अहंकार – निधि जैन

क्या हो तुम संभव, तुमको कितनी बार समझाऊं कि बोलते समय गलत शब्दों का चयन मत किया करो, तुम शिखर से जिस अहंकार से बात कर रहे हो,तुमको पता भी है आज़ तुम्हारी वजह से उनको जेल जाना पड़ा, और उसके बाद भी तुम उनसे किस तरह से बात कर रहे हो, अपनी गलती को माना करो, पैसे का गलत इस्तेमाल तुमने किया, और इल्जाम शिखर पर लगा दिया, इतना घमंड करना भी ठीक नहीं ,दिव्या ने आक्रोश में संभव से कहा।

ये है कौन, जो हमारे घर में चले आते है, मैं तो इस घर का दामाद हूं, इसलिए यहां आया हूं, ये क्यों आए है, और अगर जेल की हवा खा भी ली तो किसने कहा था इनसे कि बीच में आए, संभव ने दिव्या से ऊंची आवाज़ में कहा,

मुझे ये तुम्हें बताने की ज़रूरत नहीं संभव, तुम बस स्तुति तक ही सीमित हो, बाकी तुमको कोई पसंद नहीं करता, और हॉं आज़ तो बोल दिया ये है ही कौन, आगे फिर कभी मत बोलना, इसका अंजाम सही नहीं होगा, कहती हुई दिव्या बाहर आ गई,

इसको समझ नहीं आता क्या, या बोलना ही नहीं सिखाया, संभव चिल्लाया, उसे समझ भी सब पड़ता है, और बोलना भी आता है, पर उसे ये नहीं पता कि किसको क्या बोलना है, स्तुति ने शिखर की ओर इशारा करके कहा, 

शिखर जानता था कि दिव्या के बारे में बात हो रही थी, और वो ये भी जानता था कि दिव्या बिना कुछ सोचे, समझे कुछ नहीं कहती, वो सब पहले सोचती हैं और जहाँ उसे कुछ गलत लगता वही वो बोलती है, पर ये सब अगर संभव या स्तुति को कहता तो वो दोनों उसे भी कुछ गलत कह देते, इसलिए बिना कुछ प्रतिक्रिया दिए ही कमरे से बाहर निकल गया, 

होगी वो मेरी बड़ी बहन, पर…तुम फिक्र मत करो संभव दिव्या को तो सबक सिखाना ही पड़ेगा, स्तुति ने सोफे पर बैठते हुए कहा,

नहीं स्तुति ये जो शिखर है ना उसे सबक सिखाना पड़ेगा, दिव्या अपने आप ही सीख जायेगी, संभव बोला और दोनों ज़ोर से हंसने लगे।


वीरा ये सब देख कर सहन नहीं कर पाई, और दिव्या के पास गई, क्या दिव्या दी इन दोनों को आप बोलती ही क्यों है, जब वो आपको कुछ समझते ही नहीं, मैं जानती हूं कि आप बिना सोचे समझे किसी से कुछ नहीं कहती, पर संभव और स्तुति को इतना क्यों सुनना, उनको निकालो आप घर से, वीरा ने दिव्या से कहा, 

देख वीरा मैं जानती हूं कि स्तुति कैसी है, संभव कैसा है, पर हैं तो अपने ही, बस इनके बर्ताव से मन दुःखी होता है,  संभव की अकड़ के कारण शिखर को भी बहुत परेशानी झेलनी पड़ी, आज़ जब बहुत ज्यादा हो गया तब मैंने कहा, वर्ना कभी कुछ नहीं कहती, दिव्या ने दुःखी मन से कहा।

दी… आप क्यूं दुःखी होती है, स्तुति तो हमारी बहन है, पर लगता है कि वो अपना फ़र्ज़ भूल ही गई है, उनको इतना अहंकार किस बात का ??

पैसा भी आपका, घर भी आपका, तो वो क्यूं…?

बात को बीच में ही ख़त्म करते हुए वीरा खिड़की के पास जाकर खड़ी हो गई, फिर बोली, अगर आज़ मॉं पापा होते तो इसकी इतनी हिम्मत नहीं होती, मुझे इस बात की तसल्ली है दी आज़ आप शिखर जीजू के लिए बोली, नहीं तो हमेशा तो उनको भी चुप करा देती थी, 

ऐसा नहीं है वीरा, तुम्हारी दी ने हमेशा मेरा साथ दिया है,  पीछे से आते हुए शिखर ने कहा।

शिखर को देखते ही दिव्या ने उससे माफ़ी मांगी, 

मुझे माफ़ कर दो शिखर, मेरी वजह से हर बार वो लोग तुम्हारा अपमान करते है, तुमको दुःखी किया मैंने, दिव्या ने कहा।

तुम कभी मेरा अपमान नहीं करती, तुमने कभी दुःखी नहीं किया मुझे, तुमसे तो मुझे हमेशा प्यार,और सम्मान पूरा मिलता है, जब भी तुम्हे किसी परेशानी में देखता हूं तो ख़ुद को रोक नहीं पाता, बस दुःख इस बात का हैं कि वो दुःख, तकलीफ, परेशानी, अपमान तुम्हारी छोटी बहन से तुम्हे मिलता है, बाकी मुझे तुमसे कभी कोई परेशानी नहीं है, बल्कि आज़ एक प्रस्ताव लाया हूं तुम्हारे लिए, अगर तुम राज़ी हो तो….. शिखर ने दिव्या के पास आकर कहा।

आप दोनों बात कीजिए, मैं चलती हूं, थोड़ा कॉलेज का काम है, ओके बाय दी, बाय जीजू, कहती हुई वीरा कमरे का दरवाज़ा बंद करते हुए चली गई।

शिखर मैं जानती हूं तुम्हारा प्रस्ताव क्या है, पर… बात को अधूरा ही छोड़कर दिव्या ने कहा

तुम्हे क्या परेशानी है मेरे प्रस्ताव को स्वीकार करने में, मैं हमेशा तुम्हे ख़ुश रखूंगा, ये तो तुम भी जानती हो कि तुम्हारे चेहरे पर मुस्कान भी मेरे आने से ही आती है, शिखर ने दिव्या का हाथ पकड़ कर कहा।


हां जानती हूं शिखर ,पर वीरा अभी छोटी है, कॉलेज जाना तो अभी शुरू ही किया है, और फिर बहुत सारे काम भी बाकी है, मैं तुम्हारे विवाह के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं कर सकती, दिव्या ने पीछे हटते हुए कहा।

मैं जानता हूं, तुम्हारे ऊपर वीरा की ज़िम्मेदारी है, हम साथ में मिलकर भी तो उसकी ज़िम्मेदारी का वहन् कर सकते है ना, जैसे तुम अभी जॉब करती हो, शादी के बाद भी करना, वीरा हमारे साथ ही रहेगी, उसका सारा ख़र्चा हम दोनों मिलकर उठाएंगे, शिखर ने दिव्या से कहा

वाह! वाह! यहॉं तो मेरी बहन शादी के सपने सज़ा रही है, और मेरी छोटी बहन को भी यहॉं से ले जाने की योजना बना रही है, ताली ठोकते हुए स्तुति अंदर आई, उसके साथ संभव भी था।

स्तुति मैं कोई सपने नहीं सज़ा रही थी, अगर मैं अपने और वीरा के बारे में कुछ सोच भी रही थी, तो तुमको क्या समस्या है, और वैसे भी तुम्हारे लिए तो मैंने सब कुछ किया है, पर तुमपर तो अहंकार का वो पर्दा चढ़ा हुआ है, जिससे ना तो तुम अपना अच्छा देख पा रही हो और ना ही अपने परिवार का, संभव को तो पहले से ही पैसों का बहुत अभिमान है, और उसकी दौलत देखकर तुमको भी अहंकार ने जकड़ लिया है, इसलिए तुम देख ही नहीं पा रही, वीरा और मुझे तुम्हारी वजह से कितना कुछ सहना पड़ रहा है, दिव्या ने चीख कर स्तुति से कहा।

हां है मेरे पास बहुत सारा पैसा, मुझे विरासत में मिला है, तो उसका घमंड क्यों ना करूं, और स्तुति मेरी पत्नी है, उसे भी  अब पैसों की कोई कमी नहीं है, पर दिव्या दीदी हम ऐसे बाहर वालो को अपने घर के अंदर की कोई बात ना तो बताते है, और ना ही घर के अंदर घुसने देते है, संभव ने शिखर की ओर इशारा करके दिव्या से कहा।

Mind your language संभव, दिव्या चिल्लाई। 

(दिव्या की आवाज़ सुनकर वीरा भी कमरे के बाहर आई, और संभव को देखकर समझ गई कि उसने कुछ गलत बोला है, तभी दीदी चिल्लाई है,)

सुनो संभव, पहली बात तो कि शिखर बाहर वाले नहीं, और दूसरी बात तुमने दोबारा इनका अपमान किया है, मैंने तुम्हे पहले भी चेताया था, तुम उनके लिए अपशब्द नहीं कह सकते, और जो इतना अपनी दौलत पर अकड़ रहे हो, वो भी उनके ही वजह से बच पाई है, तुम्हे तुम्हारे अभिमान में कुछ याद नहीं और मैं कभी भूलती नहीं, दिव्या ने चीख कर कहा।

स्तुति को भी याद आ गया कि बिसनेस में संभव को बहुत घाटा हुआ था, तब शिखर ने ही उसकी कंपनी की मदद की थी, और आज़ कंपनी बहुत ऊंचाइयों पर है, 


मुझे माफ़ कर दो दी, मैंने आपका और शिखर जी बहुत दिल दुखाया है, मैं संभव की तरफ़ से आप दोनों से माफ़ी मांगती हूं, हाथ जोड़ते हुए स्तुति बोली।

तभी संभव के पास ऑफिस से फ़ोन आता है, उसके कर्मचारी ने उसे बताया कि आज़ का टेंडर भी शिखर सर् की वजह हमे ही मिला है, 

ये सब सुनते ही संभव को उसकी गलती का अहसास हुआ, उसका घमंड चूर चूर होकर टूट गया, और हाथ जोड़ते हुए शिखर के पास आया, और बोला, मुझे माफ़ कर दो, मैं पैसों के अहम् में कुछ समझ ही नही पाया, अभी कर्मचारी ने बताया कि जो टेंडर वर्षों में कभी नहीं मिला वो आज़ आपकी वजह से मिल गया।

मैं कभी तुमसे नफ़रत नहीं करता, क्योंकि उस कंपनी के मालिक मेरे आर्दश है, मैं तो अनाथ था, उन्होंने ही मुझे पढ़ाया, लिखाया, और इस काबिल बनाया, कि जिन्दगी में कुछ अच्छा कर सकूं, और आज़ उन्हीं की कृपा से एक कंपनी का मालिक हूं, अपने बेटे जैसा प्यार दिया है उन्होंने मुझे, इसलिए जब तुम्हारी गलती थी, उन्हीं के कहने पर जेल भी चला गया, उन्हीं ने ही वेल कराई, और आज़ दिव्या से शादी का प्रस्ताव भी उनका ही है, शिखर ने संभव का हाथ पकड़ते हुए कहा, और उसे गले लगा लिया।

संभव और स्तुति दोनों की आंखों में पछतावे के आंसू थे, उनका अहंकार ना जाने कहा चला गया, 

तो फिर दिव्या दी की शादी शिखर जीजू से पक्की कहते हुए वीरा भी दिव्या के गले लग गई, 

स्तुति दी आपको कुछ नहीं कहना, वीरा मज़ाक के अंदाज में बोली, 

मैं दिव्या दी की शादी की सारी तैयारी करूंगी, और रोते हुए दिव्या और वीरा से गले लग गई।

स्वरचित 

निधि जैन

इंदौर मध्यप्रदेश

(असिस्टेंट प्रोफेसर)

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