अश्क भिगोते रहे – अंजू निगम

“बिटिया, दामाद जी कार लाये है क्या?” पापा की आँखो में मुझे देख आशा के जो दीये जल उठते थे, उसे देख मुझे खौफ होता था| उनका अगला सवाल भी मैं जानती थी पर इधर वो सवाल केवल पापा के होठो पर आ कर ठिठक जाते थे, उन्हें आवाज नहीं पहनाते थे|

   मैं पापा से नजरे चुराती और पापा अपनी बेटी की मजबूरी पहचान चुप लगा जाते थे|

ये घर पापा का नहीं था,उनके बेटे का था| ये फर्क उन्हें दो दिन बाद ही लग गया था| जब बेटे ने बाथरुम की टाइल्स में पड़े छींटो और बिस्तर के सामने रखे पायदान को हटा लिये जाने पर माँ को लताड़ा था| उस दिन के बाद से पापा को वापस अपने घर जाने की जिद ने घेर लिया था| पर पापा का शरीर जल्दी जल्दी होने वाली इन लंबी दूरियों को नाप लेने में सक्षम न था| ये सच पापा और मैं दोनो जानते थे|

आज इन्होंने पापा की बेबस आँखो को देख भैया के सामने ही कहा,’ जब पापा का इतना मन है तो एक बार उनसे उनके घर की देहरी छुआ ही आते है|”

भैया की कठोर नजरे देख मैं  और काफी हद तक ये भी सब समझ चुके थे| ये थके थे सो आराम करने चले गये| भाभी मशीन की तरह हमारी आवभगत में जुट गयी थी|

 भैया ने मुझे अलग बुला कर अच्छे से समझा दिया कि अब इस घर के किसी मामले में मेरा हस्तक्षेप वर्जित है|

फिर ढीठ बनी मैं ही माँ को कह बैठी,” पापा की इच्छा है तो मैं उन्हें अपने दम पर कानपुर ले जाऊँगी|”

” कौन से घर ले जायेगी बिटिया”? माँ शांत भाव से बोली|

“अरे! पापा के अपने घर!! बंद करके ही तो आये है| सारी गृहस्थी तो वैसी ही छोड़ आये है न!”


“तेरे भाई ने उस घर के लिये बात कर ली है| सारा तय हो गया है|” माँ ने धीमी आवाज में ये बदसूरत सच जब रखा तो मैं गुस्से और रोष में काँप गयी|

“पर घर तो पापा के नाम है फिर?”

“बिट्टू ने घर के पेपर  संभाल कर रख लेने की बात कही फिर वापस ही न किये|” माँ की आवाज बहुत मजबूर दिखी|

” घर बेचने की बात आये तो noc पर दस्तखत न करना|” मैंने माँ को सलाह दी|

“बिटिया, अब देर हो गयी| बिट्टू ने साफ कहा कि हस्ताक्षर न करने की सूरत में हमे पालने की कोई जिम्मेदारी वो नहीं उठायेगा| अब तू बता मैं तेरे पापा को इस हाल मेंं ले कहाँ जाऊँगी?”माँ की बात सही थी| भले ही माँ ने इनका नाम बीच में न उतारा हो पर मचझे पता था कि मेरे माँ-बाप को ये भी तीन महीने से ज्यादा नहीं निभा पायेगे| हम दोनो अपनी मजबूरी पकड़े देर रात बैठे रहे|

 सुबह नींद भाभी के जगाने पर खुली| भाभी को देख रात ने फिर अपने को दोहरा लिया| भाभी ने आगे बढ़ माँ-पापा के पैर छु कागजो का एक पुलिंदा माँ के आगे बढ़ा दिया|

 “घर के पेपर माँ| आज न लाती तो कल शायद देर हो जाती|” भाभी की आँखो के कोर भीग रहे थे|

 पापा ने भाभी को अपने पास बुला लिया| उनकी कल की बेतरह बैचेनी का जवाब आज मिला था|

भाभी के सर पर हाथ रख पापा ने यही कहा” मुझे मेरे घर ले चल बिटिया|”

अंजू निगम

नई दिल्ली

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