असली बड़ी बहू – संगीता त्रिपाठी : Moral Stories in Hindi

 सावित्री जी की मृत्यु के बाद कल सारे कर्मकांड काज ठीक से संपन्न हो गये…,नाते -रिश्तेदार भी वापस जा चुके थे, इकलौती ननद भी अपने घर चली गई, अब घर में सिर्फ सावित्री जी के बड़े बेटे रमन का परिवार रह गया,।

छोटी बहू नंदा सुबह का खाना बना कर बाहर निकल रही थी कि घर कि बड़ी बहू उर्मि ने आकर आदेश दिया, “नंदा आज दोपहर में हम लोग भी निकल जायेंगे, शाम के खाने के लिये पूरी -भिंडी बना देना “

    तीन घंटे की दूरी पर घर की बड़ी बहू उर्मि पति के साथ रहती है, आराम से पहुँच कर वहाँ भी खाना बना सकती है, लेकिन नहीं…, हमेशा की आदत है सब कुछ यही से बांध कर ले जाती है,..।

   बेमन से ही सही नंदा फिर रसोई में जाकर पूरी सब्जी बनाने लगी, सबको खाना खिला कर, जिठानी उर्मि भाभी का खाना पैक कर उन्हें विदा कर जब नंदा खाने बैठी तो शाम के चार बज गये, ये कोई नई बात नहीं थी जब भी उर्मि भाभी आती, नंदा के काम बढ़ जाते, खुद तो सासू माँ के साथ गर्म फुल्के खाती, और उलाहना उसे देती, “अरे नंदा कभी हमारे साथ भी खा लिया करो, ठीक है तुम्हे अकेले खाने की आदत है, पर मैं तो शुरु से माँ के साथ ही खाना खाती हूँ, भई बड़े -बुजुर्गो को भी साथ की जरूरत होती है…”ये कह कर उर्मि भाभी एक तीर से दो निशाने पर वार करती, सासू माँ बड़ी बहू की बातों से गदगद हो जाती, अक्सर नंदा को बोलती” बड़ी बहू से सीख, कैसे बड़ों का मान करते है।”

       सासू माँ की बात सुन नंदा चुप रह जाती,कभी मन करता, बोल ही दूँ अगर मैं भी बैठ गई खाने तो बनाएगा कौन….,।

शादी के बाद नंदा जब ससुराल पहुंची तो बड़ी बहू उर्मि का बोलबाला था, उनकी सुंदरता और उजले रंग के आगे नंदा के तीखे नयन नक्श भी अनदेखे रह गये, कारण नंदा का दबा रंग…सासू माँ बड़ी बहू, बड़ी बहू कहते न आघाती, अपने रंग रूप से गर्वित बड़ी बहू, नंदा के साधारण रंग रूप की अवहेलना देख मन ही मन खुश होती,।

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              शादी के रीति -रिवाज़ खत्म होते ही, बड़ी बहू उर्मि अपना सामान बाँधने लगी, शाम तक वे भी पति के साथ दूसरे शहर चली गई। तीन घंटे की दूरी पर रहते हुये भी बड़ी बहू ने सासू माँ या ससुराल के किसी भी सदस्य को वहाँ आने नहीं दिया, जब भी सासू माँ साथ जाने के लिये बोलती उर्मि कुछ न कुछ बहाना बना देती,।

    उर्मि जब भी आती मीठा -मीठा बोल कर, “माँ इनको तो आपके हाथ के लड्डू और मठरी अच्छे लगते “कह कर सावित्री जी से सब बनवा कर ले जाती।

     रसोई में भी “माँ आपकी बनाई सब्जी और पराठे की बात ही अलग है “तारीफ कर के सावित्री जी को रसोई छोड़ने ही न देती।अचार, पापड़, बड़ी और नाश्ते का सामान वो यहीं से बांध कर ले जाती, पैसे भी बचते और मेहनत भी नहीं करनी पड़ती, सोच उर्मि मन ही मन हँसती।

     धीरे -धीरे बड़ी बहू की होशियारी से सब वाकिफ होने लगे, ऐसे ही एक दिन छत से कपड़े लाती हूँ सावित्री जी का सीढ़ियों से पैर फिसल गया, और पैर की हड्डी टूट गई डॉ. ने दो महीने के लिये प्लास्टर बांध दिया। बड़ी बहू को सूचना भिजवा दी गई, उन्होंने फोन पर सासू माँ के लिये चिंता तो जताई लेकिन आने में असमर्थता दिखाई।

        घर की स्थिति देख मायके गई नंदा को बुलवा लिया गया। घर आते ही नंदा ने सारे कार्यों को संभाल ली, साथ ही सास की सेवा में कोई कसर न छोड़ी। देर से ही सही सासू माँ को बड़ी बहू और छोटी बहू के व्यवहार का अंतर समझ में आने लगा, नंदा की सेवा से उनका कठोर ह्रदय पिघलने लगा।

         एक दिन जब दोपहर में नंदा उनके बाल संवार रही थी, “नंदा, तेरे गुण जल्दी दिखते नहीं, तू सुघड़ तो है ही लेकिन दिल की भी बहुत अच्छी है, बड़ी बहू को तुझसे सुघड़ता सीखनी चाहिए “

    नंदा आवाक रह गई देर से ही सही लेकिन सासू माँ को बड़ी बहू का असली चेहरा दिखाई तो दिया।

      सासू माँ का प्लास्टर कट गया, वे पूरी तरह ठीक हो गई, तब एक दिन बड़ी बहू उर्मि घर आई,

     “माँ मैं चाहते हुये भी आपके पास नहीं आ पाई, मेरा दिल तो यही था लेकिन बच्चों की पढ़ाई की वज़ह से मैं आ नहीं पाई, आपको बुला भी नहीं पाई, क्यों नंदा तूने माँ की सेवा ठीक से की भी है,”

       “बड़ी बहू, नंदा ने मेरी जितनी सेवा की उतना तो बेटी नंदिता भी नहीं कर पाती, बाकी लोगों को फुर्सत ही नहीं मिली,दूसरों की कमियों पर उंगली उठाने से पहले खुद के गिरेबान में झाँक लेना चाहिए “

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      सासू माँ पहली बाऱ नंदा के लिये खड़ी हुई।

    ” माँ आप नंदा की तुलना मुझसे कर रही है “गुस्से से उर्मि बोली 

     “नहीं, नंदा से किसी की तुलना हो ही नहीं सकती, तू घर की बड़ी बहू जरूर है लेकिन बड़ी बहू के फ़र्ज तो छोटी बहू नंदा ही निभाती है, “

  . “आप मेरी बेइज्जती कर रही है “

  “नहीं बड़ी बहू मैं बेइज्जती नहीं कर रही हूँ तुम्हारा सच सामने ला रही हूँ “

      उर्मि समझ गई उसका सच सामने आ गया,।नाराज हो उर्मि वापस चली गई। साल गुजर गये लेकिन बड़ी बहू उर्मि ने किसी की सुध न ली, माँ से मिलने रमन अकेला ही आता।

      कुछ दिनों से सावित्री जी की तबियत ठीक नहीं चल रही थी, बड़ी बहू उर्मि को सूचना दी गई लेकिन रमन अकेला आया।

          जिस दिन सावित्री जी की मृत्यु हुई, उर्मि भागी -भागी आई और आंगन में दहाड़े मार कर रोने लगी, यहाँ भी उर्मि बाजी मार ले गई, क्योंकि नंदा को दम मारने की फुर्सत नहीं थी, सबके खाने -पीने, रहने का प्रबंध तो उसे ही देखना था। रोने के लिये उसे फुर्सत कहाँ थी। सासू माँ सावित्री जी ने जब से नंदा के गुणों को जाना, दोनों के बीच स्नेहसूत्र मजबूत हो गया था।

             पर दुनियाँ तो वहीं देखती है जो सामने दिखता है।नाते -रिश्तेदार भी कानाफुसी करने लगे बड़ी बहू तो इतना रो रही लेकिन छोटी बहू की आँखों में एक बूंद आँसू नहीं। तेरहवीं वाले दिन सब आंगन में पूजा -पाठ में व्यस्त थे, नंदा कहीं दिखाई नहीं दी, नमन नंदा को ढूढ़ते माँ के कमरे में पहुंचा तो नंदा को माँ के बिस्तर पर बैठा पाया, नमन ने जैसे ही नंदा के कंधे पर हाथ रखा नंदा फूट कर रोने लगी। आज सासू माँ नहीं थी नंदा के बचाव के लिये, उसके गुण दिखाने के लिये।

      “नंदा तुम्हारा खाना ठंडा हो गया, क्या सोच रही हो “नमन की आवाज सुन नंदा वर्तमान में लौट आई। सामने सावित्री जी की बड़ी सी तस्वीर भी नंदा को देख रही थी मानो कह रही, तू मेरी लक्ष्मी बहू है, उदास मत हो, मैं जानती हूँ ये घर सिर्फ तू ही संभाल सकती है, पदवी तेरी छोटी है लेकिन असली बड़ी बहू तू ही है।

                               —–संगीता त्रिपाठी 

   #बड़ी बहू

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