दुबली हथेलियां – लतिका श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

आंटी जी आंटी जी आपका मोबाइल … भीनी आवाज पर मैं तुरंत पलटी तो सामने एक दुबली सी लड़की खड़ी थी जिसकी दुबली हथेलियां मेरा भारी मोबाइल संभाल कर पकड़ी हुईं थीं।

ये कहां था तुम्हे कैसे मिला मैने मोबाइल पर झपटते हुए पूछा और अपना बड़ा सा अस्त व्यस्त पर्स खोलकर झांकने लगी।

आंटी वो जब आप सब्जी वाले को रूपए देने के लिए पर्स खोल रही थीं तभी डायरी के साथ नीचे जमीन पर गिर गया था.. भीड़ और जल्दबाजी के कारण आपका ध्यान नहीं गया था ।मैं दूर आपके पीछे खड़ी देख रही थी और मैने आपका मोबाइल उठा लिया था।आपको आवाज दे रही थी पर ….

ओह थैंक्यू बेटा थैंक्यू सो मच … अपनी घोर लापरवाही और उस छोटी लड़की की मासूम ईमानदारी से मेरी बोलती बंद हो गई थी।

अगर समय पर यह मोबाइल नहीं उठाती या अगर इसकी नीयत खराब हो जाती चोरी करके भाग जाती तो मेरा क्या होता।सब कुछ तो मोबाइल पर ही है!!

आंटी देख लीजिए टूटा तो नहीं है काम कर रहा है ना.. वह अभी भी

चिंतित खड़ी थी।

स्नेह का बंधन – खुशी : Moral Stories in Hindi

नहीं बेटा सब ठीक है तुम जाओ… अच्छा सुनो ये कुछ रुपए रख लो … मैंने उसे अभी भी वहीं खड़ा देख उसकी बालसुलभ लालसा को तृप्त करने की कोशिश की।

नहीं नहीं आंटी मै रुपए नहीं लूंगी उसने धवल दंत पंक्ति के बीच अपनी गुलाबी नन्हीं जीभ दबाते हुए संकोच से कहा तो मुझे हंसी आ गई।

क्यों नहीं लोगी कुछ खरीद लेना मैंने फिर दबाव दिया।

मां डांटेगी चुपके से पीछे बैठी मां की तरफ इशारा करते हुए वह हौले से मुस्कुराई।

उसके इशारे का पीछा करते हुए मेरी नजरों ने दूर बैठी उसकी खिचड़ीबालो वाली स्थूलकाय मां को देखा जो सब्जी वालों के बीच अपनी छोटी सी सब्जी की दुकान सजाए बैठी थी।उसकी नजरें बेटी पर जैसे चिपकी हुईं थीं।

मुझे अपनी तरफ देखता पाकर उसने तत्क्षण दोनों हाथ जोड़ कर स्नेह अभिवादन किया।

पता नहीं उसके अभिवादन में ऐसा कुछ था कि उससे मिलने बात करने को मेरे कदम स्वत: ही उसकी ओर बढ़ गए।पीछे पीछे  लड़की भी आने लगी आप मेरी मां से मिलने चल रही हैं चलिए चलिए बहुत उत्साहित हो उठी वह।

दीदीजी आपका फोन सही है ना!! उसकी मां ने अपनी बेटी की तरफ देखते हुए सशंकित स्वर में मुझसे पूछा।

हां हां एकदम सही है बहुत संभाल कर तुम्हारी बेटी ने मुझको सौंपा है … इसीलिए तो मैं इसे इनाम दे रही थी लेकिन यह मना कर रही है तुम इसे समझा दो ये तो इनाम के रुपए है रखने दो…..कहते कहते मैं रुक गई।ध्यान से उसका चेहरा देखने लगी जैसे कुछ याद आ रहा हो।

नहीं दीदी जी जो सामान अपना नहीं है उस पर बुरी नीयत क्यों डालना ।आपका सामान आपको वापिस करने में कैसा इनाम ऐसा तो होना ही चाहिए…..क्या हो गया दीदी जी मुझसे कोई गलती हो गई है क्या मुझे गौर से अपनी ओर देखने पर वह आशंकित हो उठी।

…तुम वही हो ना जो बड़ी वाली सब्जी मंडी में सब्जी की दुकान लगाती थी लेकिन तब तो….

मेरा बिछड़ा यार  – गोमती सिंह

……हां दीदी जी आपने ठीक पहचाना तब मेरा घरवाला भी था हम दोनों मिलकर बहुत कमाई कर लेते थे दुकान का किराया आसानी से दे देते थे।लेकिन ज्यादा कमाई ने नशा करने की आदत मेरे घरवाले में डाल दी । पीने की आदत ने हमारा घर बर्बाद कर दिया दीदीजी।मेरा कहा नहीं सुनता था।एक दिन नशा करके दुकान पर बैठ गया और बगल वाली दुकान से बहस हो गई बहुत झगड़ा बढ़ा जब तक पुलिस आई बेदम पिटाई और नशे ने उसकी जान ले ली थी… वह सिसक कर रोने लगी थी उसकी बेटी जल्दी से मां से लिपट कर उसे चुप कराने लगी थी।

आप तब हमारी दुकान पर आईं थीं क्या दीदी जी , उसने अपने आंसू जल्दी से पूछ कर बेटी को गोद में बिठाते हुए पूछा।

हां मुझे बहुत अच्छी से याद है।  एक दिन जब मैं वहां से सब्जी ले रही थी बहुत भीड़ थी उस दिन ।मैं जल्दी जल्दी सब्जी लेकर अपनी गाड़ी में रखने आई ।उस दिन सब्जियां बहुत ज्यादा थीं।मैने सोचा गाड़ी  में सब्जी के थैले रख कर वापिस आकर रुपए दे दूंगी ।लेकिन मेरी गाड़ी की चाभी गुम हो गई थी।मैं बहुत परेशान हो गई फिर घर पर फोन किया दूसरी चाभी मंगवाई।इन्हीं सब में सब्जी के रूपये देने भूल ही गई थी।

कुछ दिनों बाद जब रूपए लौटाने वहां गई तो दुकान ही नहीं मिली।बहुत पूछ ताछ करने पर भी तुम लोगो का कोई पता नहीं चल पाया मुझे।

आज तुम्हे देख कर वो घटना याद आ गई।लो तुम्हारे उस दिन के बाकी रुपए …. मैंने फिर से उन्हीं रुपयों में और रुपए मिलाते हुए उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहा तो वह छिटक गई।मेरा उद्देश्य उस समय उनकी सहायता करना ही था क्योंकि मैं अपना कीमती मोबाइल मिलने से एहसान मंद थी।

नहीं दीदी जी मुझे बिल्कुल याद नहीं है।उनके साथ ही सब बाते बीत गईं जो बीत गया बीत गया …मैं नहीं लूंगी ये रुपए उसने दृढ़ता से कहा ।

देखो मुझ पर विश्वास करो ये कर्जा है मुझ पर तुम ये रख लो ।अपनी बेटी की पढ़ाई पर खर्च कर देना मैंने उसका हाथ पकड़ कर कहा तो वह रोने लग गई।

कैसी पढ़ाई किसकी पढ़ाई दीदी जी मेरी बेटी भी मेरी तरह सब्जी बेचेगी इतना पैसा कहां है मेरे पास जो किताब कापी ड्रेस का खर्चा निकाल सकूं… !!

अस्मिता  – सरला मेहता

किसी तरह समझा बुझा कर मैं उसके हाथ में जबरदस्ती रूपये थमा देना चाहती थी लेकिन वह टस से मस नहीं हुई ।

हारकर मैं नन्ही लड़की को स्नेह से देखती हुई वापिस आ गई।लेकिन पूरे रास्ते आंखों के सामने मां बेटी दोनों के चेहरे घूमते रहे।दोनों की ईमानदारी मासूमियत मेरे मोबाइल के लिए फिक्रमंद होना सबने जैसे उनके और मेरे बीच कोई जुड़ाव पैदा कर दिया था।

आज के चालाकी धूर्तता से परिपूर्ण जमाने में जहां लोग किसी भी तरीके से ठग कर रुपए कमाने में लिप्त है ….ऐसे मासूम इंसान बिचारे कुचल दिए जाएंगे।

वह अबोध लड़की जो अपनी बालसुलभ ख्वाहिशों को दबाकर मां के काम में सहयोग कर रही है,उसका भावनात्मक संबल बन रही है, ईमानदारी से किसी का छूटा हुआ मोबाइल वापिस करने के संस्कार की नींव रख रही है और उसकी दुखियारी मां इतनी तंगहाली में भी दया की भीख ना मांगकर अपनी बच्ची को अपने और पराए सामान पर हक का अंतर समझा रही है स्वाभिमान से जीने की जमीन तैयार कर रही है..!अगर इन्हें हिम्मत नहीं दी गई तो ये अनवरत संघर्ष की चक्की में पिस कर अपना अस्तित्व खो देंगे।मेरा मन चीख उठा।

आधे रास्ते से मैने गाड़ी वापिस घुमाई और फिर से वहीं पहुंच गई।

सुनो क्या  तुम चाहती हो तुम्हारी बेटी पढ़ाई करे स्कूल जाए!! मुझे आश्चर्य से देखती उन मां बेटी से मैने पूछा तो उनके चेहरे खिल गए

लेकिन फिर बुझ भी गए।

लेकिन फीस और खर्चा?? मां ने पूछा।

मैं ऐसा स्कूल जानती हूं जहां फीस भी नहीं लगती और किताब कापी ड्रेस का भी कोई खर्चा नहीं है बल्कि इसको दोपहर में खाना भी मिलेगा .. मैने कहा तो अचरज से मा का मुंह खुला रह गया।

 बेटी बनी मां – डॉ उर्मिला शर्मा

अनपढ़ दुखियारी मां जो बस नित्य एक समय का भोजन जुटा कर अस्तित्व बचाए रखने को छटपटाती रहती हो वह दुनिया में क्या हो रहा है इस तथ्य से पूरी तरह अनभिज्ञ होना स्वाभाविक ही था..!!

जानती हो अगर तुम उस स्कूल में बहुत अच्छे से पढ़ाई करोगी अच्छे अंक लाओगी तो तुम्हे आगे पढ़ने के लिए स्कॉलरशिप भी मिलेगी मैंने मासूम लड़की की दुबली हथेलियां पकड़ कर कहा तो उसकी नन्हीं आंखों में जुगनू चमकने लगे थे ।

लेकिन मुझे तो पढ़ाई बहुत कठिन भी लगती है मुझसे कुछ भी नहीं बनता ।स्कूल में सब लोग मेरी हंसी उड़ाएंगे.. अचानक वह डर गई।

मैं पढ़ाऊंगी तुम्हें …पढ़ोगी मुझसे मेरे घर आकर.. और मैं तुम्हारे साथ स्कूल जाकर सभी से मिल लूंगी तुम चिंता मत करो..मैने उसके डर को भगाने का समाधान दिया तो वह अचरज से मुझे देखने लगी।

आप को पढ़ाना भी आता है पर आप इसे क्यों पढ़ाएंगी सशंकित हो उठी उसकी माँ।

क्योंकि तुम्हारी बेटी ने मेरा मोबाइल वापिस किया है।अगर यह गुम जाता तो तुम सोच नहीं सकतीं मेरा कितना बड़ा नुकसान हो जाता मैने उसके स्तर का कारण बताया और वह खुश भी हो गई।

अनजाने स्नेह का अंकुर जो मेरे दिल में प्रस्फुटित हो गया था मैं उसे कैसे बताती..!!

सच्ची..!!फिर तो आप मेरी दीदीजी हो गईं..तब तो मैं खूब खूब सारा पढूंगी पढ़ती जाऊंगी फिर मेरी मां को यहां बैठ कर सब्जी नहीं बेचनी पड़ेगी … छोटी लड़की उत्फुल्लित होकर मां को पकड़ कर खिलखिला उठी।

दुत् पगली …कहते मां ने हंसकर दुलार से बेटी को लिपटा लिया था।

तलाश, एक टुकड़ा जिंदगी की – नीलिमा सिंघल 

चलो फिर जल्दी से आज ही स्कूल चलते हैं मैंने कहा तो दोनों मां बेटी इस बार बिना संकोच के मेरे साथ मेरी गाड़ी की तरफ चल पड़े थे …..!

तब से वह लड़की रुकी नहीं …पूरी गति से पढ़ती गई बढ़ती गई और समय के साथ साथ मेरे और  उसके बीच स्नेह के बंधन भी मजबूत होते गए..!वह प्रतिदिन मेरे घर आती बिना कोई और बात किए पढ़ने में ही जुट जाती।मेरी हर बात बहुत ध्यान से समझती और मानती।मेरे घर में सब उसे मेरी बेटी ही बुलाने लगे थे।

मां मां आपकी बेटी आई है ….कब से बुला रही है आपको …कहां खोई हो आप …!!बेटे सुमंत की तेज आवाज सुनकर मैं जैसे सोते से जाग पड़ी..!मेरा बेटा उस लड़की को हमेशा मेरी बेटी कह कर ही चिढाता था।

जल्दी चलिए ना दीदीजी….. अपनी मजबूत हथेलियां मेरी ओर बढ़ाते हुए वह आतुर हो बोल उठी। मेरे कदम तेजी से बाहर आए।

आज …..वही दुबली हथेलियों वाली अबोध लड़की बैंक मैनेजर बन कर सामने खड़ी थी।बड़ी सी गाड़ी में मुझको लेने आई थी ।आज उसके बैंक में होने वाले कार्यक्रम जिसकी थीम थी “आपके जीवन के आदर्श” में मुझे मुख्य अतिथि बनाकर साथ ले जाने के लिए।

ये तो स्नेह के बंधन हैं जो दिखाई तो नहीं देते मगर निस्वार्थ भाव लिए निरंतर अपनी जकड़न बढ़ाते रहते हैं… उसकी मजबूत हथेलियों के सहारे गाड़ी में बैठते हुए मै आह्लादित हो सोच रही थी।

स्नेह का बंधन#साप्ताहिक शब्द प्रतियोगिता

लतिका श्रीवास्तव

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