“कल दही भल्ले, गाजर का हलवा , राजमाह , मिक्स वैज राईस बनेगें और हां धनिया पुदीने की इमली वाली चटनी के साथ साथ बच्चों के लिए वाईट सोस का पास्ता भी और कुल्फी बाजार से मंगवा लेगें”। “ और हां मीठे पीले चावल भी” बंसत पंचमी है, शिल्पा को जैसे एकदम से याद हो आया।
इसी प्रकार की और भी कई हिदायतें शिल्पा अपनी महरी रेखा को दे रही थी। कल बंसत के त्यौहार के साथ साथ बेटे असीम का जन्मदिन था तो तैयारियां जोरो शोरों से चल रही थी। परिधी यानि की असीम की पत्नी और दोनों बच्चे अमृत और वाणी भी बहुत खुश थे और अपने हाथों से डाईनिंग हाल की सजावट के लिए रंग बिरंगे कागजों से कटिंग कर रहे थे। असीम ने कहा भी कि ये सब तो बच्चों के जन्मदिन पर किया जाता है, मगर शिल्पा को यह सब बहुत पंसद था। असीम कितना भी बड़ा हो जाए, मगर मां के लिए तो वो अभी भी बच्चा था।
रात को जब सब सोने लगे तो असीम ने नोटिस किया कि परिधी के चेहरे पर खुशी के साथ साथ थोड़ी उदासी भी थी। बहुत पूछने पर वो बोली कि अपनी शादी को दस साल होने को आए। मैं बहुत खुश हूं, कोई कमी नहीं, सब विशेष दिन ,त्यौहार उत्साहपूर्वक खुशी खुशी मनाए जाते है,
मगर मैं कुछ अलग परिवेश से आई हूं, हमारे वहां खाने में कुछ और तरह के राजस्थानी व्यजनं बनते थे जैसे कि दाल बाटी चूरमा, फोगला, सांगरी , काचरी की सब्जी और लहसन , लाल मिर्च की तीखी चटनी साथ में पीला लड्डू चूरा और भी बहुत कुछ। मेरा मन वो सब बनाने खाने को बहुत करता है। ।’ तो मना किसने किया है, बनाया करो’ असीम उसे प्यार से अंक में भरता हुआ बोला। ‘ वो दरअसल मेरी पंसद नापंसद न कभी मांजी ने पूछी और न कभी मेरी कहने की हिम्मत हुई। बिना शिकायत किए उसने अपनी पंसद के कुछ और व्यजनं भी बताए।
यह कहते हुए परिधी ने जब असीम की और देखा तो वो नींद के आगोश में जा चुका था। परिधी की सास शिल्पा दिल और स्वभाव से बहुत अच्छी थी। घर में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी। उसकी बड़ी ननद गरिमा जब भी मायके आती तो सब उसका दिल से स्वागत करते और करते भी क्यूं ना,
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घर की इकलौती बेटी थी। जितने दिन वो रहती उसी की पंसद का खाना बनता। हर रोज सुबह कभी मूली कभी गोभी तो कभी आलू के परौठें बनते। गरिमा का घर का बनाया सफेद मक्खन बहुत भाता था तो उसके लिए ज्यादा दूध लिया जाता। चने, भटूरे के साथ इमली की मीठी चटनी और गाजर और मूंग दाल के हलवे से तो रसोई हरदम महकती।
घर में सब खाने पीने के शौकीन थे, सब बनता लेकिन परिधी को अपने मायके में बने व्यजनों की बहुत याद आती। वो चाह कर भी कुछ कह न पाती। यह सोचते सोचते उसकी आंख लग गई।
अगली शाम जब जन्मदिन मनाने के बाद खाना लगा तो परिधी की हैरानगी की सीमा न रही जब उसने डाईनिंग टेबल पर बाकी व्यजनों के साथ साथ दाल बाटी चूरमा भी सजा देखा। उसने सास की और देखा तो वो मुस्करा रही थी। सब मेहमानों के जाने के बाद शिल्पा ने परिधी का हाथ पकड़ते हुए प्यार से कहा,” मुझे माफ कर देना बहू, मैनें कभी तेरी पंसद की और ध्यान नहीं दिया,
तूं भी तो हक से कह सकती थी, ये घर जितना मेरा है उतना तेरा भी है, हम सबका है। तुम्हारे कमरे के पास से गुजरते हुए कल रात दरवाजा खुला होने से गल्ती से तुम्हारी आवाज मेरे कानों में पड़ गई थी। आज तो मैनें बाजार से मंगवाया मगर अगली बार से जो भी तुझे पंसद हो अपने हाथों से बनाना और हम सब को खिलाना, और हां सांगरी की सब्जी तो कल ही बना, मुझे भी बहुत पंसद है, सिरफ बाहर ही खाई है।
यह कह कर शिल्पा मुस्करा दी और परिधी बच्चों की तरह सास के गले लग गई।
विमला गुगलानी
चंडीगढ़