ये क्या मम्मी ये आप अपना बैग और सामान लेकर कहां जा रही है ,मैं जा रही हूं बेटा यहां से , मगर कहां जा रही है, वृद्धाश्रम, वृद्धाश्रम पर क्यों ?अब बाकी की जिंदगी में वही गुजार लूंगी ।अब यहां रहकर बहू का अपमान और तेरा सब नजरंदाज करना मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा है ।इतने दिनों तक बेटा मैं सब तेरी ममता की खातिर सहती रही , सोचा था चलों बहू तो पराई है लेकिन बेटा तो मुझे समझेगा लेकिन नहीं मैंने गलत उम्मीदें लगा ली थी।
बहू के साथ साथ अब तू भी मेरा अपमान कर देता है । मेरी परेशानी मेरी उम्र का किसी को ख्याल नहीं है । मैंने सारी जिंदगी सबका किया है , किसी ने मेरा किया नहीं है इज्जत और मान सम्मान की रोटी खानी है अपमान और तिरस्कार न किसी का किया है और न मुझे अपना अपमान बर्दाश्त है । लेकिन अब मेरी भी उम्र हो चली है अब मुझसे इतना सारा काम नहीं होता ।अब मेरा भी मन करता है कि कोई मुझे भी दो रोटी बना कर दें दे , कभी एक कप चाय बना कर दें दे ।
अब मेरा भी बुढ़ापा आ गया है अब मैं थक गई हूं ।यही सोचकर गांव से शहर आई थी कि अब बाकी की जिंदगी बहू बेटे के पास आराम से कटेगी लेकिन नहीं। यहां तो मुझे नौकरानी बना दिया तुम लोगों ने।अब मैं यहां से जा रही हूं कम से कम वहां बैठे बैठे दो रोटी तो मिल ही जाएगी बदले में यदि थोड़ा बहुत कुछ करना पड़ा तो कर लूंगी । लेकिन यहां करने के बाद भी तिरस्कार ,ये तो न होगा वहां।और हां बेटा जो घर और जमीन बेचा है उसमें से कुछ पैसे मुझे दे दो ।मैं जा रही हूं अब तुम्हें और बहू को परेशान नहीं करूंगी।
दीपेश सुदर्शन और गायत्री जीका इकलौता बेटा था। सुदर्शन जी गांव में रहते थे उनके दो बड़े भाई और थे सबका परिवार वहीं गांव में रहता था सबकी खेती बाड़ी थी । मकान सबके अलग-अलग थे लेकिन आपस में भाइयों में प्यार मोहब्बत खूब था । सुदर्शन जी अच्छे मेहनती इंसान थे और स्वभाव से भी बहुत ही मृदुल और उदार थे । किसी के दुख तकलीफ़ में हमेशा खड़े रहते थे । गायत्री जी भी सुघड़ और मेहनती महिला थी । गांव में अच्छा खासा नाम था उनका ।
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सुदर्शन जी के अपने बड़े भाई के परिवार से भतीजे भतीजी से खूब पटरी बैठती थी । सबसे बड़े भाई अभी कुछ समय पहले नहीं रहे थे तो सब परिवार मिलकर साथ खड़े रहे । बड़ी हंसी खुशी का माहौल था।बस घर सबके अलग-अलग थे। दीपेश पढ़ना चाहता था गांव में रहकर दिपेश खेती बाड़ी नहीं करना चाहता था । पढ़ाई में दीपेश होशियार भी था।इस बार हाई स्कूल की परीक्षा बड़े अच्छे नंबरों से दिपेश ने पास की थी।आज सुदर्शन जी ने अपने बड़े भाई सुंदर जी से कहा भाई दीपेश आगे पढ़ाई करके इंजिनियर बनना चाहता है।उसका गांव में रहकर खेती बाड़ी करने का मन नहीं है । सुंदर जी ने कही तो इसमें हर्ज ही क्या है अब सभी बच्चे एक से नहीं होते वो पढ़-लिख कर कुछ बनना चाहता है तो अच्छी बात है पढ़ने दो उसे।
हाई स्कूल के बाद दिपेश ने कोचिंग क्लास ज्वाइन कर लिया और आगे की काम्पटिशन की तैयारी करने लगा।खूब मेहनत की और दीपेश सफल भी हुआ। अच्छे इंजीनियरिंग कॉलेज में उसका दाखिला हो गया। चार साल की पढ़ाई के बाद उसका अच्छी कम्पनी में प्लेसमेंट भी हो गया।और अब दीपेश नौकरी कर रहा था।अब दीपेश के पिता जी और मां गायत्री जी ब बहुत खुश थे सबसे कहते फिरते थे कि बेटा इंजिनियर बन गया है बहुत बड़ी कंपनी में नौकरी करता है।
दीपेश के साथ ही कंपनी में किसी प्रोजेक्ट में दीपेश और वर्षा दोनों साथ साथ काम करते थे ।काम करते करते कब दोनों में नजदीकियां बढ़ गई पता ही न चला।इधर गायत्री जी सुदर्शन जी से कह रही थी क्यों न अब बेटे की शादी कर दी जाए । वहां अकेले बड़े शहर में ख़ाने पीने को परेशान होता होगा । हां तुम सही कह रही हो तो क्या लड़की देखी जाए गायत्री जी बोली हां देखना तो पड़ेगा ।अरे मेरी बहन की ननद की बेटी है बीए कर रही है देखने सुनने में भी अच्छी है बात चलाए ।
लेकिन बेटा अब इंजीनियर है दिल्ली में नौकरी करता है ऐसी वैसी लड़की नहीं चलेगी अच्छी पढ़ी लिखी लड़की चाहिए । दोनों बात ही कर रहे थे कि फोन की घंटी बज उठी दीपेश का फोन था ।हाल चाल पूछने के बाद कुछ औपचारिक बातें करने के बाद दीपेश ने कहा पापा हम शादी कर रहे हैं लड़की मेरे आफिस में ही साथ काम करती है और शादी यही पर होगी वहां गांव में नहीं तारीख तय होने पर आपको खबर कर देंगे । इतना कहकर दीपेश ने फोन काट दिया। दोनों पति-पत्नी एक दूसरे का मुंह देखते रह गए।
और फिर शादी के डेट दीपेश और वर्षा के मम्मी पापा ने ही तय कर ली ।वहीं पर फिर दीपेश ने अपने मम्मी पापा को बुला लिया ।और शादी हो गई कुछ अच्छा सा नहीं लगा सुदर्शन जी को लेकिन चुप रहे और शादी के दूसरे दिन वापस गांव लौट आए ।
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शादी से आने के बाद सुदर्शन जी बड़े चुप चुप से रहने लगे गायत्री जी ने पूछा भी कि क्या बात है आप जब से शादी से लौटकर आए हैं बड़े चुप से है । बेटा अब अपना नहीं रहा गायत्री बड़ी चिंता होने लगी है ।अरे आप तो बेकार में परेशान हो रहे हैं अब वो बड़े शहर में रहता है वहां के तौर तरीके से तो रहना ही पड़ेगा न आप बेकार में चिंता न करें । लेकिन सुदर्शन जी ने मन से लगा लिया बेटे के रवैए को और एक रात सोए तो फिर सुबह उठे ही नहीं।
इधर सुदर्शन जी के एक भाई तो पहले ही नहीं रहे थे दूसरे भी नहीं रहें ।भाई की बेटियां ससुराल की हो गई और दो बेटे थे तो वो भी अब अलग अलग हो गए ।गांव अब गांव जैसा न रह गया था । जबतक घर के बड़े थे तब-तक तो सब ठीक था लेकिन बड़ों के जाते ही सब परिवार बिखर गया। सुदर्शन जी के जाने से गायत्री जी भी अब अकेले रह गई।कुछ समय तो गायत्री जी अकेली रही फिर एक दिन पानी में पैर फिसला और वो गिर पड़ी फैक्चर हो गया ।
दीपेश घर आया मां को प्लास्टर चढ़वाया । बेटा बहू ंनहींआई मां वर्षा गांव में नहीं आना चाहती और अब तुम भी ये गांव की खेती बाड़ी और ये मकान बेचो और मेरे साथ दिल्ली चलो अब मैं नौकरी से छुट्टी लेकर बार बार घर नहीं आ सकता । अच्छा बेटा सारी उम्र तो यही गांव में कट गई अब शहर जाकर क्या करूंगी । लेकिन मुझे वहां फ्लैट खरीदना है और यहां का मकान बेचकर मैं शहर में फ्लैट ले लूंगा और तुम भी अब वही रहोगी ।
प्लास्टर ठीक होने पर दीपेश मां को वहीं अपने साथ ले गया । गायत्री को देखते ही वर्षा की त्योरियां चढ़ गई फिर अगले ही पल शांत हो गई कि चलो कोई नहीं काम के लिए नौकरानी मिल गई। वर्षा और दीपेश तो सुबह-सुबह आफिस चले जाते और घर का सारा काम गायत्री जी पर छोड़ दिया ।अब गायत्री जी सारा दिन काम पर लगी रहती और कोई काम बकाया रह जाता तो वर्षा दस बातें सुनातीं। क्या करती रहती है दिनभर घर का थोड़ा सा काम नहीं होता है
बस बैठे बैठे कामचोरी करती रहती है । दीपेश भी आफिस से आते ही कहता मां ज़रा एक गिलास पानी लाना और हमारे और वर्षा के लिए चाय भी बना कर ले आओ ।और जल्दी से खाना बना दो बहुत भूख लगी है।बस काम के लिए ही दीपेश और वर्षा गायत्री जी से बात करते वैसे कभी वर्षा को तो छोड़ दीपेश भी मां का हालचाल नहीं पूछता था।
यही रोज का काम हो गया था ।आज भी आफिस से आकर दीपेश मां को चाय के लिए आवाज देने लगा लेकिन मां ने कोई जवाब नही दिया ।हाथ मुंह धोकर दीपेश बड़ी जोर से चिल्लाया क्या कर रही हो मां क्या सुनाई नहीं दे रहा है क्या और गुस्से में उठकर जब मां के पास गया तो मां लेटी थी ।
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गायत्री जी बोली बेटा मैं कर तो देती लेकिन मुझसे उठा नहीं जा रहा है मुझे बड़ी तेज बुखार है। तभी वर्षा वहां आ गई और बोली सब काम न करने के बहाने है ।अब क्या होगा कौन बनाएगा रोटियां । दीपेश मुझसे तो न बन पाएगा बाजार से कुछ आर्डर कर दो । बाजार से खाना आ गया और दीपेश और वर्षा ने खा लिया गायत्री जी से किसी ने पूछा भी नहीं ।वो बेचारी भूखी ही पड़ी रही।
गायत्री जी भूखी पड़ी पड़ी सोचती रही और आंसू बहाती रही कि बहू तो बहू बेटा भी ऐसा निकल गया जिसको इतने प्यार से पाला पोसा । यहां आंकर तो नौकरों से भी बद्तर जिंदगी हो गई है।अब तो यहां रहना बेकार है पता नहीं कितनी जिंदगी जीनी है इतना तिरस्कार सहकर तो न जी पाऊंगी।
दूसरे दिन दीपेश और वर्षा के आफिस चले जाने पर गायत्री जी फ्लैट से नीचे आई और वहां बैठे गार्ड से वृद्धाश्रम का पता पूछा और दूसरे दिन जाने को तैयार हो गई। अपना सामान पकड़े हुए गायत्री जी ने कहा दीपेश बेटा जो मकान और खेत बेचे हैं उनमें से कुछ पैसे हमें दो हम यहां नहीं रहेंगे हम जा रहे हैं । बेटे का मुंह देखकर सबकुछ बर्दाश्त कर रही थी लेकिन अब नहीं । गांव का मकान नं बेचा होता तो मैं गांव में ही रह लेती तुम लोगों के पास कभी न आती ।
दीपेश ने पांच पांच सौ के चार नोट गायत्री जी के हाथों में रख दिया गायत्री जी उन पैसों को कसकर मुट्ठी में भींच लिया और पल्लू से गिरते आंसुओं को पोंछती हुई निकल गई । नीचे गार्ड ने कहा चलिए माता जी मैं आपको छोड़ आता हूं ।और गायत्री जी आज एक नए आशियाने की तरफ बढ़ती जा रही थी।
मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश
21 अप्रैल