अनचाहा रिश्ता भाग 4 (अंतिम) – गरिमा जैन

अशोक पुरानी यादों में डूबता जा रहा था तभी अचानक उसके मोबाइल की घंटी बजी जिससे उसकी यह याद टूट गई ।

उसके पापा का फोन था। उससे फोन उठाकर कहा बस” मैं निकल रहा हूं” , लेकिन अशोक के पापा काफी गुस्से में थे। वह बोले कि” मैंने ही तुम्हारी शादी कराई थी और मैं ही कह रहा हूं कि अब तुम उसे छोड़ दो वह एक जिंदा लाश है, वह कभी भी कोमा से बाहर नहीं आएगी। तुम मेरे एकलौते लड़के हो , बिजनेस में तुम्हारी जरूरत है  ।तुम क्यों उसके पीछे अपनी जिंदगी बर्बाद कर रहे हो। दो साल बीत चुके हैं, जब अब होश में ना आई तो क्या आएगी”

अशोक यह सब सुनकर बहुत दुखी हो जाता है और फोन काट देता है। वह  अनमने मन से उठता है और रचना के माथे को चूम कर कहता है “हैप्पी एनिवर्सरी डियर”

अशोक की आंखें भीग  जाती हैं और वह तेज़ी  से हॉस्पिटल के बाहर आ जाता है। गाड़ी में बैठकर अशोक भीगी पलकों से गाड़ी के बाहर देखने लगता है।



उसे याद आता है ,किस तरह उस आतंकवादी ने जब उसे जकड़ लिया था तो अपनी जान की परवाह नहीं करते हुए रचना उस पर कूद पड़ी थी। तभी दूसरे आतंकवादी ने रचना पर गोली दाग दी थी ।गोली रचना की रीड की हड्डी में जा लगी थी और वह अशोक  के ऊपर गिर गई थी ।जब अशोक ने उसकी पीठ पर हाथ रखा था तो रचना की खून से अशोक के हाथ रंग  गए थे।तभी बहुत तेज गोली चलने की आवाज आई थी और पुलिस ने दोनों आतंकवादियों को गोलियों से भूनकर वही मार गिराया था।

रचना ने अपनी हिम्मत से अशोक  की ही नहीं वहां मौजूद बहुत सारे लोगों की जान बचाई थी पर वह खुद जिंदगी और मौत के बीच झूल रही है।

इन दो सालों में अशोक ने ना जाने कितने ताने सुने कितने ही लोगों ने उससे रचना को छोड़ कर आगे बढ़ जाने को कहा ।एक वह शाम थी जब अशोक रचना से छुटकारा पाने के लिए कुछ भी करने को तैयार था और आज यह दिन है कि अशोक जो कभी मंदिर की सीढ़ियों पर नहीं चढ़ा वह मंदिर मंदिर जाकर रचना की सलामती की दुआ मांगता है।

तभी अशोक की फोन की घंटी दुबारा बजती है ।हॉस्पिटल से फोन था ।अशोक घबरा जाता है इन दो सालों में कई बार रचना क्रिटिकल सिचुएशन में पहुंच गई थी। कभी उसकी हार्टबीट बिल्कुल स्लो हो जाती थी तो कभी बहुत तेज।

अशोक ने कितने ही बड़े बड़े डॉक्टरों से उसका इलाज करा कर किसी तरह उसकी सांसो को चलते रखा था। वह घबरा गया ,उसने सोचा कहीं ऐसा तो नहीं कि वह  रचना को हमेशा के लिए खो देगा ।उसके मन में जो रचना के साथ जिंदगी जीने की चाह है वही खत्म हो जाएगी। अगर ऐसा हुआ तो अशोक फिर कभी किसी से प्यार नहीं कर सकेगा क्योंकि उसे प्यार नहीं ,उसे रचना से अब मोहब्बत हो गई थी।

वह सीढ़ियों से भागते हुए रचना के रूम में पहुंचता है तो बेड खाली था ।वह पागलों सा हॉस्पिटल में इधर-उधर भागे जा रहा था कि तभी उसे रचना के डॉक्टर दिखाई देते हैं, जो बहुत तेजी से आगे बढ़े जा रहे थे ।अशोक जब उनको देखता है तो उसे कहते हैं” रिलैक्स अशोक एक खुशखबरी है रचना के हाथों ने हल्की सी हरकत की थी जब नर्स उसकी ड्रेस चेंज कर रही थी तो उसने हल्के से नर्स का हाथ थामा था । यह बहुत अच्छा रेस्पॉन्स  है और हमें लगता है रचना अब जल्दी रिकवर करेगी “

अशोक वही कुर्सी पर बैठ जाता है उसकी आंखों से आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। वह रचना, जब उसे मुस्कुरा कर देखती थी तो वह अपना मुंह घुमा कर बाहर देखने लगता था ।वह उसकी मुस्कान देखने के लिए  ऐसा तड़प रहा था जैसी  तड़प शायद हीर रांझा में रही हो ,शिरिन फरहान में रही हो ।वही मोहब्बत जो रोमियो को जूलियट से हो गई थी वैसे ही मोहब्बत अशोक को रचना से थी।

31 दिसंबर 2010 ,अशोक बेसब्री से पल-पल रचना के आने का इंतजार कर रहा था। रचना पूर्णता स्वस्थ हो गई थी और आज ही हॉस्पिटल से डिस्चार्ज होकर घर आ रही थी। अशोक सब कुछ बिल्कुल परफेक्ट चाहता था इसलिए वह घर पर ही रचना के आने का इंतजार कर रहा था ।

उसने सारे  घर को रचना के  पसंदीदा फूल रजनीगंधा से सजवाया  था ।रसोई में सब कुछ रचना की पसंद का बन रहा था। रचना की अलमारी में अशोक ने ना जाने कितने जोड़े बनवा कर रखे थे ।उसने क्या कुछ नहीं सहेज कर रखा था उसके लिए ।

इन 2 सालों में अशोक पल पल सिर्फ रचना के लिए ही जी रहा था।घर पर रचना के  मम्मी पापा ,भाई-बहन, उसकी मौसी और कहीं सहेलियों को भी उसने बुलाया था।

अशोक के पापा मम्मी रचना को लेकर हॉस्पिटल से आते हैं दरवाजे पर रचना की आरती उतारी जाती है और रचना सौभाग्य और धन की देवी का स्वरूप किए कलश में चावल को पैरों से अंदर को ढकेल  प्रवेश करती है ।आज रचना को वह घर ,उस घर के लोग और वो कमरा कुछ भी पराया नहीं लग रहा था वह सब तो जन्म जन्म से उसके अपने थे।



सारा घर  रचना के आने की खुशी में सराबोर था। रचना, उसकी निगाहें तो अशोक पर थी और अशोक की रचना पर। अशोक की घनी पल्खे, घुंगुराले बाल और  मधुर मुस्कान रचना को अपनी ओर खींच ले रहे थे ।रचना अपने पापा मम्मी को देखकर बहुत खुश हुई उसकी खुशी में अशोक की खुशी और बढ़ गई ।

जब रचना मुस्कुराती तो अशोक उसकी मुस्कुराहट में खो जाता ।वह हर पल उसे देखना चाहता था उसकी हर मुस्कान को वह अपनी जिंदगी में भर लेना चाहता था । हर पल अशोक  उसके साथ जीना चाहता है हर पल….

समाप्त

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