आखिर ये तिरस्कार कब तक! – इंदु विवेक : Moral Stories in Hindi

पचासों बार उसे श्रृंगार कर लड़के वालों के सामने ले जाया गया,हजारों रुपये स्वागत सत्कार में खर्च किये गए, तमाम आभगत

मगर परिणाम एक ही ,लड़की की लंबाई थोड़ी कम है हमारे बेटे के हिसाब से थोड़ी लंबी लड़की चाहिए। 

       सलौनी थक गई थी यह सब सुन सुन कर,उसका मन जोरों से चीख रहा था आखिर कब तक,ये तिरस्कार कब तक?सुबकते सुबकते,मन की घुटन को अंदर दबाए उसकी आंख लग गई।

         अगली सुबह मौसी ने जगाया ,उठो बेटी ,पुरानी बात भूल जाओ तुम्हारे लिए बहुत अच्छा रिश्ता आया है।सलौनी का मन तो हुआ कह दे ,नहीं करनी उसे कोई शादी,बार बार नहीं झेलना ये तिरस्कार का दंश,,,,,मगर उसके संस्कार उसे रोक रहे थे ऐसा बोलना बड़ो का अपमान और सबको दुख देने जैसा था।

हर रोज की तरह ही उसने प्रातः वंदन कर स्नान ध्यान किया और ईश्वर की पूजा की,मन ही मन प्रार्थना की ,उसकी वजह से उसके परिवार वालों को कभी दुःख न हो,और कॉलेज के लिए निकल गई।

             गरिमा जो सलौनी की पक्की सहेली थी ,जिसके साथ सलौनी अपना हर सुख दुख बांटती थी उसके साथ जैसे ही वो कॉलेज पहुँची अभिनव ने उसका मज़ाक उड़ाना शुरू कर दिया- ओ मेडम दुपट्टा झाड़ू लगा रहा है आपका,और जोर से हँस दिया।अभिनव और उसके दोस्त लगातार हंसे जा रहे थे।गरिमा ने सलौनी को संभाला और आगे बढ़ गई।

मगर सलौनी अंदर ही अंदर बहुत दुखी हो रही थी।उसने गरिमा से कहा -लोग सूरत से ज्यादा सीरत क्यों नहीं देखते,एक लड़की का मन क्यों नही पढ़ते,उसकी योग्यताएं क्यों नहीं देखते? गरिमा ने उसको प्यार से समझाया -अरे यार इतनी ही अक्ल होती तो सारी दुनिया अच्छी न हो जाती।फिर लेक्चर के बाद दोनों घर वापस आ गई।

टू स्टेट

              शाम को फिर वही तैयारियां शुरू हो गई, लज़ीज़ खाने की व्यवस्था में मां और मौसी व्यस्त थे,पिताजी और चाचा जी घर की सजावट में,,,।

लड़के वाले आते ही होंगे- बुआ ने आवाज लगाई,,,,सलौनी तैयार हुई या नहीं,,,देखो आज कोई गलती न हो ,,,,,सैंडल थोड़ी ऊंची एड़ी के पहनना।

उफ़्फ़ अंदर तक तोड़ गए ये शब्द,,,,सलौनी को,खुद को संभालते हुए सलौनी बाहर आई ,ठीक है बुआ ,सही लग रही हूं न?

          ठीक सात बजे लड़के वाले घर आ गए,घरवाले उनके स्वागत सत्कार में लग गए।

औपचारिक बातचीत हो जाने के बाद लड़के वालों ने कहा लड़की को बुलवाइए।

            सलौनी तुम बहुत अच्छी लग रही हो -गरिमा ने कहा ।वो लोग जो भी पूछे आत्मविश्वास से उत्तर देना बस,देखना इस बार तुम निराश नहीं होगी।सलौनी ने गरिमा को गले लगा लिया और मेहमान कक्ष की ओर

बढ़ी।

लीजिए आ गई हमारी बेटी सलौनी की मां ने कहा।

सलौनी बेटा आओ मेरे पास बैठो – लड़के की मां ने कहा।सलौनी उनके पास जा कर बैठ गई।

लड़के की माँ आगे बोली -बेटी रिश्ता लेकर आना तो बस रिवाज़ है वरना मैंने तो तुम्हें पहली ही नज़र में पसंद कर लिया था। जब मैंने तुम्हें अभिनव के कालेज में देखा था।

तुम अभिनव के साथ ही पढ़ती हो न।

घूंघट

              सलौनी को मानो ऐसा लगा जैसे अभी उसका मज़ाक बनने वाला हो उसने नज़र उठा के देखा सामने अभिनव बैठा था और धीरे धीरे मुस्कुरा रहा था।उसके मन मे आया वो स्वयं इस रिश्ते के लिए मना कर दे मगर फिर वही संस्कार आड़े आ गए।वो चुप रही।

अभिनव के पिता ने कहा ,,,,हमें अब लड़के लड़की को आपस में बात करने देना चाहिए,मैं बेटा और बेटी में फर्क नहीं करता दोनों को आपस में बात कर एक दूसरे को जानना चाहिए ।आखिर इन्ही को भविष्य में साथ रहना है। उनकी बात सुनकर सलौनी की मां ने उन दोनों को दूसरे कमरे में भेज दिया।

             सलौनी और अभिनव एक दूसरे कमरे में आये तो अभिनव बोला-देखो सलौनी मुझे माफ़ कर दो मैं जो कालेज में तुम्हारा मजाक उड़ा रहा दरअसल मैं देख रहा था तुम उस बात पर क्या प्रतिक्रिया देती हो,तुम्हें घर आकर देखने का प्लान हम कल ही बना चुके थे ,सोचा थोड़ा और परख लें।सलौनी एक दम शांत थी शायद वो समझ गई थी अभिनव वैसा लड़का नहीं है जैसा वो सोच रही थी। अभिनव ने आगे कहा-सलौनी मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं, जब पहली बार मैंने तुम्हें काउंसलिंग में देखा था तुम मुझे बहुत समझदार और अच्छी लगी,

और तुम्हारी योग्यता की गवाही तुम्हारे अंक पत्र ने दे दी मुझे।इसलिए मैंने ही अपनी माँ को तुम्हारे बारे में सब बता दिया।उन्होंने तुम्हें पहले कॉलेज में देखा और फिर हम रिश्ता ले कर तुम्हारे घर आये है।अगर तुमने मुझे आज की हरकत के लिए माफ़ कर दिया हो तो कुछ बोलो तुम भी।सलौनी मन ही मन मुस्कुरा उठी उसे स्वयं पर हंसी आ रही थी उसने अभिनव से “कुछ नहीं” बस इतना कहा।अभिनव उसकी आँखों मे झलकती खुशी देख समझ चुका था कि सलौनी ने उसे माफ कर दिया।

दोनों मेहमान कक्ष में वापस आ गए।अभिनव की मां ने सलौनी के हाथों में सोने के कंगन पहना दिए।सभी लोग बहुत खुश थे तभी अभिनव बोला चलिए आप सभी को इस प्रेम कहानी के एक मुख्य किरदार से मिलवा दूं,,,,सब देखने लगे तभी उसने गरिमा की तरफ इशारा किया,,,और कहा धन्यवाद गरिमा हम दोनों को मिलवाने और हमारी कहानी को पूरा करने के लिए।सलौनी गरिमा के लगे लग कर भाव विभोर हो उठी-तुमने मुझे आज तिरस्कृत होने से बचा लिया मेरी प्यारी सखी,,,,सभी लोग तालियां बजाते हुए आगे की बातें और रस्मों पर विचार करने लगे।

 

 लेखिका- इंदु विवेक

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