आशीर्वाद – डाॅ संजु झा : Moral Stories in Hindi

मनुष्य का जीवन पल-पल परिवर्त्तनशील  है।कभी तो उसकी जिन्दगी में निराशा का गहन तिमिर छा जाता है तो कभी ईश्वर के आशीर्वाद स्वरुप उसकी झोली खुशियों से भर जाती है।आज विभा की वर्षों की ख्वाहिश पूरी हो गई है।उसके जीवन से निराशा के बादल छँट  चुके हैं।

आज के सूरज का उजियारा उसके जीवन में आशीर्वाद बनकर उतरा है।उसके सूूने मन-आँगन में एक बेटी की कमी थी,जो ईश्वर के आशीर्वाद से पूरी हो गई है।विभा अपनी सहेली नीतू से गले लगकर अपनी खुशी का इजहार कर रही है।

नीतू और विभा  का परिवार एक ही मकान  में किराए  में रहते थे।दोनों में गहरी दोस्ती थी।दोनों के पति काम पर चले जाते थे,उसके बाद  दोनों सहेलियाँ अपने घर के काम-काज निपटाकर कभी,बाजार, कभी पिक्चर साथ-साथ घूमतीं।घर में भी दोनों एक-दूसरे से अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति करतीं।संयोग से दोनों  सहेलियाँ एक ही समय में माँ बननेवाली थीं।दोनों अपने सुख-दुःख एक दूसरे के साथ साझा करतीं।नीतू को कोई भाई नहीं था,इस कारण उसकी इच्छा थी कि पहली संतान उसे लड़का ही हो।

बेटे के रूप में वह भाई की अधूरी इच्छा पूरी करना चाहती थी।इसके विपरीत विभा की इच्छा थी कि उसे पहली संतान लड़की हो,क्योंकि मायके में उसे माँ नहीं थी और न कोई बहन ही।केवल पिता और दो भाई थे।उसे हमेशा बहन की कमी महसूस होती।

सच ही कहा गया है कि कुदरत के सामने इंसान की अपनी इच्छा कहाँ चलती है!दोनों सहेलियों की इच्छा के विपरीत हुआ। नीतू ने एक प्यारी-सी बेटी को जन्म दिया और विभा ने एक प्यारे से बेटे को।दोनों सहेलियाँ थोड़ी मायूस अवश्य हुईं,परन्तु ईश्वर का आशीर्वाद समझकर दोनों अपने बच्चे पर ममत्व लुटातीं और मातृत्व के सुख-सागर में मग्न रहतीं।समय के साथ  दोनों के बच्चे तीन साल  के हो चुके थे।दोनों सहेलियाँ  एक बार फिर से गर्भवती हुईं।इस बार नीतू ने एक प्यारे से बेटे को जन्म दिया।

उसकी अधूरी ख्वाहिश पूरी हो गई  तथा एक बेटी और एक बेटा के साथ उसका परिवार पूर्ण हो गया।परन्तु विभा ने इस बार फिर  एक बेटे को जन्म दिया।उसका परिवार  लगातार दो बेटों को पाकर काफी खुश था,पर विभा बेटी न होने के कारण काफी दुखी थी।विभा के पति  विमल ने समझाते हुए कहा -” विभा!हमारे भाग्य में बेटी का आशीर्वाद नहीं है!अब हम संतोषकर परिवार-नियोजन करा लेते हैं।”

परन्तु विभा पति की बातों से भड़क उठी।उसने अपनी जिद्द पर अड़ते हुए कहा -” मुझे तो भगवान के आशीर्वाद-स्वरूप एक बेटी चाहिए ही!मैं इस बार नसबंदी नहीं कराऊँगी।”

पति विमल की भी इच्छा एक बेटी की थी,इस कारण पत्नी की भावनाओं का ख्याल रखते हुए कहा -” विभा!बस एक बार  और हम चांस ले सकते हैं,उसके बाद  मैं कुछ नहीं सुनुँगा।”

विभा ने पति को आश्वस्त करते हुए  कहा “ठीक है!”

कुछ समय बाद  जब विभा तीसरी बार  माँ बननेवाली थी,तो उसकी पूजा-पाठ, देवी-देवताओं की मनौतियाँ चरम पर पहुँच चुकीं थीं।वह रोज ईश्वर से आशीर्वाद माँगती हुई कहती -” हे ईश्वर!इस बार मेरी झोली में आशीर्वाद के रुप में एक बेटी जरुर डाल देना।!”

तीसरी बार  विभा को उम्मीद थी कि उसे बेटी ही होगी,परन्तु इस बार भी उसे बेटा ही हुआ। उसकी इच्छा अधूरी ही रह गई। जैसे ही नर्स ने कहा -” बधाई हो!बेटा हुआ  है।”

बेटा का नाम सुनते ही विभा बेहोश हो गई। जमाने की रीत है कि लगातार  बेटियों के जन्म से लोग दुखी होते हैं,परन्तु यहाँ तो विभा तीसरे बेटे के नाम से ही बेहोश हो गई। अब उसके पति विमल आगे  परिवार बढ़ाने के पक्ष में नहीं थे,इस कारण  मजबूरन विभा को नसबंदी कराने पड़ी।

विभा अपने नवजात बच्चे को लेकर घर आ गई और अपनी सहेली नीतू के गले लगकर फूट-फूटकर रोने लगी।नीतू ने उसे चुप कराते हुए कहा -” विभा!जरुरी नहीं है कि इंसान की प्रत्येक इच्छा पूरी ही हो।तुम्हारे तीन प्यारे बेटे हैं।तुम दुखी क्यों होती हो?”

विभा ने अपनी व्यथा का बयां करते हुए  नीतू से कहा कि लोग नहीं समझेंगे कि मेरी जिन्दगी में एक बेटी की अहमियत क्या है?मैं जब दस वर्ष की थी,तब मेरी माँ गुजर गई। उस समय मेरी छोटी बहन मात्र दो वर्ष की थी।दस वर्ष की उम्र में ही मैं अपनी छोटी बहन की माँ बन गई।

मेरी बहन मेरे जीने का सहारा बन गई। मैं हर पल उसे अपने सीने से चिपकाकर रखती।बहन की देखभाल  करते हुए मुझे अपनी पढ़ाई की भी सुधि नहीं रहती।पिता के डाँटने पर मैं स्कूल जाती।स्कूल से आकर  मेरी दुनियाँ मेरी बहन बन जाती।मुझे हर पल एहसास होता कि मेरी बहन को कभी माँ की कमी न महसूस  हो।देखते-देखते समय चक्र आगे बढ़ रहा था।मेरी बहन बारह वर्ष  की हो गई थी।

घर में दो भाई थे,परन्तु हम दोनों बहनें एक-दूसरे पर जान छिड़कतीं थीं।समय के कुचक्र को कौन समझ पाया है?मेरी जिन्दगी में एक बार भी काल का कुचक्र आ खड़ा हुआ। दो दिन के मामूली बुखार में  ही मेरी छोटी बहन ने दम तोड़ दिया।माँ की मौत से जितना मैं नहीं टूटी थी,उतना मैं बहन की मौत से टूट गई थी।

धीरे-धीरे मैं अपने मन को दिलासा देने लगी कि जब मुझे बेटी होगी,तब उसी में मैं बहन की झलक देखूँगी।अब तुम्हीं बताओ -“नीतू!मुझे माँ भी नहीं है,बहन भी नहीं है,अब बेटी भी नहीं!मैं किससे अपने दिल की बात करूँगी?अब बेटी को दुल्हन के रुप में देखने का मेरा सपना अधूरा ही रह गया।मैंने हमेशा ख्वाबों में देखा है कि  मेरा दामाद मेरा चरण-स्पर्श कर रहा है और मैं उसे आशीर्वाद दे रही हूँ।अब मैं उन सपनों का क्या करूँ?तुम ही बताओ?”

नीतू ने  विभा को अनेक प्रकार से सांत्वना देते हुए समझाया।विभा ने गुस्से में कई महीने तक पति से बातें नहीं की,क्योंकि नसबंदी कराने पर जोर उसी ने दिया था।ऐसा नहीं था कि उसके पति को उसकी भावनाओं की परवाह नहीं थी या उसे एक बेटी की चाह नहीं थी,परन्तु जो चीजें अपने वश में नहीं थी,उसके लिए भला वह क्या कर सकता था!वैसे भी पुरुष अपनी भावनाओं को व्यक्त नहीं कर पाते हैं।विमल भी उन्हीं में से एक था।

समय के साथ हर व्यक्ति परिस्थिति से समझौता कर लेता है।विभा भी समय के साथ अपने बच्चों की परवरिश में मशगूल थी।जब राखी का त्योहार आता,तब उसके बेटे पूछते -” माँ!हमलोग किससे राखी बँधवाऐंगे?हमारी कोई बहन क्यों नहीं है?”

बेटों की बात सुनकर विभा के सूखे जख्म हरे हो जाते। उसके दिल के कोने में एक बेटी की कसक हिलोरें लेने लगतीं।उसकी सहेली नीतू जब तक पास थी,तब तक उसकी बेटी ही उसके तीनों बेटे को राखी बाँधती थी।उसके दूर चले जाने से राखी के दिन उसके घर का माहौल गमगीन हो उठता,सभी के दिलों में मायूसी -सी छा जाती।

जिन्दगी  के खट्टे-मीठे पलों का साक्षी बन समय अपनी लय में गुजर रहा था।अब विभा ने भी अपने दिल को समझा लिया था,परन्तु बेटी न होने की कसक उसके दिल के कोने में जरुर दबी हुई थी।उसके पति विमल भी पत्नी की मनोदशा को बखूबी महसूस करते थे।लेकिन सच ही कहा गया है

कि किसी भी चीज को शिद्दत से चाहो,तो वह जरूर मिलती है।वही विभा के साथ हुआ।उसके पति विमल प्रतिदिन सुबह सैर के लिए निकलते थे।एक दिन  उन्होंने देखा कि पार्क की झाड़ियों से किसी नवजात के रोने की आवाजें आ रहीं थीं।

उस तरफ जाकर देखा कि सफेद कपड़ों में लिपटी एक बच्ची बेतहाशा रोएँ जा रही थी औरउसके आस-पास कुत्ते हमला करने को तैयार बैठे थे।उन्होंने कुत्ते को भगाकर बच्ची को जल्दी से गोद में उठा लिया।तबतक बहुत सारे लोग जुट चुके थे।सभी कहने लगें-” कैसा जमाना आ गया है?अपने पाप की निशानी को मरने के लिए फेंक दिया है।”

सभी लोग आधुनिक पीढ़ी को गाली देते हुए बचकर रास्ते से निकल गए। कोई भी बच्ची की जिम्मेदारी उठाने को तैयार  नहीं हुआ। 

विमल जी बच्ची को लेकर  थाने पहुँचे।इस बीच उन्होंने फोन पर अपनी पत्नी विभा को सारा हाल कह सुनाया और पूछा -“अगर संभव हुआ तो इस बच्ची को गोद लेने का प्रयास करुँ?”

अंधा क्या चाहे,दो आँख!विभा तो यही चाहती थी।उसने कहा -“विमल भगवान के घर देर है,परन्तु अंधेर नहीं।ईश्वर ने अपने आशीर्वाद के रुप  में हमें इस बच्ची से मिलवाया है।इसे हम अवश्य गोद लेंगे।”

थानेदार की सहमति से बच्ची को लेकर  विमलजी घर आ गए। कुछ समय बाद  बच्ची के गोद लेने की प्रक्रिया पूरी हो गई। उनके परिवार की वर्षों की साध पूरी हुई। इसी खुशी में विभा के घर में जश्न हो रहा है।उसके घर में दीपोत्सव-सा माहौल है। लक्ष्मी आने की खुशी में रोशनी से चारों तरफ घर जगमगा रहा है।

घर मेहमानों से खचाखच भरा हुआ है।हर तरफ फूलों की भीनी-भीनी खुशबू फैलकर उसके परिवार  को महका रही है।तीनों बेटे और विभा दम्पत्ति रह-रहकर बच्ची को एकटक निहारने लगते हैं।उनके चेहरे पर आत्मसंतुष्टि और आँखों में पूर्णत्व का भाव परिलक्षित होता है।

पार्टी में आईं महिलाएँ आपस में बातें करतीं हुईं कहतीं हैं-” लगता है कि विभा जी को तीसरे बेटे के बाद  बहुत देरी से बेटी हुई है?”

दूसरी महिला जबाव देते हुए कहती है-“अरे!यह विभा जी की अपनी  बच्ची नहीं है।इन्होंने इसे गोद लिया है।”

उन औरतों की बातें सुनकर विभा कहती है -” आपलोगों को बताते हुए  मुझे खुशी हो रही है कि एक बेटी के बिना मेरा मन-आँगन सूना था।आज ईश्वर के आशीर्वाद स्वरुप  हमारी बगिया में नन्हीं कली आई है और हमारा परिवार पूरा हो गया।”

विभा की बातें सुनकर सभी मेहमान  हर्षित होकर तालियाँ बजाते हैं और जाते समय परिवार  तथा बच्ची को सुखमय जीवन का आशीर्वाद देते हैं।उसी समय बाहर गाना बजता है -‘ मेरे घर आई एक नन्हीं परी’।

विभा के परिवार के होठों पर एक मुस्कराहट खेल जाती है।

समाप्त। 

लेखिका-डाॅ संजु झा(स्वरचित)

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