दादी मां – विनय मोहन शर्मा : Moral Stories in Hindi

  राहुल के पिता कांति प्रसाद एक छोटे से कस्बे में अध्यापक थे। उनकी धर्मपत्नी श्रीमती राजेश्वरी देवी भी अपने पति के साथ ही रहती थी। राहुल गांव में अपनी दादी मां के साथ ही रहता था, वह अपनी दादी मां का बहुत लाड़ला था। राहुल के पिता कांति प्रसाद छुट्टियों में घर पर आते तो दादी मां के लिए और राहुल के लिए दशहरी आम का टोकरा अवश्य अपने साथ ले कर आते। राहुल की दादी मां को आम बहुत ही पसंद थे।

  राहुल जब पढ़ने की उम्र में आया तो दादी मां ने उसे गांव की पाठशाला में पढ़ने बैठा दिया। दादी मां उसका पाठशाला से लौटने का इंतजार करती और पाठशाला से लौटने पर राहुल के हाथ मुंह धुलाती, इसके बाद ही दोनों दादी पोते साथ ही खाना खाने बैठते थे।

    एक दिन काफी प्रतीक्षा करने के बाद भी राहुल अब तक घर नहीं लौटा था। दादी मां को उसकी चिंता होने लगी थी और मन में कुत्सित विचार आ रहे थे। वह अपनी लाठी लेकर राहुल को ढूंढने निकल पड़ी। पाठशाला के अहाते तक पहुंच कर देखा कि राहुल पाठशाला के नजदीक जोहड़ में डूबते-उतराते बच्चे को जोहड़ से बाहर निकालने का प्रयास कर रहा है। राहुल बड़ी मेहनत के बाद उस डूबते हुए

बच्चे को बाहर निकाल पाया। राहुल के सारे वस्त्र गीले हो चुके थे और वह बच्चे को ढाढस बंधाने की कोशिश कर रहा था क्योंकि बच्चा अब भी भयभीत था। तब तक दादी मां भी राहुल के नज़दीक पहुंच चुकी थी। राहुल ने जिस हिम्मत से बच्चे को जोहड़ से बाहर निकाला उसे देखकर दादी मां को उसकी बहादुरी पर गर्व हुआ।

   तभी उस बच्चे के माता-पिता भी उसे ढूंढते हुए उधर आ निकले और अपने बच्चे को सकुशल देख ईश्वर को धन्यवाद दिया और बच्चे को अपने साथ ले कर चले गए। दादी भी अपने पोते राहुल के साथ घर चली आई और उसके गीले कपड़े उतरवाकर सूखे हुए कपड़े पहनाए। इसके बाद दोनों खाना खाने बैठे।

   दादी मां का असली नाम कमला था किन्तु इस नाम से केवल गांव के बुजुर्ग ही परिचित थे, नई पीढ़ी के लोग उन्हें दादी मां कहकर संबोधित करते थे। दादी मां के मामा का बेटा जानकी प्रसाद शहर में किराना स्टोर चलाता था। उसके एक ही बेटा था भवानी प्रसाद । जानकी प्रसाद अपनी बहन से मिलने गांव आते रहते थे और कभी कभी उनका बेटा भवानी भी अपनी बूआ से मिलने अपने पिता के साथ चला आता था।

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   अब जानकी प्रसाद तो रहे नहीं, उनके बेटे भवानी ने अपने पिता का कारोबार संभाल लिया था और अपने पिता की तरह ही कभी कभी अपनी कमला बूआ से मिलने गांव चला आता था। अब राहुल ने भी अपनी पांचवीं कक्षा तक की शिक्षा पूरी कर ली थी और उसे शहर में आगे की पढ़ाई करने जाना था। लेकिन शहर में पढ़ने के लिए भेजने को दादी मां घबरा रही थी क्योंकि उसने राहुल को कभी अकेले बाहर निकलने नहीं दिया था।

   एक दिन भवानी प्रसाद बूआ से मिलने गांव आया हुआ था तो दादी मां ने उसके सामने शहर में राहुल की आगे की पढ़ाई करने की बात छेड़ी और कहने लगी कि बेटा भवानी राहुल को मैंने कभी अकेले बाहर नहीं निकलने दिया है। मैं चाहती हूं कि यह तुम्हारे पास रहकर अपनी आगे की पढ़ाई करे। इसलिए तुम इसे अपने साथ ही ले जाना।

   दूसरे दिन भवानी प्रसाद राहुल को अपने साथ शहर लेकर चल पड़ा। भवानी प्रसाद की पत्नी गौरी ने राहुल के गाल थपथपा कर स्नेह किया। दोनों पति-पत्नी राहुल का ध्यान रखने लगे थे।  राहुल को एक सरकारी स्कूल में दाखिला दिलवा दिया गया था। अब राहुल रोज स्कूल जाने लगा।उनके एक छोटा शिशु था जिसे राहुल स्कूल जाने से पहले और आने के बाद  जरूर खिलाता।

      दादी मां कमला का एक और बेटा था जमना प्रसाद जो कांति प्रसाद से दो वर्ष छोटा था। दोनों भाइयों में किसी बात को लेकर मनमुटाव हो गया था कि जमना प्रसाद  ने एक  छोटी सी बात को लेकर बड़े भाई का सामना कर लिया था साथ ही तेज स्वर में चिल्ला उठा था। इसी बात को लेकर कांति प्रसाद ने अपने छोटे भाई से हमेशा के लिए नाता तोड लिया था और जमना प्रसाद अपने परिवार को साथ लेकर अलग रहने लगे थे। 

 राहुल भी शहर से अपनी पढ़ाई पूरी कर वापस अपनी दादी मां के पास गांव लौट आया था और दादी मां भी उसे अपने पास पाकर प्रसन्न थी किन्तु इसके बावजूद भी दादी को अपने जीवन में खालीपन महसूस हो रहा था। आज उसके दोनों बेटों में से एक बेटा उसकी नज़रों से दूर था। कभी दोनों बेटों का परिवार एक साथ रहता था और घर में चारों ओर खुशी का साम्राज्य था, आज वहीं बड़े बेटे का परिवार उसके पास होने पर भी चारों ओर नीरवता छाई हुई थी। दादी मां आज बहुत उदास थी और यही सोच रही थी कि अपने दोनों बेटों के बीच खड़ी हुई दीवार कैसे गिराऊं।

   एक दिन उसने अपनी योजना अनुसार दोनों बेटों को अपनी गहन बीमारी का तार भिजवा दिया जिसमें बताया गया कि इस बीमारी का इलाज असंभव है , मेरे प्राण पखेरु कभी भी उड़ सकते हैं। इसलिए तुरंत पहुंचो। तब दोनों बेटों को तार मिला तो जमना प्रसाद अपनी पत्नी को साथ लेकर तुरंत मां से मिलने चला आया

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और कुछ ही घंटों में बड़ा बेटा कांति प्रसाद भी आ पहुंचा। दोनों बेटों ने देखा कि उनकी मां बिस्तर पर पड़ी थी और उसके चेहरे की चमक भी फीकी पड़ गई थी। अपनी मां की ऐसी हालत देखकर दोनों बेटों की आंखों में अश्रु आ गए थे, वे अपनी मां को शहर ले जाकर किसी अच्छे डॉक्टर से संपर्क कर उसका इलाज कराने की आपस में बातें कर रहे थे।  यह सुनकर दादी मां कमला जो अपनी आंखें मूंदकर सब कुछ देख सुन रही थी। अचानक बिस्तर से उठ खड़ी हुई और अपने दोनों बेटों से बोली कि मेरी इस बीमारी का इलाज किसी भी डाक्टर के पास नहीं है, केवल तुम्हारे पास है।

  तुम दोनों अपने पुराने वैमनस्य को भुलाकर यदि एक साथ रहने लगोगे तो मेरी यह बीमारी बिल्कुल ठीक हो सकती है। इतना कहकर चुप हो गई। छोटे बेटे ने अपने बड़े भाई से क्षमा मांगी और छोटे को क्षमा करते हुए कांति प्रसाद ने अपने गले से लगा लिया। आज दादी मां का वह बोझ हल्का हो गया था जो बरसों से उसे कष्ट पहुंचा रहा था साथ ही जीवन का खालीपन भी।

 

विनय मोहन शर्मा कवि 

अलवर राजस्थान

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