*बबूल का पेड़* – बालेश्वर गुप्ता : Moral Stories in Hindi

   हैलो-हैलो-मैं कुसुम बोल रही हूं।

   हाँ-हाँ, बहन जी मैं रमेश हूं, क्या बात है,आप बड़ी घबराई प्रतीत हो रही हैं?

       भाईसाहब आप तुरंत आ जाइये,वीरेंद्र जी को शायद हार्ट अटैक आया है,उन्हें होस्पिटल लेकर जाना है।

          रमेश जी तुरंत ही अपनी कार निकाल कर बाहर खड़ी की,और पड़ोस में ही रहने वाले वीरेंद्र जी के घर चले गये,रमेश जी तुरंत ही वीरेंद्र जी को अपनी कार से हॉस्पिटल ले गये, जहां उनका इलाज तुरंत प्रारम्भ हो गया।72 वर्षीय वीरेंद्र जी और 70 वर्षीय उनकी पत्नी कुसुम अकेले ही रमेश जी के पड़ोस में एक बंगले में रहते थे।उनका बेटा विवेक अमेरिका में जॉब करता था।अब तो उसने वही की नागरिकता ले ली थी।यूँ तो वीरेंद्र जी के एक बेटी शैली भी थी,

उसकी शादी वे कर चुके थे।संयोगवश शैली के पति भी अमेरिका में ही जॉब में थे।वीरेंद्र जी चीफ इंजीनियर की पोस्ट से रिटायर हुए थे,अपने नौकरी काल मे ही आलीशान बंगला बनवा लिया था,खूब सम्पन्न थे वीरेंद्र जी,अब भी उन्हें कोई कमी नही थी।दोनो बच्चो की शादी करके अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो चुके थे।

वर्ष में छः माह के लिये अमेरिका जाते,और बेटा एवम बेटी के यहां रहकर ही वापस आते।भारत मे आकर उन्हें सुकून मिलता था।खुद अपनी गाड़ी ड्राइव कर लेते।खूब मिलनसार थे वीरेंद्र जी।अपने परिचितों के यहां आते जाते रहते थे।वे कहते थे कि किसी भी परिचित के यहां जाने से दो लाभ होते है एक तो इससे आत्मीयता बढ़ती है,दूसरे हमारा कुछ समय कट जाता है।ऐसा ही नही कि वही केवल जाते हो,वे स्वयं भी सबको अपने यहां बुलाते रहते थे।

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अमेरिका से वापस आने पर वे अक्सर कहते कि सही बात तो ये है कि हमारा मन वहां नही लगता,बच्चो के पास हमारे लिये समय भी सप्ताहंत में ही मिलता है।उन्होंने  विवेक से कई बार कहा भी बेटा तू भारत ही आ जा,वहां किस चीज की कमी है,सबकुछ तो है वहाँ।पर विवेक टाल जाता। वह अपने पापा को तस्सली दे देता,

अरे पापा वहां आप रहते ही कितना हो,हर साल आप यहां आते तो हो,और वहां भी आपको सब सुविधाएं उपलब्ध हैं तो।वीरेंद्र जी चुप रह जाते,कह ही नही पाते अरे बेटा भारत मे सबकुछ है,पर तू नही है,मेरे बच्चे।मन ही मन बड़बड़ा कर चुप रह जाते।

     इधर अबकि बार जब वे अमेरिका से वापस आये तो उनके चेहरे पर पहले जैसी प्रफुल्लता नही थी,बात करते करते कुछ सोचने की मुद्रा में आ जाते।रमेश जी उनसे पूछा भी,कि  क्या बात है आप कुछ परेशान से लग रहे हो?पर वीरेंद्र जी बात टाल गये।एक दिन बोले रमेश बेटी तो दूसरे घर की हो गयी,उस पर तो हमारा हक रहा नही,

बेटा है,उसके पास बड़े अरमान से जाते रहे है,पर पिछले दिनों से ऐसा लग रहा था कि बहू बेटा हमारे अमेरिका उनके पास जाने पर खुश न होकर बोझिल सा मानते हैं।पहले तो अपना वहम ही समझा, पर एक दिन बहू बेटे का वार्तालाप सुन सब वहम भी खत्म हो गया।बहू कह रही थी चार चार महीनों के लिये आ जाते हैं, हमारे सब प्रोग्राम चौपट हो जाते हैं,

सप्ताह में दो दिन छुट्टियों के मिलते हैं, वे इनके भेंट चढ़ जाते हैं, देखो विवेक तुम अपने मम्मी पापा के लिये वही भारत मे ही एक्स्ट्रा पैसे भेज दिया करो।हर वर्ष यहां आने की क्या जरूरत है?वो तो ठीक है डार्लिंग, पर कहूँ कैसे समझ नही आ रहा।

         सुनकर वीरेंद्र जी वहां से हट गये, आगे कुछ सुनने का कोई मतलब भी नही था।अबकि बार वे दो माह में वापस आ गये, विवेक और बहू ने एक बार भी नही पूछा क्यो जल्दी जा रहे हो।वीरेंद्र जी की उदासी का कारण रमेश जी को अब समझ आया।पर इसमें वह कुछ भी करने में असमर्थ थे।

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       वीरेंद्र जी चीफ इंजीनियर रहे थे,खूब पैसा था,तो उनकी खुद की आकांक्षा थी कि उनका बेटा विदेश में ही पढ़े और नौकरी करें।जैसा उन्होंने सोचा वैसा ही हो गया।बेटा अमेरिका चला गया और वही बस भी गया।रिटायरमेंट के बाद पता चला कि वे तो बुढ़ापे में निपट अकेले रह गये हैं।दुःख सुख में भी अपना कोई पास नही।वीरेंद्र जी सोचते रहते कि अभी तो कुछ हाथ पांव चल भी रहे है,आगे कैसे होगा?जब एक साथी और कम हो जायेगा तो दूसरा कैसे तन्हाई भरा जीवन जी पायेगा?सोचते सोचते वीरेंद्र जी अपने मे ही खो जाते थे।

        हार्ट अटैक आने पर यही तो हुआ,वह तो पड़ोस में रहने वाले रमेश जी का भला हो जो तुरंत वीरेंद्र जी को होस्पिटल ले गये, इतना ही नही जब तक वे घर वापस आये, रमेश जी ने ही होस्पिटल में उनका ध्यान रखा।हार्ट अटैक की बात सुन विवेक का एकदम फोन अपनी माँ के पास आया बोल रहा था,

मम्मा पापा का ध्यान रखना,कोई भी जरूरत हो बताना।विवेक की बात सुनकर कुसुम जी का चेहरा कठोर हो चला था,फिर भी संयत स्वर में वे बोली नही बेटा किसी चीज की कोई कमी नही,इनके मित्र रमेश जी ने सब संभाल लिया है,तू चिंता मत कर।कहकर कुसुम जी ने ही फोन काट दिया।

          फोन शैली का भी आया,उसने कहा कि माँ मैं आपके पास आ रही हूं।एक सप्ताह बाद ही शैली आ गयी।शैली के आने से वीरेंद्र जी एवम कुसुम जी के चेहरे खिले खिले रहने लगे।एक दिन शैली चली गयी,तो फिर उसी सूनेपन ने उन्हें घेर लिया।

        वीरेंद्र जी अब अक्सर बीमार रहने लगे थे,विवेक फोन पर हालचाल पूछने और माँ को दिशा निर्देश देकर अपने कर्तव्य का निर्वहन कर रहा था।इस बीच उसने भारत आने तक का भी कोई प्रयास नही किया,जबकि शैली के पति को भारत मे जॉब मिल गया और वह भारत आ गयी।शैली ने भारत आकर सबसे पहले

अपनी मम्मी पापा से संपर्क कर उनको साफ कर दिया कि वे अब उसके साथ रहेंगे,वह किसी भी कीमत पर उन्हें अकेले नही रहने देगी।बंगले को लॉक कर दिया गया और वीरेंद्र जी और कुसुम जी को शैली अपने साथ लिवा ले गयी।

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       शैली के साथ जाने से पहले वीरेंद्र जी रमेश जी से मिलने आये और बोले भाई रमेश जीवन मे एक सबक तो मिला कि अपनी औलाद के बारे में सर्वोत्तम तो अवश्य सोचो पर उस सर्वोत्तम में वे खुद भी कही ना कही स्थित होने चाहिये, ये संस्कार देने का कर्तव्य भी तो हमारा ही है।

बालेश्वर गुप्ता,नोयडा

सच्ची घटना पर आधारित

*#जब बच्चो को अकेले रहने की  आदत हो जाती है तो बड़े-बुजुर्ग में उन्हें बंधन दिखाई देने लगता है* वाक्य पर आधारित कहानी:

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