आधुनिक युग – प्रीती सक्सेना 

कॉलेज का आखिरी दिन, एमबीए, कंप्लीट हुआ, पढ़ाई खत्म, पूरी तरह से फ्री, सब खुशी से

चहचहा, से रहे थे, हम पांच सहेलियों का प्लेसमेंट, मुंबई की अलग अलग कम्पनी में हुआ था, वहां भी मिलने की खुशी थी, दिन भर खूब मस्ती करके, घर पहुंची, मम्मी पापा, खुश भी थे, और मेरे जाने से दुखी भी थे, तीन महीने बाद ज्वाइन करना था, मम्मी ने मनपसंद खाना खिलाया, और, पूरी तरह से रिलेक्स होकर मैं सो गई।

सुबह काफी देर से नींद खुली, तो देखा मम्मी पापा आपस में कुछ गंभीर बाते कर रहे थे, मैं भी उनके पास बैठ गई, मम्मी ने चाय का कप, मुझे पकड़ाते हुए कहा, रिया, तीन महीने बाद, तुम्हें मुंबई जाना है, देखो बेटा, अगर तुम किसी को पसंद करती हो तो क्लियर बताओ, हमारा सोचना है, तुम्हारी शादी करें, लड़का मुंबई में ही जॉब में हो, जिससे हम तुम्हारी तरफ़ से पूरी तरह निश्चिंत हो जाएं, मैंने कहा, आप लोग देख लो, मैं किसी को पसंद नहीं करती, मुझे आपकी पसंद पर भरोसा है।

उसके बाद युद्ध स्तर पर लड़के देखे जाने लगे

आख़िर में एक परिवार, लड़का, सभी को पसन्द आया, और मैं शादी के बाद रजत के साथ मुंबई

आ गई, नया शहर, नई नौकरी, नया घर और रजत का खूबसूरत साथ, जिंदगी बहुत खुबसूरत हो गई थी।

मेरी सहेलियां भी अपने जॉब पर आ गईं, दूरी ज्यादा होने के कारण मिलना कम ही हो पाता था, सभी की शादी हो गई, ज्यादातर ने प्रेम विवाह किया था।

सबकी शादियां अटेंड की, सबके हसबैंड्स से भी मिले, कभी कभार मिलना, और खूब मस्ती करना, जिंदगी, शानदार रफ्तार से आगे बढ़ रही थी।


दो साल बाद मैं एक गोलू मोलू बेटे की मैं मां बनी, छोटा सा फंक्शन रखा, सभी सहेलियां आई, एक सहेली के साथ अजनबी को देखकर, मैंने धीरे से पूछ ही लिया, कौन है ये, वो निश्चिंतता के साथ बोली, मेरा नया वाला हसबैंड, मैं बुरी तरह चौंक गई, और पुराना वाला? अरे छोड़ न, वो बहुत बोरिंग था यार सो छोड़ दिया, मैं सोच में डूब गईं, कोई सामान था जो छोड़ दिया, खैर 

लंबा टाइम निकला, मैं दो बच्चों की मां बन चुकी थी, घर से ही काम करती थी, बहुत व्यस्त जिंदगी हो गई थी, अचानक एक सहेली ने इनवाइट किया तो बहुत अच्छा लगा, काफी दिनों से सबसे मिली भी नहीं थी सोचा इसी बहाने मिलना हो जाएगा, मुंबई की भागम भाग 

जिंदगी में समय निकालना वाकई बहुत मुश्किल है।

हम पार्टी में पहुंचे तो तीन सहेलियां मिली ताज्जुब ये कि तीनों के पार्टनर नए और काफ़ी कम उमर के, आंखो में प्रश्न देखकर उन्होंने मेरी जिज्ञासा शांत की कि ये नया वाला है।

उन तीनो नौजवानों के सामने मेरे पति ऐसे लग रहे, जैसे, दामादों के साथ ससुर खड़े हों, मुझे अपसेट होते देखकर पतिदेव धीरे से बोले, कहीं तुम भी मुझे छोड़ने का तो नहीं सोच रहीं हो, मैने इनकी बाहों में बाहें डालकर कहा, मैं इस ग्रुप को ही छोड़ रहीं हूं, हंसते हंसते हम अपने घोंसले में आ गए।

क्या हो रहा है लोगो को, पुराने कपड़ों की तरह 

पार्टनर्स बदल लेते हैं, भावनाओं, का कोई मोल नहीं रहा, लगता है दिल को भी बदलकर पत्थर के दिल लगा लिए हैं।

प्रीती सक्सेना     मौलिक

इंदौर

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