“बातों ही बातों में” – ऋतु गुप्ता : Short Moral Stories in Hindi

Short Moral Stories in Hindi

अले अले बाबा ! ये आप अभी क्या कर रहे हो,देखो आपके कपड़ों पर कितने दाग लग गये है,आपके सारे कपड़े गन्दे हो गये है,पर आप ये जूठी जामुन की गुठली मिट्टीं में क्यूं दबा रहे हो, नन्हे से चुन्नू ने अपनी तोतली जुबान में अपने बाबा से जब ये बात पूछी तो बाबा खिलखिला कर हंस पड़े ,

और जल्दी से अपने पोते को गोद में बैठाते हुए कहा अरे अरे मेरे प्यारे बच्चे, मेरे प्यारे से नन्हे मुन्ने चुन्नू ,ये मेरे कपड़े गन्दे नहीं हुए और ना ही इन पर कोई दाग़ लगा है,बस थोड़ी सी मिट्टी लगी है जो धोने पर साफ हो जायेगी,पर ये दाग पर्यावरण की सुरक्षा के लिए बहुत जरूरी है,आने वाली पीढ़ियों के लिए हर किसी को मिट्टी के ये दाग पसंद होने ही चाहिए।

आ आज तुझे इन फलो के सूखे बीजों के महत्व के बारे में बताता हूं।कहकर चुन्नू के दादाजी उसे पर्यावरण और उसका महत्व समझाने, और नन्हा चुन्नू भी अपने दादाजी की बात बड़े ध्यान से सुनने लगा।

दादा जी ने कहा, प्रकृति ने हर चीज का निर्माण आगे बढ़ाने के लिए उसके अंदर ही उसका बीज डाला है ,बस इंसान को इस प्रक्रिया को पीढ़ी दर पीढ़ी आगे ले जाना है।

इंसान को कभी भी अपने खुद के लगाए फलों के वृक्षों से फल नहीं मिल सकते, लेकिन अपने पूर्वजों के लगाए वृक्षों से ही हमें वह सब प्रदान हुआ है जो हम भोगते हैं।

भोगते का मतलब क्या बाबा ? नन्हे चुन्नु ने उत्सुकतावश आंखें बड़ी करते हुए पूछा तो बाबा भी बिना मुस्कुराये नहीं रह पाये।

उन्होंने समझाया देखो मैं यह बात इस तरह से समझाता हूं कि यदि हम आज वृक्ष लगाते हैं तो वह 20 साल बाद जाकर बड़ा होगा,तब फल देगा, और हो सकता है तब तक हम उसके फल खाने के लिए रहे ही नहीं।

लेकिन हमारी आने वाली पीढ़ी उसके फल खा सकती है, क्योंकि हमारा भी अपने पूर्वजों के लगाए फलों के वृक्षों से ही आज तक पालन-पोषण होता आया है, इसलिए अब हमारा भी फर्ज है कि हम वृक्ष लगाएं और आने वाली पीढ़ी को यह तोहफा उसी तरह उपहार में दें ,जैसे हमारे पूर्वजों ने हमें दिया है।

वृक्ष लगाने से एक तो मां वसुंधरा की कोख (गोदी) शीतल होगी, आसपास का पर्यावरण स्वस्थ और सुंदर होगा और आने वाली पीढ़ी भी वृक्ष लगाने का महत्व समझ पाएगी ।

तो ये बीज हम सब इंसान भी यदि खाने के बाद धरती मां की गोद में रौंप दें…नन्हा चुन्नु फिर बोला रौंप दे मतलब दादाजी…..

हां हां बताया हूं, जरा तसल्ली तो रख। दादा जी ने हंसते हुए कहा। रौंप दें मतलब मिट्टी में दबा दें तो मां वसुंधरा,(ये धरती) हरे भरे वृक्षों से सजी होगी,शुद्ध वायु मंडल होगा,शीतल पवन बहेगी।

बस फिर क्या था…. नन्हा चुन्नु भी बड़ें उत्साह के साथ अपने दादाजी जी की बीज रौंपने में मदद करने लगा, थोड़ी ही देर में उसके कपड़ों पर भी मिट्टी के व सुंदर दाग लगे थे, जिन्हें वो सबको बहुत खुश हो कर दिखा रहा था।

इतनी सी ही तो बात थी जो दादाजी ने आने वाली पीढ़ी को यूं ही बातों बातों में समझा दी लेकिन आज इंसान सिर्फ और सिर्फ भोगना जानता है ,कम ही इंसान है जो दादा जी जैसे प्रकृति प्रेमी हैं।

हम सभी को भी चुन्नू के दादाजी से प्रेरित होकर पर्यावरण की यथासंभव सुरक्षा करनी चाहिए, वृक्षारोपण करना चाहिए और आने वाली पीढ़ी को मिट्टी के दागो से जोड़कर पर्यावरण का महत्व बताना चाहिए।

ऋतु गुप्ता

खुर्जा बुलन्दशहर

उत्तर प्रदेश

#दाग

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!