मां बनने की खुशी, और पता चला मेरे बच्चे को यह बीमारी? 




आखिर क्यों? रोशनी को कुछ समझ ना आ रहा था। उसे क्या पता था कि इस आजाद जिंदगी में, संघर्ष भी होते हैं, परेशानियां भी होती है? माता-पिता के घर में कभी कोई उससे दिक्कत ना हुआ था। और ना ही कभी किसी ने किसी चीज के लिए रोका था।

 

 

 

 

रोहित की बीमारी के बारे में जान कर राजेश भी परेशान था। साथ ही रोशनी के माता-पिता भी। आखिरी रोशनी जॉब करेगी, तो वह रोहित को कैसे ज्यादा से ज्यादा समय दे पाएगी? जबकि 3 महीने से मातृत्व अवकाश लेकर रोशनी अपनी जिंदगी के सबसे खुशनुमा पल को जी रही थी। उसने अपनी मां को कह दिया था, मां 1साल तक अपने बच्चे की देखभाल खुद करूंगी। 

और उसके बाद क्रेच में डालकर, अपनी जॉब भी जारी रखूंगी, और उसके बाद जो समय बचेगा, राजेश और रोहित का। मां कहती भी थी, और मेरे लिए? तुम्हारे लिए, सेटरडे, संडे। रोशनी की एक अच्छी आदत बहुत हंसती थी। उसे उदास रहना पसंद नहीं था। 

लेकिन रोहित के जन्म के साथ ही उसे उदासी ने घेर लिया। वह अपने आप को संभाल नहीं पा रही थी। सभी उसे सांत्वना दे रहे थे, कि हम क्या कर सकते हैं? जो करते हैं विधाता करते हैं। हमें सिर्फ यहां पर झेलना होता है। हमारे बच्चे को इस बीमारी के साथ उन्होंने भेजा है, तो हमें जीना ही पड़ेगा, झेलना ही पड़ेगा। साथ ही तुम घबराओ नहीं रोशनी, जब तुम्हें दूसरा बच्चा होगा तो वह पूर्ण स्वस्थ होगा। रोशनी को इसी बात ने तो आत्मविश्वास से भर दिया, मां जो दूसरा बच्चा होगा क्या जरूरी है कि वह पूर्ण स्वस्थ ही होगा? अभी जो बच्चा हुआ है, मैं इसे ऐसे कैसे छोड़ दूं। कैसे हार मान लूं। रोशनी ने ठान लिया कि मैं अपने बच्चे को स्पेशल चाइल्ड नहीं, इसे पूर्ण स्वस्थ बनाऊंगी। बेटा तुम्हारी नौकरी? मां नौकरी तो राजेश कर ही रहे हैं। मेरी जरूरत रोहित को ज्यादा है। 




अपने आत्मविश्वास को मजबूत कर, रोशनी ने रोहित की देखभाल शुरू कर दिया। मातृत्व के हर पल को खुशियों से महसूस करते हुए रोशनी अपने ममता के सफर में आगे बढ़ रही थी। और रोहित का अतिरिक्त ध्यान रखती। डॉक्टर से मिलती, रोहित से बातें करती। उसको नई-नई बाती सिखाती। उसके व्यवहार का ध्यान रखती।

 रोशनी ने नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। और रोहित के लिए अपनी जिंदगी समर्पित कर दी। सभी को आश्चर्य लगता था, कि रोशनी भी कभी ऐसा करेगी। लेकिन रोशनी को खुद समझ में आ गया था, कि मां कितनी मजबूत होती है। वह रोहित को पाकर, बहुत मजबूत हो चुकी थी। साथ ही रोहित का शारीरिक विकास सामान्य तौर से हो रहा था। लेकिन मानसिक विकास, शुरुआत में बिल्कुल धीमा था।

 रोशनी भी कहां हार मानने वाली थी, वह अपने मेहनत, अपने प्यार, अपने त्याग से रोहित के विकास के लिए प्रयासरत थी। थेरेपी, दवाई और रोशनी की ममता, रोहित कुछ देर से सही, पर बोलने भी लगा। इशारों से बातें करनेवाले अपने बेटे के मुंह से, मम्मा सुनते ही रोशनी की आखें नम हो गई थी। रोशनी का विश्वास और बढ़ गया कि, मेरा रोहित  किसी भी तरह कमजोर नहीं, मजबूत है, क्योंकि उसके साथ मैं हूं। आज रोहित बहुत तेज तो नहीं, पर बहुत सुस्त भी नहीं है। 

बहुत हद तक दिनचर्या समान्य हो चुकी है। स्पेशल चाइल्ड नहीं, अब रोहित…..साधारण, यानि औसत बच्चा बन चुका है। रोशनी को अपनी नौकरी नहीं रहने का कोई गम नहीं है, खुशी है की….उसका रोहित बहुत हद तक समझदार हो चुका है। मां की ममता जीत रही थी, मां के त्याग का असर…आज रोहित सवाल भी करने लगा है।

 

 

 

तभी रोहित ने हिलाते हुए कहा….मम्मा देखो लिखा है…..”सिविल इंजीनियर रोशनी शर्मा।” ओह! मेरा बच्चा, आपकी मम्मा, सिविल इंजीनियर भी थी। फिर बनो न, कैसे बनते हो सिविल इंजीनियर? मुझे देखना है। रोशनी ने हंसते हुए कहा, आप थोड़े और बड़े हो जाओ, फिर मैं बन जाऊंगी। पक्का। हां, बेटू, चूमकर कहा रोशनी ने। चलो अब आपके ट्यूशन-क्लासेज का समय हो गया। रोशनी बेटे का हाथ पकड़, ट्यूशन के लिए निकल गई। 

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