बचपन से ही तमन्ना थी ,,पंछी बनूँ,उड़ती फिरूं,मस्त गगन में,,,नीला खुला आसमान मुझे पुकारता प्रतीत होता,,,आखिर ईश्वर ने मेरी सुन ली,,,,
एअरहोस्टेस होने के कारण मुझे अलग-अलग देशों में भ्रमण का मौका मिलता रहता है,,,हर जगह की अपनी कोई न कोई विशेषता तो होती ही है,,
हर दिन नया देश ,नये-नये लोग,,खुले आसमान में उड़ते रहना,,बहुत मस्त जीवन है,,
कई ऐसी हस्तियों से भी मुलाकात का अवसर मिलता है,,जिन से मिलने की कल्पना मात्र से ही मन आनंद से भर जाता है,,,
एक बार हमारी फ्लाइट लेह के ऊपर से गुजर रही थी,,अचानक ही इंजन में कोई खराबी आ गई,,जिसके चलते इमरजेन्सी लैंडिंग करनी पड़ी,,,
सारे क्रू मेम्बर्स को एक शानदार होटल में ठहराया गया,,होटल की खिड़की से बाहर का नज़ारा इतना खूबसूरत दिखाई दे रहा था कि शब्दों में उसका वर्णन कर पाना असंभव है,,
बार-बार एक ही विचार आ रहा था मन में,,शायद स्वर्ग ऐसा ही सुंदर होगा,,बर्फ से ढकी पहाड़ियों पर सूर्य की किरणें सोना बरसाती प्रतीत हो रही थीं,,ऊंचे-ऊंचे चिनार के पेड़ मन को लुभा रहे थे,,
हम लोगों के पास गर्म कपड़े ज्यादा नहीं थे,,ठण्ड के मारे बुरा हाल हो रहा था,,ऑक्सीजन लेबल बहुत कम था,तो सभी को सांस लेने में दिक्कत महसूस हो रही थी,,
मेरे साथ एक और लड़की थी,उसकी तो नाक में से खून आने लगा,,,जैसे-तैसे ऑक्सीजन की व्यव्स्था की गई,,,अंगीठी जलाई गई,,तब जाकर कुछ राहत मिली,,
रात को जब मैं सोई ,,तो सारी रात टप-टप की आवाज़ आती रही,,मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि यह आवाज़ किसकी है,,
जब सुबह अटेंडर आया कमरे में,,तो मैंने उससे पूछा कि,,, यह आवाज़ कैसी थी रात में,,,
वो बोला,,अच्छा वो,,,अरे मेमसाब ,,वो तो जंगली सेब गिरने की आवाज थी,,यहां चारों तरफ सेब और अंजीर के पेड़ हैं न,,आप अगर खाना पसंद करें तो मैं ले आऊँ क्या?,,भूख तो लग ही रही थी जोरों की,,मैने कहा,,ले आओ,,
वह डलिया भर कर सेब और अंजीर ले आया,,पहला टुकड़ा खाते ही ऐसा लगा जैसे मुँह रस से भर गया,,इतने मीठे और रसदार सेब तो मैने जीवन में कभी नहीं खाये थे और अंजीर भी बेहद मीठी और रसभरी ,,वरना अभी तक तो हमने सूखी अंजीर ही देखीं थीं,,2 फल में ही पेट भर गया,,
अभी इंजन ठीक होने में देर थी तो हम लोग घूमने चले गये,,लग रहा था,,धरती पर अगर कहीं जन्नत है तो बस यहीं है,,प्रकृति ने दोनों हाथों से सौन्दर्य लुटाया था यहाँ,,
2 दिन लगे इंजन ठीक होने में,,आते समय होटल वालों ने सारे स्टाफ को एक-एक डलिया सेब और अंजीर की भेंटस्वरूप दी,,आना तो था ही,,आये भी,,पर ऐसा लग रहा था कि दिल यहीं छूटा जा रहा है,,बस दिल से एक ही आवाज आ रही थी,,,
दिल कहे रुक जा रे रुक जा ,यहीं पे कहीं,
जो बात इस जगह है कहीं पे नहीं,,
कमलेश राणा
ग्वालियर