अपना घर तो अपना ही होता है – मुकेश कुमार

 राकेश जी रांची सचिवालय में नौकरी करते थे लेकिन अब रिटायर हो चुके थे एक दिन अपने दोस्त महेश जी के साथ पार्क में घूम रहे थे तभी उनके  दोस्त महेश जी बोले अरे भाई राकेश मैंने सुना है कि तुम अपना  घर बेचकर हमेशा-हमेशा के लिए अपने बेटे के पास हैदराबाद जाने वाले हो।  “भाई महेश हम अपने बेटे के घर जरूर जा रहे हैं लेकिन यह मकान बेच कर नहीं” राकेश जी बोले। 

 महेश जी ने कहा, “भाई मैंने उड़ती उड़ती खबर अपनी कानों में सुनी तो मैंने सोचा तुम ही से पूछ लेता हूं।” 

 “अरे नहीं महेश जिस घर में हमने अपनी पूरी जिंदगी बिता दी, कितनी मेहनत से इस घर को बनाया है। उसे जीते जी तो नहीं बेचेंगे ” 

एक दिन राकेश जी अपनी पत्नी से कह रहे थे कि बेटे ने हमें अपने पास रहने के लिए बुलाया है क्या हम यह  घर छोड़कर वहां पर रह पाएंगे वहां हम  ज्यादा दिन नहीं रह पाएंगे सावित्री, अपना घर तो अपना ही होता है बस कुछ दिन बेटे और बहू के पास रहेंगे फिर से हम अपने घर रांची वापस लौट आएंगे। 

राकेश जी की पत्नी बोली, “बेटा ने इतना प्यार से बुलाया है तो हमें प्यार से रखेगा भी देखिएगा बेटा बहू इतना प्यार करेंगे कि आपको उनको छोड़कर रांची वापस आने का मन ही नहीं करेगा।” 



 अगले सप्ताह अपना जरूरी सामान पैक कर राकेश जी अपनी पत्नी के साथ हैदराबाद जाने के लिए रांची स्टेशन निकल चुके थे । 

रवि हैदराबाद में एक 2 बीएचके का फ्लैट ले रखा था उसमें रवि उसकी बीवी रागिनी और  उसकी  इकलौती बेटी रिया रहती थी। रवि की पत्नी रागिनी ने अपनी बेटी रिया से बोली,”रिया आज से तुम्हारे रूम में तुम्हारे दादा दादी भी तुम्हारे साथ ही रहेंगे तुम्हें कोई परेशानी तो नहीं है ना अगर परेशानी है तुम हमारे साथ हमारे कमरे में शिफ्ट हो सकती हो।”   रिया ने कहा, “नहीं मम्मा मुझे कोई परेशानी नहीं है इन फैक्ट मुझे तो अच्छा लगेगा कि मैं दादा दादी के साथ रह रही हूं।” 

रवि एक सरकारी बैंक में कैशियर था और उसकी पत्नी रागिनी भी एक प्राइवेट स्कूल में टीचर थी।  इसीलिए सुबह सुबह ही दोनों ऑफिस के लिए निकल जाते थे।  घर में काम करने के लिए एक काम वाली बाई  लगा रखा था । 

1 सप्ताह के अंदर ही राकेश जी और उनकी पत्नी को लगने लगा कि इससे अच्छा तो वह अपने रांची में ही रहते वहां कोई कम से कम बात करने वाला तो होता था।  शाम को पार्क में जाकर अपने दोस्तों से बात करते थे।  यहां तो कोई बात करने वाला भी नहीं है बेटे-बहू को भी कहां टाइम है कि बात करें। 

रवि के माता पिता वहाँ रह तो रहे थे लेकिन चेहरे पर हमेशा मायूसी छाई रहती थी। एक दिन  रवि ने अपने माता पिता से कहा, “पापा हमारे सोसाइटी के गेट के पास ही एक मंदिर है वहां सुबह शाम सत्संग होता है आप लोग भी वहां चले जाइए आप लोगों का मन लग जाएगा वहां पर आपकी  उम्र के लोग ही आते  हैं। 

 अगले दिन से राकेश जी और उनकी पत्नी मंदिर में सत्संग के लिए जाने लगे मंदिर में जाने से उनका मन लगने लगा।  वहां पर राकेश जी ने अपने उम्र के कई सारे लोगों को दोस्त बना लिया। 

एक दिन मंदिर के बुजुर्गों ने फैसला किया कि संडे के दिन बारी-बारी से किसी ना किसी घर में हम जाकर कीर्तन करेंगे ताकि हमारे बच्चे भी कीर्तन और सत्संग के महत्व को समझ सके। 



 इस सप्ताह जो संडे है आने वाला था इस बार राकेश जी के घर में सत्संग होना तय हुआ।  सुबह के 10 00 बजते ही बहुत सारे लोग ढोलक, झाल  और मजीरा लेकर राकेश जी के घर पहुंच चुके थे। 

 संडे को चूंकि छुट्टी का दिन होता है  इसलिए रवि और उसकी पत्नी देर से ही सो कर उठते हैं। वो  सोए हुए थे तभी अचानक से घर में ढोलक, झाल और मजीरा की आवाज सुनाई दी।  रवि अपने कमरे से निकलकर हॉल में आया तो देखा कि कई सारे बुजुर्ग हॉल में कालीन पर बैठे हुए हैं।  रवि को कुछ समझ नहीं आया कि यह क्या हो रहा है उसने अपने पापा से पूछा, “पापा यह सब क्या है इतना घर में शोरगुल किस लिए मचा रहे हैं आपको तो पता है कि सप्ताह में 1 दिन ही आराम करने का समय मिलता है।  आपको सत्संग करना है तो मंदिर में ही किया कीजिए इस सप्ताह तो आप लेकर आ गए लेकिन आगे से घर में सत्संग मत किया कीजिए।” 

रवि का इस तरह से अपने पिता से बात करना राकेश जी को अच्छा नहीं लगा उस रात वह सही से सो नहीं पाए वह अपनी पत्नी से बोल रहे थे कि  हम ने सही किया कि अपना घर बेचकर हम यहां नहीं आए नहीं तो हमारी जिंदगी नरक बन जाती हम यहां ज्यादा दिन नहीं रह पाएंगे। इस महीने के आखिर में बेटे से बोल कर हम लोग रांची चले जाएंगे।  

राकेश जी की पत्नी बोली, “अभी तो यहां आए 10 दिन भी नहीं हुए अगर इतना जल्दी हम बेटे से वापस जाने को कहेंगे तो बेटा को बुरा लगेगा ना। 

“ठीक है एक महीना और कैसे भी कर कर रह लेते हैं लेकिन उसके बाद हम यहां नहीं रहेंगे।” 

 1 दिन दोपहर में लैंडलाइन पर एक फोन आया फोन राकेश जी ने उठाया तो उधर से आवाज आई 

“प्रणाम चाचा कैसे हैं रवि भैया का फोन नहीं लग रहा था तो मैंने सोचा लैंडलाइन पर कॉल कर लेता हूं।” 



 राकेश जी बोले, “आप कौन मैंने पहचाना नहीं आपको।”  उधर से व्यक्ति ने बोला, “अरे चाचा पहचाने नहीं आप हमको हम धीरज बोल रहे हैं आपके घर के एक गली छोड़कर प्रॉपर्टी डीलर का दुकान है हमारी।”  राकेश जी बोले, “हां हां बेटा याद आ गया बोलो कैसे फोन किया तुमने।” 

 प्रॉपर्टी डीलर ने राकेश जी से कहा, “अरे भैया बोले थे मकान बिकवाने  के लिए तो वही एक ग्राहक मिले हैं डील भी सही है आपकी इजाजत हो तो हम डील डन करवा दें।” राकेश जी बोले, “कौन सी मकान बिकाऊ होने  की बात कर रहे हो धीरज।”  “अरे चाचा आप कैसी बात कर रहे हैं जान कर भी सब अनजान बन रहे हैं आपका रांची  में दो मकान है एक ही ना मकान है। 

राकेश जी को जब यह पता चला कि उनका बेटा उनके पीठ पीछे उनका घर बेचने वाला था उनको बहुत गुस्सा आया। राकेश जी की जान बसती थी उस मकान में उन्होंने तुरंत गुस्से से तेज आवाज में बोला नहीं हमें कोई मकान नहीं बेचना कहकर फोन काट दिया।  वह शाम का इंतजार करने लगे कब बेटा घर आए और उससे यह बात पूछें। 

 शाम को रवि जैसे ही ऑफिस से घर आया राकेश जी ने अपने बेटे से कहा, “रवि तुम क्या हमारा मकान बेचने वाले थे।  तुमने हमारे जीते जी यह सोच भी कैसे लिया मकान बेचने के बारे में, मैं तो सोच रहा था कि अभी एक महीना तुम्हारे यहां रहूंगा उसके बाद हम लोग रांची जाएंगे अब तो हम 1 मिनट भी यहां नहीं रहेंगे क्या पता हमारे पीठ पीछे तुम कब हमारा मकान बेच दो हमारा जल्दी से टिकट करवा दो बेटा तुम लोग यहां खुश रहो हम अपने घर में जाएंगे हमारा यहां वैसे भी मन नहीं लगता है। 

 राकेश जी की पत्नी भी अपने पति की तरफ से अपने बेटे से बोली, “हां बेटा  मेरा भी यहां मन नहीं लग रहा है तुम दोनों ऑफिस चले जाते हो बिटिया अपनी पढ़ाई में व्यस्त रहती है हमें समझ नहीं आता है हम क्या करें हमें हमारे घर पहुंचा दो बेटा हम वही खुश रहेंगे।” 

 रवि बोला, “मम्मी पापा आप लोग कैसी बात कर रहे हैं वहां जाकर अब क्या करेंगे वहां कौन है आपका। मैंने तो सोचा था कि अब आप लोग यही रहेंगे तो उस मकान का वहां क्या काम उस मकान को बेचकर यहीं पर एक और नया 3 बीएचके का फ्लैट ले लेंगे।” 



 राकेश जी बोले मकान बेचने से पहले कम से कम एक बार मुझसे पूछना तो चाहिए था मेरे जीते जी वह मकान कभी नहीं बिकेगा  मेरे मरने के बाद चाहे तुम जो करो।” 

 रवि समझ गया था कि पापा बहुत नाराज हो गए हैं उसने अपने पापा से माफी मांगा और कहा, “पापा माफ कर दीजिए ऐसी गलती दोबारा नहीं होगी।” 

 राकेश जी ने रवि से कहा, “बेटा तुम नहीं समझोगे वह घर मेरा  और तेरी मां का खून पसीने की कमाई से बना हुआ है वह हमारे सपनों का घर है हमारे मरने के बाद तुम बेशक उसे बेच देना लेकिन हम जब तक जिंदा है उसे बेचने की सोचना भी मत। 

 रवि को भी लग गया था कि मम्मी-पापा यहां पर खुश नहीं रहते हैं उसने  अगले सप्ताह ही  अपने मम्मी पापा का टिकट बनवा दिया था।  राकेश जी और उनकी पत्नी ट्रेन में बैठ रांची के लिए निकल पड़े थे।   वह दोनों बहुत खुश थे वह दोनों फिर से वही अपनी आजादी अपनी छूटी  दुनिया अपनी कर्मस्थली से मिलने वाले थे।  चाहे कितने भी ऐशों आराम मिल जाए पर व्यक्ति  को सुकून उसे अपने ही घर में आता है इसीलिए कहा जाता है कि अपना घर तो अपना ही होता है।

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