अनचाहा रिश्ता भाग 3 – गरिमा जैन

अशोक ने जल्दी से कैब बुक की और अपने मुंबई के ऑफिस में चला गया। उसे मन ही मन रचना की याद एक पल  को आई पर उसने तुरंत अपना मन हटा लिया ।सच उस लाल शिफॉन की साड़ी में रचना किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी और उस पर उसकी वह मुस्कान जो किसी का मन मोह ले।

अशोक को शादी जैसे रिश्ते पर विश्वास ही नहीं था। उसने अपने पिता का तीन बार तलाक होते देखा था ।छोटी-छोटी बातों पर उसके माता-पिता की बहस हो जाती और नौबत तलाक तक पहुंच गई ।उसके बाद अशोक के पिता ने पुनर्विवाह किया पर शादी टूट जाती ।अशोक जानता था कि पैसे रिश्तो से अधिक मजबूत चीज है ।

उसने मन ही मन निश्चित किया कि वह दिन भर ना तो रचना को फोन करेगा और ना ही उसका फोन रिसीव करेगा रात तक व गुस्से से आगबबूला हो जाएगी बस कुछ ही दिनों में उसका तलाक हो जाएगा और वह आजादी की जिंदगी जी पाएगा पर 26 नवंबर 2008 की शाम ,उसके भाग्य में कुछ और ही लिख कर आई थी और उस दिन वह हो गया जो होना नहीं चाहिए था!

26 नवंबर 2010 आज उस घटना को 2 साल बीत चुके हैं। अशोक किताबों की दुकान से कुछ चुनिंदा किताबें खरीद रहा है फिर वह एक साड़ी की दुकान पर जाता है और लाल रंग की 2 साड़ियां खरीदता  है ।



गाड़ी में बैठकर ड्राइवर से कहता है कि ‘सती माता ‘मंदिर चले तभी उसका मोबाइल बज उठता है। उसके पापा का कॉल था ।”अशोक कहां हो ” “पापा मैं मंदिर से सीधे अस्पताल जाऊंगा दोपहर तक ऑफिस आ जाऊंगा”

” अशोक मुझे तुम्हारी जरूरत है उसे भूल जाओ अब वह कभी भी …….”

पापा बस करो आगे कुछ मत कहना मैं आता हूं।

मंदिर में जाकर अशोक एक साड़ी माता को अर्पित करता है और दूसरी वापस लेकर अस्पताल आ जाता है। उसके एक हाथ में किताब थी दूसरे में साड़ी । रचना पुकारते हुए अस्पताल ले कमरे में दाखिल होता है । रचना,वह बिस्तर पर लेटी थी ,उसके शरीर पर ढेरों तार मशीनों से जुड़े थेवह कोमा में है 2 साल से।

अशोक बैठ जाता है किताब खोल पढ़ना  शुरू करता है तभी वहां नर्स आती है अशोक उसको लाल साड़ी देता है और कहता है इसे रचना को पहना देना प्लीज आज सेकंड एनिवर्सरी है हमारी।

बड़े प्यार से रचना के माथे पर हाथ फेरता है और उसे निहारने लगता है ।”बस एक बार आंखें खोल दो मेरी जान, मैं तुम्हें कभी दूर नहीं जाने दूंगा “तभी वहां राघव आ जाता है अशोक का पुराना दोस्त । अशोक को वह मोबाइल में एक वीडियो दिखाता है जो 2 साल पुरानी उस घटना की थी,जिसने अशोक कि जिंदगी बदल दी थी।

यह देखो इसमें रचना भी दिख रही है ।अशोक ध्यान से देखने लगता है ।वीडियो ताज होटल के सीसीटीवी की थी। रचना तेजी से भागती नजर आई और गोली चलने की आवाज आती है ।अशोक को सारे दृश्य जीवंत दिखने लगते हैं ।

दो साल पहले का  दिन जब अशोक ने दिन भर रचना का फोन नहीं उठाया था और रात 8:00 बजे होटल पहुंचा था। उसने सोच लिया था कि रचना गुस्से में अब उसे उल्टा सीधा बोलेगी तो वह सारी बातें रिकॉर्ड कर लेगा जिससे तलाक मिलने में आसानी हो।

होटल पहुंचा तो नीचे कैफे  के पास से किसी ने पुकारा “अशोक “,अशोक ने पलटकर देखा तो रचना किसी औरत के साथ खड़ी मुस्कुरा रही थी । रचना की मौसी थी। वह उनकी शादी में नहीं आ पाई थी इसलिए मिलने आ गई थी। उसने आखिरी बार रचना  को मुस्कुराते देखा था क्योंकि उसके बाद सब कुछ बदल जाने वाला था ।



अशोक दो कॉफी आर्डर करता है और सोचता है कि वह रचना से साफ-साफ बात कर लेगा। 8:30 के ऊपर हो चुके थे अचानक दरवाजे की तरफ रचना अपलक देखेने लगती है और तेजी से उठकर अशोक का हाथ पकड़ कर वहां से चलने को कहती है ।अशोक हरबड़ा जाता है तभी वह जब पीछे पलटते हैं तो गोली चलने की आवाज से उनकी रूह कांप जाती है ।

वहां दो आतंकवादी तेजी से लोगों पर गोलियां चला रहे थे और खून से लथपथ लोग जमीन पर गिरते जा रहे थे। अशोक और रचना वही एक दीवार की ओट में छिप के खड़े हो जाते हैं तभी एक छोटा सा बच्चा वहां तेजी से भागता है रचना अपनी जान की परवाह न करते हुए बाहर निकलती है और उस बच्चे को गोदी में उठाकर वापस भागती है।

कुछ भी हो सकता था रचना को इस तरह अपनी जान जोखिम में डालते देख अशोक उसे एकटक देखता रह जाता है। एक पराए बच्चे के लिए इसने अपनी जान जोखिम में डाल दी।

बच्चे को गोद में लिए रचनातेजी से भागने लगती है । उसे सारे रास्ते अच्छे से पता थे।उसने बताया कि आज सारा दिन वह होटल  में घूमती रही थी ।इस होटल की उसे अच्छे से  पहचान हो गई है। इस होटल में दो विंग है एक ताज टावर है जहां वे लोग रुके हैं और एक दूसरा विंग है जहां पर भी कई मेहमान रुके हुए हैं ।

तभी पीछे से बंटी बंटी की आवाज आती है तो रचना देखती है कि बच्चे की मां उसे पुकारते हुए दौड़ रही हैं ।रचना बच्चे को उनके मां-बाप को सौंप देती है। बच्चे के मां-बाप की आंखों से आंसू छलक जाते हैं ,वह रचना का बार बार धन्यवाद करने लगते हैं ।अशोक यह सब चीजें बड़े ध्यान से देख रहा था ।

रचना अशोक का हाथ  छोटे बच्चे की तरह  पकड़कर इधर से उधर भगाई ले जा रही थी ।उनका कमरा छठी मंजिल पर था जब तक वे  मंजिल पर पहुंचते हैं वहां आग लग चुकी होती है ।अशोक घबरा जाता है इसके विपरीत रचना अपना हौसला बनाए रखती है ।

वहीं पर एक स्टोर रूम के अंदर वे छुप जाते हैं और  पूरी रात उसी स्टोर रूम में कटती है  ।वहां 8 -10 और लोग छुपे बैठे थे ।होटल पर हमला हुए 24 घंटे बीत चुके हैं ।बाहर क्या हो रहा है उन लोग को कुछ नहीं पता ।

कभी कभी कॉरिडोर में हलचल होती है फिर शांति छा जाती है ।तीसरे दिन उसे वहां पर पुलिस के होने का एहसास होता है। पुलिस वाले आवाज दे रहे थे कि अब सब कुछ ठीक है हालात काबू में है सब बाहर आ जाएं ।

रचना अशोक और वहां बंद सारे लोग बाहर निकलते हैं। पुलिस बारी बारी से उन्हें बाहर लेकर जा रही होती है तभी सामने से दो आतंकवादी आ जाते हैं जिनके हाथों में बड़ी बंदूके थी और वह बंदूक अशोक की तरफ तान देते हैं।

अशोक डर से ठंडा पड़ जाता है ।अशोक को गले से पकड़ के खींचते हुए आतंकवादी अपने पास ले जाते हैं और कहते हैं अगर किसी ने भी कुछ करने की कोशिश की तो वह इसे मार देंगे ।अशोक को घसीटते हुए वह ले जा रहे थे। पुलिस भी वहीं रुक जाती है पर रचना में ना जाने कहां से शक्ति आ जाती है वहीं से शेर की तरह दौड़ती है और चिल्लाती है छोड़ दो मेरे पति को।

रचना को इस तरह से दौड़ता देखकर अशोक को साक्षात वह देवी  रूप लगती है ।शायद इसी तरह सती माता ने यमदूत से अपने पति के प्राण हर लिए होंगे।

आगे की कहानी पढ़ने के लिए लिंक पर क्लिक करें

अनचाहा रिश्ता भाग 4 (अंतिम) – गरिमा जैन

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!