भरोसे की जीत – शुभ्रा बनर्जी

प्रतिमा अपनी बेटी प्रिया के साथ सहमते हुए कैब से उतर रही थी।एक अनजाना डर भी उसे सता रहा था।कैसा होगा कार्यक्रम?,इतना बड़ा होटल है,यही है ना पता?हां बच्चों से आज ही तो बात भी हुई थी।

फिर क्यूं इतना डर लग रहा है मुझे?शायद अपनी संतान और बच्चों के बीच समन्वय की शंका है यह।बड़ी मुश्किल से मनाया था बेटी को साथ आने के लिए।यदि उसके सामने मुझे किसी ने ना पहचाना तो!!उफ्फ माथे पर पसीना भी आने लगा।

मुख्य दरवाजे से बेटी का हांथ पकड़े असहज होकर जैसे ही हॉल में पहुंची,तालियों का शोर बहुत तेज हो गया।”हारटी वैलकम टू यू,हारटी वैलकम टू यू”एक साथ संगीत की धुन के साथ ये शब्द कानों में पड़े।मैं भावविभोर हो गई।इतने सारे बच्चे एक साथ ,एक जगह पर।कितने सालों के बाद देख रहीं हूं इन्हें।सोशल‌ मीडिया आज वरदान‌ साबित हुआ सच में।जाने कहां से इन्हें पता चल गया कि मैं अपनी बेटी के पास बैंगलुरू आई हूं। आननफानन में इन्होंने इस कार्यक्रम का आयोजन भी कर लिया।

तभी स्टेज़ से मेरा पसंदीदा गाना मेरी मनपसंद आवाज़ में सुनाई दिया”ये रातें,ये मौसम,नदी का किनारा ,ये चंचल हवा::::”मेरी तो सांस ही रुक गई मानो।गाना तो मेरी कमज़ोरी रही है शुरू से।क्लास तक में फरमाइशें करतीं थीं उभरते गायकों से ,और वे बड़ा खुश होकर गाते थे।

स्टेज़ के ठीक सामने बड़े से सोफे पर मेरे बैठने की व्यवस्था की गई थी।अंकुर ने आकर बड़ी गर्म जोशी से मेरा हांथ थामा और सोफे पर ले जाकर बैठाया।कृतांत स्टेज़ संचालन कर रहा था।अपनी कला कौशल के साथ।

ये सभी मेरे पढ़ाए बच्चे थे,जो यहां जॉब कर रहें हैं।बेटी ने ख़ुद ही मेरे बगल में अपने बैठने की व्यवस्था कर ली थी।मेरी तरफ जब उसने मुस्कुराकर देखा तो मानो मैं शर्मा गई।उसी की ज़िद पर यह कांजीवरम साड़ी पहनी थी।अक्सर चिढ़ाती थी मुझे “शिवगामी “बाहुबली की मां बोलकर।

कार्यक्रम की शुरुआत सरस्वती वंदना वह पूजा से हुई।मुझे दीप प्रज्ज्वलित करने के लिए बुलाया या ले जाया गया।यह सभी एक अलौकिक अनुभूति थी मेरे लिए।अपने बच्चों के प्रति मैं शुरू से ही अतिसंवेदनशील रहीं हूं।

मेरे अपने बच्चे हमेशा उलाहना देते रहे कि तुम्हें स्टुडेंट के सामने हम दिखाई नहीं देते।बाद में अहसास हुआ उन्हें इस बात पर गर्व भी था कि बच्चें मुझे इतना प्यार करतें हैं।

आज मेरे उन्हीं बच्चों ने मुझे सेलिब्रिटी बना दिया।मैंने अतिरिक्त या अति विशिष्ट कुछ भी कहां किया था।बस प्यार किया था सच्चे दिल से।डांटा भी था बहुत,मार भी खाए थे मुझसे(उस समय प्रतिबंधित नहीं था)।

मेरी बड़ी-बड़ी आंखें,रौबदार आवाज़ काफी थी अनुशासन के लिए।पर भावनात्मक रूप से मैं जुड़ी थी सभी से।पता नहीं हर किसी के मन की छिपी हुई तकलीफ कैसे दिख जाती थी मुझे उनके चेहरों से।मेरा एक -एक डॉयलॉग बहुत हिट था मेरी पहचान बताने के लिए।




कार्यक्रम शुरू हो चुका था।एक-एक कर बच्चे आ रहे थे।माइक हांथ में लेकर कोई गाना गाया ,कोई कविता सुनाया,किसी ने ग़ज़ल सुनाई।और मैं मंत्रमुग्ध हो कर अपलक निहार रही थी अपने ऐतिज्य को,अपनी धरोहर को।आज मैं सिद्ध हुई या बुद्ध हुई,पर कुछ ना कुछ तो अवश्य हुई।

मंच से आरोही ने जोर से चिल्लाते हुए कहा -थैंक यू मैम,मुझ पर भरोसा करने के लिए।अपने दोस्तों को बता रहा था कि कैसे बोर्ड परीक्षा में उसके पापा डर रहे थे और मुझसे कह रहे थे कि पता नहीं मैडम ये लड़का क्या करेगा परीक्षा में।फिर कैसे मैंने उन्हें डांटकर कहा था कि आप जाइए अब।वो सब ठीक करेगा।मुझे भरोसा है।

आज आरोही यहां प्राइवेट प्रैक्टिस कर रहा है। डॉक्टर बन गया है।

तभी अभिजीत ने मंच से वेटर को  आदेश दिया।मेरे सामने एक बड़ी सी कटोरी में खीर सामने लेकर आया वेटर।अभिजीत ने मंच में माइक लेकर मुझे कहा”थैंक यू मैम,आपने बहुत खीर खिलाई है मुझे।

सारे बच्चे नाखुश होकर मुझे देखने लगे।मैंने झट से अपनी बात कही “अरे नहीं-नहीं अभिजीत,रोज कहां खिलाई थी मैंने।वो तो एक दिन तुम टिफिन नहीं लाए थे तो मैंने दिया था अपना टिफिन।”मैं सहज होते हुए बोली।”नहीं‌ मैम आपकी खीर ने मुझे ज़िंदगी के प्रति गंभीर बना दिया।पापा से आप हमेशा बोलती थीं,मुझे भरोसा है देखिएगा ये एक दिन जरूर जिम्मेदार बनेगा।

तभी अनिमेष ने चिल्लाते हुए कहा “मैम याद है आपको, बोर्ड एग्जाम के दिन छुट्टी समझकर सोया पड़ा था घर में।आपने दस मिनट के समय रहते इंचार्ज से छिपकर फोन किया था पापा को।मुझे एग्जाम हॉल में पहुंचाने का आदेश किया था।

और पापा आफिस से आकर जैसे तैसे मुझे सेंटर लेकर पहुंचे।प्रवेश बंद हो चुका था।आपने सफलतापूर्वक अदाकारी करते हुए पापा से जैसे ही पूछा “क्या बोले डॉक्टर भैया?पेपर दे पाएगा ना अनिमेष?

पापा ख़ुद ही समझ नहीं पाए क्या ज़वाब दें।आपने फिर संभाला अरे इसे खड़े मत रखिए।जल्दी से पिऊन के साथ रूम में भेजिए।और हां उसकी दवाई मुझे दे दीजिए।मैं समय पर दे दूंगी। इंचार्ज ने आपकी एक्टिंग से प्रभावित होकर मुझे परीक्षा हॉल में जाने की अनुमति दे दी थी।मेरा साल बचा लिया था आपने।देखिए अब अनिमेष जल्दी उठता है होकर।

सभी तालियां बजा रहें थे।और मेरी बेटी मुझे घूर रही थी,हम्ममममम,हमें तो हमेशा सच बोलने का पाठ पढ़ातीं रहीं,और ख़ुद झूठी एक्टिंग।वाह!!!!,मैंने उसकी आंखों में ये प्रश्न पढ़ लिया और नज़रें घुमा ली।बाप ये!!!इतना कुछ याद है इन्हें।मैं तो भूल ही गई थी।

एक -एक करके सभी आते रहे और अपने पुराने दिनों की यादें ताज़ा करते रहें।तभी डिनर की व्यवस्था की गई।अरे!!!!पाव भाजी!!” मैं चौंकी।अब भी पांव भाजी!मैंने हंसते हुए कहा।हां”मैम आपकी सिग्नेचर डिश।

ओह!हां।स्कूल के वार्षिक मेले की यह मेरी डिश होती थी।सबसे ज्यादा बिकने वाला आइटम।भाजी मैं बनाकर लाती थी घर से ।१० किलो या १५ किलो।और बच्चे पाव में बटर लगाकर गर्म करके सर्व करते थे।इतनी पसंद थी इन्हें पाव भाजी कि घर पर मिलने आने की जानकारी भी एक दो दिन पहले ही दे देते।ताकि मैं तैयारी कर सकूं।

अंत में कृतांत ने अचानक उद्घोषणा की कि मैं अब मैम को मंच पर बुलाना चाहता हूं।साथ ही हम सभी का विशेष आग्रह है आपसे एक कविता सुनाइए।

मैंने लिखा तो नहीं था पहले से।पर तुरंत पांच मिनट का समय लिया और कविता लेकर मंच पर पहुंच गई।




क‌तांत ने कहा कुछ कहिए ना आप मैम।मैंने अपनी हंसी रोकते हुए पूछा”कुछ” ।सभी हंसने लगे।मैं कुछ कहां कितना कुछ तो कहती थी।हर पीरियड में वैल्यू, कहानियां अपने निजी अनुभव।तब जाकर मेरी क्लास खत्म हो पाती थी।

मैंने प्रोफेशनल तरीके से(जो मैं कभी थी ही नहीं) माइक हाथों में लिया और शुरू हो गई।मुझे लग रहा था गुरुत्वाकर्षण कम सा हो रहा है।मैं घूम रहीं हूं या यह हॉल घूम रहा है।कहां से शुरूआत करूं।”

बच्चों आज मेरे ऊपर किया गया भरोसा,मेरा ईश्वर पर भरोसा,तुम सब पर भरोसा जीता है।यह शाश्वत प्रेम सबूत है एक शिक्षक और छात्रों के बीच अटूट प्रेम का ।जैसे ब्रहृमांड में सूरज,चांद,तारे,नक्षत्र,ग्रह,उपग्रह,खगोलीय पिंड अनंत काल तक स्थिर हैं वैसे ही यह रिश्ता अजर अमर है।

आज भरोसे ने भरोसे के सहारे फिर से विजय प्राप्त की है।

मेरी दादी का भरोसा कि मैं राजरानी बनूंगी।मेरा भरोसा कि आखिर में सब ठीक हो जाता है,मेरी बुआ का मुझपर भरोसा,मेरा तुम पर भरोसा सच साबित हो गया।मुझे कभी अफ़सोस नहीं रहा कि मैं एक मामूली टीचर ही रही ,कुछ और न कर पाई जीवन में।

मैंने ना घर बनाया ना जायदाद ना ज़मीन।मैंने प्यार बोया  था केवल भरोसे की जमीन पर,और उन्हें सींचती रही अपनी भावनाओं से।वे सारे बीज आज अंकुरित होकर पल्लवित हो गए।मैं जीत गई ।मैंने प्रमाणित कर दिया कि मन में भरोसा हो तो कुछ भी असंभव नहीं।मैं तुम सभी की मां हूं।मेरा एक घर नहीं लाखों घर है।

पापा के अचानक जाने के बाद मैंने कामर्स ले लिया।साइंस मंहगा होता तब मेरे लिए।चार भाई-, बहन थे ।सभी को पढ़ाना था।मेरे टीचर ने मुझसे कहा था “सब्जैक्ट नया है ,पूरा नहीं कर हो पाएगा।तुम कोई चार चैप्टर अच्छे से तैयार करो। 100  में से 80 कहीं नहीं जाने चाहिए।तुम कर लोगी।और सच में मुझसे हुआ।मैं प्रेसिडेंट बने गई कॉलेज में(तब नंबर के आधार पर ही चुने जाते थे)।

फिर मैं जिस स्कूल में पढ़ाती थी वहां के प्रिंसिपल ने 5वीं और 8 वीं के बोर्ड परीक्षा की स्पेशल क्लास (गणित और अंग्रेजी) के लिए मुझे चुना यह कहकर कि मुझे भरोसा है आप पर।और नतीजा निकलने पर बहुत सारे बच्चों ने मैरिट में जगह बनाई।

मेरी बुआ ने जब मेरी शादी तय की ,मेरी मां इसके खिलाफ थी।दामाद सुंदर नहीं था उनका,गुस्सैल भी था ।पर मैंने बुआ पर भरोसा किया।और कभी पछताई नहीं।




मेरे ट्यूशन के एक वकील पैरेंट्स ने मुझ पर भरोसा किया और उस नामी स्कूल में मेरा एप्लिकेशन देकर आए। इंग्लिश मीडियम।उन्हें था मुझ पर भरोसा।मैं सैलेक्ट हुई।

मेरे बी कॉम के एक स्टूडेंट ने जब एम कॉम का फॉर्म भरा तो मुझसे बोला आप भी कर‌ लीजिए ना मैम।आपके पास ही पढ़ लेंगे हम।मैंने तब भी कहा विवेक इतने सालों के बाद मैं पढ़ पाऊंगी??हां क्यों नहीं ।आप कर लेंगी मैम।और हमने साथ में क्लियर किया एकाउंटिंग में मास्टर।

मेरी बेटी जब होने वाली थी,जुड़वां बच्चे थे पेट में।एक खराब हो चुका था ,एक था। सोनोग्राफी देखकर जब डाक्टर ने कहा ,डरो मत बेटा एक स्वस्थ है।तुम निश्चिन्त रहो।पूरा परिवार सलाह दे रहा था रिस्क ना लेने का पर मुझे डाक्टर पर भरोसा था।और एक स्वस्थ बेटी को जन्म दिया।

छोटे-छोटे बच्चों को छोड़कर नौकरी कर पाऊंगी क्या मैं?मेरी सास हमेशा कहती तुम पर भरोसा है मुझे,तुम कर लोगी।और मैंने किया।

अपनी बेटी को 10 वीं के बाद विशाखापट्टनम भेजते समय भी अपनी बेटी पर भरोसा था मुझे। ग्रेजुएशन के समय रोज़ एक ही बात बोलती थी इससे,ज्यादा टेंशन ना लेना।थोड़ा सा पढ़ना बस पास होने लायक।और मेरा उस पर भरोसा उसे गोल्ड मेडल दिलाया।

कितनी बार सब्जी वाले को ज्यादा पैसे दे दिए,और वो अपने घर की सब्जी मुफ़्त में देकर जाता ।कालोनी में मैं खरीदारी करने में निपट अनभिज्ञ थी।बेरीवाला आने पर मुझे पहले ही समझाइश दे दी जाती थी कि आप मुंह मत खोलना।

बारगैंनिंग करते नहीं आता आपसे।और मैं इस बात से सहमत थी।जहां सभी घंटों बंकर -बकर करके बीस बार कपड़े खुलवाकर नपवाकर लेते थे,मैं चुपचाप अपनी पसंद का एक या दो सामान बिना खुलवाए ले लेती।

बाद में मिलने पर पड़ोस वाली भाभियों की शिकायत सुनती।कपड़ा छोटा था।बीच में से कटा था।धोने पर रंग निकल गया पर मेरे साथ कभी ऐसा नहीं हुआ , ताज्जुब की बात है।मैं भरोसा ही तो करके लेती हूं ना।

मेरी यह आदत तर्क का विषय हो सकता है आज के जैनरेशन के लिए।आज किसी पर भरोसा करना तुम लोगों के लिए सहज नहीं है,पर मैं अपने भरोसा करने की आदत अब तो नहीं छोड़ सकती।

उस ऊपर वाले ने अदृश्य संकेत देकर मुझे यह समझाया है कि अगर भरोसा करो तो किंतु परंतु मत करो। निस्वार्थ प्रेम करो।बिना यह सोचे कि क्या मिलेगा।मैं प्रमाण हूं इस बात का कि प्रेम के साथ भरोसे में किया गया निवेश आपको बैठे बिठाए ब्याज में भरोसा और प्यार लंबे समय तक या अनंत समय तक दिलाता रहेगा।




जीवन में जो भी होता है हमारे साथ वह पूर्व संयोजित है।हम कुछ नहीं कर सकते।ईश्वर की योजनाओं में प्रश्नचिन्ह लगाकर सत्य से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता।सत्य को जितनी जल्दी स्वीकार कर लेंगे हम दुख और पीड़ा से लड़ने की ताकत उतनी ज्यादा मिलेगी।

ईश्वर पर भरोसा शंकित होकर मत रखना।उनके पास करोड़ों लोगों के मामले हैं,और सुनवाई भी करतें हैं वो।किसी की जल्दी किसी की देर में होती है सुनवाई।अगर हम परखने लग जाएंगे तो हमारा भरोसा मजबूत ही नहीं।

भरोसा अमूल्य है बिना किसी स्वार्थ के भरोसा करना और जो तुम पर करतें हैं उनका तोड़ना मत।बस यही कहूंगी।मेरा आशीर्वाद सदा तुम लोगों के साथ रहेगा।माइक से आवाज़ नहीं आ रही थी अब ।अंधेरा सा दिखने लगा आंखों के सामने।

चश्मा उतारा तो तो पूरा चेहरा भींगा हुआ था,आंसुओं से।बच्चे खड़े थे सारे जोर-जोर से ताली बजा रहे थे और अधिकतर लोग रो रहें थे।मुझे एक शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया गया।और एक बड़ा सा मोमेंन्टो दिया गया।सभी के फोटो थे उसमें।

आज भरोसे ने भरोसे की वज़ह से ख़ुद के जीतने का जश्न मनाया।आज मैं सिद्ध हुई या बुद्ध हुई पता नहीं।पर मैं कुछ तो हुई।साधारण कहां रह गई मैं अब।

तभी माइक लेकर किसी ने जोर से चिल्लाया ” एक बार बेहोश बोल दीजिए मैम पहले की तरह”।

“हैं****मैंने चश्मा नीचे कर उसे देखा ,अतुल था वो,

मैं मंच से नीचे आई ।विवेक हमेशा की तरह ऊंघ रहा था चुपचाप कोने पर कुर्स  में बैठे।हिलाया उसे और पूछा मैंने “विवेक !!बेहोश!!!”

सभी ठहाके लगाने लगे और विवेक भी मुस्कुरा दिया।

प्रिया धीरे से मेरे पास आई मेरे आंसुओं को पोंछा।साड़ी ठीक करते हुए बोली “मम्मी अब ख़ुश!!!मैंने आंखें झपका कर सहमति दी।खुशी के मारे लाल हो गया था मेरा चेहरा।और आकांक्षा अब भी मेरी पसंद का पुराना गाना गा रही थी मंच पर।

आज सदा के लिए स्थापित हो चुकी थी।इसका अब कभी विसर्जन नहीं होगा।ये खंडित विग्रह नहीं जीती -जागती मिसाल है भरोसे की।।

#भरोसा 

शुभ्रा बनर्जी 

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