अनंत यात्रा – उमा वर्मा

मै जा रहा हूँ ।तुम मेरे पास नहीं हो,शरीर ठंढा पड़ता जा रहा है ।बहुत कुछ कहना चाहता हूँ, पर कौन सुनेगा अब ? वक्त ही नहीं है मेरे पास ।गहरा अंधेरा, परम शान्ति महसूस कर रहा हूँ ।तुम को ही याद कर रहा हूँ ।कल रात से ही तबियत ठीक नहीं है सीने में दर्द और भारीपन था ।तुम ने कहा ” गैस हो गया होगा, दिन रात लेटे हुए जो रहते हैं ” मै चुप हो गया ।

रात को ही सिर में बहुत जलन होने लगा था  तुमने पानी लाकर सिर धो दिया ।अच्छा लगा ।तबियत तो कयी दिनो से खराब थी ही, तुम ही तो मुझे संभालते रही ।मैं तो आजकल खाने को लेकर चिढ़ जाता और बहुत बुरा भला कहता तुम्हे लेकिन तुम शान्त बनी रहती और सेवा में लगी रहती ।ब्याह कर लाया था तुम्हे  तो तुम बहुत दुबली पतली सी कम उम्र की गोरी चिट्टी थी।परिवार के लोगों ने कहा एक दम बच्ची है ।हमारा मेल भी कैसा,तुम गोरी चिट्टी, मै गहरा साँवला ।

मैं बातूनी  तुम  शान्त ।मैं किसी बात को बर्दाश्त नहीं कर पाता ,तुम सहनशीलता की मूर्ति थी ।परिवार को लेकर तुम्हारा नजरिया और तौर तरीका सब को बहुत अच्छा लगता ।यह देखकर मुझे बहुत खुशी मिलती ।शादी के दो साल बाद मै पिता और तुम माँ बन गई ।

जीवन की गाड़ी सुखपूर्वक दौड़ रही थी ।मेरी नौकरी लगी तो तुम मेरे साथ क्वाटर में शिफ्ट हो गई ।पैसे कम थे तब, सुविधा की कमी थी  लेकिन तुमने कभी शिकायत नहीं की ।सब कुछ चलचित्र की तरह घूमने लगा है ।अच्छा और सुखी जीवन बिता रहे थे ,जीवन का हर मोड़ पार कर रहे थे कि तीन साल बाद पता चला तुम फिर माँ  बनने वाली थी ।

तुम्हारी तबियत खराब रहने लगी थी ।उल्टियाँ होती थी ।तुम कमजोर और चिड़चिड़ी हो गई ।मै लापरवाह, तुम्हारी देखभाल ठीक से नहीं कर पाया।और किसी बात पर हमारी कहासुनी हुई तब पहली बार तुम्हे गुस्सा आया, तुम ने गुस्से में मशीन उठा लिया ।और फिर घर में चारों तरफ खून ही खून था ।बच्चा तीन महीने का,पेट में ही खत्म हो गया ।

तुम्हे लेकर अस्पताल दौड़ा ।डाक्टर ने कहा पाँच मिनट देर होती तो बचना मुश्किल था ।हालत बहुत खराब है, हम कोशिश कर रहे हैं ।फिर तुम्हे तो याद भी नहीं होगा कि कितना खून कितनी बोतल स्ला ईन चढ़ाया गया ।तुम तो बेहोश थी।मैं अपने ब्यवहार पर शर्मिन्दा था ।

पंद्रह दिन बाद तुम को छुट्टी मिल गई ।अब सब कुछ ठीक चलने लगा था की फिर तुम्हारी तबियत खराब रहने लगी पता चला फिर खुशी आने वाली है ।दूसरे बच्चे की तैयारी इस बार हमने अच्छे से की।समय पर एक प्यारी सी बेटी का जन्म हुआ ।

लेकिन बहुत कमजोर थी वह ।खून की कमी और उल्टियाँ होना उसके कमजोर होने का कारण बन गया ।जीवन में बहुत सारी परेशानी आती गई ।फिर भी आगे बढ़ते रहे ।तुम बहुत समझदार और सहनशीलता की मूर्ति थी ।हमारा कभी झगड़ा हुआ ही नहीं ।बच्चे बढ़ने लगे।उनकी शिक्षा पूरी हुई ।अब बेटे की नौकरी, बेटी की शादी की चिंता थी ।



समय के साथ बेटे की नौकरी और शादी भी हो गई ।बहु अत्यंत सुन्दर मिली।हमदोनों बहुत खुश थे।तुम तो दौड़ दौड़ कर सारी रस्मे  निभाती रही ।मैं सब दिन  खाने का बहुत शौकीन था।तुम ने भी मेरी पसंद का खयाल रखा।अब बहु आ गई थी तो रसोई उसके हाथ में चला गया ।वह तो खाना अच्छा बनाती थी लेकिन मेरा उग्र स्वभाव मीन मेख निकालने का कोई अवसर नहीं छोड़ता ।

“” यह भी कोई खाने की चीज है, मसाले का तो नाम ही नहीं, मिर्च झोंक दिया है “” तुम झट से मेरा मुंह बंद कर देती,धीरे बोलिए, बहु सुनेगी तो उसे बुरा लगेगा “”। 

अब आपकी माँ ने जो बनाया, मेरे हाथ का अलग था, मैंने जो बनाया उसकी बहु का अलग होगा कि नहीं ।हर औरत अपने मायके का ही सीख कर आती है परिवर्तन को स्वीकार करना चाहिए ।तुम मुझे समझाती, मै और गुस्सा हो जाता “” मै तुम्हारे जैसा महान नहीं हूँ “”।

 फिर दौड़ कर तुम किचन में जाती, बहु को समझाती “” बेटा इनको भी बच्चा ही समझो”” मन के बहुत अच्छे हैं, तुम लोगों को बहुत प्यार करते हैं ।ऐसा नहीं था कि मै उनलोगों को प्यार नहीं करता था पर मेरा अहम मुझे झुकने नहीं देता था ।गृहस्थी सुचारू रूप से चल रही थी लेकिन मेरे स्वभाव के चलते हरदम किच किच  होने लगा था ।तुम को मुझसे लगाव तो बहुत था,लेकिन पक्ष बहु का लेती।फिर पोते का जन्म हुआ ।तुम पूरी तरह उसमें समर्पित  हो गई ।उसके नहलाने, खिलाने, मालिश करने ,अपने साथ सुलाने, और जरा सी तबियत खराब होने पर डाक्टर के पास दौड़ती रही ।

मैं अपने को अलग महसूस करने लगा और बिना बात के तुम पर चिल्ला उठता।तुम तब भी शान्त  रही ।तुम्हे चीखना चिल्लाना जरा भी पसंद नहीं था ।कहती ” धीरे-धीरे बोलिए,कोई सुनेगा तो क्या कहेगा “” ।” सुन लेने दो ” ,मै और जोर से बोलता ।ऐसे ही चलता सब कुछ ।सब से घुल-मिल जाने की आदत थी मेरी, तुम रिजर्व थी ।यही बात मुझे अच्छी नहीं लगती थी ।

मै वैसा भी दिल का बुरा नहीं था ।पर न जाने क्यो बात बात पर उत्तेजित हो जाने की आदत पड़ गई थी ।फिर बेटी की शादी भी हो गई ।पैसे कम थे तो उधार भी लिए और चुकाने के लिए सेवा निवृत्ति ले ली।फिर बैंक से पैसा निकालने गया तो गुंडो ने पिस्तौल दिखा कर छीन लिया ।मेरे मन को बहुत तकलीफ हुई ।मैं तभी से बीमार रहने लगा ।अस्पताल में भर्ती कराया गया ।

तुम लगातार मेरे पास बैठी रहती ।मै ठीक होकर घर आ गया ।लेकिन बहुत ठीक नहीं था।बीच बीच में तबियत खराब रहने लगी थी ।मेरा खाना कम होता जा रहा था ।कुछ अच्छा नहीं लगता ।तुम खिलाने पर जोर देती।मैं कहता ” जिद करोगी तो थाली उठा कर फेंक दूँगा “”।



 फिर मुझे फुसलाती एक बच्चे की तरह ।मेरे हाथ पैर की मालिश करती ।मेरे घर परिवार के किस्से सुनाती ताकि मै खुश होकर खाना खा लूं ।तुम्हे पता था मेरे घर परिवार की बात सुनकर मैं खुश होता था ।किसी घरेलू विवाद को लेकर हम दोनों भाई में कुछ कहासुनी हो गई ।मैंने साफ कह दिया कि अब उनसे कोई समबन्ध नहीं रखना है ।लेकिन तुम्हे यह बात अच्छी नहीं लगी।”” 

भाई भाई में झगड़ा होना अच्छी बात नहीं “” मै तो जाउंगी  उनके यहाँ “” ।कयी दिन बीत गए ।मै टेंशन में तो रहता ही था ।भाई से बहुत लगाव था ।लेकिन कुछ उनकी गलती से परिवार बिखरने लगा था ।तुम ने अचानक एक दिन कहा “” मुझे उनके यहाँ जाना है “” ।”

 तो चली जाओ ना “” ।” कैसे जाऊँ? आप के साथ जाना है ” ।बहुत जिद की तुमने ।मैं तुम्हें लेकर गया ।”” ठीक है तुम को घर के पास छोड़ दूँगा, मै बाहर बैठा रहूँगा ।तुम मिल कर आ जाना “”। फिर तुम अन्दर गई ।थोड़ी देर बाद क्या हुआ कि भाभी आकर मेरा हाथ पकड़ कर अन्दर ले गयी।इस तरह हमारा आना जाना शुरू हो गया ।

तुम हमेशा परिवार को जोड़ने में विश्वास रखती थी ।गृहस्थी बेटे बहू के हाथ में थी।मुझे उनकी कुछ बात पसंद नहीं आती लेकिन तुम समझाती ” हमारी गृहस्थी हमने अपनी तरह चलाई तो उन्हे भी अपने ढंग से जीने का एहसास होना चाहिये ना?” दिनोंदिन मै अपने गंतव्य की ओर बढ़ती रहा हूँ ।कम खाने की इच्छा, बीच बीच में चक्कर आना ।

दुनिया दारी से मन उचाट हो गया है ।किसी पर पूरी तरह आश्रित हो जाना मुझे कभी अच्छा नहीं लगता ।मै एक दम  बेड पर  आ गया ।तुम मुझे सहारा देकर बाथरूम ले जाती,नहलाती, कपड़े बदलती, बाल संवार देती, अपने हाथ से कौर खिलाती ।तुम्हारी सेवा देख कर दंग रह जाता ।किस मिट्टी  की बनी थी तुम? कभी उबती नहीं थी? 

बच्चों को भी देखती ,बहु के काम में भी हाथ बटाती।खाली समय में अखबार के लिए लेख लिखती।कितना धीरज था? मै ही कभी  समझ नहीं पाया ।अब जब जाने की तैयारी होने लगी है तो लगता है क्षमा माँग लूं ।जब फुर्सत मिले, याद कर लेना ।जब तक साथ था,बहुत ध्यान नहीं दे पाया ।तुम भी तो सारी जिम्मेदारी उठाने में लगी रही ।



मेरे लिए वक्त ही नहीं था तुम्हारे  पास ।सिर्फ सेवा के लिए ही तो हमारा रिश्ता नहीं था ।जीवन जोड़ तोड़ में ही लगा रहा ।तुमने कभी किसी चीज की फ़रमाइश नहीं की।जो मिल गया उसी में खुश थी।उम्र बढ़ती गई ।बीमारी ने घेर लिया ।सोचता हूँ कि मेरे बिना कैसे रह पाओगी ।तुम्हारी चिंता मुझे खायें जा रही है ।अब शरीर साथ नहीं दे रहा ।

जीवन का लम्बा सफर तय कर लिया ।अब परम शान्ति चाहिए ।तुम बहुत संकोची हो।कभी अपना दुःख दर्द नहीं कह पाओगी बेटा बहु को ।जानता हूँ तुम्हारा  स्वभाव ।अच्छा ही है ।जीवन अच्छे से काट लोगी।अब मुझे लगने लगा है मेरी माँ मुझे बुला रही है ।अब नहीं बचुगां ।साँस उखड़ने लगी है ।बेटे से कहो लकड़ी का इन्तजाम कर ले।तुम ने मुझे डांट दिया ऐसी बात न करें ।तुम नाराज हो गई पहले से लकड़ी ले आयेगा क्या? फिर आठ दिन से तुम मुझे मेरे पसंदीदा खाना बना कर खिलाती रही ।मैं तृप्त  हो गया ।बेटा बहू  दोनों बहुत अच्छे हैं मै ही संतुष्ट नहीं हो पाया ।सारी गलती मेरी थी ।तुम मेरे तरफ से क्षमा माँग लेना ।हर जगह अपनी मर्जी क्यो चलाना चाहता था मै ।

कल हमारे साथ की आखिरी रात थी।शायद तुम समझ नहीं पाई ।लेकिन मै जानता हूँ कि यह मेरी अंतिम यात्रा है ।सुबह उठा तो तुम बाथरूम ले गयी।मैं कहना चाहता था ” कितना सहारा दोगी, नहीं संभाल पाओगी मुझे ।ईश्वर ने तुम्हे बहुत ताकत और हिम्मत दी है ऐसा तुमने कहा था ।सुबह के सात बजे ।हल्का नाशता और दवा  देने  के बाद तुम दो मिनट के लिए दूसरे कमरे में चली गई ।

अच्छा मौका मिला है ।अब कोई मुझे नहीं रोक सकता है शान्ति पूर्वक यात्रा  हो सकेगी ।जीवन में बहुत सारी बातें कहना और सुनना था ।पर अब वक्त ही नहीं है ।अब क्या  करोगी, कैसे रोकोगी? बाल बच्चों में खुश होकर रहना ।जानता हूँ तुम ऐसा आसानी से कर लोगी।मैं ही नहीं कर पाया।

हमारा इतना ही साथ था ।अपना ध्यान रखना ।ओह! गहरा अंधेरा घिरने लगा है एक गहरी खाई है! शरीर ठंढा हो रहा है ।शायद अब तुम मुझे नहीं देख पाओगी ।ओम शांति, शान्ति ।ईश्वर से अपनो की सलामती की दुआ के साथ अलविदा!

लेखिका : उमा वर्मा 

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