मेरा बिछड़ा यार  – गोमती सिंह

#एक_टुकड़ा 

——-सरिता के विवाह का आज दूसरा दिन था । वह सुबह से शाम तक ब्यस्त थी । परिवार के सभी सदस्यों को भोजन परोसने के बाद जब दोपहर को आराम करनें अपने कमरे की ओर जा ही रही थी कि उसके देवरजी और ननदजी  लोगों नें रोक कर घेर लिए।

       उसके सबसे नन्हे देवर सुज्जू ने बड़े ही स्नेहिल आवाज़ के साथ-साथ मजाकिया अंदाज में कहनें लगे – “नहीं भाभीजी,  अभी आपको आरामगाह में जानें की इजाज़त नहीं है। ” सरिता भी कोई कच्ची उम्र की डरी डरी सी रहनें वाली दुलहन नहीं थी ।वह गृहकार्य में दक्ष तथा स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त कर लेंने के बाद ससुराल आई थी ।

     अतः भरपूर आत्मविश्वास के साथ मजाक करनें लगी ” क्यों देवरजी ! खिला दिए पीला दिए अब बैठा कर क्या हमारे मायके में हम जैसी कितनी और लड़कियां हैं

इसका हिसाब पूछना है क्या ?”

      अरे नहीं भाभीजी, आपके मुंह से दो चार बोल सुनने हैं।  ” बैठिए तो ज़रा।

          इस तरह पूरा दिन बीत गया ।

        रात का भी भोजन सभी जन का हो गया।


       भारतीय संस्कृति की स्त्रियों में यही विशेषता होती है कि उसका स्वभाव पूर्णतः पृथ्वी जैसा होता है । जिस तरह पृथ्वी की ऊपरी सतह शान्त होती है मगर अंदर लावा भरा रहता है । जिसे वह कभी ब्यक्त नहीं करतीं हैं।

             इस नई नवेली दुल्हन के दिल में भी आते ही लावा भर गया था। क्योंकि उसका पति शराबी था ।

             रात को अपनें पति देव के आनें का इंतज़ार करते हुए वह अपनी डायरी में लिख रही थी —

   ” सजी धजी बैठी थी शाकी ,

   किसी को नजरों के ज़ाम पिलाने को।

   देखा लड़खड़ाते पति को ,

   बिजली गिरी नज़रों के ज़ाम पर, दिल को लगा धक्का ,

शाकी चली संभालने शराबी को ।

  विवाह के पश्चात उसकाअपने पति के साथ ये पहला अनुभव था ।

     फिर क्या था दिन पर दिन बीतने लगे नशे की आदत बढती ही जा रही थी। 


        सरिता एक पढी लिखी औरत थी , कलह क्लेश उसे पसंद नहीं था । मगर कब तक सहती , चुप रहती आखिर लड़ाई झगड़े की शुरुआत हो ही गई ।

      अंजाम ये हुआ कि नशे का अंत तो नहीं हो सका उसके पति ने आत्महत्या कर ली।

        पति के गुजर जाने के बाद वही बहु जो पढी लिखी समझदार कही जाती थी , कुल्टा औरत की पहचान बन गई।

        अब ससुराल में रहना दुभर हो गया।  इसी बीच उसकी गोद में एक सुन्दर सी बिटिया आ गई थी ।

          तानों से आहत होकर वह अपने मायके में रहनें लगी । वह प्राइवेट स्कूल में शिक्षिका बन गई , इस तरह जिंदगी गुजर रही थी कि एक दिन उसकी मुलाकात प्रायमरी स्कूल की सहेली फूलकुमारी से हो गई ।

          हुआ यूँ कि वह बाजार में सब्जी ख़रीद रही थी तभी पीछे से किसी ने उसके कंधे पर हाथ रख दिया,  वह चौंक कर पीछे देखी और उस ब्यक्ति के उपर बिफर गई ,आक्रोशित हो गई ।

    मगर उस ब्यक्ति पर  कुछ भी फर्क नहीं पड़ा।  ब्लकि एकदम शांत मुद्रा में वह कहनें लगा ” गुस्से में मत आओ, मैं तुम्हारा बिछड़ा यार हूँ। “


       इतना सुनते ही सरिता आगबबूला हो गई ” ये क्या कह रहे हो , अपना हुलिया देखो ।”

मेरा हुलिया देखकर गुस्सा मत करो।

   मैं तुम्हारा बचपन का यार “फूलकुमारी ” हूँ।  जो आज किन्नर बन गई हूँ।

        सरिता सुनकर हतप्रभ रह गई।  पशोपेश में पड़ गई , बात करे या न करे , साथ चले या न चले हाथ मिलाए या न मिलाए । 

          इस तरह उन दोनों की जिंदगी ने एक नया मोड़ लिया । सरिता समाज की झूठी रीति रिवाजों का परवाह न करते हुए  अपनी पुरानी सहेली फूलकुमारी जो किन्नर हो गई थी, उसका साथ देते हुए उसके साथ रहने लगी ।

        इस तरह दोनों को बिछड़ा यार मिल गया।  और दोनों सुख शांति से जीवन यापन करने लगे ।

      ।।इति।।

     -गोमती सिंह

        छत्तीसगढ़

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