Moral stories in hindi : ” दीपक, माँजी ने तो कल हद ही कर दी थी।” आरती ने अपने पति दीपक से गुस्से में कहा तो उसने आश्चर्य से पूछा, ” ऐसा क्या कर दिया माँ ने जो तुम सुबह-सुबह इतनी बिफ़री हुई हो।”
” कल मैं उन्हें डाॅक्टर को दिखाकर वापस घर लौट रही थी, रास्ते में बहुत ट्रैफ़िक देखकर मैंने सोचा कि उनका हाथ पकड़कर सड़क पार करवा देती हूँ लेकिन जैसे ही मैंने उनका हाथ पकड़ा, उन्होंने तुरंत मेरा हाथ झटक दिया और बोली, ” मैं खुद चली जाऊँगी।” न जाने उन्हें किस बात की अकड़ थी? मैं तो उनकी मदद करना चाहती थी पर वे तो…” आरती का स्वर अभी भी गुस्से-से भरा हुआ था।
आरती की सास बहुत स्वाभिमानी महिला थीं।पति के देहांत के बाद बेटे-बहू ने उन्हें कई बार अपने साथ ले जाना चाहा लेकिन वो कहती,” अभी मेरे हाथ-पैर सलामत है, तुम पर बोझ क्यों बनूँ।” लेकिन पिछले साल गुसलखाने में उनका पैर फिसल गया था।बाल-बाल बच गई थीं।हड्डी तो नहीं टूटी लेकिन दाहिने पैर में मोच आ गई थी।बेटा आया, इलाज कराकर साथ ले जाना चाहा तो फिर से उन्होंने जाने से इंकार कर दिया।
दो महीने पहले उन्हें तेज बुखार हुआ तो फिर दीपक ने उनकी एक न सुनी और अपने संग ले आया।बेटे-बहू की सेवा से वह अच्छी हो गई थी।रूटीन चेकअप के लिये ही वो बहू के साथ डॉक्टर के क्लिनिक गईं थी।वहीं से लौट रही थी तो…।
” ओह.. तो ये बात है।” कहकर दीपक हा-हा करके हँसने लगा।आरती ने उसे आश्चर्य-से देखा तो उसने कहा, ” आरती, याद है जब तुमने माँ से कहा था कि मैं आपका खाना नहीं बनाऊँगी, आप अपना खाना खुद बना लीजिए तब वे अपनी रोटियाँ खुद सेंकने लगीं थीं और अपनी थाली भी धोने लगीं थीं।”
” हाँ, याद है तो…..।”
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” फिर तुमने उन्हें कहा कि अपने कपड़े खुद धो लिया कीजिए।”
” हाँ…तो…”
” बस तभी से माँ आत्मनिर्भर हो गईं थीं।तुम्हारा हाथ झटकना, उनकी अकड़ नहीं, उनका स्वाभिमान था।वे नहीं चाहती थीं कि अब तुम उनकी मदद करके उनपर एहसान जताओ, जैसाकि तुम्हारा स्वभाव है।मुझे तो अपनी माँ की खुद्दारी पर बहुत गर्व है।” फिर उसने धीरे-से कहा, “काश! मैं भी ऐसा ही कर पाता।”
” क्या मतलब?” आरती ने आँखें तरेरते हुए पूछा तो वह ‘ कुछ नहीं ‘ कहकर मुस्कुराते हुए ऑफ़िस जाने की तैयारी करने लगा।
विभा गुप्ता
स्वरचित