कौशल्या जी की पचासवीं वर्षगांठ मनाने की तैयारी जोरो शोरो से चल रही थी। दीप्ति के पास दो दिन पहले फोन आया था।कि मम्मी की पचासवीं वर्षगांठ है फोन पर बात करते हुए निकिता भाभी ने बोला था। दीदी सबको बोल दीजिये और पापा भी जीजा जी से बात कर लेंगे। यह सब सुनकर दीप्ति बहुत खुश हुई बोली हां भाभी हम जरूर आएंगे। दीप्ति के मन में विचार चल रहा था कि क्या ले जाए!! फिर सोचा दीदी से फोन लगा कर पूछे वो क्या कहती है!!
फिर उसने फोन लगा कर दीपा दीदी से पूछा- दीदी आप मम्मी पापा को क्या दोगी? तब दीपा दीदी ने कहा -अरे दीप्ति बेटियों का कुछ नहीं लगता… वैसे तो मम्मी पापा कुछ लेगें नहीं, इसलिए मैं ज्यादा नहीं सोच रही हूं।
लेकिन दीप्ति के मन को चैन कहां……
उसे लगा खाली हाथ तो जा नहीं सकते ये मम्मी पापा के लिए पहली बार मौका पड़ा है, उनको कुछ न कुछ जरूर देना चाहिए। तब उसने बड़ी मौसी को फोन लगा कर पूछा – मौसी हम मम्मी को क्या दे दे ,उनकी पचासवीं वर्षगांठ है। दीपा दीदी तो कह रही है, बेटियां कुछ नहीं ले जाती।
तब जानकी मौसी बोली- बेटा तुम्हारी इच्छा है, बेटी ले जाए उपहार तो कोई बुराई नहीं है। तुम अपनी तरफ से पापा को सफारी सूट, मम्मी के लिए साड़ी, बिछिया पायल वगैरह दे सकती हो, मम्मी को देने का मौका तो कभी – कभी ही होता और मम्मी पापा तो हमेशा देते हैं।चाहो तो कुछ और भी सोच लो, तब उसने सोचा सही बात है,मम्मी तो हमेशा देती है…चलो मैं पापा के लिए सफारी का कपड़ा और मम्मी के लिए साड़ी और सुहाग के सामान के साथ पायल बिछिया भी ले जाती हूँ।
वह अपने हिसाब अच्छे से अच्छा सामान ले जाती है।
जैसे मम्मी पापा की एनीवर्सरी के एक दिन पहले पहुंचती है। तो वहां जोरो शोरो से तैयारी हो रही है।
दीपा दीदी केक सजा रही है, पापा भी फोन पर चार गाड़ी की बुकिंग कर रहे हैं। भाभी हलवाई को सामान दे रही है। क्योंकि मीठा नमकीन तो लगेगा ही…
वह जैसे ही पहुंची तभी मम्मी खुश होते हुए बोली -चलो दीप्ति भी आ गयी। दीप्ति तुम्हारी ही कमी रह गयी थी।
उनकी जानकी मौसी भी पहुंच चुकी है। उस दिन सारे रिश्तेदार आ रहे थे। पापा मम्मी के लिए दीपा दीदी और भाभी ने मेंहदी और संगीत रखा था।
पूरे जोरो शोरो के साथ मेंहदी और संगीत हुआ। पापा मम्मी ने मेंहदी लगवाई। पापा के हाथों में मम्मी का नाम लिखा गया। मम्मी के हाथों में पापा का नाम लिखा गया है। अगले दिन सभी रिश्तेदारों के लिए पापा ने साढ़े आठ बजे गाड़ी लगवा दी। पर दीप्ति को नहीं पता था ,
कहां जाने वाले है। उसने पापा से पूछा कहाँ चलने की तैयारी है। तब पापा बोले- दीप्ति तुम अब पूछ रही हो। और बाद में पूछती तो पहुंच कर पता चल ही जाता। इतना सुनकर वह बोली आपने दीदी को सब कुछ बताया। उनकी रजामंदी से पहले से रिश्तेदारों को देने के लिए गिफ्ट खरीदे गये। और खाने का मेन्यू भी पूछा गया।
हमारी तो कुछ पूछ ही नहीं है। तब उसके पापा बोले इस घर में सबसे बड़ी तुम्हारी दीदी है तो उसकी राय न ले क्या? तब वो बोली – जैसा किया ठीक किया पापा…और वह शांत रह गयी।
इस तरह सब एक मंदिर में पहुंचे, पूजन के बाद जयमाला कराई गई। और रिंग पहनाई गयी।केक काटा गया…फिर सभी रिश्तेदारों ने गिफ्ट देकर पापा मम्मी का टीका किया। फिर सबकी फोटो खिंचवाई गयी। वही दीपा दीदी सबको बुला- बुलाकर फोटो खिंचवा रही थी।
फिर उस मंदिर के पास की होटल में मेन्यू के अनुसार खाना लगवाया गया। सब लोग बहुत खुश थे। दीप्ति ने भी गिफ्ट के पैकेट मम्मी पापा के हाथों में दिए। फिर देखा जो दीपा दीदी कह रही थी बेटियों का कुछ नहीं लगता वो भी मम्मी पापा में कपड़े वगैरह दे रही थी।
वही मौसी जी ने भी सामान दिया।
इस तरह मम्मी पापा की एनीवर्सरी अच्छे से संपन्न हो गयी। सब लोग अपने- अपने घर चले गये।
रात हुई तब सबके गिफ्ट खोले जा रहे थे।
देखा तो जानकी मौसी ने मम्मी के लिए एक साड़ी और साड़ी की मैचिंग की ज्वैलरी दी है, जो उसे सलाह दे रही थी, वो भी सोने चांदी का कुछ नहीं लाई थी…खैर तब दीप्ति ने सोचा हमें तो बड़ा ज्ञान बाँट रही थी और खुद क्या दे रही है !!उसने मम्मी पापा को बताया मौसी ने हमें यह सलाह दी ,कि कपड़े के साथ साड़ी पायल बिछिया ले जाओ। तब सब बोले ठीक है जो दिया सो दिया कल के दिन तो हम भी ऐसा व्यवहार करेंगे, तब कुछ कहने को ना होगा ऐसा दिया या वैसा दिया। कम से कम मीन मेख तो नहीं निकालेंगी मौसी जी का व्यवहार डायरी में लिख दिया गया।
तभी दीपा दीदी ने अपना बड़प्पन दिखाते हुए कहा- देखो मम्मी हमारी साड़ी कैसी लगी। पापा को सफारी का कपड़ा पकड़ाये हुए कहा- देखो पापा हमारे सफारी सूट का कपड़ा कितना अच्छा है ना….तब पापा बोले हां दीपा….इसका कपड़ा तो बहुत सॉफ्ट है,इसे हम इस दीपावली में सिलवा ही लेंगे।
तब दीपा दीदी की नजर दीप्ति के पैकेट पर गयी। उसने फटाफट खोलते हुए कहा- मम्मी देखो तो दीप्ति कैसी साड़ी लाई है। ऐसी साड़ी तो हम रोज में भी न पहने। बताओ कैसी पसंद है!!कम से कम अच्छी मंहगी साड़ी तो लानी थी।
तब मम्मी ने भी साड़ी उठाते हुए कहा हां दीपा दीप्ति की साड़ी तो हल्की लग रही है। फिर सफारी सूट का कपड़ा देखते हुए दीपा दीदी ने कहा, पापा दीप्ति का सफारी सूट का कपड़ा भी उतना खास नहीं है देखो कलर भी आपके ऊपर नहीं जम रहा है। ये सब सुनकर दीप्ति को लगा दीपा दीदी तो उसकी बेइज्जती पर बेइज्जती कर रही है। फिर वह चुप न रह पाई।
फिर वो बोली- दीदी आप तो कुछ लाने वाली नहीं थी, फिर आप कैसे सामान ले आई। हमने तो आपसे सलाह लेना चाही आपसे ,पर आपने हमें नीचा दिखाने के लिए मना कर दिया और खुद सामान ले आई। आप कैसी बहन हो। तब दीपा बोली ये तो अपनी- अपनी समझ की बात है। अगर मम्मी पापा सामान न लेते तो ये सामान हमारे सास ससुर के काम आ जाता।
तब दीप्ति व्यंग्यात्मक लहजे में बोली वाह दीदी वाह…..
अभी तक पापा आपकी सुन रहे हैं क्योंकिआप बड़ी है, इसलिए बोल पा रही हो, कम से कम हमारे प्रति स्नेह नहीं है तो कोई बात नहीं… पापा मम्मी के मन में जहर तो मत घोलों।
दीपा एकदम तुनकते हुए कहने लगी- अरे दीप्ति छोटी हो छोटे जैसे रहो। पापा मम्मी भी देख रहे हैं कौन कैसा सामान लाया है। तब पापा ने डांट कर बोला – अरे दीप्ति बात का बतंगड क्यों बना रही हो।
तब वह बोली- पापा आपको ये लग रहा है कि मैं बात का बतंगड बना रही हूं। तो आप भी सोचो जब दीदी मेरे साथ ऐसा व्यवहार करती है और आप भी उपेक्षा करते हैं तो मेरे मन पर क्या गुजरती होगी ये सोचा है आपने कभी…नहीं ना..भैया भाभी भी कल के दिन मेरा सम्मान नहीं करेंगे और वो मुझे हल्के में लेंगे। तो आपको अच्छा लगेगा?मेरा ये तिरस्कार ही हुआ। मेरी भी अपनी जगह है। कल के दिन मेरे पति को ये बात पता चली तो वो मुझे यहाँ आने ही ना देगें।
तब उसकी मम्मी बात संभालते हुए बोली – अरे दीप्ति पूरी गलती दीपा की ही है। फालतू ही पापा से बहस मत करो।
तब वो बोली मम्मी मेरे सीधेपन और कम बोलने के कारण ही दीदी अपने आप में इस घर की प्रमुख बन गयी। मेरी शादी नहीं हुई थी, तब तक तो ठीक था। पर अब और नहीं मैं ऐसा तिरस्कार सहन करुंगी। एक बड़ी लड़की इतनी महत्वपूर्ण और दूसरी कुछ भी नहीं क्या…ये सही है मम्मी!!
पहले भी दीदी आप दोनों को बहुत भड़काती थी। और आप दोनों उनकी बातों को अहमियत देते थे। मुझे ही डांटते थे।
इतना सुनते ही मीता भाभी बोली -मम्मी पापा दीप्ति दीदी सही तो कह रही है, मैंने भी महसूस किया है उनकी हमेशा उपेक्षा होती है और बड़ी दीदी अपनी जगह पर ठीक है, पर छोटी दीदी भी कम ना है माना बड़ी दीदी की साड़ी सफारी का कपड़ा मंहगा है पर दीप्ति दीदी पायल बिछिया और सुहाग का सामान भी लाई है वो आप लोगो को नहीं दिख रहा है। बस बड़ी दीदी के कपड़ो की च्वाइस अच्छी कह सकते हैं, पर पैसों में देखा जाए तो दीप्ति दीदी ज्यादा लाई है।
इतना भाभी को बोलते देख दीपा कहने लगी अरे मीता भाभी तुम भी इतना बोल रही हो। मम्मी पापा कुछ नहीं बोल रहे तो तुम क्यों बोल रही हो?
तब मीता भाभी कहती दीदी -मुझे भी एहसास है पापा मम्मी आप दोनों में से किसे अहमियत देते हैं किसे नहीं… पहले सुना था कि आपकी बातें सुनकर दीप्ति दीदी को बहुत सहना पड़ा है। क्योंकि वो कम बोलती थी ,पर अब उनकी शादी हो गयी है, अब तो उन्हें आप बक्स दो।
तब उसकी मम्मी ने कहा- नहीं नहीं दीप्ति की साड़ी भी अच्छी है ,हमें पसंद है, मैं तो पहनूंगी ये साड़ी…
ऐसा सुनकर दीप्ति बोली मम्मी बात संभालने की जरूरत नहीं है पता नहीं
बड़ी बेटी और छोटी बेटी में इतना भेदभाव क्यों होता आया है, मैं आज तक समझ नहीं पाई हूं…. एक बेटी हमेशा पुरस्कार की पात्र रही है और दूजी तिरस्कार की…इस घर में क्यों और कब तक ऐसा चलेगा। तब पापा कहते हैं दीप्ति बेटा हमारी ज्यादा गलती है जो तुम्हारी अवहेलना करते रहे और तुम्हें गलत समझते रहे। हम सब पर दीपा के प्यार की पट्टी बंधी रही है। और बड़े होने के कारण मैंने दीपा को हमेशा आगे रखा। उसे ज्यादा महत्व दिया। हम सब गलत थे। आज मीता और तुम न बोलती तो हमें भी एहसास न होता। फिर दीपा दीदी भी कहने लगी हां दीप्ति मेरे कारण तुम्हारी बहुत अधिक अवहेलना हुई । उसके लिए हम ही जिम्मेदार रहे हैं। पता ही नहीं चला कि तुम्हें भी बुरा लगता होगा। पता नहीं मैं क्यों नहीं समझ पाई। आज समझ आया जब मीता भाभी और तुमने बोला।
अब से मेरे कारण तुम्हें कभी कुछ सुनना नहीं पड़ेगा। मुझे माफ कर दे दीप्ति… आज तूने बोलकर एहसास करा ही दिया। पहले तू क्यों नहीं बोलती थी।
तब दीप्ति कहती- क्या बोलती दीदी पापा केवल आपकी ही सुनते थे । तब दीप्ति के पापा भी बोले- दीप्ति तुम भी शाबासी की हकदार हो ,जो तुम्हें नहीं मिली। अब से ये सब कभी नहीं होगा मेरे स्वभाव के कारण तेरी मम्मी भी कुछ नहीं बोल पाती थी। हाँ पापा एक मम्मी ही थी जो प्यार करती थी। पर जता नहीं पाती थी। आज मुझे खुशी है कि आपको और दीदी को एहसास हो गया है। इससे ज्यादा मुझे क्या चाहिए।बस दीदी के बराबर का सम्मान और कुछ नहीं…..
इतना सुनते ही उसके पापा मम्मी की आंसू भर आए और आंखों से चश्मा उतारते हुए उसके पापा कहने लगे- हां दीप्ति बेटा ऐसा ही होगा। और उसे गले लगा लिया।
स्वरचित मौलिक रचना
अमिता कुचया
-तिरस्कार कब तक