पहचान –  मोना शुक्ला

उमा और गोरी एक छोटे से गांव में रहने वाली लड़कियां थी । दोनों एक ही कक्षा में पढ़ती थी । उमा एक  अंतर्मुखी और कम बोलने वाली लड़की थी ।जबकि गोरी एक बहिर्मुखी स्वभाव की और खुले मन  वाली लड़की थी ।दोनों एक ही कक्षा में पढ़ने के कारण मित्र थी ।12वीं कक्षा तक का उनका अध्ययन गांव में रहकर पूरा हुआ अब आगे के स्तर की  पढ़ाई के लिए एवं सरकारी नौकरी की तैयारी के लिए बाहर कोचिंग करना आवश्यक था ,

गोरी चुकि बहिर्मुखी स्वभाव की लड़की थी ,लेकिन बाहर जाने में उसे थोड़ा संकोच होता था । उसके घर वाले सोच रहे थे कि अब आगे क्या होगा ,तभी एक दिन उमा ने कहा कि उसकी सगी बुआ जी जयपुर रहती हैं अपन दोनों वही कमरा लेकर कोचिंग कर लेंगे । गोरी तो वैसे भी खुले मन  की होने के  कारण उसने तुरंत हां कर दिया और दोनों के माता-पिता उनको उमा की बुआ के आसपास एक कमरा दिला कर आ गए 

।उमा और गौरी दोनों साथ ही रहती और कोचिंग जाती दोनों का कोचिंग करना जारी था लेकिन अक्सर उमा उसकी बुआ के यहां चली जाती थी ,ऐसे में गोरी अकेली रह जाती थी एक दिन तो उमा रात में भी उसकी बुआ जी के यहां ही सो गई , क्योंकि उसकी बुआ के भी उसके जैसी बेटियां थी ऐसे में गोरी को अच्छा नहीं लगा पर अब क्या करें फीस जमा करवाने के बाद वह कोचिंग छोड़ भी नहीं सकती थी अत उसने सोचा ठीक है  ,अब मुझे तो पढ़ने से मतलब है यही क्रम जारी था 

 । एक दिन केंद्रीय विद्यालय चित्तौड़ में वैकेंसी निकली केंद्रीय विद्यालय में इंटरव्यू के माध्यम से ही शिक्षक का चयन करना था ।  गौरी ने उमा से  कहा कि अपन दोनों साथ इंटरव्यू देने चलते हैं  लेकिन उमा ने गोरी को कहा कि मुझे तो अभी इंटरव्यू नहीं देना है तू देख ले अगर तुझे जाना हो तो  

ऐसा सुनकर गोरी को भी लगा कि जब यह नहीं दे रही है तो अभी मैं भी क्या करूं क्योंकि वह परमानेंट नौकरी हेतु नहीं था  वह संविदा  पर अध्यापक लगा रहे थे 




। गोरी का इंटरव्यू देने का मात्र यही उद्देश्य था कि उसे अनुभव होगा जो आगे काम आएगा  ,पर उमा के मना करने से उसने भी सोचा कि रहने देते हैं फिर आगे देखेंगे  ।अब वह दिन आ गया जिस दिन इंटरव्यू होना था चित्तौड़गढ़ उदयपुर से 50  किलोमीटर दूर था  ,गोरी का मन डगमगा रहा था क्या करें ? स्कूल भी अच्छा है केंद्रीय विद्यालय में पढ़ाने का अनुभव बहुत काम आएगा  इंटरव्यू देने जाए कि नहीं ? जाए ,जाए तो अकेले कैसे जाए   ? गोरी ने रात में फिर उमा को कहा कि चलते हैं अपन चले ना साथ में … पर उमा ने  साफ मना कर दिया और उस रात उमा अपनी बुआ के यहां सोने चली गई l गोरी रात भर यही सोचती रही क्या करें ?तभी उसने तय किया कि वह हिम्मत करके अकेली बस से चित्तौड़गढ़ इंटरव्यू देने जरूर जाएगी ।

 सुबह प्रातः अकेली ऑटो करके बस स्टैंड पहुंचकर बस में बैठकर जैसे तैसे गोरी केंद्रीय विद्यालय में इंटरव्यू देने गई  ,जैसे ही वह इंटरव्यू की लाइन में लग रही थी । उसके पेर के नीचे से जमीन खिसक गई उसने देखा कि उमा अपनी बुआ की लड़की के साथ इंटरव्यू के लाइन में खड़ी हुई थी उमा भी गोरी को देख चुकी थी, उमा सकपका गई ,तभी  गोरी ने  उससे पूछा कि तुमने  तो मना किया था फिर यहां कैसे  ? यह देखते ही उमा गिरगिट की तरह रंग बदलने लगी गो…गो… गोरी अरे  मैं तो नहीं आ रही थी पर शिल्पा ( बुआ की बेटी)  नहीं मानी मुझे रात को चित्तौड़ ले आई चित्तौड़ में इसके चाचा जी रहते हैं और हम वही रहे  ,तुझे यह बताने वाली थी पर इंटरव्यू की तैयारी करने के कारण मैं तुझे बताना भूल गई  ,उसका गिरगिट की तरह रंग बदलना जारी था पर गोरी अब सारा माजरा समझ चुकी थी  l जैसे तैसे दोनों का इंटरव्यू हुआ लेकिन गोरी बहुत अच्छी तरह से उमा को पहचान चुकी थी और उसने तय कर लिया था कि गिरगिट की तरह रंग बदलने वाले मित्रों से सदैव दूर रहना चाहिए l आज उसने जिंदगी से एक पाठ सीख लिया था l

 मोना शुक्ला झालावाड़ राजस्थान

#गिरगिट की तरह रंग बदलना

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