आत्मशक्ति – निभा राजीव “निर्वी”

आज लता अपनी कमाई से अपने लिए साइकिल लेकर आई थी। हृदय का सारा प्यार हथेलियों में भरकर आत्मीयता से साइकिल को सहलाने लगी। कभी सोचा भी नहीं था कि उसके जीवन में यह दिन भी आएगा, जब वह अपने आप को साबित कर पाएगी और अपने दम पर यह जीवन जी पाएगी। उसकी आंखों के सामने अतीत के पन्ने फड़फड़ाने लगे, और वह दिन उसकी आंखों के सामने घूम गया।

          ‘ रेलवे स्टेशन पर बहुत देर से अकेले बैठी अपने जीवन पर विचार करती हुई लता से आखिर रहा नहीं गया। अपने जीवन के विषादों और कठिनताओं से तंग आकर पटरियों पर तेजी से आ रही रेल की तरफ अपने कदम बढ़ाए ही थे कि दो बाहों ने उसे अपनी ओर खींच लिया। वह एक झटके से उन बाहों में समा कर थम सी गई। रेल धड़ाधड़ाती हुई सामने से गुजर गई। उसने पलट कर पीछे देखा तो एक वृद्धा की दो ममतामयी आंखें उसे ही निहार रही थी। बेबसी में अस्फुट सा स्वर उसके मुंह से निकल पड़ा,”-आपने तो मरने भी नहीं दिया….”

“-ऐसा नहीं बोलते बेटी! इधर आओ, थोड़ी देर बैठो मेरे साथ। मेरी रेल को आने में अभी थोड़ा समय है।”… उस वृद्धा ने स्नेेहपूर्वक उसका हाथ पकड़ कर उसे  बेंच पर बिठाते हुए कहा। अपने थैले में से निकाल कर फिर उन्होंने उसे थोड़ा पानी पिलाया। फिर आत्मीयतापूर्वक पूछा,”- आखिर ऐसा क्या हो गया बेटा कि तुम ऐसा कदम उठाने को विवश हो गई?”… उनका आत्मीय स्वर सुनकर लता मोम की तरह पिघल गई। वह फूट-फूट कर रो पड़ी। वृद्धा ने उसके सिर पर हाथ फिराते हुए उसे थोड़ा रोने दिया। जब उसकी भावनाओं का आवेश थोड़ा थमा और वह थोड़ी शांत हुई तो उसने भीगे स्वर में उन्हें अपनी कटु आपबीती सुनानी शुरु की………….’ उसकी मां उसे जन्म देते ही चल बसी थी। एक बड़ा भाई भी था उसका ।उसके पिता एक दिहाड़ी मजदूर थे! रोज का कमाना और रोज का खाना! उस पर से नशे की लत!…. भाई भी रिक्शा चलाता था। बाद में जब भाई की शादी हुई, तो घर में भाभी के आते ही उसके ऊपर गाज गिर पड़ी। पिता को तो अपने काम और उसके बाद फिर नशे से ही फुर्सत नहीं थी। भाभी के अत्याचारों का कोई अंत नहीं था। और भाई भी पूरी तरह से भाभी के कहने में ही था। पिता की उपस्थिति सिर्फ नाम के लिए ही थी, बाद में अपने नशे की लत के कारण वह भी काल के गाल में समा गए। अब तो भाभी और खुलकर उसे सताने लगी! घर के सारे काम उसके ही जिम्मे थे फिर भी खाने को कभी पूरा पेट नहीं मिला। फिर एक दिन भाई ने अपने ही जैसे एक रिक्शा चालक से उसकी शादी करवा दी। कुछ दिनों तक तो सब कुछ ठीक रहा, पर जब दो सालों तक उसकी गोद नहीं भरी तब पति और सास के अत्याचार और ताने शुरू हो गए। हर दिन की पिटाई और भूखे सोना तो उसके लिए आम बात थी। एक तो सारे काम वही करती थी उस पर से हर काम में नुक्स निकाल कर फिर से पिटाई…   जैसे उसकी यही नियति बन गई थी। अंत में जब उसकी सहनशक्ति जवाब दे गई, तो वह वहां से भाग निकली और अपने भाई के घर जा पहुंची। सारी बात सुनने के बाद भी भाई भाभी उसी को दोष देने लगे और उसे दुत्कार कर वहां से निकाल दिया। जब उसे सारा संसार अंधकारमय दिखने लगा, तो उसने इस जीवन का अंत करना ही श्रेयस्कर समझा।’…….इतना बोलते बोलते लता का गला भर आया और वह आंखों पर हाथ रखकर फिर से बिलख पड़ी, “-मैं कहां जाऊं… इस भरी दुनिया में मेरा कोई भी नहीं है। कोई नहीं है जो मेरा सहारा बन सके…” वृद्धा ने उसे फिर से थोड़ा पानी पिलाया और उसका माथा सहलाते हुए बोली,”-जब कहीं कोई राह दिखाई न दे ना बेटा, तो अपनी आत्मशक्ति को अपना सहारा बनाना पड़ता है। तुम अपने गुणों को पहचानो और उसी को अपनी शक्ति बनाओ और उस के दम पर आगे बढ़ो।”



          लता उनकी बातों को समझने का प्रयास करते हुए प्रभावित होती हुई बोली,”- लेकिन मैं क्या करूं मुझे तो खाना बनाने के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं आता। मगर हां खाना बनाने का मुझे बहुत शौक है और खाना मैं बहुत स्वादिष्ट बनाती हूं।”

वृद्धा ने मुस्कुराते हुए कहा ,”-अरे यह तो बहुत अच्छी बात है। फिर तो तुम्हारी मुश्किल हल हो गई समझो ।इसी शहर में मेरी एक सहेली है वह टिफिन सर्विस चलाती है। मैं अभी उसी से मिलने यहां आई थी ।उसके यहां कई लोग काम करते हैं ।वह काफी समय से एक और अच्छा खाना बनाने वाले को ढूंढ रही है ।मैं तुम्हें उसका पता देती हूं। तुम उससे मिलने जाओ और उसके साथ काम करो। मैं उससे बोल देती हूं कि जब तक तुम कहीं और ठिकाना नहीं ढूंढ लेती वह तुम्हारे रहने का भी कुछ प्रबंध कर दे।”

 वृद्धा ने मोबाइल निकाल कर तुरंत अपनी सहेली से बात कर ली। फिर मुस्कुराते हुए लता से बोली,”- लो मैंने तुम्हें राह दिखा दी। अब आगे अपने लिए रास्ता तुम्हें स्वयं बनाना है। “

फिर अपने पर्स से कागज और कलम निकालकर अपनी सहेली का पता लिखकर दिया ,”-यह लो मेरी सहेली का पता। अच्छा अब मैं चलती हूं, मेरी ट्रेन का समय हो गया। सदा सुखी रहो।”

       लता ने भावुक होते हुए उन्हें अनेकानेक धन्यवाद दिया और झुक कर उनके चरण छू लिए। उन्होंने मुस्कुरा कर उसके सर पर हाथ रखा और अपनी ट्रेन की तरफ बढ़ गई।

           लता टिफिन सर्विस में बहुत मन लगाकर काम करने लगी। अपनी मेहनत लगन और ईमानदारी से उसने सब के दिल में अपनी खास जगह बना ली। आज अपनी कमाई से उसने अपने लिए एक साइकिल खरीद ली ताकि वह काम पर भी आसानी से आ जा सके। मुस्कुराती हुई वह अपने कमरे के अंदर प्रविष्ट हुई और बहुत चैन से दीवार से पीठ टिका कर बैठ गई और अपनी आंखें मूंद ली, जिनमें एक और नया सपना पल रहा था.. शीघ्र ही अपनी टिफिन सर्विस शुरू करने का…

#सहारा

निभा राजीव “निर्वी”

सिंदरी धनबाद झारखंड

स्वरचित और मौलिक रचना

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!