*अंतिम मुलाकात*- मुकुन्द लाल

दोमंजिला मकान के पास टैक्सी रुकते ही रंजना उस मकान के अन्दर प्रवेश कर गई, फिर वह सीधे अपनी माँ गायत्री के पास पहुंँच गई। उसके पीछे-पीछे उसकी भाभी महिमा भी चली आई।

 “कमरे में अंधेरा है दिन में भी।”

 “प्लग में कुछ खराबी आ गई है, मिस्त्री कल बना देगा, मैं जाती हूंँ कैंडिल लेकर आती हूँ” कहती हुई महिमा चली गई।

 मांँ के चरणों को स्पर्श करने पर उसने कहा,

 “कौन?..” खाट पर सोई हुई गायत्री बहुत  मुश्किल से दीवार का सहारा लेकर बैठ गयी।


 “हम रंजना!..”

 “कब आई बेटी!.. “

” अभी तुरंत। “

” मेहमान भी साथ आये हैं। “

” नहीं! आॅफिस के काम से बाहर गये हुए हैं। “

” हाल-सामाचार? “

” सब ठीक-ठाक है, अपना हाल-सामाचार बताओ” कहते-कहते उसने मोबाइल जलाकर देखा तो उसका कलेजा मुंँह को आ गया, वह पहचान नहीं पाई कि वह वही गौरैया की तरह चहकने-फुदकने वाली उसकी मांँ है?

 क्षण-भर के लिए वह किंकर्तव्यविमूढ़ सी देखती रह गई।

 अस्थि पंजर सदृश रुग्ण देह पर अव्यवस्थित वस्त्रों को संभालती हुई उसने बेहद धीमी आवाज में कहा, “हम क्या करें बेटी?.. तुम्हारे बापू के गुजर जाने के बाद तो हम अपने ही घर में भिखारिन हो गई। हर चीज़ के लिए तरसना पड़ता है। इधर पन्द्रह-बीस दिनों से ही काम नहीं करने की छूट मिली है.. जब मेरा समांग(शक्ति) खत्म हो गया।”


 “तुम्ही सब काम करती थी?”

 “सुबह पांँच बजे से ही बासन-बर्तन मांजना, झाड़ू देना, पोछा मारना, रसोई-घर को साफ करना, नल से पानी भरना.. कहते-कहते वह हांफने लगी” फिर पल-भर वह ठहरकर उसने कहा,” बेटा विनय सुबह टहलने के लिए निकल जाता है और यह महारानी देर रात तक टी. वी. देखती है, दिन में कभी आठ बजे, कभी नौ बजे उठती है। पोता-पोती तो तुम जानती ही हो, वह शहर के होस्टल में रहकर पढ़ाई करता है। “

” भाई कुछ बोलता या समझाता नहीं है।”

 “उसने एक बार बिगड़ कर कहा था कि घरेलू काम मिल-जुलकर करो, किन्तु इस बात से वह दुख मान गई, और उसने खटवास-पटवास ले लिया था, दो दिनों तक चूल्हा गरम नहीं हुआ, घर में मातम पसरा रहा, तब विनय ने उसे बहुत समझाया, उसकी खुशामद की तब कहीं जाकर मानी। “

” खाना वगैरह समय पर मिल जाता है। “

” देख यही एक थाल और ग्लास है, दिन में कभी एक बार, कभी दो बार दो रोटियांँ, कभी सब्जी, कभी अचार या कभी नमक के साथ इस शर्त पर मिलती है कि खाने के बाद थाली और ग्लास मुझे ही मांजना है। “

 गुस्से से रंजना का चेहरा तम-तमा आया। उसने निर्णय ले लिया कि वह भाभी से पूछेगी कि एक निर्बल वृद्धा पर क्यों इतना अत्याचार कर रही हो।

 उसकी मंशा को भांपते हुए उसकी मांँ ने उसे ऐसा करने से मना कर दिया, उसने कहा,” ऐसा करके तुम मेरी मुसीबतऔर बढ़ा दोगी”कहती हुई वह हांफने लगी, उसके हाथ-पैर कांपने लगे।


 रंजना ने उसे सहारा देकर खाट पर लिटा दिया।

 “मत बोलो अब कुछ मांँ, हममें अब बर्दाश्त करने की क्षमता नहीं है।”

 महिमा ने आकर कमरे में कैंडिल जला दिया और यह कहती हुई वह रसोई-घर की तरफ चली गई कि चूल्हा पर चाय चढाकर आई है।

 पल-भर बाद गायत्री ने अत्यंत ही धीमी आवाज में कहा, “यह अंतिम मुलाकात है.. अब कहने-सुनने के लिए बचा ही क्या है बेटी!.. ” कहते-कहते उसकी आंँखों से आंँसू निकलकर उसके झुर्रीदार चहरे पर बहने लगे।

 पल-भर बाद ही द्दढ़ता के साथ उसने संकल्प लिया कि आइन्दा इस घर में अब ऐसा नहीं होगा। इसके लिए जो भी करना पङेगा, करेंगे।

 स्वरचित

 मुकुन्द लाल

 हजारीबाग (झारखंड)

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