घूंघट

“देखो हम जा तो रहे है लेकिन ज्यादा दिन वहां नही रुकेंगे, और अगर रुकना भी हुआ तो मैं वापिस आ जाऊंगा तुम रुक जाना!” जियान अपनी पत्नी कामिनी से बोला.

“पर जी वहां इतने सारे मेहमान होंगे और आप भी तो घर के दामाद होंगे हो तो शादी के सारे रस्मो रिवाज़ में आपका होना तो जरूरी है ना, और फिर ऐसे में मेरे एक मात्र भाई निशान  की शादी है और ऐसे में घर का दामाद ही बेटी के साथ सामिल नही होगा कैसा लगेगा.”

“अरे मुझे गांव के रस्मों रिवाज़, तौर-तरीके नहीं पता. और वैसे भी गांव के मिट्टी से मुझे इलर्जी है… ऐसे में मैं कुछ गलती कर दूंगा या थोड़ा बहुत गलती से इंग्लिश में भी बोल दूंगा तो कोई मेरी बात नही समझेगा… और मुझे सबके सामने शर्मिंदा होना पड़ेगा, वैसे भी हमारी शादी के बाद मैं गांव गया ही नहीं हूं!”

कामिनी और जियान की लव मैरिज हुई थी. ऐसे में जियान शहर का था और अपनी पढ़ाई लिखाई पूरी कर वहीं पर एक नौकरी करने लगा. और नौकरी के दौरान ही उसे कामिनी से प्यार हो गया. और वह कामिनी से शादी करके शहर में ही रहने लगा. कामिनी एक गांव की लड़की थी. पढ़ाई उसने गांव के एक सरकारी स्कूल से की थी,

उसके गांव में उसका बड़ा भाई दीपेश, मां  और पिताजी थे. और भाई की शादी के कारण ही जियान को पत्नी के साथ उसके मायके गांव में जाना था. ऐसे में कामिनी अपने पति के साथ मायके जाने से डर रही थी. पर क्या करती घर की शादी थी जाना जरूरी था.

क्योंकि जो लड़की आठवी कक्षा के बाद शहर आ गई हो, वह निश्चय ही गांव के तौर तरीके भूल चुकी होगी. और ऐसा ही था की कामिनी को गांव के तौर तरीके नहीं आते थे लेकिन फिर भी घर में शादी थी तो उन्हें गांव में जाना पड़ा फिर भले ही कुछ दिनों के लिए ही सही.

गांव में उसकी होने वाली भाभी भार्गवी इतनी पढ़ी-लिखी नहीं थी. और वह पहले से ही गांव में पली-बढ़ी. पर भाई दीपेश शहर रहा था पर भार्गवी को बचपन से ही पसंद करता था. ऐसे में कामिनी और जियान शादी से कुछ दिन पहले  ही गांव पहुंच जाते है. फिर दीपेश अपनी बहन कामिनी के कमरे में आता है,

“क्या जीजाजी कैसे है… सब ठीक?”

“हां साले  साहब सब ठीक है, आपकी तो अब शादी होने वाली है… अब तो आप भी हलाल होने जा रहे है, बधाई साले  साहब!”



“क्या जीजाजी आप भी…” दीपेश शरमा जाता है और फिर कुछ ही दो दिनों के अंदर दीपेश और भार्गवी की शादी हो जाती है. शादी के बाद दोनों का रिसेप्शन गांव में ही रखते है. ऐसे में भार्गवी अपने ननंद कामिनी के कमरे में आती है,

“दीदी, ये देखिए ये सारे मेरे गहने है और यह साड़ियां कैसी लगी आपको?”

“बाप रे इतने भारी सेट और कितने चमकीले भी है. साथ में यह डार्क कलर की साड़ियां… यह भी चमकीली अरे तुम की शादी के बाद मेरे भाई के साथ शहर रहने वाली हो, और वहां यह सब इतना चमकीला कोई नहीं पहनता!”

“लेकिन दीदी यह सब तो मेरी भाभी के पसंद की है उन्होंने ही मेरे लिए पसंद की है पर अब तो शादी की सारी शॉपिंग हो गई अब मैं क्या करूं! आज तो मेरी मुंह दिखाई है… और दीपेश के सारे शहरी दोस्त भी आयेंगे!”

“इसे मुंह दिखाई नहीं रिसेप्शन कहते है… और चिंता मत करो

मुझे पता था ऐसा कुछ होगा इस लिए मैं तुम्हारे लिए खास शहर से गहने और साड़ियां लेकर आई हूं तुम वही रखना… और यह सब तुम एक समय देखकर दुकान वाले को वापस कर देना!”

“अरे दीदी सच में आप यहां आ गई मेरी जान में जान आ गई और आप कितनी अच्छी हो आप मेरे बारे में इतना सोच कर शहर से मेरे लिए इतना कुछ लेकर आई!”

कामिनी हर पल अपनी नई गांव की भाभी के साथ ही लगी रहती. घर के किसी फंक्शन में मैं वो शामिल नहीं होती और ना ही कोई काम भी नहीं करती. और पति जियान भी सबसे दूर दूर रहता, किसी से खास घुल मिल नही पाता.

 ऐसे में सास बोली,

“अरे कामिनी… नई बहु कहां है?

“मां बस वो कमरे में तैयार हो रही है… मैं उसके साथ हूं उसको स्टेज पर लेकर आ जाऊंगी आप चिंता मत करिए!”



“पर सुनो तो बहु खुद से तैयार हो लगी तुम जरा रसोई में आकर मेरी मदद करो!”

 “लेकिन मा मैं अभी बिजी हूं… आप तो देख रही हो कि मैं भाभी को शहर के तौर तरीके सीखा रही हूं… अब वैसे भी वह गांव की थोड़ी ना रही, वह तो अब शहर चली जाएगी तो उसे भी शहर के तौर तरीके पता होना जरूरी है ना वरना ससुराल में कैसे रह पाएगी!”

“हां तेरी बात भी ठीक है ठीक है चल कोई बात नहीं… वैसे भी तेरी मौसी और में सब सब संभाल लेंगे, तुझे तो रस्मो रिवाज का कुछ पता है नहीं तो वहां तेरा कोई काम भी नहीं!”

ऐसे में जब भाभी तैयार होती है तो कामिनी कमरे के अंदर जाते ही बोलती है,

“ये क्या ऐसे जूते पहनोगी… रुको मैं तुम्हे हील्स देती हूं वो पहन कर आओ, और हां संभाल कर गिर मत जाना”

फिर अपनी ननंद की बात मान कर नई भाभी कामिनी का दिया हुआ हील पहन लंबा सा घूंघट ओढ़े स्टेज की और जाती है तो वह गिरने ही वाली होती है की कामिनी संभाल लेती है,

“अरे अरे… संभाल कर, क्या हुआ तुम अभी गिर जाती… और ये अपना लंबा सा घूंघट उतार दो शहर में ये सब नहीं चलता”

“पर, वो माँ जी  ने ही कहा था और दीदी ये लो अब आपने दी हुई मेरी सेंडल भी टूट गई है. अब मैं क्या करूं! “अभी इन सब चीजों का टाइम नही है… कोई बात नहीं तू ले ले मेरे सैंडल पहन ले, मेरे भी नए है वहां उधर सारे मेहमान आ गए है…और ये क्या घुघंट क्यों उठा दिया, पहन लो गांव के बड़े बुजुर्ग क्या कहेंगे, नई बहु घूंघट में ही अच्छी लगती है. शहर जा कर तुझे जो करना है करना पर यहां थोड़ा संभल ले बहु!” सास बोली.

सास ने अपनी नई बहु का फिर से घूंघट ओढ़ा कर बाहर स्टेज पर ले गई. ये गांव का रिसेप्शन भी तो अलग ही था. ऐसे में दीपेश को अपने दोस्तों के सामने शर्मिंदा ना होना पड़े इस लिए अब वह खुद ही अपनी पत्नी का घूंघट उठा देता है. और फिर कामिनी अपनी मां के सामने देखती है जैसे वो बोल रही थी की आखिर मेरी ही बात चली ना!

ऐसे ही अब रिसेप्शन और शादी का सारा फंक्शन खतम हो जाता है. अब कामिनी अपने शहर लौट रही होती है ऐसे में नई भाभी अपनी ननद के गले लग कहती है,

“आपने मेरा बहुत साथ दिया दीदी… वैसे तो ननंद और भाभी का रिश्ता बहुत नाजुक और खट्टा मीठा होता है लेकिन मैं कुछ ही दिनों में दीपेश के साथ शहर चली आऊंगी तो आपसे एक शहर के तौर तरीके अच्छे से सीख लूंगी!”

और फिर कामिनी अपनी नई भाभी भार्गवी के गले लगती है और फिर शहर जाने के लिए निकल पड़ती है उधर जियान गाड़ी में बैठकर कहने लगा,

“हां बस अब गांव से पीछा छूटा… अब तो शहर अपने घर जाकर चैन की सांस लूंगा!”

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