असल से ज्यादा सूद प्यारा होता है – नीतिका गुप्ता

 

रागिनी जी आज बहुत खुश हैं, हो भी क्यों ना भला..??

आज उनकी बेटी के साथ साथ उनकी इकलौती नातिन भी अपनी नानी के घर आ रही है। टिम्मी को उसके जन्म के समय ही तो देखा था जब नामकरण में छोछक भरने गई थीं। जब पहली बार उसे गोद में लिया तो लगा मानो गोद में रिया ही है। वही गुलाबी गाल, प्यारी सी सुंदर सी बड़ी बड़ी आंखें, छोटी सी नाक और फिर उन छोटी छोटी उंगलियों ने उसकी उंगली को कसकर थाम लिया था।

कहते हैं “असल से ज्यादा सूद प्यारा होता है”

रागिनी जी भी अपनी नातिन के मोह में कुछ दिन बेटी के पास ही रुक गईं।

बच्ची बहुत छोटी थी और डॉक्टर ने इतनी दूर यात्रा करने से मना कर दिया तो रागिनी जी मन मार कर यह सोच कर वापस आ गईं कि कुछ ही महीनों बाद रिया प्यारी सी टिम्मी को लेकर उनके पास ही रहने आ जाएगी और फिर वह अपनी बेटी और नातिन का खूब लाड़ लड़ाएगी। मगर अचानक ही करोना का प्रकोप बहुत अधिक बढ़ जाने के कारण लॉक डाउन, अनलॉक फिर से लॉक डाउन यही सब चलता रहा और रिया और टिम्मी रागिनी के पास ना आ सके और ना ही वो बेटी और नातिन के पास जा सकीं।

अगले महीने टिम्मी का तीसरा जन्मदिन है और रागिनी जी चाहती हैं कि यह जन्मदिन वह बहुत धूमधाम से मनाएं

गाड़ी के हॉर्न की आवाज से रागिनी जी की तंद्रा टूटी।

मां कैसी हो… गाड़ी से निकलते ही भागकर रिया ने रागिनी जी को गले से लगा लिया और छोटी सी टिम्मी अपने नानू की गोद में यह सब बड़े आश्चर्य से देख रही है।



रागिनी ने टिम्मी को भी गोद में लेकर उसके हाथों पर, चेहरे पर बहुत सारा प्यार किया… आज तक अपनी नानी को सिर्फ वीडियो कॉल पर देखा था अब नानी का ऐसा रूप देखकर टिम्मी थोड़ा घबरा गई और रिया की गोद चली गई।

“अरे रागिनी सारा प्यार क्या अभी लुटा दोगी डरा दिया बच्ची को… चलो अंदर कुछ पानी वानी पिलाओ…”पतिदेव की हल्की सी झिड़की से रागिनी जी मुस्कुराकर अंदर चली गईं।

कुछ ही देर में टिम्मी भी संयमित होकर अपने नाना नानी के घर में आराम से घूमने-फिरने और खेलने लगी।

“और बता बेटा कैसी है..? आंखें तरस गईं थीं तुझे देखने के लिए.. अब तू आई है ना तो देखना जल्दी नहीं जाने दूंगी तुझे”!!

“हां हां मां,, आपके कहे अनुसार मैं पूरे महीने भर के लिए आई हूं।”

इतने में टिम्मी के रोने की आवाज आती है उसने गलती से कमरे का दरवाजा बंद कर दिया था जो खोल नहीं पा रही थी। रिया ने दौड़कर दरवाजा खोला और उसे अपनी गोदी में उठा कर बहलाने लगी।

रागिनी जी बड़े ही प्यार से बेटी और नातिन को देख रही थीं.. कोई और समय होता तो उनकी आंखों में आंसू आ जाते कि इतने समय बाद बेटी से बात करने को मिल रहा है, उसको छूने महसूस करने को मिल रहा है और वह उन पर ध्यान ही नहीं दे रही है लेकिन आज उनकी बेटी खुद एक मां बन चुकी है और उसका पूरा समय पूरा ध्यान सिर्फ और सिर्फ अपनी बेटी के लिए है।

वक्त का पहिया तो हमेशा ही गोल घूमता रहता है किरदार वही रहते हैं लेकिन चेहरे बदल जाते हैं।

रोजाना की बात हो गई कि रागिनी जी रिया से कोई बात करना चाहतीं, उसके बालों में तेल लगाना चाहती या उसकी पसंद का नाश्ता बनातीं लेकिन रिया टिम्मी के ही साथ व्यस्त रहती।

एक दिन दोपहर में रागिनी जी ने रिया से कहा,”बेटा आज मेरे साथ बाजार चल के तू अपने और टिम्मी के लिए कपड़े, दामाद जी के लिए कपड़े ले लेना और साथ में मैं भी कुछ साड़ियां खरीद लूंगी। उसके बाद हम दोनों मां बेटी बहादुर की चाट टिक्की भी खाएंगे। तू टिम्मी की चिंता मत करना उसको तेरे पापा संभाल लेंगे।”



“नहीं मां मैं आपके साथ नहीं आ पाऊंगी, टिम्मी दोपहर को सो कर उठने के बाद सबसे पहले मुझे ही खोजेगी। आप पापा के साथ चली जाइए..”कहकर रिया रसोई में टिम्मी की पसंद का पास्ता बनाने लगी।

रागिनी जी के दिल को बहुत ठेस लगी थी। वह अपने कमरे में जाकर रिया के बचपन की तस्वीरें देखने लगीं। बचपन की उन तस्वीरों में रिया बिल्कुल अपनी मां की कॉपी लगती थी क्योंकि रागिनी जी अपने लिए सलवार सूट बनवाने का जो कपड़ा खरीदती थीं उसमें से ही रिया के लिए फ्रॉक बनवातीं जिससे मां और बेटी दोनों एक जैसे कपड़ों में दिखें। इतना ही नहीं उन दोनों का सेम हेयर स्टाइल भी होता।

जब रिया कुछ बड़ी हो गई तो रागिनी जी के लिए वह खुद ही कपड़े पसंद करती। नई-नई तरह के हेयर स्टाइल बनाती, उनका मेकअप करती और उनकी बेटी से ज्यादा सहेली बन गई थी।”

रिया की शादी के बाद भी यह सिलसिला जारी रहा…रिया पिछले काफी समय से रागिनी जी के पास नहीं आ पाई थी तो उन्होंने बस रोजमर्रा के कपड़े ही खरीदे और टिम्मी के नामकरण के लिए रिया को फोटो भेज कर एक साड़ी पसंद कराई थी।

 

 

 

रागिनी जी तो इंतजार कर रहीं थीं कि बेटी आएगी तो उसके साथ पहले की तरह अपना खुशनुमा जीवन जिऊंगी उसके साथ शॉपिंग पर जाऊंगी चाट टिक्की खाऊंगी, रबड़ी वाली लस्सी पियूंगी और हम दोनों मां-बेटी मिलकर उसके पापा का खूब मजाक उड़ाएंगे।

रिया कुछ पूछने के लिए रागिनी जी के कमरे की तरफ आई कि तभी दरवाजे की ओर से रागिनी जी को आंसू पूछते देखकर वही ठिठक गई। गौर से देखने पर महसूस हुआ कि वो उस की बचपन की तस्वीरें देख रही थीं। एक बेटी के दिल ने अपनी गलती महसूस कर ली। वो जानबूझकर रागिनी जी का दिल नहीं दुखाना चाहती थी लेकिन कहते हैं ना मां बनकर आपको अपने बच्चे के सिवाय कुछ भी याद नहीं रहता।

कुछ सोचकर रिया ने जल्दी से जोमैटो से दो प्लेट टिक्की और मां की फेवरेट रसमलाई ऑर्डर की। फिर प्लेट में पास्ता लेकर और टिम्मी का हाथ पकड़कर मां के कमरे में आ गई।

“मां देखो यह मुझे कितना तंग कर रही है खाना ठीक से खाना ही नहीं चाहती है.. आप इसको वैसे ही खिलाओ ना जैसे आप मुझे खिलाती थीं।”



रागिनी जी की आंखों में चमक आ गई उन्होंने प्लेट लिया और टिम्मी को एक प्यारी सी कविता सुनाना शुरू किया। टिम्मी कविता में इतना खो गई कि कब उसने अपना खाना खत्म कर लिया उसको भी पता ना लगा। रिया ने भी चुपके से डिलीवरी पार्टनर को फोन करके सब कुछ बिना किसी आवाज के ले लिया।

खाना खाने के बाद टिम्मी जम्हाई लेने लगी तो रागिनी जी ने उसे अपनी गोद में लेटाया और लोरी सुना कर सुला दिया। रिया अपनी मां के चेहरे पर संतुष्टि और सुकून के भाव देखकर बहुत खुश थी।

टिम्मी को बिस्तर पर सुलाने के बाद जैसे ही रागिनी जी ड्राइंग रूम में आईं तो टेबल पर अपनी पसंदीदा टिक्की देखकर उनकी मुंह में पानी आ गया।

“देख क्या रही हो मां.. आ जाओ जल्दी से वरना सारी मैं अकेले ही ना उठा लूं..”

रागिनी जी और रिया टिक्की का आनंद लेने लगे और साथ में पुराने समय की बातें भी कर रहे थे।

रागिनी जी ने रिया की मदद से ऑनलाइन ही सारी शॉपिंग कर डाली।

आज टिम्मी के जन्मदिन के अवसर पर टिम्मी रिया और उसकी नानी रागिनी जी एक से रंग और कपड़े से बने अपने अपने पहनावे में बहुत खूबसूरत लग रहे थे।

एक बेटी जो स्वयं भी मां बन चुकी है, उसने अपनी समझदारी से अपनी बेटी और मां के बीच संतुलन स्थापित कर लिया।

*रागिनी जी का तो अपनी खुशियों से पुनर्मिलन हो गया। रिया ने उन्हें सोशल मीडिया, ऑनलाइन शॉपिंग और इंटरनेट को इस्तेमाल करने का तरीका सिखा दिया। रागिनी जी ने भी अपनी उम्र को दरकिनार करके एक अच्छे विद्यार्थी की तरह सब कुछ खुशी-खुशी सीख लिया जिससे अब वह अपनी बेटी और नातिन को भी सरप्राइज दे सकें।

⭐ शादी के बाद मायके जाने की इच्छा बहुत प्रबल होती है लेकिन बच्चों के बाद जिम्मेदारियां बढ़ने से धीरे धीरे हमारी इच्छा दबकर मरने लगती है। मायके जाते भी हैं तो भी हजार जिम्मेदारियां साथ रहती हैं। मायके में मम्मी पापा भाई-बहन अपनी बेटी और बहन का इंतजार करते हैं लेकिन हम वहां भी अपने दिलो दिमाग में एक पत्नी मां और बहू ही रहकर बस कुछ दिन बिताकर वापस आ जाते हैं।

क्या कभी सोचा है कि जैसे हम अपने बच्चे की हर पल परवाह करते हैं.. हमारी मां भी तो हममें अपना वही बच्चा तलाशती हैं।

कोशिश कीजिएगा जब अगली बार मायके जाएं तो हर रिश्ते से ऊपर रखकर खुद को बस एक बेटी बन जाएं।

     नीतिका गुप्ता 😊

 

 

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