आशीर्वाद का छत्र – पुष्पा जोशी  : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : आशीर्वाद की चाह प्रायः सभी को होती है,अक्सर लोगों को कहते सुना है, आप आशीर्वाद दे, कि मेरा यह काम हो जाए, मुझे सफलता मिले।आशीर्वाद देने वाला कह भी देता है,तुम्हारी इच्छा पूरी हो। मगर…. क्या सभी फलीभूत होते है। सही आशीर्वाद तो वे हैं जो स्वत: दिल से नि:सृत होते हैं किसी के सेवा भाव, समर्पण, त्याग को देखकर। 

लाचार, बेसहारों की मदद करना और उनके आशीर्वाद बटोरने वाले बिरले होते हैं। अधिकांश लोगों की चाहत होती है, अच्छा पैसा हो, गाड़ी हो, बंगला हो । कोई इज्जत और मान सम्मान की चाहत रखते हैं। किसी को बड़ा पद और कुर्सी चाहिए । ऐसे लोग बहुत कम मिलते है जो अपने कर्मों से आशीर्वाद का छत्र अपने सिर पर बनाते है।

शालीन अपने परिवार में सबसे निराला था। चार भाइयों का परिवार था। घर के मुखिया पिता सागरमल  और तीन बड़े भाई राजा, जय और विजय धन के दास थे, पैसा कैसे कमाया जाय और कैसे बचाया जाए इसी उधेड़बुन में लगे रहते। एक पैसे का दान देना भी उन्हें पसन्द नहीं था,दया, सहानुभूति जैसे शब्द उनके शब्दकोश में थे ही नहीं।

दूसरी तरफ शालीन इन सबसे अलग प्रवृत्ति का था, वह अपनी माँ  मनोरमा जी की तरह दयालु था। माँ हमेशा अपने पति और बेटों से कहती थी, ‘इतनी दौलत कहाँ बांध कर ले जाओगे? खाली हाथ जाना है। कुछ पुण्य करो,वही साथ जाएगा।’ मगर उन पर कोई असर नहीं होता, वे सब चिकने घड़े थे। वह कहते- ‘माँ आप पता नहीं किस युग में जी रही हैं।

ये अर्थ युग है। जिसके पास धन होता है उसी की इज्जत होती है।’ मनोरमा जी हमेशा सबकी मदद के लिए तैयार रहती थी।धन पर तो सागर मलजी और उनके तीनों बेटो पेहरा था। शालीन को भी जब तक पढ़ाई कर रहा था, उसकी पढ़ाई और जरूरत के अनुसार पैसा मिलता था, क्योंकि सागरमल जी को डर था, कि शालीन दयालु है, वह जरूरत मंदो की मदद करने में पैसा खर्च कर देगा। मनोरमा जी तन और मन से जितनी बन सकती थी,

लोगों की मदद करती। उसे अपने पति और तीनों बेटों के व्यवहार को देखकर घुटन होती थी। एक शालीन ही था जिस पर माँ के गुणों का रंग चढ़ा था, वे उससे कहती थी- ‘बेटा असहाय और वृद्धों की सेवा कर उनकी दुआएँ और आशीर्वाद को बटोरना। जीवन में यही सच्ची कमाई है, इससे जीवन में सुकून मिलता है।’

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वह अपनी पढ़ाई के साथ सभी की मदद करता, माँ की सेवा करता, माँ उसे दिल से आशीर्वाद देती थी कि ‘बेटा तेरे ऊपर हमेशा लोगों के आशीर्वाद का छत्र हो और तेरी मदद के लिए लोगों के हाथ हमेशा तेरे साथ हो।’ माँ बहुत कमजोर हो गई थी और एक दिन सबका साथ छोड़कर अनन्त में विलीन हो गई।शालीन की तो जैसे दुनियाँ ही उजड़ गई थी।

उसका घर में मन नहीं लग रहा था। बी.ए. की परीक्षा उसने पास करली थी।माँ के  तेरहवीं‌ के कार्यक्रम में उसने अनाथ आश्रम के बच्चों को भोजन करवा दिया। इस बात को लेकर घर में हंगामा हो गया। पिताजी ने कहा – ‘वैसे भी तेरह दिनों मे बहुत खर्चा हो गया, तुझे क्या जरूरत थी अनाथ आश्रम के बच्चों को भोजन कराने की, पैसा बहुत मुश्किल से कमाना पड़ता है,

अगर इस तरह खर्चा करना है तो खुद कमाओं।’ बात शालीन के मन को लगी वह घर छोड़कर निकल गया। उसने विद्यालय में नौकरी कर ली। उसका व्यवहार बहुत अच्छा था, मंदिर के पुजारी जी ने उसे रहने के लिए एक कमरा दे दिया।वह गरीब बच्चों को बिना पैसे लिए पढ़ा देता था। उसका सादा जीवन था, और आवश्यकताऐं सीमित थी ।

दिल बहुत बड़ा था। वह हर जरूरत मंद की हर संभव मदद करता था।उसने अपना तन, मन, धन सबकी सेवा में लगा रखा था। मंदिर का  पूरा प्रांगण उसकी मेहनत से चमकने लगा था। मंदिर का एक छोटा सा बगीचा था।उसमें फूलों की बहार आ गई थी। सब उसे बहुत प्यार करते थे। सबकी दुआएँ और आशीर्वाद उसे मिल रहा था।

वह बहुत खुश था उसके जीवन में। ईश्वर की कृपा भी उस पर बरस रही थी। जीवन चल रहा था। जीवन की सांद्यबेला आ गई थी, मगर फिर भी वह सबकी मदद के लिए तत्पर रहता था। बच्चों को पढ़ाना भी उसने नहीं छोड़ा था। अपने जीवन के अनुभव के अनुसार वह सभी को जीवन जीने का सही मार्ग बताने की भी कोशिश करता। उसकी दी हुई शिक्षा से कई लोगों के जीवन शैली में सुधार आया।
शालीन का स्वास्थ कुछ दिनों से ठीक नहीं था, उम्र अपना असर दिखाती है,और एक दिन सर्दी की कपकपाती सुबह वो बच्चों  को पढ़ा रहा था, और उसे घबराहट होने लगी, वह अचेत हो गया, शरीर पूरा सुन्न पड़ गया था, कोई चेतना नहीं थी। उसकी मदद के लिए सब दौड़ पड़े, तुरन्त उसे अस्पताल ले गए कोई डॉक्टर से बात कर रहा था,

कोई दवाइयाँ लेने के लिए दौड़ा, तो कोई‌ फल लेकर आ गया। अनेक लोग उसके लिए ईश्वर से प्रार्थना कर रहै थे। उसके साथ सबकी दुआऐं थी और बड़ो के आशीर्वाद का छत्र उसके ऊपर था। दो दिन बाद उसने अपनी ऑंखें खोली तो उसने देखा उसके चारों तरफ उसे चाहने वालों की भीड़ है, सबकी दुआओं ने अपना असर दिखाया और वह पूर्ण रूप से स्वस्थ हो गया। उसे महसूस हो रहा था कि उसकी माँ सच्चे मन से जो आशीर्वाद उसे देती थी वह पूर्ण रूप से फलीभूत हुआ है। उसे अपनी माँ की याद आई और उसका मस्तक श्रद्धा से झुक गया।

प्रेषक-
पुष्पा जोशी
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित

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