एकदूजे के सहारे – बेला पुनिवाला

  मैं hostel में दादा दादी को याद कर अपनी सहेली प्रिया को उनके बारे में बता रही थी, कि ” मेरे दादा और दादी दुनिया में सबसे प्यारे और सबसे अनोखे दादाजी और दादीजी है, उनकी love story बड़ी दिलचस्प है और वो दोनों भी।

           मेरे दादाजी और दादी एक दूसरे से जितना लड़ते है, उस से कई ज़्यादा एक दूसरे से प्यार भी करते है, मेरे दादाजी को अब उनकी उम्र के हिसाब से थोड़ा ऊँचा सुनने की आदत है, इसलिए  दादी को हर बात उनसे ज़ोर से कहनी पड़ती है। कभी दादाजी रूठते है, तो कभी दादी। उनके बिच नोकझोंक चलती ही रहती है, फिर भी शाम को दोनों साथ बैठकर ही खाना खाते और बरामदे में बैठ कर बातें किया करते। 

      में उनसे पूछती, की रोज़ रोज़ आप क्या बातें करते रहते है, तब वो बताते, कि पहले हम दोनों को बातें करने का वक़्त ही नहीं मिलता था, इसलिए  जो बातें हम हमारी जवानी में नहीं कर पाए, वो अब कर लिया करते है और साथ-साथ कुछ पुरानी याद को भी ताज़ा कर लिया करते है, और तो क्या ! जब तू हमारी उम्र की होगी, तब तू भी यही करेगी, देख लेना और हम सब हँस पड़ते।

      दादाजी को गुस्सा ज़रा जल्दी आ जाता  है। कभी कभी दादाजी छोटी-छोटी बात पे बुरा भी मान जाया करते और दादी उनको मनाया करती, और कभी-कभी दादी  को उनकी किसी बात का बुरा लग जाता तो, दादी दादाजी से बात ही नहीं करती। फिर दादाजी दादी को मनाते है। दोनों साथ में चाय-नास्ता करते, बाद में साथ मिलकर घर में कान्हाजी की सेवा पूजा करते, और शाम को साथ में हमारे नज़दीकी नाना-नानी पार्क में चलने के लिए जाते, घर आकर खाना खा कर दोनों साथ में रेडियो पे पुराने गाने सुनते- सुनते बातें करते और  एकदूसरे का हाथ पकड़कर सो जाते।

       फिर एक दिन दादी ने मुझ से कहा, कि मेरी दवाई ख़त्म हो गइ है, आज तुम कॉलेज से आते वक़्त मेरे लिए दवाई लेती आना। अगर तुम्हारे दादाजी को पता चला ना की मेरी दवाइयांँ ख़त्म हो गइ है, तो वो खामखा ही परेशान हो जाएँगे । और हांँ, साथ में थोड़े से पकोड़े भी लेती आना, बहुत मन कर रहा है खाने का।



       मैंने कहा जी ज़रूर दादी, कहते हुए मैं कमरे से बाहर जा ही रही थी, की सामने से दादाजी अपनी लकड़ी के सहारे चलते हुए दादी की दवाई और पकोड़े लेकर आते है और कहते है, कि ये लो तुम्हारी दवाइयांँ, इसे वक़्त पे ले लेना, वार्ना  रात को घुटनों का दर्द तुमको होगा और नींद मेरी चली जाएगी और साथ में ये गरम पकोड़े भी लाया हूँ, बहुत दिनों से मेरा भी मन था खाने का।  दो पल के लिए तो ये देख मेरी आंँखें खुली की खुली ही रह गई।

        मैंने दादी से कहा, कि ” ये लीजिए, आपने इधर कहा और उधर  दादाजी ने सुन लिया। आपकी दवाई और पकोड़े दोनों हाज़िर है और साथ में हमारे प्यारे दादाजी भी।”

   मैं ख़ुशी से दोनों के गले लग गई। कभी-कभी  उनका ऐसा प्यार देख मेरी भी आँखें भर आती है।  

      एक दिन दादाजी मंदिर जाते वक़्त अपना चश्मा और लकड़ी ऊपर कमरे में ही भूल आऐ थे, तो उन्होंने मुझ से कहा, कि ज़रा ऊपर से मेरा चश्मा और लकड़ी लेकर आओ, वार्ना तेरी दादी को ही ऊपर जाकर लाना पड़ेगा,  वैसे भी उसके घुटनों में दर्द रहता है।

      मैंने कहा, जी दादाजी अभी लेकर आती हूँ, तभी सामने से दादी, दादाजी का चश्मा और लकड़ी लेकर आती है और कहती है, कि ” ये लीजिए आपका चश्मा और लकड़ी, जिसे आप ऊपर ही भूल आए थे और मुझे पता है, लकड़ी के बिना आप ठीक से चल नहीं पाते और चश्मे के बिना आप कान्हाजी के दर्शन कैसे करते भला ? आप भी है, ना… आज कल बहुत भुलक्कड़ होते जा रहे हो। “

   दादाजी मन ही मन बोले, बस तेरे प्यार में !

       और मैंने दादाजी से कहा, कि ” आप ने कहा और आपका चश्मा और लकड़ी हाज़िर है।”

   मेरा दिल ये देख बार-बार यही कहता है, कि ” आप दोनों का प्यार और साथ उम्र भर ऐसे ही बना रहे। आप दोंनो ही एकदूजे का सहारा हो और हंमेशा रहेंगे, आप दोनों जैसे एकदूजे के लिए ही बने हुए है, आप दोनों को किसी और के सहारे की जरुरत ही नहीं।

         दादाजी दादी के बिना नाहीं कभी चाय-नास्ता करते और नाहीं कभी कही जाते। जहाँ भी जाना हो दोनों साथ में ही जाते।



  कभी-कभी मुझे ऐसा लगता है, की जैसे  दादाजी और दादी दोनों की दुनिया में बस वो दोनों ही है और कोई नहीं, ऐसे वो दोनों एकदूसरे का ख्याल रखते और एकदूसरे से प्यार करते है। 

        एक दिन दादी बहुत बीमार हो गई, तब दादाजी ने एक पल का भी आराम नहीं किया, दिन रात दादी के करीब बैठ के उनकी सेवा करते रहे, कभी दादी के सिर पे हाथ फेरते, तो कभी दादी को दवाई पिलाते, तो कभी दादी को बिस्तर से खड़े होने में मदद करते, उनको वक़्त पे चाय, नास्ता, खाना खिला देते, आधी रात को उठकर दादी को चुपके से देखा करते की वो ठीक तो है ना, कहीं उसे किसी चीज़ की ज़रूरत तो नहीं। तब दादी चुपके से ये सब देखा करती और धीरे से कहती, कि ” मैं ठीक हूँ, अभी मैं आपको छोड़ के जानेवाली नहीं, मेरी इतनी फिक्र मत किया किजीए और आराम से सो जाइए।”

   ये सुन दादाजी चिढ़ जाते और कहते, कि  ” ऐसी बात नहीं, मैं तो सिर्फ देख रहा था, की तुम्हें बुखार कम हुआ की नहीं और मैं भला तुम्हें ऐसे कैसे जाने दूँगा, तुम्हारे पास अभी मुझ को बहुत सेवा करवानी है, और लड़ना भी है, अगर तुम चली गई तो मैं किस के साथ झगड़ा करूँगा ? किस के रूठ ने पर उसे मनाया करूँगा ? किस के बालो में गजरा लगाऊँगा ? किस के साथ बातें करूँगा ? “

   कहते-कहते दादाजी की आँखों में सच में आँसू आने लगे, ये देख दादीजी की आंँखें भी भर आई।

           उन दोनों को देख मुझे  ऐसा लगता है, कि ” अब दोनों को एकदूसरे से दूर होने का डर है, कि अगर एक जल्दी चला गया तो दूसरे का क्या होगा ? ” इसलिए दोनों एकदूसरे की ज़्यादा परवाह करते है। कल का तो पता नहीं मगर आज जब साथ है, तो क्यों ना एकदूसरे का सहारा बने रहे जिससे की साथ ना रह पाने का ग़म ना हो और ज़िंदगी यूहीं एकदूजे के सहारे चलती रहे। “

      मेरी बात सुनते-सुनते प्रिया की आँखें भी भर आती है। प्रिया ने मुझ से कहा, कि ” अब के vacation में अपने दादा-दादी से मिलवाने मुझे ज़रूर ले जाना, मुझे भी उनसे बातें करनी है। “

     तो दोस्तों, ऐसे  दादा-दादी की तरह सोच के हम भी  अपनी ज़िंदगी में एकदूसर का इतना ख्याल रखे और एकदूसरे को इतना प्यार दे, कि उन्हीं यादों के सहारे हमारी  बाकि की ज़िंदगी भी आराम से बित जाए और ज़िंदगी में कुछ खोने का या ज़िंदगी में किसी का साथ ना रहा ऐसी फरियाद भी ना रहे। क्यूंँकि भगवान् के पास जाने की किस की बारी पहली आ जाए, ये आज तक किसी को नहीं पता, उसका बुलावा आए तो सब छोड़ के एक दिन तो सब को जाना ही है।               

#सहारा

स्व-रचित

बेला पुनिवाला 

                             

 

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