अजीब दास्तां है ये – सुधा जैन

कादंबरी,… हां यही नाम था उसका जितना सुंदर नाम उतनी ही सुंदर थी वह… बड़ी बड़ी आंखें गोल चेहरा.. लंबे लंबे बाल बहुत ही आकर्षक… सुंदर …जितनी सुंदर उतना ही सुंदर गायन… जो भी उसे देखता … देखता ही रह जाता। महाराष्ट्र के नागपुर में जन्मी अपने  मम्मी पापा की छोटी लाडली बिटिया … बचपन से डॉक्टर बनने का सपना था उसकी कोशिश भी की ..लेकिन वह सपना पूरा नहीं हो पाया और एमएससी कर ली। सुंदर और आकर्षक तो थी ही… इंदौर के डॉक्टर आलोक से मम्मी पापा ने कादंबरी का संबंध  कर दिया …और वह अपने ससुराल आ गई। डॉक्टर आलोक सहज, सरल ,समझदार व्यक्तित्व के स्वामी थे।

उनकी मम्मी भी प्यार से भरी हुई,… कादंबरी की जिंदगी प्यार से चलने लगी। 1 साल के अंदर ही प्यारी बिटिया पलक ने आकर उसे मातृत्व से भर दिया, पर जीवन में कुछ करने की उसकी कसक मन में बरकरार थी। उसने b.ed भी कर लिया और जब लेक्चरर की विज्ञप्ति निकली तो आलोक और अपने सासू जी की सहमति से उसे भर दिया . ।योग्य तो थी ही.. इंदौर से दूर एक कस्बे  के स्कूल में उसकी नियुक्ति हो गई। पलक को दादी मां ने अपने पास रख लिया और डॉक्टर आलोक  कादंबरी को अपने विद्यालय में छोड़ गए… विद्यालय के साथी अवनीश का घर बड़ा था …कादंबरी ने किराए पर ले लिया..

अवनीश का व्यक्तित्व बहुत ही आकर्षक एवं रौबदार था.. अवनीश के साथ वह स्कूल भी आ जाती.. घर के कामों में भी कुछ मदद कर देते.. जोइनिंग करते समय वह पुनः गर्भवती भी थी और उसने प्यारी सी बिटिया पल्लवी को जन्म दिया। आलोक के पास इंदौर भी आती जाती रहती थी …लेकिन तन और मन की कुछ और जरूरतें भी होती है.. और अवनीश कादंबरी कब भटक गए… पता ही नहीं चला।


अवनीश का अपना परिवार भी उसी घर में रहता था, अतः धीरे-धीरे सभी को पता भी लगने लगा। कादंबरी का इंदौर आना जाना बहुत कम हो गया। अवनीश भी एक भंवरे के समान था जो हर कली पर मंडराना जानता था …और कहीं पर चैन नहीं पाता था ।उसी प्रकार कादंबरी भी अपनी सुंदरता ,आकर्षण को संभाल नहीं पाई और दोनों उस रिश्ते में बंध गए जिसे कि समाज की नजरों में अवैध कहा जाता है। जब  परिवार, विद्यालय, गांव के लोग विरोध करने लगे तब दोनों ने मिलकर अपना तबादला पास के शहर में करवा लिया,

और करीब-करीब साथ ही रहने लगे। जीवन एक अबूझ पहेली है, क्या पता कब इंसान कोई गलती कर दे, और उसकी सजा कोई और ही भुगतता है।

उन दोनों के प्रेम.. हवस.. कुछ भी कहो इसका नतीजा प्यारी सी मुग्धा के रूप में आया जोकि कादंबरी और अवनीश की दुनिया में आ गई।

पलक अपने दादी और पापा के पास थी। पल्लवी और मुग्धा बड़ी होने लगी। अवनीश का कादंबरी के प्रति आकर्षण भी कम होने लगा… उसका अपना परिवार भी था…

 कादंबरी अपनी बच्चियों की परवरिश, शिक्षा, देखभाल में लगी थी। पल्लवी को मॉडलिंग की दुनिया बड़ी प्यारी लगती थी,, और वह मुंबई चली गई ।कादंबरी उसे पैसे भेजती रही। मुग्धा भी पढ़ रही थी.. वह भी मुंबई जाना चाहती थी.. और जिद करके वह भी मुंबई चली गई ।

कादंबरी ने एक दिन पाया कि उसके स्तन में गांठ हो गई है.. आलोक से तो उसके संबंध ना के बराबर हो गए थे… अवनीश को कहा… मेडिकल चेकअप हुआ मायके वाले भी कादंबरी से नाराज ही थे… अतः मदद को नहीं आए… कादंबरी का कैंसर थर्ड स्टेज पर पहुंच गया …हालत दिन पर दिन बिगड़ गई …मेडिकल में बहुत खर्च होने लगा..

बच्चों की पढ़ाई के लिए भी पैसे भेजना होते थे.. शरीर बिल्कुल साथ नहीं दे रहा था… अवनीश यदा-कदा आकर उसके साथ रहते थे… जीवन संभल नहीं रहा था ।कादंबरी की हालत दिन पर दिन खराब हो रही थी। शारीरिक रूप से भी, मानसिक रूप से भी, और आर्थिक रूप से भी।


कमजोरी आ गई थी, स्कूल आना भी संभव नहीं हो रहा था। बेटियां भी अपने मां को, मां के चरित्र को समझ गई थी। पलक पल्लवी मुग्धा  तीनो बहनें जीवन को समझने लगी थी और एक अजीब सा विरोधाभास पनपने लगा था।

कादंबरी ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली ..विद्यालय के सभी साथियों ने उनकी आर्थिक मदद भी की… अपनी सेवानिवृत्ति पर अपने कमजोर शरीर लेकिन अपनी मधुर आवाज से जब उन्होंने यह गाना गाया की “एहसान मेरे दिल पे तुम्हारा हैं दोस्तों, यह दिल तुम्हारे प्यार का मारा है दोस्तों”….

तो सभी की आंखें नम हो गई थी। कहते हैं कुछ ऐसी गलतियां होती है जिनका कभी कोई प्रायश्चित नहीं होता ।

जिंदगी कुछ इसी तरह से कर रही थी ।सेवानिवृत्ति के एक माह बाद ही कादंबरी का निधन हो गया…. आलोक के और उसके परिवार वाले उसकी मृत्यु पर थोड़ी देर के लिए इकट्ठे हुए …अवनीश खानापूर्ति कर रहे था.. पलक अपनी शिक्षा पूरी करके नौकरी कर रही थी ..उसकी शादी भी हो गई.. पल्लवी अपने मुंबई के   सपनों को पूरा करने लगी थी.. लेकिन मुग्धा तो बहुत ही विचित्र स्थिति में आ गई… उससे इस दुनिया में लाने वाली  रहीं नहीं और पापा तो थे,

लेकिन वह उनकी अवैध बेटी थी। उसकी जवाबदारी लेना कोई भी नहीं चाहता था। मम्मी के शासकीय निधि में से तीनों बहनों ने अपना अपना हिस्सा ले लिया था, लेकिन थोड़ा सा पैसा कितने दिन तक चलता है। मुग्धा ने अवनीश की तरफ, अपने पापा की तरफ़ प्यार से देखा कि” पापा आप मुझे दुनिया में लाए हो, मेरी परवरिश करो, मेरी जवाबदारी लो, मेरी शिक्षा पूरी करवाओ” लेकिन उसकी बात सुनने को कोई भी तैयार नहीं था… कादंबरी  की गलती की सजा  वह भुगत रही थी। वह क्या करती,.. उसने कोर्ट में अपने पापा के खिलाफ केस किया कि” मैं उनकी बेटी हूं और यह मेरी जवाबदारी नहीं ले रहे हैं” डीएनए टेस्ट में भी सब कुछ क्लियर हो गया..

पर  अवनीश ने मुग्धा की जवाबदारी नहीं ली… एक अच्छा जीवन सड़क पर आ गया… ना उसकी शिक्षा सही हो सकी, ना परवरिश सही हो सकी, बहनों ने भी उसकी तरफ से पल्ला झाड़ लिया ।मुग्धा इधर-उधर भटकती हुई गलत हाथों में भी आ गई ।उसका जीवन बद से बदतर हो गया और मानसिक अवसाद से ग्रस्त होकर उसने आत्महत्या कर ली।

एक जीवन खत्म हो गया।

जीवन में कभी-कभी  हम कोई ऐसी गलती कर लेते हैं जिसका कोई प्रायश्चित नहीं होता,

जिस तरह से एक भंवरा कली कली पर बैठता है लेकिन उसे चैन नहीं मिलता …उसी प्रकार यह कामवासना कि आंधी ऐसी आती है कि व्यक्ति अवैध रिश्ते में फंस जाता है, और यहीं से पतन की शुरुआत होती है ।कभी-कभी कहानियों से ज्यादा हम हमारे आसपास कुछ ऐसी घटनाएं देख लेते हैं.. जिनके बारे में विश्वास नहीं हो सकता.. लेकिन यह सच होती है… और यह घटना भी कुछ ऐसी ही है ..आंखों देखी।

सुधा जैन

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