आरव – कान्ता नागी

जब से आरव ने जन्म लिया वह घर में उपेक्षित ही था, क्योंकि बचपन से ही वह दूसरे बच्चों की तरह चल-फिर नहीं सकता था।मीनू और उसके पापा अजीत ने उसका बहुत उपचार करवाया।फीजीयोथेरोपी कराने से अब वह वैशाखियों के सहारे ही चल सकता था।जब से उसकी बहन नीलू का जन्म हुआ, माता-पिता का सारा ध्यान बेटी की तरफ ही लगा रहता था।आरव को स्कूल जाने तो लगा था,पर उसका कोई संगी साथी नहीं था।जब वह घर में अकेला होता तो दूरदर्शन देखकर जूडो-कराटे का अभ्यास करता।शुरु में तो कष्ट होता पर उसने आत्म-रक्षा के गुर सीख लिए

वह प्रतिदिन कार से ही विद्यालय जाता पर मंगलवार छुट्टी के समय उसे पता चला कि कार खराब होने के कारण स्कूल बस से ही घर जाना होगा।वह स्कूल बस मे जाकर बैठ गया।उसने देखा कि सभी छात्राएं उतर चुकी थी केवल मीनाक्षी और आरव ही रह गयेथे।अचानक बस कंडक्टर मीनाक्षी के साथ असभ्यता करने लगा,उसने सोचा आरव तो

विकलांग है,वह कुछ नहीं कर पाएगा।आरव ने तुरंत सौ नं पर पहले फोन किया और वैशाखियों के सहारे उठा ओर कडंक्टर के गले में बांह डाल दी।वह मीनाक्षी को छोडं आरव की पकड़ से छूटने की कोशिश करने लगा पर वह सफल नहीं हुआ।बस चालक भी कंडक्टर के साथ मिला हुआ था।आरव ने अपनी वैशाखियां चालक के गले में डाल बस रोकने के लिए कहा।इतने में वहां पुलिस की जीप भी पहुंच गयी।चालक और कंडक्टर दोनों को बंदी बना लिया गया।इस प्रकार आरव ने मीनाक्षी की इज्जत बचाकर प्रमाणित कर दिया कि वह भी अपनी और दूसरों की रक्षा करने के काबिल है।

स्वरचित, अप्रकाशित

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