विधि का विधान – डॉ. पारुल अग्रवाल

आज शोभना बहुत खुश थी, बेटा मानव अमेरिका से पढ़ाई पूरी करके जो आ रहा था। जब से बेटे के आने का पता चला था तब से अपने हाथ पैरों का दर्द भूलकर इधर से उधर चक्करघिन्नी की तरह घूम रही थी। घर में तरह-तरह के पकवान बन रहे थे।खुश तो शोभना के पति आदित्य  भी बहुत थे पर शायद पिता होने के नाते अपने दिल में उमड़ते जज़्बातों को नियंत्रित किए हुए थे। किसी तरह से दोनों ने मानव के फ्लाइट आने तक का समय काटा। नियत समय पर मानव को एयरपोर्ट से लाने चल दिए। 

बाहर दोनों प्रतीक्षा की कतार में खड़े होकर अपने इकलौते बेटे का इंतज़ार करने लगे।जब प्रतीक्षा कर रहे थे तो उन्हें दूर से ही मानव आता हुआ दिखाई दे गया। मानव को देखते ही दोनों का मन खुशी से झूम उठा पर तभी उन्होंने देखा कि मानव के साथ एक प्यारी सी,उसी की उम्र की लड़की भी थी।

 उस लड़की को लेने शायद उसके घर से ड्राइवर आया था तो वो उसी तरफ मुड़ गई। उधर मानव भी शोभना और आदित्य के देखकर दौड़ते हुए उनके गले लग गया। मानव बारहवीं के बाद से ही अमेरिका चला गया था और आज प्रबंधन में शिक्षा लेकर आदित्य की कंपनी का कार्यभार संभालने में पूरी तरह सक्षम था। वैसे तो शोभना ने मानव के अंदर विदेश में रहने की वजह से कोई बदलाव महसूस नहीं किया था पर जब उसने उसके साथ जो लड़की थी उसके विषय में पूछा था तब उसने बताया था कि उसका नाम स्नेहा है और वो दोनों अमेरिका में साथ ही पढ़ते थे। 

उसके विषय में बताते हुए मानव की आंखों की चमक को शोभना ने अनुभव कर लिया था पर उस समय उसने इस विषय पर ज्यादा बात करना ही ठीक समझा। वैसे भी आदित्य और शोभना ने मानव को बहुत अच्छी आदतें और बिना झिझक अपनी बात रखने के संस्कारों के साथ पाला था।




दो-तीन दिन तो मानव के अपने सभी रिश्तेदारों और पुराने दोस्तों से मिलने में निकल गए पर जब सबका आना-जाना थोड़ा कम हुआ तब शोभना ने उसको बताया कि उसके लिए काफ़ी रिश्ते भी आ रहे हैं।अपनी शादी और रिश्तों की बात सुनकर मानव ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि वो और स्नेहा एक दूसरे से प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं। अगर आपको और पापा को कोई आपत्ति ना हो तो स्नेहा और उसके पापा को वो मिलने के लिए घर बुलाना चाहता है। शोभना और आदित्य काफ़ी खुले विचारों के थे उनको अपने बेटे के संस्कारों पर पूरा भरोसा था। 

उन्होंने मानव को स्नेहा और उसके पापा को रात्रिभोज के लिए आमंत्रित करने के लिए बोल दिया। बातों ही बातों में मानव ने बताया कि स्नेहा के पापा का नाम रविन्द्र शरण है और वो बहुत बड़े अधिकारी हैं । पहले तो रविन्द्र नाम सुनकर शोभना को थोड़ा झटका लगा क्योंकि इस नाम के साथ उसकी बहुत कटु यादें जुड़ी थी। आदित्य ने शोभना के चेहरे पर आते-जाते भावों को पढ़ लिया था। उन्होंने धीमे से कहा कि एक नाम के दो लोग भी हो सकते हैं ये सुनकर शोभना थोड़ी संयत हुई।  

अगले दिन स्नेहा अपने पापा से थोड़ा पहले आ गई और बताया कि पापा किसी आवश्यक मीटिंग के बाद ही आयेंगे। स्नेहा बहुत प्यारी थी और उसने ये कहकर कि वो शोभना की मदद करने के लिए भी जल्दी आई है सबका दिल जीत लिया। वैसे भी शोभना को जबसे पता चला था कि स्नेहा की मां जब वो बहुत छोटी थी एक दुर्घटना में चल बसी थी,तब से उस बिन मां की बच्ची के लिए उसके दिल में प्यार उमड़ आया था। स्नेहा तो सबसे ऐसे घुल-मिल गई थी कि वो सबको बहुत पहले से जानती है।




 बस अब स्नेहा के पापा का इंतज़ार हो रहा था। जैसे ही घंटी बजी और स्नेहा के पापा अंदर आए। स्नेहा ने जैसे ही अपने पापा रविन्द्र शरण को शोभना को मिलवाया वैसे ही दोनों एक दुसरे को देखकर बिल्कुल दंग रह गए। इतने समय बीतने पर भी दोनों के चेहरे पर कोई खास फ़र्क नहीं आया था। उन दोनों के हाव-भाव देखकर आदित्य भी समझ गए कि ये वो ही रविन्द्र शरण हैं जिसने शोभना और उसके परिवार को बहुत बड़ी चोट दी थी। मानव और स्नेहा के सामने स्थिति को सामान्य बनाते हुए आदित्य ने खुद से बातों की शुरुआत की। शोभना के लिए अब वहां एक-एक पल भारी हो रहा था। औपचारिकता वश और मानव के सामने किसी भी अप्रिय स्थिति से बचने के लिए वो वहां बैठी रही।उसकी खामोशी को मानव और स्नेहा दोनों ने महसूस किया पर उसने सरदर्द का बहाना बना दिया। थोड़ा बहुत खा पीकर स्नेहा के पापा भी कार्यालय से आवश्यक काम का संदेश आने का बहाना बनाकर स्नेहा को लेकर वहां से निकल गए। स्नेहा और मानव भी वातावरण की बोझिलता को थोड़ा समझ रहे थे पर आदित्य ने ये कहकर बात को संभाल लिया था कि हम जल्द ही दोबारा मिलेंगे और फिर आराम से दोनो की शादी का फैसला लेंगे। 

उन लोगों के वहां से जाते ही शोभना आराम करने का बहाना बनाकर अपने कक्ष में आ गई। मानव ने भी अपनी मां की खराब तबियत को देखकर कोई भी बात नहीं की। अपने कक्ष में आने के बाद शोभना के सामने अट्ठाईस साल पुराना मंजर आंखों के सामने तैरने लगा जब उसकी शादी की जोरों शोरों से तैयारी चल रही थी। शादी वाले दिन वो दुल्हन की वेशभूषा में सजी धजी अपने होने वाले दूल्हे रविंद्र का इंतज़ार कर रही थी। उसके माता-पिता और दोनों भाई बारात के स्वागत में जी जान से जुटे थे।




 दोनों तरफ के मेहमान आ गए थे पर दूल्हा नहीं पहुंचा था। शोभना के पिता कुछ समझते बुझते इससे पहले शोभना के होने वाले ससुर मतलब रविन्द्र के पिता ने कुछ जरूरी बात के लिए शोभना के पिता को बुलाया। पहले तो शोभना के पिता को लगा कि शायद देहज़ की मांग को लेकर कोई समय आ गई है पर बात कुछ और थी। असल में रविन्द्र का भारतीय विदेश सेवा में चयन हो गया था।इस प्रशासनिक पद पर चयन होने के कारण उसके अंदर का अभिमान उसको एक स्कूल के मास्टर की साधारण सी बेटी से शादी करने के लिए रोक रहा था। 

उसको लग रहा था कि अब उसका देश-विदेश के बड़े अधिकारियों के साथ उठना बैठना होगा तो इतनी साधारण सी लड़की के साथ शादी उसके मान सम्मान पर दांव लगा सकती है। परिणाम शादी के एक सप्ताह पहले ही आया था, तब से वो इस शादी को रोकने की कोशिश में था। उसने अपने पिताजी और घर के सभी बड़ों के सामने इस शादी से इंकार कर दिया था। 

उधर दूसरी तरफ मान-मर्यादा का हवाला देकर घर परिवार के बड़े बुजुर्ग ने उसकी बात को नकार दिया था। इस तरह की किसी बात को लड़की पक्ष तक भी नहीं पहुंचाया था।ये सब देखकर रविन्द्र मन ही मन अपनी ही शादी में ना पहुंचने का फैसला ले चुका था। बड़े योजनाबद्ध तरीके से अपने दोस्त के घर तैयार होने का बोल वो कहीं गायब हो गया था। उस समय मोबाइल भी नहीं होते थे जो उसका पता चलता। वो तो जब उसने अपने एक दोस्त से अपनी ही शादी में ना पहुंचने का संदेश भिजवाया तब सारी बात खुली। 

शादी में दूल्हे के गायब होने की चर्चा चारों तरफ आग की तरह फैल गई। शोभना के पिता तो जैसे एक ही पल में बरसों के बीमार लगने लगे। सब लोग तरह तरह की बातें बनाते हुए विवाह के मंडप से निकलने लगे। जहां अभी शादी की खुशियां छाई थी वहां मरघट की खामोशी थी। 




शोभना से अपने माता-पिता की हालत देखी नहीं गई उसने हिम्मत करके कहा कि अच्छा हुआ मां-बाबा जो भी हुआ शादी के फेरे पड़ने से पहले हो गया।अगर शादी के बाद रविन्द्र अपने पद के अभिमान में चूर होकर छोड़ देता या बात-बात पर मेरा और आप लोगों का अपमान करता तो क्या होता? आपकी बेटी साधारण अवश्य है पर आपके दिए संस्कारों से परिपूर्ण है।अभी वो ये सब कह ही रही थी कि आदित्य जो शादी में शोभना के पिता का आज्ञाकारी शिष्य होने के नाते उपस्थित था। 

वो आगे आकर शोभना के पिता से शोभना का हाथ मांग लेता है। पहले तो शोभना इसे आदित्य की अपने लिए सहानभूति समझती है पर फिर उसके बार-बार आग्रह करने तथा अपने पिता की तबियत देखते हुए वो शादी के लिए हां कर देती है। इस तरह उस मंडप में शोभना और आदित्य की शादी हो जाती है। शोभना से शादी के बाद आदित्य के जीवन में बहुत सकारात्मक परिवर्तन आते हैं वो दिल्ली जैसी जगह अपनी खुद की कंपनी का मालिक बनता है।शादी के कुछ समय बाद उनके यहां मानव के रूप में प्यारे से बेटे का जन्म होता है। 

शोभना आदित्य के साथ हर तरह से खुश थी,पर स्नेहा के पापा के रूप में रविन्द्र का और उसका ऐसे सामना हो जायेगा उसने कभी नहीं सोचा था।वो अभी ये सब सोच ही रही थी कि  आदित्य ने इसके पास आकर कहा कि मैं तुम्हारी दुविधा समझ सकता हूं और आशा करता हूं कि तुम दोनों बच्चों के साथ कोई अन्याय नहीं करोगी। आदित्य की बात सुनकर शोभना का चित्त थोड़ा शांत हुआ वो आंखें मूंदकर सोने की कोशिश करने लगी। सुबह सब कुछ सामान्य था। 




मानव ने शोभना के पास जाकर उसकी तबियत के विषय में पूछा और आज पहली बार आदित्य के साथ कंपनी में जाकर अपना कार्यभार संभालने के लिए आर्शीवाद लिया।

 पति और बेटे को काम पर विदा करने के पश्चात शोभना चाय का कप लेकर बैठी ही थी कि घंटी बजी।देखा तो दरवाज़े पर स्नेहा के पिता रविन्द्र शरण थे।पहले तो शोभना को लगा कि उनको खूब खरी खोटी सुनाए पर घर आए मेहमान का अपमान करने के उसके संस्कार नहीं थे। उसने बस इतना कहा कि आज इस साधारण सी स्कूल मास्टर की बेटी के घर कैसे आना हुआ? रविन्द्र ने शोभना से माफ़ी मांगते हुए बस इतना कहा कि वो अपने किए पर बहुत शर्मिंदा है। 

आज एक बेटी का पिता होकर वो शोभना के पिता के दर्द को अच्छी तरह अनुभव कर सकता है। वैसे भी उसके कर्मों की सज़ा उसे पहले ही मिल चुकी है। अपने पद के अभिमान में आकर और शोभना को ठुकराने के बाद उसकी शादी एक आईएएस की बेटी से हुईं। वो बहुत ही गुस्से वाली और रविंद्र और उसके परिवार को अपने सामने थोड़ा कम स्तर का समझती थी। हर समय किट्टी पार्टी और दोस्तों के बीच रहना उसकी आदत थी। इसी वजह से वो स्नेहा का भी ध्यान नहीं रखती थी।

एक दिन इसी बात पर उन दोनों का झगड़ा हुआ और वो गुस्से से गाड़ी लेकर निकल गई। उसकी गाड़ी की सामने से आते हुए ट्रक से भिड़ंत हुई और वो मौके पर ही चल बसी। तब से स्नेहा को उसने अकेले अपने बलबूते पर बड़ा किया।आज वो अपनी बेटी की खुशियां शोभना से मांगने आया है,वो उम्मीद करता है कि शोभना बहू के रूप में स्नेहा को अपनाकर उस बिन मां की बच्ची को मां का पूरा प्यार देगी।

शोभना ने ये कहकर कि हम सब तो परमात्मा की कठपुतली हैं शायद हमारी किस्मत मे यही लिखा था। वैसे भी जो मेरे साथ हुआ उसमें दोनों बच्चों का क्या दोष? मैं स्नेहा को आपने अभिमान की खातिर दूसरी शोभना नहीं बनने देना चाहती।मेरी तो ज़िंदगी में फिर भी आदित्य वरदान बनकर आ गए थे पर जरूरी नहीं सबके साथ ऐसा हो। वैसे भी विधाता ने अपना न्याय पूरा कर दिया।

 अब आप जाओ और सब भूलकर शादी की तैयारी में जुट जाओ। आज शोभना के इस कदम ने दोनों बच्चों को बिना कुछ बताए उनके जीवन को खुशियों से भर दिया था।

दोस्तों कैसी लगी मेरी कहानी? अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें। मेरा स्वयं का मानना है कि हम जो भी अच्छा-बुरा दूसरों के साथ करते हैं वो हमारे पास लौट कर अवश्य आता है क्योंकि यही विधि का विधान है।

#अभिमान 

डॉ. पारुल अग्रवाल,

नोएडा

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